विश्व में व्याप्त भ्रस्टाचार को जडमूल से हमेशा के लिए मिटाया जा सकता है ? Corruption

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प्रशासनीय सेवाओमे अत्र, तत्र, सर्वत्र भ्रस्टाचार फैला है. यह समस्या सिर्फ भारत देशकी ही नहीं बल्कि पुरे विश्व की है. वैसे अनीति भ्रस्टाचार की जननी है. यहीं से शुरु होती है कालेधन की शुरुआत. भ्रस्टाचार किसे कहते है?

भ्रष्ट यानी बिगड़ा हुआ तथा आचार का अर्थ है आचरण. अर्थात भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ ये होता है कि आचरण जो किसी भी प्रकार से अनैतिक और अनुचित हो. विश्व की तुलना में हमारे भारत देश में भ्रस्टाचार कम है.

भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक (सीपीआई) 2021 में 180 देशों की सूची में भारत को 85वां स्थान मिला है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार पिछली बार के मुकाबले भारत की रैंकिंग में एक स्थान का सुधार हुआ है.

दुनिया में कुल 193 राज्य जिन्हे अन्तराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है. उसमें कुल 192 संयुक्त राष्ट्र संघके सदस्य है. वैटिकन शहर संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं है.

जानना जरुरी है कि वो कौन से पांच प्रमुख देश हैं, जो सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं. ट्रेस इंडेक्स लिस्ट के अनुसार…

(1) नॉर्थ कोरिया : सबसे ज्यादा भ्रष्ट देशों की टॉप पांच सूची में पहला नाम नॉर्थ कोरिया का आता है. …

(2) तुर्कमेनिस्तान : सबसे ज्यादा भ्रष्ट देशों की सूची में दूसरे नंबर पर तुर्कमेनिस्तान आता है.

(3) इरिट्रिया : तीसरे स्थान पर इरिट्रिया आता है.

(4) वेनेजुएला : भ्रस्टाचार में चौथे नंबर पर वेनेजुएला का आता है.

(5) सोमालिया : भ्रस्ट देशों की लिस्ट में सोमालिया का नंबर पांच आता है.

हमारे भारत देश में भ्रस्टाचार को काबूमें लेनेके लिए अनेक कानून बने है. जिसमे सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 भी है. मगर वर्तमान में इसकी भी कछुआ चाल जैसी धीमी गति चल रही है.

भारतीय दंड संहिता, 1860 यांनी Indian Penal Code, (आईपीसी) की कई धारा भ्रस्टाचार को नियंत्रित रखने के बनाई गई है. इसमे बडी मछली तो जाल फाड़कर निकल जाती है मगर छोटी मछली पकड़ी जाती है.

सब जगह भ्रस्टाचार इतना फैल चूका है कि उसे काबूमें पाना नामुमकिन लग रहा है. यहीं बात मैंने मेरे एक मित्र को कही तो उसने कहा, तो क्या हमें पत्रकारिता छोड़ देनी चाहिए. हमें भी भ्रस्टाचारीयो से मील जाना चाहिए ?

इसके उत्तर के लिए मैने उसे एक छोटी सी कहानी सुनाई. संक्षिप्त में यहां प्रस्तुत कर रहा हूं…..

एक बार एक ब्राह्मण नदी में नहा रहा था. नदीके किनारे एक बड़ा वृक्ष था. वृक्ष के उपर से एक बिच्छू नदी में गिरा. वो जान बचाने के लिए छटपटा रहा था. ब्राह्मण को दया आयी. उसने अपने हथेली में शरण देकर, उसे किनारे पर रख दिया. मगर उस दरम्यान बिच्छू ने ब्राह्मण की उंगली पर दंश मारा. फिर ब्राह्मण नहाने में व्यस्त हो गया.

दूसरी बार बिच्छू पानी में गिरा. उस ब्राह्मण ने उसे फिर से बचाया मगर वो उसकी ऊँगली मे काटा. थोड़ी देर बार वो तीसरी बार वापस आया. फिर उसे ब्राह्मण ने बचाया. मगर फिर भी काटा.

किनारे पर सज्जन बैठा था. वो सब देख रहा था. उसने ब्राह्मण से एक प्रश्न किया, बिच्छू आपको बार बार काट रहा है फिर भी आप उसकी जान बचा रहे हो? कुछ समझ मे नहीं आया.

इसपर ब्राह्मण ने उत्तर दिया, वत्स! बिच्छू का गुण धर्म काटना है और हम ब्राह्मणों का धर्म डूबते को बचाना है. जब वो बिच्छू होकर अपना गुणधर्म नहीं बदल रहा है फिर हम तो ब्राह्मण है अतः हम कैसे हमारा किसीको बचाने का ब्राह्मण धर्म को छोड़ सकते है.

इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि भ्रस्टाचारी ओका धर्म भ्रस्टाचार करना है. हमारा पत्रकारिता का धर्म उसे पर्दाफाश करना है. भ्रस्टाचारी जब अपना भ्रस्टाचार का गुण धर्म छोड़ नहीं रहे है तो हम पत्रकार लोग अपना धर्म कैसे छोड़ सकते है. धर्म निभाते जाओ, बाकी जैसा करम करेगा ऐसा फल देगा भगवान. यहीं तो गीता का ज्ञान है

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

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