सुदर्शन चक्र का नाम सुनतेही हमारे सामने सुदर्शनधारी भगवान श्री विष्णु जी की मूर्ति दृस्टि गोचर होती है. आपने कभी कड़िया को लादी या लोहा काटते देखा होगा. उसमे वो जो कटर का उपयोग करता है, बस उसी आकर जैसा सुदर्शन चक्र होता है जो भगवान विष्णु जी का अस्त्र है.
सुदर्शन चक्र को अस्त्र के रूपमे प्रयोग किया जाता था, जो चलानेके बाद अपने लक्ष तक अचूक पहुंच कर दुश्मन को मार कर अपना काम तमाम करके वापस हाथ की उंगली मे आकर बैठ जाता था. यह अमोघ चक्र को द्वापर युग मे श्री भगवान विष्णु ने उनके श्री कृष्ण अवतार मे धारण करके देवता ओकी रक्षा की थी, और अनेक राक्षसों का वध किया था. जो धार्मिक विधी मे खलेल पहुंचाते थे.
सुदर्शन चक्र भगवान श्री विष्णु को कैसे प्राप्त हुआ, इस विषय में एक कथा प्रचलित है, जो इस प्रकार है…..
दैत्यों के अत्याचार से त्रस्त होकर देवता लोग प्रभु श्री विष्णु जी के पास आए. देवता ओकी मांग पर भगवान श्री विष्णु ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान श्री शिव जी की विधिपूर्वक आराधना की. वे हजार नामों से श्री शिव जी की स्तुति करने लगे. और प्रत्येक नाम पर एक कमल का पुष्प भगवान शिव को चढ़ाते गये. तब भगवान शंकर ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए एक हजार कमल में से एक कमल का पुष्प छिपा दिया. शिव की माया के कारण विष्णु को यह पता नहीं चला. एक फूल कम पाकर भगवान श्री विष्णु उसे ढूँढने लगे. परंतु फूल नहीं मिला.
विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव जी को अर्पित कर दिया . विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और उनके समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा, तब विष्णु ने दैत्यों को समाप्त करने के लिए अजेय शस्त्र का वरदान मांगा, तब भगवान शंकर ने विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया . विष्णु ने उस चक्र से अनेकों दैत्यों का संहार किया. इस प्रकार देवता ओं को दैत्यों से मुक्ति मिली तथा सुदर्शन चक्र उनके स्वरूप के साथ सदैव जुड़ गया.
एक मान्यता है की सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान श्री शंकरजी ने करके इसे श्री विष्णु भगवान को दिया. विष्णु भगवान ने उसे माता देवी पार्वती को दिया. माता पार्वती ने उसे भगवान श्री परशुराम जी को दे दिया. और भगवान श्री परशुराम जी ने वह सुदर्शन चक्र प्रभु श्री कृष्ण भगवान को दे दिया. जो उनके पास हमेशा के लिये अंत तक रहा.
सुदर्शन चक्र सभी शस्त्रों में छोटा है लेकिन सबसे अचूक अस्त्र माना जाता है .सभी देवी-देवताओं के पास अपने अपने अलग-अलग चक्र होते थे. उन सभी के अलग-अलग नाम थे. श्री भोलेनाथ जी के चक्र का नाम भवरेंदु है. विष्णुजी के चक्र का नाम कांता चक्र और देवी का चक्र मृत्यु मंजरी चक्र है, सुदर्शन चक्र भगवान श्री कृष्ण का चक्र माना जाता है.
सुदर्शन चक्र को काल चक्र भी कहा जाता है. सुदर्शन चक्र की 108 नौकेँ है. सुदर्शन चक्र भगवान श्री कृष्ण की अंतिम उंगली या भगवान श्री विष्णु जी की पहली उंगली स्थित विध्यमान है.
धार्मिक मान्यता के अनुसार सुदर्शन चक्र भगवान श्री विष्णु और उनके अवतार के शिवा कोई धारण नहीं कर सकता है या ना कोई इसे नष्ट कर सकता है. सुदर्शन चक्र प्रहार करने वाले की इच्छा शक्ति से भेजा जाता है और निर्धारित लक्ष को ख़त्म करने की क्षमता रखता है.
महाभारत के युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल सूर्यास्त दिखाने के लिये किया था. जिसकी वजह से श्री अर्जुन जयद्रथ का वध करनेमे सफल हुये थे.
देवी सती मे अपने घर हुये यज्ञ मे खुदको अग्नि मे जला दिया था तब शिव जी अति शोकातुर हुये थे और सती के प्राण रहित शव को उठाये धूमते रहे तब इस चक्रने देवी सती माता के शरीर के 51 टुकड़े कर के भारत मे जगह जगह बिखेर दिये थे, आज भी उसे शक्ति पीठ के नाम से संबोधित किये जाते है.
कुछ मान्यता के अनुसार सुदर्शन चक्र चांदी की शलाका ओसे निर्मित था. इसकी ऊपरी और निचली सतहों पर लौह शूल लगे थे इसमे विष का प्रयोग किया गया था.
सुदर्शन चक्र की शक्ति के बारेमें एक सुंदर कथा है, जो यहां पर अवश्य शेर करना चाहूंगा.
द्वापर युग के अंत में एक दिन अर्जुन अपने रथ में बैठकर अरण्य ( जंगल ) में घूम रहा था. तब उसने एक पर्वत पर राम नाम भजते श्री हनुमानजी को देखा. अर्जुन ने उसकी नजदीक जाकर पूछा, हे… वानर आप कोण हो ? आपका नाम क्या है ? इसपर हनुमानजी बोले, मैं त्रेता युग का शिलाओसे सेतु निर्माण करने वाला राम भक़्त हनुमान हुँ. इसपर गर्व से अर्जुन बोला, इसमें कौनसी बड़ी बात है. समुद्र में बाण से तो कोई भी धनुर्धारी पल भर मे 100 योजन तक लम्बा सेतु बना सकता था, आप लोगोने व्यर्थ समय बर्बाद किया था.
इसपर हनुमान जी बोले, मगर बाण से बनाया सेतु हमारे जैसे वानरों का भार नही उठा सकता अतः हमें शिला ओका सहारा लेना पड़ा था. इसपर पांडु पुत्र श्री अर्जुन बोला, यदि वानरो के भार से सेतु टूट जाये तो वो धनुर्विद्या ही किस कामकी ! अर्जुन को घमंड आया.
इसपर हनुमानजी बोले, यदि मेरे अंगूठे के भार मात्र से तुम्हारा बाण वाला सेतु टूट जाये तो ?
अर्जुन बोला, तो मैं जलती चिता में कूदकर अपने प्राण की आहुति दे दूंगा. ओर यदि ना टुटा तो ?
अगर ना टुटा तो मैं आजीवन आपके रथ की धजा के समीप बैठकर आपकी रक्षा करूंगा.
पार्थ ने गांडीव धनुष से पल भर मे सो योजन लंबा सेतु बना डाला. अब आप इसपर जीतनी चाहो उछल कूद कर शकते हो. अर्जुन बोला.
श्री हनुमानजी ने हसते हसते अंगूठा लगाते ही सेतु बांध टूट गया. स्वर्ग से देवता ओने पुष्प बरसाये.
शर्त के अनुसार समुद्र तट पर चिता तैयार की गयी. उसी समय कुदनेसे पहले एक ब्रह्मचारी वहा आ पंहुचा. पूछनेपर अर्जुन ने अपनी प्रतिज्ञा के बारेंमे सब बात विस्तार से बताई. ब्रह्मचारी बोला मगर यहा पर साक्षी कोई नही था अतः मेरी उपस्थिति में फिरसे सेतु निर्माण करो ओर ये वानर उसे तोड़ दे तो मैं मेरा निर्णय दूंगा.
अर्जुन ने फिरसे सेतु निर्माण किया, अब की बार हनुमान जी ने खूब प्रयत्न करने पर भी सेतु नही टुटा. तब तुरंत श्री हनुमान जी समज गये की यह ब्रह्मचारी कोई सामान्य नहीं है, ब्रह्मचारी के रूप में स्वयं भगवान श्री कृष्ण है. जिन्होंने अपना सुदर्शन चक्र सेतु के नीचे खड़ा कर दिया था. त्रेता युग में श्री राम जी ने द्वापर युग में श्री कृष्ण के रूप में दर्शन देनेका वचन दिया था. जो आज पुरा हुआ है. हनुमानजी ने चरण स्पर्श करते ही प्रभु प्रकट हुए और हनुमान जी को गले लगाया. अर्जुन आश्चर्य चकित हो कर अपने सखा की लीला देख रहा था. चक्र को निकालतेही सेतु पानी में गिरकर विलीन हो गया. अर्जुन का गर्व उतर गया. ओर प्रभु की आज्ञा अनुसार हनुमानजी अर्जुन के रथ पर ध्वजा के नजदीक रहने लगा.और रथ की रक्षा करने लगा. महाभारत के युद्ध में यही कारण वश श्री अर्जुन के रथ को कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाया. इस तरह हनुमान जी ” कपिध्वज ” के नाम से प्रसिद्ध हुए.