शिवजी का शस्त्र पीनाक की कहानी.

Leonardo Phoenix 09 A majestic depiction of Lord Shiva the Hin 0

” पिनाक ” श्री शंकर भगवान के एक धनुष का नाम है, जिसका निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था. यह धनुष राजा जनक के पास धरोहर के रूप में रखा हुआ था. इसी धनुष को श्रीराम ने इसे तोड़ कर सीता जी से विवाह किया था.

पिनाक धनुष को ” शिवधनुष ” भी कहते हैं. यह बहुत शक्तिशाली धनुष था. भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध इसी धनुष से किया था. इस धनुष की टंकार से बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे.

हिंदू महाकाव्य रामायण में इस धनुष का उल्लेख है. सीता स्वयंवर के समय श्रीराम ने इस धनुष को तोड़कर सीता जी से विवाह किया था.

पिनाक धनुष के बारे में कुछ और बाते :

इस धनुष के तीरों ने एक बार सम्पूर्ण स्वर्ग लोक को आच्छादित कर दिया था. इसी वजह से इसे पि(ढकना) नाक(स्वर्ग) पिनाक के नाम से जाना जाने लगा. इस धनुष को भगवान शिव ने त्रिपुरांतक के रूप में अपने अवतार में इस्तेमाल किया था. इस धनुष को राजा जनक के पास धरोहर के रूप में रखा हुआ था.

पौराणिक कथा के अनुसार, पिनाक भगवान शिव का मूल धनुष है जो विनाश या “प्रलय” के लिए उपयोग किया जाता है. मूल वाल्मीकि रामायण के अनुसार, भगवान देवेंद्र द्वारा समान क्षमता के दो धनुष बनाए गए थे जो उन्होने रुद्र(भगवान शिव) और भगवान विष्णु को दे दिए और उनसे यह अनुरोध किया कि दोनों आपस में युद्ध करें जिससे ज्ञात हो सके कि उनमें से शक्तिशाली कौन है. लेकिन युद्ध की शुरुआत से ठीक पहले आकाशवाणी हुई कि यह युद्ध विनाश का कारण बन जाएगा और इसलिए यह युद्ध रोक दिया गया था.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण के पास भी एक धनुष था जिसका नाम पौलत्स्य था. कहते हैं कि एक समय पर रावण ने भगवान शिव जी की आराधना कर उनसे पिनाक भी प्राप्त किया था लेकिन अहंकारी होने के कारण रावण उसे धारण नहीं कर पाया था. पिनाक ही वह धनुष था जिसे प्रभु राम ने माता सीता के स्वयंवर में तोड़ा था.

भगवान शिव के धनुष पिनाक का निर्माण देव शिल्‍पी विश्‍वकर्मा ने किया था. रामायण के बालकांड के 67वें सर्ग के मुताबिक, गुरु विश्‍वामित्र राम और लक्ष्मण को लेकर जनकपुर गए और राजा जनक से शिव धनुष दिखाने को कहा. धनुष के आकार को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था कि कोई भी राजा धनुष को हिला क्यों नहीं पाया? रामायण के मुताबिक, यह धनुष एक विशालकाय लोहे के संदूक में रखा था. इस संदूक में आठ बड़े पहिये लगे थे. उसे 5000 लोग खींचकर लाए थे.

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जब श्रीराम ने धनुष पर प्रत्‍यंचा चढ़ाई तो वो टूट गया. श्री शिव जी का धनुष भयंकर आवाज के साथ तीन टुकड़ों में बंट गया. इनमें से धनुष का एक टुकड़ा आकाश में चला गया था. वहीं, दूसरा टुकड़ा पाताल लोक में जाकर गिरा.

इसके अलावा तीसरा टुकड़ा धनुष के बीच का हिस्सा था. ये हिस्‍सा धरती पर गिर गया. धरती पर गिरा हिस्‍सा जिस जगह गिरा वो नेपाल में है. इस मंदिर को धनुषा धाम कहा जाता है. यह मंदिर जनकपुर से कुछ ही दूरी पर है. आज भी लोग यहां शिव धनुष के टुकड़े की पूजा करने पहुंचते हैं.

रामायण के मुताबिक, भगवान राम के भाई लक्ष्मण के धनुष का नाम ‘गांधरी’ था. लक्ष्मण ने इसी धनुष के बाण से माता सीता की रक्षा के लिए लक्ष्मण रेखा खींची थी.

भगवान राम के धनुष का नाम “कोदंड” था. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान राम ने इस धनुष को खुद बनाया था. यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था और इससे छोड़ा गया बाण हमेशा अपने लक्ष्य को भेदता था.

भगवान शंकर के धनुष का नाम पिनाक था. माना जाता है कि भगवान शंकर ने इसी धनुष से त्रिपुरासुर का वध किया था. भगवान विष्णु के धनुष का नाम “शारंग” था.

शिव-धनुष ‘पिनाक’ विशालकाय धनुष था. इसके संचालन का सामर्थ्य भगवान शिव के अलावा महाराज जनक और विश्वामित्र के पास ही था. लेकिन जब जनकपुत्री सीता ‘पिनाक’ को आसानी से उठा लेती हैं. महाराज जनक ये देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं. उन्हें आभास होता है, सीता कोई साधारण कन्या नहीं है. इसलिए सीता से विवाह करने वाला ‘वर’ भी साधारण नहीं होना चाहिए. महाराज जनक राजा इसलिए शर्त रखते हैं कि जो भी राजकुमार शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उसीका विवाह सीता के साथ करा दिया जाएगा.

दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार महाराजा जनक जो शिव के वशंज भी माने जाते हैं. उनके पास शिव-धनुष ‘पिनाक’ धरोहर के रूप में सुरक्षित था. लंकापति रावण ‘पिनाक’ हासिल करना चाहता था. रावण के पास ऐसे कई दिव्यास्त्र थे जिनके संधान के लिए ‘पिनाक’ जैसे किसी दिव्य धनुष की जरूरत थी. जनक जानते थे यदि ‘पिनाक’ रावण के हाथ लगा तो सृष्टि का विनाश संभव है.

इसलिए उन्हें लगा कि ‘पिनाक’ का नष्ट हो जाना ही संसार के हित में है. संभव है कि महाराज जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए ‘पिनाक’ पर प्रत्यंचा चढ़ाने की शर्त इसलिए रखी ताकि राम के हाथों ‘पिनाक’ नष्ट हो जाए. उधर, शस्त्रों की दीक्षा के दौरान महर्षि विश्वामित्र ने राम को ‘पिनाक’ का संचालन भी सिखाया था. गुरु के साथ मिथिला पहुंचे राम ‘पिनाक’ को देखने की इच्छा जताते हैं. पलभर में राम उस शिव धनुष पर पर प्रत्यंचा चढ़ा देते हैं. लेकिन जैसे ही राम उस धनुष पर बाण संधान की कोशिश करते हैं ‘पिनाक’ दो हिस्सों में टूट जाता है.

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