सन 1960 की बात है. तब मे भाईंदर ( पश्चिम ) जिला परिषद की गुजराती स्कूल मे पढाई करता था. श्री कांतिलाल पटेल हेड मास्टर और हमारे क्लास टीचर थे. तब सर हमें श्री गणेशपुरी, वजेश्वरी पिकनिक के लिये लेकर गये थे. भाईंदर से वसई ट्रैन से और वहासे बस द्वारा हम लोग श्री गणेशपुरी तक पहुचे थे.
मेरा सदभाग्य है की तब मुजे स्वयं श्री नित्यानंद महाराज के दर्शन का लाभ मिला था. तब हमें इस महात्मा के बारेमें कुछ पता नहीं था. श्री नित्यानंद सद्गुरु महाराज लंगोटी पहने एक आसान पर बैठे थे. बाजुमें काले कलर का एक करीब 6 फुट का कोबरा साप फन फैलाये श्री नित्यानंद महाराज के बगल मे खड़ा था. हम लोग हाथ जोड़कर खड़े रहे तो उन्होंने हमें हाथ उठाकर आशीर्वाद दीया. जब उनकी याद करता हूँ तो आज भी वो दृश्य मेरी आंखों के सामने खड़ा रहता है.
साठ, सत्तर के दशक मे श्री नित्यानंद महाराज की फोटो हर उडीपी होटल के काउंटर पर दार्शनिक रूप से रखी जाती थी जिसमे बाबा अपने नाग देवता के साथ लाक्षणिक मुद्रा मे बैठे नजर आते थे.
उस समय श्री शिर्डी के साईं बाबा से ज्यादा नित्यानंद महाराज के दर्शन के लिये लोग जाते थे. सन 1937 मे जब श्री नित्यानंद महाराज वजेश्वरी पधारे तो वहाके आदिवासी लड़कों ने उसे प्रताड़ना शुरु किया. एक दिन श्री नित्यानंद महाराज पेड़ पर बैठे थे. बच्चों ने उसे पत्थर मारना शुरु किया, मगर चमत्कार हुआ और पत्थर के फूल बनकर निचे गिरने लगे. बात आगे फैलती गयी. लोग उसे मिलने आने लगे. कोई बीमार को माथे पर हाथ फेरता था तो उसकी बीमारी दूर हो जाती थी. कीर्ति फैलती गयी और लोग नित्यानंद महाराज के दर्शन के लिये आने लगे.
जीते जी बाबाने गरीब आदिवासी लोगोंकी लगन से सेवा की. वहां पहुंचने के लिये आपको अमदावाद महामार्ग से होकर विरार फाटा से पूर्व की ओर करीब पांच छह किलो मीटर की दुरी पर श्री गणेशपूरी जाना होगा. दहिसर चेक नाका से करीब 38 किलोमीटर की दुरी पर यह स्थल विध्यमान है. वहां पहुंचने के लिये आप टु व्हीलर या फॉर व्हीलर से वहां तक पहुंच सकते है. यदि बस मे जाना है तो आगेसे बस की समय समयसारिणी का पता करने के बाद ही जाना उचित होगा.
मंदिर सुबह चार बजे खुल जाता है. फिर शुरु होता है, श्रृंगार, काकड़ आरती, पूजा पाठ, धार्मिक अनुष्ठान. शाम 9.30 मिनट पर मंदिर बंद हो जाता है.
यहां पर गुरु पूर्णिमा के दिन गांव मे पालकी निकाली जाती है. लोग बाजे, गाजे के साथ हर्षोउल्लास से पालकी मे सहभागी होते है. वैसे तो हर हिंदू पर्व यहां पर मंदिर मे उत्साह के साथ मनाया जाता है. 8 अगस्त 1961 के दिन 63 साल की उम्र मे बाबा का निधन हो गया था. उनके निर्वाण दिन पर मंदिर मे विशेष कार्यक्रम मनाया जाता है.
श्री नित्यानंद बाबा सन 1937 मे सबसे पहले गणेशपुरी गांव मे श्री शिव मंदिर स्थित पधारे. वहां पर झोपड़ी मे रहने लगे. ओर स्थानीय आदिवासी ओकी सेवामे जीवन समर्पित कर दीया. धीरे धीरे उनके अनुयायी बढे तो आश्रम बनाया गया. उनके निधन के बाद उसकी समाधी गणेशपुरी मे समाधी मंदिर स्थित है. पर्यटक छात्रावास, और गणेशपुरी में उनके जीवन से जुड़े अन्य भवन श्री भीमेश्वर सद्गुरु नित्यानंद संस्थान गणेशपुरी द्वारा संरक्षित हैं. यह ट्रस्ट गणेशपुरी में उनके समाधि स्थल के लिए भी जिम्मेदार है.
श्री नित्यानंद महाराज का प्रथम कदम सन 1937 मे गणेशपुरी गांव मे पड़ा इससे पहले बाबा हिमालय मे और काशी मे कई वर्ष रहे थे. यहां आते ही देवी वजेश्वरी के छत्रछाया मे गणेशपुरी आकर बस गये. प्रथम प्राचीन शिव मंदिर श्री भीमेश्वर महादेव के समीप झोपड़ी मे बसे.
श्री नित्यानंद महाराज के जन्म के बारेमें कहा जाता है कि , वह दक्षिण भारत के कोजीकोड जिले के तुनेरी गांव के एक गरीब परिवार को शिशु अवस्था में मिला था. चतुनायर और उन्नी अम्मा नामक दम्पति को भगवान श्री शिवजी ने उन्हें अगले दिन उसी स्थान पर जानेको कहा था, जहां पर वो बच्चा उन्हें मिला था.
एक बहुत बड़ा नाग बरसात मे फन उठाकर बच्चे की रक्षा कर रहा था. यह देखकर पति पत्नी आश्चर्य चकित हुए.
पति पत्नी बालक को घर लेकर आये. शिशु का लालन पालन बड़े प्यार से होने लगा. बच्चे का नाम रामन रखा गया. गांव के लोग उसे राम कहकर पुकारने लगे.
चतुनायर और उन्नी अम्मा एक ब्राह्मण परिवार ईश्वर अय्यर के घर काम करते थे. राम भी दिन भर उनके घर पर ही रहता था. ईश्वर अय्यर बड़े ही धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और सूर्यदेव के भक्त थे. उन्हें पता चल गया कि रामन कोई साधारण बच्चा नहीं है.
बचपन से ही राम वैरागी था . राम के मुख से जो भी निकलता, वह सत्य हो जाता था. हजारों लोग उसके पास इलाज के लिए आने लगे. जिस रोगी के सिर पर हाथ फेर देता वह ठीक हो जाता था. बिना शिक्षण ग्रहण किए एक लंगोट में घूमने वाला राम वेदांत और धर्मशास्त्र की अकाट्य व्याख्या करता था. जब उसकी कीर्ति फैलते गयी. तब ईश्वर अय्यर ने कहा की तुम सबको नित आनंद देते हो अतः दुनिया तुम्हे नित्यानंद के नाम से पहचानेगी और रामन को लोग श्री नित्यानंद बाबाके नाम से पहचानने लगे.
गृह त्याग करके हिमालय और काशी मे रहकर ज्ञान की प्राप्ति की और फिर गणेशपूरी मे आकर बस गये. कीर्ति बढ़ती गयी और भक्तजन उसे श्री दत्तात्रेय का तो कोई लोग उसे भगवान शिव का अवतार मानने लगे.
आज भी गणेशपुरी, वजेश्वरी मे कई ऐसे बुजुर्ग हैं जिन्होंने नित्यानंद को हनुमान जी से संवाद करते देखा है. भक्तों को श्री नित्यानंद महाराज कहते थे की पहले अपना गृहस्थ धर्म अच्छे से निभाओ और साथ ही धर्म, अध्यात्म भी करो. बाबा हमेशा भक्त जनों को गणेश पुरी के बारे में कहते थे की गणेशपुरी संतों की तपोभूमि है. माना जाता है की आज भी मंदाग्नि पर्वत (गणेशपुरी के करीब) पर कई तपस्वी सूक्ष्म रूप से साधनारत हैं. बाबा की स्तुति में कहा गया है,
निंदा और प्रशंसा से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता , वे अपने आनंद में हमेशा मस्त रहते थे. लोगों से बहुत कम बोलते किन्तु संतों को पहचानकर उन्हें दृष्टि मात्र से दीक्षा देकर शक्तिपात कर देते थे.
आज श्री गणेश पूरी भक्तों की पावन भूमि, तीर्थ भूमि के रूपमे पहचानी जाती है. बाबा उनके दर्शन को आये भक्त जनों को माता वजेश्वरी का दर्शन करने एवं कुंड मे स्नान करनेको कहते थे. गणेशपुरी में ही गर्म पानी के तीन कुंड हैं,
जो बाबाके आगमन के पूर्व से विध्यमान है. वजेश्वरी मंदिर की एक किलोमीटर की दुरी पर भी श्री शंकर भगवान के मंदिर के सामने तीन और नदी किनारे कई कुंड मौजूद है.
श्री नित्यानंद बाबा ने आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वादशी को
सन 1961 मे समाधि मंदिर के पीछे बेंगलोरवाला बिल्डिंग में शरीर का त्याग कर दिया.
श्री नित्यानंद महाराज को अपने मृत्यु के बारेमें 15 दिन पहले पूर्वाभाष हो चुका था.
मुंबई की भीड़भाड़ वाली जिंदगी से दूर गणेशपुरी, वजेश्वरी एक रमणीय शांत प्राकृतिक सौंदर्य से भरा एक धार्मिक स्थल है, जहां रोज हजारों भक्त जन बाबा का दर्शन करके धन्यता का अहसास करते है. ( संपूर्ण )
———-======*======———–
शिव सर्जन