मुग़ल बादशाह शाहजहां का नाम सुनते ही हमें आगरा के ताजमहल की याद आती हैं. आज हम लोग शाहजहां ने पाकिस्तान में बनवाई इमारतो के बारेमे चर्चा करेंगे.
बादशाह शाहजहां के शासनकाल में बनीं प्रसिद्ध इमारतों में भारत के ताजमहल से लेकर पाकिस्तान के लाहौर किले तक शामिल हैं. मुगलो के सम्राट शाहजहां सन 1628 से लेकर सन 1658 तक भारत के शक्तिशाली शासक रहे. उन्हें इस्लामी वास्तुकला के महान संरक्षक के रूप में जाना जाता है.
शाहजहां के शासनकाल में कई भव्य इमारतें बनाई , जिनमें ताजमहल, आगरा का किला, मोती मस्जिद, जामा मस्जिद और दिल्ली का लाल किला शामिल हैं. हालांकि, शाहजहां के शासन काल में बनाई गईं कुछ प्रसिद्ध इमारतें अब पाकिस्तान में स्थित हैं. इन इमारतों का ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व आज भी बरकरार है.
जहांगीर का मकबरा :
लाहौर के शाहदरा बाग़ में स्थित यह मकबरा शाहजहां ने अपने पिता जहांगीर की याद में बनवाया था. जहांगीर की मृत्यु 1627 में हुई, और मकबरा 10 वर्षों बाद बनकर तैयार हुआ. बादशाह जहाँगीर को सन 1637 में बने एक मकबरे में दफनाया गया था, जो पाकिस्तान के पंजाब में रावी नदी के किनारे लाहौर शहर के पास शाहदरा बाग में स्थित है.
यह स्थल अपने अंदरूनी हिस्सों के लिए प्रसिद्ध है जो बड़े पैमाने पर भित्तिचित्रों और संगमरमर से अलंकृत हैं, और इसका बाहरी हिस्सा पिएट्रा ड्यूरा से समृद्ध रूप से सजाया गया है. मकबरा, आस-पास के अकबरी सराय और आसिफ खान के मकबरे के साथ , वर्तमान में यूनेस्को की विश्व धरोहर की स्थिति के लिए अस्थायी सूची में शामिल हैं.
शालीमार उद्यान :
यह बाग मुगल बागवानी कला का उत्कृष्ट उदाहरण है और इसकी सुंदरता आज भी लोगों को आकर्षित करती है. शालीमार एक मुगल उद्यान परिसर , लाहौर , पंजाब , पाकिस्तान में स्थित है. ये उद्यान उस काल के हैं जब मुगल साम्राज्य अपने कलात्मक और सौंदर्य चरम पर था. और वर्तमान में ये पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक हैं.
बाग का निर्माण 12 जून 1641 को शुरू हुआ और इसे पूरा होने में 18 महीने लगे थे. शालीमार गार्डन में किसी भी मुगल गार्डन की तुलना में सबसे ज़्यादा पानीके झरने हैं इसमें करीबन 410 फव्वारे हैं, जो चौड़े संगमरमर के तालाबों में गिरते हैं, जिनमें से प्रत्येक को हौज़ के नाम से जाना जाता है.
बगीचे के घने पत्ते और पानी की विशेषताओं के कारण संलग्न उद्यान आसपास के क्षेत्रों की तुलना में ठंडा रहता है. लाहौर की गर्मियों के दौरान एक राहत, जब तापमान कभी-कभी 120 °F (49 °C) से अधिक हो जाता है.
फव्वारों का वितरण इस प्रकार है :
ऊपरी स्तर की छत पर 105 फव्वारे हैं.
मध्य स्तर की छत पर 152 फव्वारे हैं.
निचले स्तर की छत पर 153 फव्वारे हैं.
कुल मिलाकर गार्डन में 410 फव्वारे हैं.
इस गार्डन में पांच जल झरने हैं जिनमें महान संगमरमर झरना और सावन भादों शामिल हैं.
लाहौर किला (शाही किला) :
लाहौर के केंद्र में स्थित शाही किला अकबर के शासनकाल में शुरू हुआ था, लेकिन इसका विस्तार शाहजहां के शासनकाल में हुआ. यह 400 से अधिक कनाल में फैला है.
मुगल साम्राज्य के पतन के बाद, लाहौर किले का उपयोग सिख साम्राज्य के संस्थापक महाराजा सिंह के निवास के रूप में किया गया था. सिखों ने किले में कई निर्माण किए. फरवरी 1849 में गुजरात की लड़ाई में सिखों पर अपनी जीत के बाद पंजाब पर कब्ज़ा करने के बाद यह ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण में चला गया.
1981 में, किले को मुगल स्मारकों के अपने “उत्कृष्ट प्रदर्शनों की सूची ” के लिए यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में अंकित किया गया था , जो उस युग से संबंधित थे और जब साम्राज्य अपने कलात्मक और सौंदर्य के जाना जाता था.
थट्टा की शाहजहां मस्जिद :
सिंध प्रांत के थट्टा शहर में स्थित इस मस्जिद का निर्माण शाहजहां ने 1644 से 1647 के बीच कराया. यह मस्जिद फारसी शिलालेखों और मुगल वास्तुकला का अद्भुत नमूना है.
10वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान थट्टा शहर और इसके आसपास के इलाक़ों में कई महत्वपूर्ण स्मारकों का निर्माण हुआ. लेकिन शाहजहां की “नीली मस्जिद” थट्टा के गौरवशाली दिनों की निशानी बनी रही.
सन 1692 में सम्राट औरंगजेब द्वारा जीर्णोद्धार कार्य किए गए, साथ ही सन 1812 में मुराद अली खान तालपुर द्वारा भी किये गए. मस्जिद को 1993 में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में अंकित किया गया था.
शाहजहाँ मस्जिद की स्थापत्य शैली तुर्किक और फ़ारसी शैलियों से स्पष्ट रूपसे प्रभावित है. मस्जिद की विशेषता व्यापक ईंटवर्क और नीली टाइलों का उपयोग है, दोनों ही मध्य एशिया के तैमूरिद स्थापत्य शैली से प्रभावित थे.
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