शंकर जी का निवास “कैलाश पर्वत.”

kailash mansarovar

            श्री कैलाश पर्वत को भगवान श्री शंकर जी का निवास स्थान कहते है. इसका प्रमाण हमें शिवपुराण, मत्स्य पुराण और स्कंद पुराणों मे मिलता है. 

         कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रृंखला है. इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा राक्षसताल झील हैं. यहां ब्रह्मपुत्र , सिंधु , सतलुज नदियां का उदभव स्थान है. हिन्दू सनातन धर्म में इसे पवित्र माना गया है.

         पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी के पास कुबेर की नगरी है. यहीं से महाविष्णु के कर-कमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहां शिवजी उन्हें अपनी जटाओं में धारण करके धरती पर प्रवाहित करते हैं. 

       कैलाश पर्वत समुद्र सतह से करीब 6638 मीटर अर्थात 21778 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. श्री कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है. कैलाश पर्वत के उत्तरीय शिखर को ” कैलाश ” पर्वत कहते है. शिखर की आकृति विराट् शिवलिंग की तरह दिखाई देती है. यह सदैव बर्फ से आच्छादित रहता है. तिब्बती (लामा) लोग कैलाश मानसरोवर की तीन अथवा तेरह परिक्रमा करते हैं.मान्यता है कि जो 108 परिक्रमा पूरी करते हैं उन्हें जन्म-मरण से मुक्ति मिलती है.

       कैलाश पर्वत हिमालय का केंद्र है. वैज्ञानिकों के अनुसार यह धरती का केंद्र है. जबकि धार्मिक मान्यता के अनुसार श्री कैलाश पर्वत दुनिया के 4 मुख्य धर्म हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म का केंद्र है.

       कैलाश एक ऐसा भी केंद्र है जिसे एक्सिस मुंडी (Axis Mundi) कहा जाता है. एक्सिस मुंडी अर्थात दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र. यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है, जहां दसों दिशाएं मिल जाती हैं. रशियन वैज्ञानिकों के अनुसार एक्सिस मुंडी वह स्थान है, जहां अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है , और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं.

           कैलाश पर्वत पर चढ़ना निषिद्ध है, परंतु 11वीं सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चढ़ाई की थी. रशिया के वैज्ञानिकों की यह रिपोर्ट यूएन स्पेशियल मैग्जीन के 2004 के जनवरी अंक में प्रकाशित हुई थी. हालांकि मिलारेपा कभी दावा नहीं किया अतः यह भी एक रहस्य है.

       हिमालय वासियों का कहना है कि हिमालय पर यति मानव रहता है. कोई इसे भूरा भालू कहता है, कोई जंगली मानव तो कोई हिम मानव. यह धारणा प्रचलित है कि यह लोगों को मारकर खा जाता है. विश्वभर में करीब 30 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हिमालय के बर्फीले इलाकों में हिम मानव रहता है. 

        यहां पर दो मुख्य सरोवर है. एक मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और दूसरा राक्षस नामक झील, जो दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है. 

    कैलाश मानसरोवर जाने के अनेक मार्ग हैं किंतु उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट, धारचूला, खेत, कालापानी , गर्ब्यांग, लिपूलेख, खिंड, तकलाकोट होकर जानेवाला मार्ग अपेक्षाकृत सुगम मार्ग है. यह भाग 544 किमी (338 मील) लंबा है और इसमें अनेक चढ़ाव उतार है. उपर जाते वक्त सरलकोट तक 70 किमी (44 मील) की चढ़ाई है, उसके आगे 74 किमी (46 मील) उतराई है. 

          मार्ग में आपको अनेक धर्मशाला और आश्रम मिलेंगे जहाँ यात्रियों को ठहरने की सुविधा प्राप्त है. गर्विअंग में आगे की यात्रा के निमित्त याक, खच्चर, कुली आदि मिलते हैं. तकलाकोट तिब्बत स्थित पहला ग्राम है जहाँ प्रति वर्ष ज्येष्ठ से कार्तिक तक बड़ा बाजार लगता है. तकलाकोट से तारचेन जाने के मार्ग में मानसरोवर पड़ता है. 

कैलाश पर्वत की खास विशेषता : 

 *** कैलाश पर्वत दुनिया का सबसे अद्भुत पर्वत माना जाता है. कैलाश मानसरोवर यात्रा पर गए सभी श्रद्धालु दूर से ही कैलाश पर्वत के चरण स्पर्श करते हैं.

*** पर्वतारोहक कर्नल आर.सी.विल्सन के मुताबिक उन्ही के शब्दों मे ” जैसे ही मुझे लगा कि मैं एक सीधे रास्ते से

 कैलाश पर्वत के शिखर पर चढ़ सकता हूं,भयानक बर्फबारी ने रास्ता रोक दिया और चढ़ाई को असंभव बना दिया.”

 *** कैलाश पर्वत पर चढ़ने की आखिरी कोशिश लगभग 17 साल पहले साल 2001 में की गई थी. जब चीन ने स्पेन की एक टीम को कैलाश पर्वत पर चढ़ने की अनुमति दी थी.

*** ब्रह्म ताल का पानी मीठा है, जबकि राक्षस ताल का पानी खारा. यही वजह है कि यह जीव जंतु भी नहीं दिखाई देते. माना जाता है कि ब्रह्म ताल सकारात्मक ऊर्जा का और राक्षस ताल नकारात्मक ऊर्जा का केंद्र है.

 *** हिंदू धर्म के अलावा कई दूसरे धर्मों में भी कैलाश पर्वत का खास महत्व बताया है. माना जाता है कि कैलाश 

 पर्वत एक तरफ स्फटिक, दूसरी तरफ माणिक, तीसरी तरफ सोना और चौथी तरफ नीलम से बना हुआ है.  

आर्टिकल के अंत मै अभिमानी लंकेश्वर की कहानी प्रस्तुत है. 

        रावण जैसा ज्ञानी शायद कोई नहीं होगा. रावण महान ज्योतिषी भी था. स्वयं भगवान श्री रामजी ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को रावण से ज्ञान और सीख लेनेके लिये रावण के पास भेजा था. उस समय रावण ने श्री लक्ष्मण जी को तीन अति ज्ञान वर्धक महत्वपूर्ण बातें बताई थी. 

     एक बार रावण को घमंड आ गया और वह स्वयं भगवान शिवजी से युद्ध करने कैलाश पर्वत जा पहुंचा. वैसे रावण भगवान शिव का अनन्य भक्त था. अपनी शक्तियों के घमंड में रावण भगवान शंकर से युद्ध करने के लिए तैयार हो गया.

        भगवान शिव को युद्ध के लिए ललकारा. मगर शिव जी के अनदेखा करने पर रावण ने उन्हें कैलाश पर्वत सहित उठाकर फेंकने का मन बनाया और वह पर्वत उखाड़ने लगा.

       रावण की धूर्तता देखकर भगवान शिव जी ने केवल अपने अंगूठे के बल से कैलाश को स्थिर कर दिया और रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया. रावण अति बलशाली था. लेकिन कैलाश पर्वत के भार से दर्द होने पर पीड़ा से वह छटपटाने लगा. 

      प्रयास के बाद भी रावण अपना हाथ नहीं निकाल पाया तो उसने वहीं खड़े-खड़े भगवान शिव की स्तुति की और शिव तांडव स्त्रोत की रचना कर डाली. इस पर भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे मुक्त कर दिया. रावण ने भगवान शिव से अपने कृत्य के लिए क्षमा मांगी और उनकी शरण में जा गिरा.    

        कैलाश पर्वत हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है. और तिब्बत चीन के अधीन है, इसीलिए कैलाश चीन में आता है. पहले ये भारत का भाग था. जब चाइना ने तिब्बत पर कब्ज़ा किया तो ये भाग चाइना मे चला गया. 

दुनिया का सबसे दुर्लभ मृग ” कस्तूरी मृग.” है. यह हिरण उत्तर पाकिस्तान, उत्तर भारत, चीन, तिब्बत, साइबेरिया, मंगोलिया में ही पाया जाता है. इस मृग की कस्तूरी अतियंत सुगंधित और औषधीय गुणों से युक्त होती है. जो की उसके शरीर के पिछले हिस्से की ग्रंथि में एक पदार्थ के रूप में होती है. कस्तूरी मृग की कस्तूरी दुनिया में सबसे महंगे दाम पर बिकती है. जो यहां पर दिखाई देता है. 

      कैलाश पर्वत पर कई बार सप्त रंग की लाइटें आसमान में चमकती दिखाई देती हैं. इस संदर्भ मे नासा के वैज्ञानिकों का मानना है कि हो सकता है कि ऐसा यहां के चुम्बकीय बल के कारण होता हो. जानकारों का इस संदर्भ मे कहना है कि यहां का चुम्बकीय बल आसमान से मिलकर इस तरह की चीजों का निर्माण कर सकता है.

          कैलाश पर्वत पर मानसरोवर के झील क्षेत्र में निरंतर एक आवाज सुनाई देगी, जैसे कि कहीं आसपास में एरोप्लेन उड़ रहा हो. लेकिन ध्यान से सुनने पर यह आवाज ” डमरू ” या ” ॐ” की ध्वनि जैसी होती है . वैज्ञानिको का मानना है कि हो सकता है कि यह आवाज बर्फ के पिघलने की हो. यह भी हो सकता है कि प्रकाश और ध्वनि के बीच इस तरह का समागम होता है कि यहां से ” ॐ ” की आवाजें सुनाई देती हो. मगर यह कोई चमत्कार से कम नहीं है. 

      कैलाश पर्वत और उसके आसपास के वातावरण पर अध्ययन कर चुके रशिया के वैज्ञानिकों ने जब तिब्बत के मंदिरों में धर्मगुरुओं से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह है जिसमें साधक तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलीपैथिक संपर्क करते हैं. 

      कैलाश तीर्थ को अस्टापद, गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं. कैलाश के बर्फ से आच्छादित 6,638 मीटर (21,778 फुट) ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का यह तीर्थ है. और इस प्रदेश को ” मानसखंड ” भी कहते हैं.   

       पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया था. श्री भरतेश्वर स्वामी मंगलेश्वर श्री ऋषभदेव भगवान के पुत्र भरत ने दिग्विजय के समय इस पर विजय प्राप्त की थी. पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था.युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे. इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है.

             कैलाश की परिक्रमा तारचेन से आरंभ होकर वहीं समाप्त होती है. तकलाकोट से 40 किलोमीटर (25 मील) पर मंधाता पर्वत स्थित गुर्लला का दर्रा करीब 4,938 मीटर (16,200 फुट) की ऊँचाई पर है. इसके मध्य में पहले बाइर्ं ओर मानसरोवर और दाइर्ं ओर राक्षस ताल है. उत्तर की ओर दूर तक कैलाश पर्वत के हिमाच्छादित धवल शिखर का रमणीय दृश्य दिखाई पड़ता है.

        दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं. इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं. मान्यता है कि यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था. इसके आगे डोलमाला और देवीखिंड ऊँचे स्थान है, उनकी ऊँचाई 5,630 मीटर (18,471 फुट) है. इसके निकट ही गौरीकुंड है. मार्ग में स्थानy स्थान पर तिब्बती लामाओं के मठ हैं. 

     इस यात्रा के लिये दो मास लगते हैं और बारिस शुरू होने से पूर्व ज्येष्ठ मास के अंत तक यात्री अल्मोड़ा लौट आते हैं. इस प्रदेश में एक सुवासित वनस्पति होती है जिसे कैलास धूप कहते हैं. लोग उसे प्रसाद स्वरूप लाते हैं. 

       कैलाश पर्वत रोहको की खास विटंबनाये है की यहां पर सफर करने वाले पर्वत रोहक दिशा भूल जाते है. दिशाहीन हो जानेके बाद उनके लिये आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है. यहीं असली कारण है जिसकी बदौलत आज तक , कोई पर्वतारोहक उपर नहीं पहुंच पाया है. 

कैलाश पर्वत की खास विशेषता :

*** भगवान शिव तथा भगवान आदिनाथ के कारण कैलाश पर्वत संसार के सबसे पावन स्थानों में है. 

*** मान्यता है कि जो कैलाश आकर शिव के दर्शन करता है, उसके लिए मोक्ष का मार्ग खुल जाता है.

*** कैलाश पर्वत की ऊंचाई करीब 6600 मीटर से अधिक है, जो की दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एवरेस्ट से लगभग 2200 मीटर कम है.

*** तमाम कोशिशो के बाद भी आज तक कोई भी व्यक्ति कैलाश पर्वत के उपर नहीं चढ़ सका है.

*** रूस के एक पर्वतारोहक सरगे सिस्टियाकोव ने बताया कि, ” जब मैं पर्वत के बिल्कुल पास पहुंच गया तो मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा. मैं उस पर्वत के बिल्कुल 

 सामने था, जिस पर आज तक कोई नहीं चढ़ सका. 

अचानक मुझे बहुत कमजोरी महसूस होने लगी और मन में ये ख्याल आने लगा कि मुझे यहां और नहीं रुकना चाहिए. उसके बाद जैसे-जैसे हम नीचे आते गए, मन हल्का होता गया.”

*** बताया जाता है कि कैलाश पर्वत 6 पर्वत श्रंखलाओं के बीच कमल के फूल जैसा दिखता है.

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