( दिल हिला देने वाली संघर्ष की कहानी.)
आज मुजे इंटरनेट टेक्नोलॉजी व्हाट्स ऍप के प्रणेता जेन कुम की बात करनी है.
आदमी अगर महेनत करके मिट्टी को छू लेता है तो मिट्टी भी सोना उगलने लगती है. कुछ लोग अपने नसीब को कोसते रहते है तो कुछ लोग पुरुषार्थ करके प्रारब्ध को ही अपनी ओर खींच लेते है. दुनिया मे ऐसे अनेक लोग है जिन्होंने महेनत करके , संघर्ष करके अपने लक्ष को हासिल किया है.
सोशल मिडिया इंटरनेट टेक्नोलॉजी के जरिये हम सभी लोग व्हाट्सऍप का इस्तेमाल करते है. व्हाट्सऍप ने सभी लोगोंको एक सूत्र मे बांधकर रख दीया है. यु कहो की एक चैन से जोड़कर रख दीया है…!.
संघर्ष सफलता की सीढ़ी है. इंसान अगर विश्वास के साथ महेनत करें तो लक्ष उसकी हथेली मे होता है. आप मे प्रतिभा हो तो प्रगती कदमो मे होती है.
आपने व्हाट्सऍप का नाम तो अवश्य सुना होगा. युवा पीढ़ी के लिये व्हाट्सअप कोई अनजाना नाम नहीं है. मगर आप जानते है सोशल मोबाइल नेटवर्क साइट व्हाट्सअप के सह संस्थापक श्री जेन कुम है. इस मजदूर के बेटे ने अपनी करियर की शुरुआत दुकानों मे झाड़ू लगाकर की थी.
इतना ही नहीं इस शख्स को अपनी भूख मिटाने के लिए कई घंटों तक कतार में खड़े रहकर मुफ़्त भोजन का सहारा लेना पड़ता था, . लेकिन मुसीबतों का डटकर मुकाबला करते उसने दुनिया के सामने एक ऐसा प्रोडक्ट पेश किया कि वो पांच साल के भीतर ही उद्योग के शीर्ष खरबपतियों की कतार में शामिल हो गए. कोशिश करने वालोकी कभी हार नहीं होती.
मोबाइल नेटवर्किंग साइट व्हाट्सएप के सह – संस्थापक जेन कूम की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैँ कि उसने शुरुआत के महज पांच सालोँ मेँ ही इसके 45 करोड़ यूजर हो गये थे और सबसे बड़ी बात है कि इस ऐप पर विज्ञापनो के लिए कोई जगह नही थी इसका रेवेन्यू मॉडल पूरी तरह ‘सब्सक्रिप्शन ‘पर आधारित है.
आपको जानकर हैरानी होंगी की जिस फेसबुक ने अरबोँ डॉलर मेँ इनकी कंपनी का अधिग्रहण किया है, उसी ने एक समय इन्हेँ अपने यहाँ नौकरी देने से इनकार कर दिया था !.
मोबाइल सोशल नेटवर्किंग की दुनिया में क्रांति लाने वाले जेन कूम का जन्म यूक्रेन के शहर कीव मे 24 फरवरी 1976 के दिन हुआ था. 16 साल की उम्र मे मजबूरी मे अपने पिता को छोड़ कर माँ और दादी के साथ अमेरिका चले आए थे.
बुरी आर्थिक हालातों को देखते हुए उन्होंने एक किराने की दुकान में झाडू लगाने का काम शुरू किया, इसी बीच इनकी माँ कैंसर से पीड़ित हो गयी, माँ को सरकार से मिले इलाज़ भत्ते के कुछ पैसे से उन्होंने किताब खरीद कर कंप्यूटर नेट वर्किंग का ज्ञान हासिल किया और बाद में फिर उसे पुरानी किताबें खरीदने वाली दुकान पर बेच दीं.
उसके बाद कूम सिलिकॉन वैली के एक सरकारी विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और साथ ही साथ एक कंपनी में सिक्यूरिटी टेस्टर का काम करने लगे, इसी दौरान साल 1997 में उन्हें याहू कंपनी में काम मिल गया और उनकी मुलाकात ब्रायन ऐक्टन नाम के एक शख्स से हुई, जो बाद में उनके बिज़नेस पार्टनर भी बने. नौ सालों तक याहू में काम करने के बाद कूम ने लगभग पच्चीस लाख रूपये की सेविंग कर जॉब को अलविदा कर दिया.
लगभग एक साल ऐसे ही बीतने के बाद उन्होंने कुछ नया करने को सोचा. जनवरी 2009 में जेन कुम ने एप्पल का आईफोन खरीदा, लेकिन उनके जिम की पॉलिसी के अनुसार वो अपना फ़ोन वहां इस्तेमाल नहीं कर पाते थे. फिर स्काइप का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया लेकिन एक दिन ये अपना पासवर्ड भूल गये. इन परेशानियों से तंग आकर उन्होंने एक ऐसे एप को दुनिया के सामने लाने के बारे में सोचा जो महज़ एक फ़ोन नंबर से लोगों को आपस में जोड़ कर रख शके.
उन्होंने अपने मित्र ऐक्टन को अपने आईडिया से अवगत कराया और फिर दोनों ने मिलकर ‘व्हाट्सएप’ पर काम करना शुरू कर दिया. इस दौरान दोनों किसी अच्छे कंपनी में जॉब की भी तलाश कर रहे थे, किन्तु फेसबुक, ट्विटर जैसी सारी कंपनियों ने इन्हें नकार दिया !!!
इन्होँने हिम्मत नही हारी और मेहनत के साथ काम मे लगे, ताकि लोगो को अपने कार्य के जरिए जवाब दे सके, मुसीबतो ने इन्हेँ अपने भावी प्रोजेक्ट को लांच करने की दिशा में और मज़बूती दी , इसी दौरान याहू के कुछ पूर्व अधिकारीयों ने इनके प्रोजेक्ट में फंडिंग करने की इच्छा जताई, फिर सब ने मिलकर दुनिया के सामने ‘व्हाट्सएप’ के कांसेप्ट को पेश किया !.
साल 2010 के शुरुआती दिनों में लॉन्चिंग के बाद कंपनी 5000 डॉलर प्रति माह की आमदनी कमाने लगी.
साल 2011 में इस कांसेप्ट ने सफलता हासिल की जिससे सबसे अधिक लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साईट फेसबुक के संस्थापक जुकरबर्ग को भी सदमे में डाल दिया.
उसके बाद कूम ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, साल 2014 में व्हाट्सएप की शानदार सफलता से हैरान होकर फेसबुक के सीईओ जुकरबर्ग ने कूम को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजा. आज कूम भले ही दुनिया के अमीर पूंजीपतियों में शामिल हैं किन्तु आज भी शुरुआती दिनों में किये संघर्षों की व्यथा उनके दिमाग़ मे हैं. जब वो फेसबुक के हाथों व्हाट्सएप का डील कर रहे थे तो उन्होंने उसी स्थान को चुना था, जहाँ कभी अपने माँ के साथ घंटो लाइन लगाकर खाना पाने का इंतजार करते थे !!!.जोन कुम का मानना है कि, “अतीत याद रखना आवश्यक है, क्योकी ये हमेशा संघर्ष करने की प्रेरणा देता है.
यह थी व्हाट्सअप प्रणेता कि संघर्ष से सफलता की हमें आश्चर्य चकित कर देने वाली कहानी. आपको अवश्य पसंद आयी होंगी.
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शिव सर्जन