माता सरस्वती को संगीत, साहित्य कला की देवी माना जाता है. वीणा संगीत की, पुस्तक शिक्षा की और वाहन ( हंस ) कला की अभिव्यक्ति मानी जाती है. माता सरस्वती को शिक्षा की देवी माना गया है. अतः भारत भर की शिक्षा संस्थाओं में वसंत पंचमी को सरस्वती का जन्म दिन समारोह बडी हर्षोउल्लास से मनाया जाता है.
माता सरस्वती के एक मुख, चार हाथ हैं. मुस्कान से उल्लास, दो हाथों में वीणा कलात्मकता की प्रतीक है. तथा पुस्तक से ज्ञान का बोध होता है. वाहन राजहंस सौन्दर्य एवं सु मधुर स्वर का प्रतीक है. भारत में कोई भी शैक्षणिक कार्य के पहले इनकी भक्ति भाव से पूजा की जाती हैं. महाकवि कालिदास, वरदराजाचार्य, वोपदेव आदि मंद बुद्धि के लोग सरस्वती जी की उपासना करके उच्च कोटि के विद्वान बने थे.
पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में ब्रह्मा ने अपने संकल्प से पुरे ब्रह्मांड की रचना की तथा उनमें सभी प्रकार के पेड़, पौधे, वनस्पति, पशु, पक्षी, प्राणी समुद्र जीव और मनुष्य आदि योनियो की रचना की , लेकिन अपनी सर्जन से वे संतुष्ट नहीं हुये थे.
इस समस्या का निवारण करने के लिये ब्रह्मा ने भगवान श्री विष्णु की स्तुति की. स्तुति को सुन कर भगवान श्री विष्णु उनके सम्मुख प्रकट हुये और उनकी समस्या सुनकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति माता को आव्हान किया. आव्हान करने पर आदिशक्ति ज्योति पुंज रूप मे प्रकट हुई.
ब्रम्हा जी तथा विष्णु जी की बातों को सुनकर आदिशक्ति ने प्रचंड तेज उत्पन्न करके दिव्य नारी के रुप मे प्रकट किया . जो हाथो में वीणा, वर मुद्रा पुस्तक एवं माला एवं श्वेत कमल पर विराजित थी. आदिशक्ति के प्रकट होते ही उस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया जिससे समस्त राग रागिनिया संसार के समस्त जीव जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई.
जलधारा में तरंगे उत्पन्न हुई. पवन चलने से पेड़ पौधें लहराने लगे. तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली देवी को ब्रह्म ज्ञान विद्या वाणी संगीत कला की देवी ” सरस्वती ” का नाम दीया.
आदिशक्ति मूल प्रकृतिने पितामह ब्रम्हा से कहा कि मेरे तेज पुंज से उत्पन्न हुई ये देवी श्री सरस्वती आपकी अर्धांगिनी शक्ति अर्थात पत्नी बनेंगी, जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं, पार्वती शिव की शक्ति हैं उसी प्रकार ये सरस्वती देवी ही आपकी शक्ति होंगी. ऐसी उद्घोषणा कर के मूलप्रकृति ज्योति स्वरूप आदिशक्ति अंतर्धान हो गयीं.
पुराणों मे माता सरस्वती को वागेश्वरी, भगवती, शारदा , भारती , और वीणावादिनी सहित अनेक नामों से संबोधित किया जाता है.
भारतीय पौराणिक एतिहासिक कथा में ब्रह्मा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. परंतु भगवान विष्णु और शिव को उनसे श्रेष्ठ माना जाता है. एक अन्य मान्यता के अनुसार ब्रह्मा ने खुद की पुत्री सरस्वती के साथ विवाह किया था, अतः कही उसका पूजन नहीं किया जाता है.
ब्रह्माजी की पांच पत्नियां थीं, सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा और सरस्वती. मान्यता के अनुसार पुष्कर में यज्ञ के दौरान सावित्री के अनुपस्थित होने की स्थित में ब्रह्मा ने वेदों की ज्ञाता विद्वान स्त्री गायत्री से विवाह कर यज्ञ संपन्न किया था. इससे सावित्री ने रुष्ट होकर ब्रह्मा को जगत में नहीं पूजे जाने का शाप दे दिया था.
संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वह संगीत की देवी भी हैं. वसंत पंचमी के शुभ दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं.
पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी की पत्नी माँ सावित्री देवी हैं, ब्रह्मा जी ने एक और स्त्री से विवाह किया था जिनका नाम माँ गायत्री है. इतिहास अनुसार यह गायत्री देवी राजस्थान के पुष्कर की रहने वाली थी जो वेदज्ञान में पारंगत होने के कारण महान मानी जाती थी.
कहा जाता है एक बार पुष्कर में ब्रह्माजी को एक यज्ञ करना था और उस समय उनकी पत्नीं सावित्री उनके साथ नहीं थी तो उन्होंने गायत्री से विवाह कर यज्ञ संपन्न किया. लेकिन बाद में जब सावित्री को पता चला तो उन्होंने ब्रह्माजी को श्राप दे दिया. एक अन्य मान्यता के अनुसार वह ब्रह्मा की मानसपुत्र थी, ब्रह्मा ने उन्हें अपने मुख से प्रकट किया था.
ब्रह्माजी की पांच पत्नियां थीं, सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा और सरस्वती. कहा जाता है की ब्रह्मा ने खुद की पुत्री सरस्वती के साथ विवाह किया था, अतःउसका पूजन नहीं किया जाता है. सरस्वती पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्मा ने अपनी योग शक्ति से सरस्वती को जन्म दिया था. इसलिए ऐसा कहा जाता है कि सरस्वती की कोई मां नहीं केवल पिता ब्रह्मा थे. स्वयं ब्रह्मा भी सरस्वती के आकर्षण से खुद को बचाकर नहीं रख पाए और उन्हें अपनी अर्धांगिनी बनाने पर विचार किया था.
इस कारण माता सरस्वती जी ने अपने पिता की इस मनोभावना को देखकर बचने के लिए चारो दिशाओं में छिपने का प्रयास किया था आखिर विवश होकर उन्हें अपने पिता के साथ विवाह करना पड़ा था. सरस्वती पुराण के अनुसार ब्रह्मा और सरस्वती करीब 100 वर्षों तक एक जंगल में पति पत्नी की तरह रहे. इन दोनों का एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम रखा गया था ,”मनु”.
ब्रह्मा की कू दृष्टि से बचने के लिए सरस्वती चारों दिशा ओं में छिपती रहीं लेकिन वह उनसे नहीं बच पाईं. अंत में सरस्वती आकाश में जाकर छिप गईं, लेकिन अपने पांचवें सिर से ब्रह्मा ने उन्हें आकाश में भी खोज निकाला और उनसे सृष्टि रचना में सहयोग करने का निवेदन किया. सरस्वती से विवाह करने के पश्चात सर्वप्रथम स्वयंभु मनु को जन्म दिया. इसी कारण ब्रह्मा और सरस्वती की यह संतान ” मनु ” को पृथ्वी पर जन्म लेने वाला पहला मानव कहा जाता है.
ब्रह्मा, विष्णु और सदाशिव को त्रिदेव के रूप में माना जाता है. ब्रह्मा जी ने संसार की रचना की थी तो भगवान श्री विष्णु को पालनहार और भोलेनाथ को संहारक माना जाता है. संसार मे भगवान श्री विष्णु और श्री शिव के बहुत सारे मंदिर देखने को मिलते है, मगर ब्रह्मा जी के पुरे संसार मे तीन मंदिर है. आखिर जिसने इस संसार की रचना की उसके सिर्फ तीन मंदिर ही क्यों ? जिसके बारे में शायद बहुत कम लोग जानते है
पुराणों के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने पृथ्वी की भलाई के लिए यज्ञ का विचार किया और यज्ञ की जगह का चुनाव करने के लिए उन्होंने अपने एक कमल को पृथ्वी लोक भेजा और जिस स्थान पर वह कमल गिरा उसी जगह को यज्ञ के लिए चुना गया.
कथा के अनुसार जिस जगह वो कमल का पुष्प गिरा उसी जगह पर ब्रह्मा जी का मंदिर बना दिया गया और ये स्थान राजस्थान का पुष्कर शहर, जहां उस पुष्प का एक अंश गिरने से तालाब का निर्माण भी हुआ था.उसके बाद ब्रह्मा जी यज्ञ करने के लिए पुष्कर पहुंचे, लेकिन उनकी पत्नी सावित्री ठीक समय पर नहीं पहुंचीं.
पूजा के शुभ मुहूर्त का समय बीतते जा रहा था. सभी देवी देवता यज्ञ स्थल पर पहुंच गए थे, लेकिन सावित्री का कुछ पता नहीं था. कहते हैं कि जब शुभ मुहूर्त निकलने लगा तब कोई उपाय न देखकर ब्रह्मा जी ने ” नंदिनी गाय ” के मुख से गायत्री देवी को प्रकट किया और उनसे विवाह कर अपना यज्ञ पूरा किया.
कुछ समय बाद सावित्री यज्ञ स्थल पर पहुंचीं तो वहां ब्रह्मा जी के बगल में किसी और स्त्री को बैठे देख वो क्रोधित हो गईं. गुस्से में उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया और कहा कि जाओ इस पृथ्वी लोक में तुम्हारी कहीं पूजा नहीं होगी. हालांकि बाद में जब उनका गुस्सा शांत हुआ और देवताओं ने उनसे श्राप वापस लेने की प्रार्थना की तो उन्होंने कहा कि धरती पर सिर्फ पुष्कर में ही ब्रह्मा जी की पूजा होगी. इसके अलावा जो कोई भी आपका दूसरा मंदिर बनाएगा, उसका विनाश हो जाएगा.
भारत वर्ष के दो ग्रंथों सरस्वती पुराण और मत्स्य पुराण में सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का अपनी ही बेटी श्री सरस्वती से विवाह करने का प्रसंग है. वैसे माता सरस्वती के बारेमें पुराणों मे मत मतांतर है. जो बहस का विषय है.
सरस्वती पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि ब्रह्मदेव ने सृष्टि का निर्माण करने के बाद अपनी योग विद्या से सरस्वती को जन्म दिया था. इनकी कोई माता नहीं है इसलिए यह ब्रह्मा जी की पुत्री के रूप में जानी जाती थी. मगर ब्रह्मा जी ने खुद की पुत्री से ब्याह रचाते देखकर अन्य देवी देवता अत्यंत क्रोधित हो गये थे. उनकी नज़र में यह घोर पाप था . तब सभी मिलकर देवों के देव महादेव के पास गए और ब्रह्मा जी को दण्डित करने के लिए कहा जिसके बाद शिव जी ने उनके पांचवे सिर को उनके धड़ से अलग कर दिया.
माना जाता है कि ब्रह्मा जी का पांचवा सिर हमेशा अपवित्र और अभद्र बातें करता था.वहीं एक दूसरी कथा के अनुसार एक बार शिव जी ब्रह्मा जी के पास गए तब उनके चार शीश ने शंकर जी का अभिनन्दन किया किन्तु पांचवे ने शिव जी से कुछ उटपटांग कह दिया जिसे सुनकर भोलेनाथ को क्रोध आ गया और उन्होंने पांचवे सिर को काट दीया था.
कमल के फूल का एक अंश गिरने से यहाँ एक तालाब का निर्माण भी हुआ है.यहां भक्तों की लम्बी कतार लगती है. किन्तु कोई भी ब्रह्मदेव की वहां पूजा नहीं करता आने वाले श्रद्धालु दूर से प्रार्थना कर लेते हैं.
देवी सरस्वती का क्रोध देख कर सभी देवता घबरा गए और उनसे शांत रहने के लिए प्रार्थना करने लगे. और सभी देवताओं ने देवी से अपना श्राप वापस लेने को कहा किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया. जब उनका क्रोध शांत हुआ तब उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर कमल का पुष्प गिरा था सिर्फ वहीं ब्रह्मदेव की पूजा होगी अन्य किसी भी स्थान पर अगर उनकी आराधना हुई या उनका मंदिर बना तो वहां का विनाश हो जाएगा.
यहीं कारण है की सृस्टि के रचनाकार ब्रह्मा जी के मंदिर अन्य कही जगह नहीं है. माता सरस्वती की पूजा करने के लिये वसंत पंचमी ही क्यू उपायुक्त दिन है, उसके पीछे एक पौराणिक कथा है की इनकी सबसे पहले पूजा श्रीकृष्ण और ब्रह्माजी ने ही की है. देवी सरस्वती श्री कृष्ण को देखकर मोहित हो गई और पति के रूप में पाने की इच्छा करने लगीं. भगवान कृष्ण को इस बात का पता चला तो उन्होंने कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित हैं, परंतु सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने वरदान दिया कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखनेवाला माघ मास की शुक्ल पंचमी को आपका पूजन करेगा. यह वरदान देने के बाद स्वयं श्री कृष्ण ने पहले देवी की पूजा की. वसंत पंचमी का अवसर इस देवी को पूजने के लिए पूरे वर्ष में सबसे उपयुक्त माना जाता है. ( संपूर्ण )
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