भगवान श्री गणेश जी को गणपति के नामसे जाना जाता है. पिता शिव जी के वरदान के अनुसार सनातन हिंदू प्रणाली मे सभी देवों से पहले श्री गणेश जी की पूजा की जाती है. इसे गणों के देवता माना जाता है.ज्योतिषी विद्या में गणेश जी को केतु के देवता कहा गया है. श्री गणेश का वाहन भूषक है.गणेश जी के शरीर की रचना माता पार्वतीने की थी.
श्री गणेश जी की प्रिय वस्तु |
श्री गणेश जी की प्रिय वस्तुओमे दूर्वा, लाल रंग के फूल, अस्त्र पाश और अंकुश आदि प्रमुख है. उनके प्रिय भोजन मे बेसन और मोदक के लड्डू , मेवा , केला आदि का समावेश हैं. शिव महापुराण के अनुसार श्री गणेश को जो दूर्वा चढ़ाई जाती है, वह जड़रहित 4 अंगुल लंबी और 3 गांठों वाली होनी जरुरी होता है.
शिवमहापुराण प्रसंग के अनुसार जब भगवान शिव जी त्रिपुर का नाश करने के लिये जा रहे थे, तब आकाशवाणी हुई कि जबतक श्री गणेश जी का पूजन नहीं करेंगे,तब तक तीनों पुरों का संहार नहीं कर पाएंगे. तब भगवान शिव ने भद्रकाली को बुलाकर गजानन का पूजन किया उसके पश्चातही युद्ध में विजय हासिल की थी.
शिवपुराण के अनुसार श्री गणेशजी के शरीर का रंग लाल तथा हरा है. इसमें लाल रंग शक्ति और हरा रंग समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. इसका आशय है कि जहां गणेशजी हैं, वहां शक्ति और समृद्धि दोनों का वास है.
श्री गणेश जी को एकदंत कहलाए जाने के कहानी|
श्री गणेश जी के दो दन्त है. जो उनके हाथी वाले सिर की सुंदरता बढ़ाते है.मगर भगवान श्री परशुराम के साथ युद्ध करने के कारण गणेशजी का एक दांत टूट गया था. तब से वे एकदंत कहलाए जाते है. श्री गणेश जी के विवाद के बारेंमे ऐसा कहां जाता है कि उनसे कोई भी कन्या शादी के लिये तैयार नहीं हो रही थी. क्योंकि उनका सिर हाथी वाला था और दूसरा कारण उनका एक दन्त इसी कारणवश गणेशजी नाराज रहते थे. गणेश जी जब अन्य के विवाह मे जाते थे तो उनको बहुत ठेस पहुँचती थी. उन्हें लगता था कि जब उनका विवाह नहीं हो पा रहा हो तो फिर दूसरों का विवाह कैसे होने दें सकते है.
अतः उन्होंने अन्य देवताओं के विवाह में बाधाएं डालना शुरू कर दिया. उनका वाहन भूषक उनके काम मे सहायता करते थे. भूषक श्री गणेश जी के आदेश का पालन करके विवाह के मंडप को नष्ट कर देता था जिससे विवाह के कार्य में रूकावट आती थी. गणेश और चूहे की मिली भगत से सारे देवता परेशान हो गए और शिवजी को जाकर अपनी व्यथा सुनाने लगे. परन्तु इस समस्या का हल शिवजी के पास भी नहीं था. तो शिव-पार्वती ने उन्हें बोला कि इस समस्या का निवारण ब्रह्मा जी कर सकते है.
सारी बातें सुनकर सभी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुचे. तब ब्रह्माजी योग मुंद्रा में लीन थे. कुछ देर बाद देवताओं के समाधान के लिए योग से दो कन्याएं ऋद्धि और सिद्धि प्रकट हुई. दोनों ब्रह्माजी की मानस पुत्री थीं. दोनों पुत्रियों को लेकर ब्रह्माजी गणेशजी के पास पहुंचे और बोले की आपको इन्हे शिक्षा देनी है.
श्री गणेशजी शिक्षा देने के लिए तैयार हो गए. जब भी चूहे द्वारा गणेश जी के पास किसी के विवाह की सूचना आती थी तो ऋद्धि और सिद्धि उनका ध्यान भटकाने के लिए कोई न कोई प्रसंग छेड़ देतीं थी. ऐसा करने से हर विवाह बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाता था.
एक दिन श्री गणेश जी को सारी बात समझ में आई जब चूहे ने उन्हें देवताओं के विवाह बिना किसी रूकावट के सम्पूर्ण होने के बारे में ध्यान आकर्षित किया. इससे पहले कि श्री गणेश जी क्रोधित हो, ब्रह्मा जी उनके सामने ऋद्धि सिद्धि को लेकर प्रकट हुए और बोलने लगे कि मुझे इनके लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा है. कृपया आप इनसे विवाह करने अनुमति प्रदान करें. उसके बाद श्री गणेश जी का विवाह बड़ी धूमधाम से ऋद्धि और सिद्धि के साथ हो गया. हुआ इसके बाद इन्हे दो पुत्रों की प्राप्ति हुई जिनका नाम शुभ और लाभ रखा गया.
शिव परिवार मे श्री गणेश जी ज्येष्ठ पुत्र हैं. शिव परिवार के प्रत्येक व्यक्ति या उनसे जुड़े वाहन की कथा रोचक है. भगवान श्री शिवजी के पुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, मगर शिवजी के गले में सर्प लटके रहते हैं. वैसे देखा जाय तो स्वभाव से मयूर और सर्प एक दूसरे के दुश्मन हैं.
श्री गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है.जो शंकर के गलेमे सदा रहते है. पार्वती स्वयं शक्ति हैं, जगदम्बा हैं जिनका वाहन शेर है. मगर शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है. आप देख सकते है की इन सभी भिन्नताओं के बावजूद शिव का परिवार शांति के साथ कैलाश पर्वत पर मिलजुल कर प्रसन्नतापूर्वक रहता है.
श्री गणेश जी की एक पुत्री भी है जिसका नाम संतोषी है. जिसके उपर सन 1975 मे एक हिंदी फ़िल्म बनी थी. जो बॉक्स ऑफिस पर सुपर डुपर हिट साबित हुई थी. श्री गणेश जी के पोते आमोद और प्रमोद हैं.
श्री गणेश जी की दो विवाह के पीछे का कारण|
प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार, अपने शरीर को लेकर गणेश जी बेहद परेशान रहते थे. लेकिन श्री गणेश जी को देख तुलसी जी बेहद मोहित हो गईं. उन्होंने गणेश जी से विवाह करना चाहा और उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया. लेकिन गणेश जी ने इस प्रस्ताव को बिलकुल स्वीकार नहीं किया.उन्होंने कहा कि वो ब्रह्मचारी हैं. इस बात को सुनकर तुलसी जी नाराज हो गईं और श्री गणेश जी को दो विवाह होने का शाप दे दिया.
श्री गणेशजी को पौराणिक पत्रकार या लेखक भी कहा जाता है, उन्होंने ही ‘महाभारत’ का लेखन किया था. इस ग्रंथ के रचयिता तो वेदव्यास थे, परंतु इसे लिखने का दायित्व श्री गणेशजी को सौपा गया था. इसे लिखने के लिए श्री गणेशजी ने शर्त रखी थी कि उनकी लेखनी बीच में रुकनी नहीं चाहिए. इसके लिए वेदव्यास ने उनसे कहा कि वे हर श्लोक को समझने के बाद ही लिखें. हर श्लोक का अर्थ समझने में श्री गणेशजी को थोड़ा समय लगता और उसी दौरान वेदव्यासजी अपने कुछ जरूरी कार्य पूर्ण कर लेते थे.
श्री गणेश जी को आदिदेव कहां गया हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिये थे. गणेशजी सतयुग में सिंह, त्रेता में मयूर, द्वापर में मूषक और कलिकाल में घोड़े पर सवार हुआ करते हैं. कहते हैं कि द्वापर युग में वे ऋषि पराशर के यहां गजमुख नाम से जन्मे थे. उनका वाहन मूषक था, जो कि अपने पूर्व जन्म में एक गंधर्व था. इस गंधर्व ने सौभरि ऋषि की पत्नी पर कुदृष्टि डाली थी जिसके चलते इसको मूषक योनि में रहने का श्राप मिला था. इस मूषक का नाम डिंक है. उनके 12 प्रमुख नाम हैं, सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन. उनके प्रत्येक नाम के पीछे एक कथा है.
अशोक सुंदरी को भगवान शिव और पार्वती की पुत्री बताया गया है, जो श्री गणेशजी की बहन है. इसका विवाह राजा नहुष के साथ हुआ था. श्री गणेशजी की पांच पत्नियां, ऋद्धि, सिद्धि, तुष्टि, पुष्टि और श्री का भी ग्रंथो मे जिक्र किया गया है.
श्री गणेश जी के सिर कटने की घटना के पीछे भी कई कहानी |
पुराणों मे श्री गणेश जी के जन्मदिन के बारेमें अलग अलग कथाये मिलती है. भगवान श्री गणेश जी के सिर कटने की घटना के पीछे भी कई कहानी कही जाती है. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार किसी कारणवश भगवान शिव ने क्रोध में आकर सूर्य पर त्रिशूल से प्रहार कर दिया था.प्रहार से सूर्यदेव चेतनाहीन हो गए. सूर्यदेव के पिता कश्यप को जब ये बात का पता चला तो उन्होंने क्रोध में आकर भगवान शिवजी को श्राप दिया कि जिस प्रकार तुम्हारे त्रिशूल से मेरे पुत्र का शरीर नष्ट हुआ है, उसी प्रकार तुम्हारे पुत्र का मस्तक भी कट जाएगा. इसी श्राप के प्रकोप से भगवान श्री गणेश के मस्तक कटने की घटना को जोड़ा जाता है.
दूसरी एक कथा के अनुसार श्री गणेशजी को निगरानी करनेके लिये द्वार पर बिठाकर पार्वतीजी स्नान करने के लिये गई. इतने मे उसी वक्त श्री शिव जी का आगमन हुआ और पार्वती के भवन में प्रवेश करने लगे. तब श्री गणेशजी ने उन्हें रोका तो क्रोध मे आकर शिव जी ने उनका सिर काट दिया. जिसकी उत्पत्ति पार्वतीजी ने की थी. जब पार्वतीजी को इस बात का पता चला तो अति क्रोधित हो उठीं.
माता पार्वती का क्रोध शांत करने के लिए भगवान शिव जी ने एक हाथी के बच्चे का सिर गणेशजी के सिर पर लगा दिया. और श्री गणेशजी गजानन कहलाये.
श्री गणेश जी के जन्म की कहानी|
श्री गणेशजी के जन्म के बारेमें कई कहानियाँ मौजूद है. एक अन्य कथा के अनुसार कहते हैं कि माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुण्यक नामक उपवास किया था. और इसी उपवास के चलते माता पार्वती को श्री गणेश जी पुत्र रूप में प्राप्त हुए. शिव महापुराण के अनुसार माता पार्वती जी को गणेशजी का निर्माण करने का विचार उन्हीं की सखी जया और विजया ने दिया था. उनकी सखियों ने उनसे कहा था कि नंदी और सभी गण सिर्फ महादेव की आज्ञा का पालन करते हैं इसलिए आपको भी एक ऐसे गण की रचना करनी चाहिए, जो सिर्फ आपकी ही आज्ञा का पालन करे. इस विचार से प्रभावित होकर माता पार्वती जी ने श्री गणेश की रचना अपने शरीर के मैल से की थी.
एक ऐसी भी कथा है जिसके अनुसार शनि की दृस्ट दृष्टि पड़ने से शिशु गणेश का सिर जलकर भस्म हो गया. इस पर दु:खी पार्वती से ब्रह्मा ने कहा कि जिसका सिर सर्वप्रथम मिले उसे गणेश के सिर पर लगा दो. पहला सिर हाथी के बच्चे का ही मिला. इस प्रकार गणेश ” गजानन ” बन गए.
श्री गणेश जी की लीला रोचक है. पौराणिक कथा के अनुसार, एकबार श्री गणेशजी तपस्या कर रहे थे, तभी वहां से तुलसीजी गुजरती हैं और उन्हें देखकर मोहित हो जाती हैं. तुलसी गणेशजी से विवाह करना चाहती थीं लेकिन श्री गणेश जी ने ब्रह्मचारी बताकर उसके विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिया. अतः क्रोधित होकर तुलसीजी ने शाप दिया कि उनके एक नहीं बल्कि दो-दो विवाह होंगे. इस पर श्री गणेश ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा. यहीं कारण है कि भगवान श्री गणेश जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता है.
दूसरी कथा यह है कि भगवान गणेश इसलिए ब्रह्मचारी रहना चाहते थे कि वह अपने शरीर से नाराज थे.उनका पेट निकला हुआ था, उनका मुख हाथी का था इसलिए उनसे कोई विवाह नहीं करना चाहता था. इससे परेशान होकर उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन करना शुरू कर दिया. इस बात से नाराज गणेशजी जहां भी शादी होती थी, वहां विघ्न डाल देते थे, ताकी विवाह ना हो सके. उनको लगता था कि उनका विवाह नहीं हो पा रहा है तो वह किसी का विवाह भी नहीं होने देंगे. उनके इस काम में उनका मूषक वाहन साथ देता था. श्री गणेश जी की इस आदत से देवी-देवता काफी परेशान हो रहे थे. वे लोग सब अपनी परेशानी लेकर ब्रह्माजी के पास गए. तब ब्रह्माजी के योग से दो कन्याएं रिद्धि और सिद्धि प्रकट हुईं. दोनो ब्रह्माजी की मानस पुत्रियां थीं.
श्री गणेश जी की शादी ब्रम्हाजी की दोनों पुत्री से हुई|
ब्रह्माजी दोनों पुत्रियों को लेकर गणेशजी की पास पहुंचे और उन्हें शिक्षा देने के लिए कहा. ब्रह्माजी का आज्ञा से वह दोनों को शिक्षा देने लगे. जब गणेशजी के पास किसी की शादी सूचना आती थी तब रिद्धि और सिद्धि उनका और भूषक का ध्यान भटका देती थीं. इस तरह धीरे-धीरे सभी के विवाह होने लगे.
एक दिन गणेशजी को सारी जानकारी मिल गई कि सभी के विवाह बिना किसी विघ्न से हो रहे है. इस बात पर श्री गणेशजी रिद्धि सिद्धि पर क्रोधित हो गए और शाप देने लगे. तभी ब्रह्माजी आ जाते हैं और शाप देने से रोक देते हैं. तब ब्रह्माजी गणेशजी से रिद्धि सिद्धि से विवाह करने का प्रस्ताव रखते हैं. इसके बाद दोनों का विवाह बहुत हर्षोल्लास से होता है. इसके बाद दो पुत्र होते हैं, जिनका नाम शुभ और लाभ है.
श्री गणेशजी की ऋद्धि और सिद्धि नामक दो पत्नियां हैं, जो प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं. सिद्धि से ‘क्षेम’ और ऋद्धि से ‘लाभ’ नाम के दो पुत्र हुए. इन्हें ही ‘शुभ और लाभ’ कहा जाता है. शास्त्रों में तुष्टि और पुष्टि को गणेशजी की बहुएं कहा गया है. गणेशजी के पोते आमोद और प्रमोद हैं.
पुत्र शुभ और लाभ की मांग पर श्री गणेश जी ने अपनी शक्तियों से एक ज्योति उत्पन्न की और उनकी दोनों पत्नियों की आत्मशक्ति के साथ उसे सम्मिलित कर के ज्योति ने एक कन्या का रूप धारण किया और गणेशजी की पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम संतोषी रखा गया. यह पुत्री माता संतोषी के नाम से प्रसिद्ध है.
श्री गणेशजी के कार्तिकेय ही एकमात्र भाई हैं जिन्हें भक्त सुब्रमण्यम, मुरुगन और स्कंद भी कहा जाता है. जब देवताओं में प्रथम होने की होड़ हुई तो कार्तिकेय धरती का चक्कर लगाकर जीत गए थे, लेकिन गणेशजी ने अपने माता-पिता की परिक्रमा करके ही यह सिद्ध कर दिया था कि माता पिता ही प्रथम हैं. कार्तिकेय के अलावा गणेशजी के अन्य भाइयों के नाम सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा और उनकी एक बहन भी है. गणेशजी की बहन का नाम अशोक सुंदरी है. कहते हैं कि शिवपुत्र गणेश के भाई कार्तिकेय ने विवाह नहीं किया था|
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शिव सर्जन प्रस्तुति.