शिवजी को समर्पित महामृत्युंजय मंत्र| Mahamrutyunjay Mantra

SHIV

महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद का एक श्लोक है. जो शिव जी को मृत्युंजय के रूप में समर्पित है. महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, साथ मे आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है. स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य लाभ होता है. 

        महामृत्युंजय मंत्र मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र है, जिसे त्रयंबकम मंत्र भी कहा जाता है, यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में, भगवान शिव की स्तुति हेतु की गयी एक वन्दना है. इस मन्त्र में शिव को मृत्यु को जीतने वाला बताया गया है. यह गायत्री मन्त्र के समकक्ष हिंदू धर्म का सबसे व्यापक रूप से जाना जाने वाला मंत्र है.

         महामृत्युंजय मंत्र से शिव पर अभिषेक करने से जीवन में कभी सेहत की समस्या नहीं आती है. 

      यह महामृत्युंजय मंत्र : 

 हैजा प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों तब, त्रिदोषवश रोग हो रहे हों तब , जमीन-जायदाद के बंटवारे की संभावना हो तब , कोई महारोग से पीड़ित हो तब , ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा हो तब , धन की हानि हो रही हो तब. राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो तब, मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो तब, मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो तब विधिवत इसका शास्त्रोक्त पद्धति से जप किया जाता है. 

    इस जप करने से पहले निम्न लिखित बातोंका ध्यान रखना जरुरी है

(1) एक निश्चित संख्या में जप करें, पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें. यदि चाहें तो अधिक जप कर सकते हैं. 

(2) जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है.

(3) जपकाल में स्त्री सेवन न करें तथा मांसाहार को त्याग दे. 

(4) जो भी मंत्र जपना हो, जप उच्चारण की शुद्धता से करें.

(5) मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए. यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें.

(6) महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें. 

(7) जप काल में धूप दीप जलते रहना चाहिए तथा रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें.

(8)  माला को गौमुखी में रखें. जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गौमुखी से बाहर न निकालें.

(9) जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ किया हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए.

(10) जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें.जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें.

 (11) महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें. जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर उधर भटक ने ना दे. 

      ऋषि मुनियों ने महा मृत्युंजय मंत्र को वेद का ह्रदय कहा है. चिंतन और ध्यान के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अनेक मंत्रों में गायत्री मंत्र के साथ इस मंत्र का सर्वोच्च स्थान है. 

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। 
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।

यह त्रयम्बक ” त्रिनेत्रों वाला “, रुद्र का विशेषण जिसे बाद में शिव के साथ जोड़ा गया, को संबोधित है.
महा मृत्युंजय मंत्र का अर्थ इस प्रकार है : 

त्र्यंबकम् = त्रि-नेत्रों वाला, तीनों कालों में हमारी रक्षा करने वाले भगवान को
यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय
सुगंधिम = मीठी महक वाला, सुगंधित 
पुष्टिः = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की स्थिति. 
वर्धनम् = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली
उर्वारुकम् = ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग ( मुक्त ) हों, अमरत्व से नहीं बल्कि मृत्यु से हों.
इव = जैसे, इस तरह
बन्धनात् = तना (लौकी का) (“तने से” पंचम विभक्ति – वास्तव में समाप्ति – द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/ अनुस्वार में परिवर्तित होती है)
मृत्योः = = मृत्यु से
मुक्षीय = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
मा = नहीं वंचित होएं
अमृतात् = अमरता, मोक्ष के आनन्द से

अर्थात हम कह सकते की है : 

” तीनों लोकों में हमारी रक्षा करने वाले त्रिनेत्रधारी ॐ कार भगवान शिवजी का हम श्रृद्धा से पूजन करते हैं, जो मीठी महकवाली सुगंधित सुपोषित, फलने फूलनेवाली, जीवन शक्ति की स्थिति को एक माली की तरह पोषक शक्ति देकर, हर्षित व आनंदित करें और मृत्यु भय से मुक्त करते हुए, हमें स्वास्थ्य प्रदान करें ॐ.”

      सुबह और सायं काल में प्रायः अपेक्षित एकांत स्थान में बैठकर आंखों को बंद करके महामृत्युंजय शिव जी मंत्र का दस-ग्यारह बार जप करने से मन को शांति मिलती है और मृत्यु का भय दूर हो जाता है. आयु भी बढ़ती है.

        महामृत्युंजय मंत्र के प्रभाव की एक रोचक कहानी यहां पर प्रस्तुत है. ऋषि मृकण्ड को बड़ी तपस्या के बाद पुत्र हुआ. मगर ज्योतिर्विदों ने बताया कि यह बालक अल्पायु है. इसकी बारह वर्ष की आयु मे मृत्यु होंगी. 

      मृकण्ड ऋषि की पत्नी को पता चला उसने अपनी पत्नी को कहा चिंता मत करो. विधाता जीव के कर्मानुसार ही आयु दे सकते हैं, कितु मेरे स्वामी समर्थ हैं. भाग्यलिपि को स्वेच्छानुसार परिवर्तित कर देना भगवान शिव के लिए विनोद मात्र है. कुमारावस्था के प्रारंभ में ही पिता ने उन्हें शिव मंत्र की दीक्षा तथा शिवार्चना की शिक्षा दी. पुत्र को उसका भविष्य बारेमें समझा दिया कि त्रिपुरारी ही उसे मृत्यु से बचा सकते हैं. बारह वर्ष पुरा होने पर 

         मार्कण्डेय महादेव मंदिर जो वाराणसी जिला में गंगा गोमती संगम पर है वहां बैठे थे. रात्रि से ही और उन्होंने मृत्युंजय मंत्र की शरण ले रखी थी. महामृत्युंजय मंत्र चल रहा था. काल किसी की भी प्रतीक्षा नहीं करता. यमराज के दूत समय पर आए और संयमनी लौट गए. उन्होंने अपने स्वामी यमराज से जाकर निवेदन किया हम मार्कण्डेय तक पहुंचने का साहस नहीं पाए. 

      इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड को पुत्र को मैं स्वयं लाऊंगा. दण्डधर यमराज जी महिषारूढ़ हुए और क्षण भर में मार्कण्डेय के पास पहुंच गए. बालक मार्कण्डेय ने उन कज्जल कृष्ण, रक्तनेत्र पाशधारी को देखा तो सम्मुख की लिंगमूर्ति से लिपट गया. 

          शिवलिंग से तेजोमय त्रिनेत्र गंगाधर चन्द्रशेखर प्रकट हो गए और त्रिशूल उठाकर यमराज से बोले, यमराज तुमने मेरे आश्रित पर पाश उठाने का साहस कैसे किया ? यमराज ने डांट पडऩे से पूर्व ही हाथ जोडक़र मस्तक झुका लिया था और कहा कि हे, त्रिनेत्र मैं आपका सेवक हूं. कर्मानुसार जीव को इस लोक से ले जाने का कार्य प्रभु ने इस सेवक को दिया है. इसपर भगवान चंद्रशेखर ने कहा कि यह संयमनी नहीं जाएगा. इसे मैंने अमरत्व दिया है. मृत्युंजय प्रभु की आज्ञा को यमराज अस्वीकार कैसे कर सकते थे? यमराज खाली हाथ लौट गए. मार्कण्डेय ने यह देख कर भोलेनाथ को सिर झुकाकर स्तुति की. 

        —-=== शिव सर्जन ===——

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