आज हम बात करेंगे, राम भक्त हुनुमान जी के जन्म स्थान की. ज्योतिष विज्ञान के अनुसार के हनुमान जी का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पहले त्रेतायुग के अन्तिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह ठीक 6.03 बजे भारत देश में झारखण्ड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव की एक गुफा में हुआ था.
महाबली हनुमान जी के बचपन का नाम मारुति था, जो उनका सबसे पहला व असली नाम था. देवी अंजना के पुत्र होने से इन्हें अंजनी पुत्र व आंजनेय भी कहा जाता है. तो वही पिता केसरी के नाम से भी इन्हें जाना जाता हैं. हनुमान चालीस में इन्हें कई जगह केसरीनंदर संबोधित किया गया हैै.
गुजरात स्थित डांग जिला रामायण काल में दंडकारण्य प्रदेश के रूप में पहचाना जाता था. मान्यता के अनुसार, यहीं भगवान राम व लक्ष्मण को शबरी ने बेर खिलाए थे. आज यह पवित्र स्थल शबरीधाम नाम से जाना जाता है.
डांग जिले के आदिवासियों की सबसे प्रबल मान्यता यह भी है कि डांग जिले के अंजनी पर्वत में स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमानजी का भी जन्म हुआ था. कहा जाता है कि अंजनी माता ने अंजनी पर्वत पर ही कठोर तपस्या की थी और इसी तपस्या के फलस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न यानी कि हनुमानजी की प्राप्ति हुई थी. माता अंजनी ने अंजनी गुफा में हनुमानजी को जन्म दिया था.
रामभक्त हनुमानजी की जन्मभूमि कहां है ? कर्नाटक के किष्किंधा में या फिर महाराष्ट्र के अंजनेरी में ? इस बात को लेकर विवाद चल रहा है. नासिक शहर से 26 कि.मी. दूर त्रयंबक रोड पर अंजनेरी गांव है. स्थानीय गाववाले के अनुसार इस गांव का नाम अंजनेरी इस लिये पड़ा क्योंकि गांव से सटे पहाड़ पर हनुमानजी की मां अंजनी का निवास था. और अंजनगढ़ नाम के इसी पहाड़ पर एक गुफा में हनुमानजी का जन्म हुआ था.
हनुमानजी के जन्मस्थल होने का दावा सिर्फ महाराष्ट्र और कर्नाटक में ही नहीं हो रहा. भारत भर में 9 ठिकानें ऐसे हैं जहां दावा किया जा रहा है कि हनुमानजी का जन्म वहां हुआ था. जहां जहां हनुमान जी के जन्मस्थल होने का दावा किया जा रहा है वे जगह : (1) अंजनेरी – महाराष्ट्र, (2) किष्किंधा – कर्नाटक, (3) गोकर्ण – कर्नाटक, (4) तिरूपति पर्वत- आंध्र प्रदेश, (5) गुमला – झारखंड, (6) कैथल- हरियाणा (7) डांग – गुजरात, (8) सुजानगढ़ – राजस्थान, (9) देहरादून – उत्तराखंड.
पवन पुत्र हनुमानजी हिंदुओं के सबसे लोकप्रिय देवताओं में से एक हैं. हर घर में उनकी पूजा की जाती है. वे संकटमोचक और बिगड़े काम बनाने वाले माने जाते हैं. शायद इसी आस्था की वजह से हर कोई उन्हें अपनी जमीन से जोड़कर देखना चाहता है.
मगर आज हम चर्चा करेंगे कर्नाटक के किष्किंधा पर्वत की जहां हनुमानजी का जन्म होने की बात कही जाती है. इस पर्वत की एक शिला दूर से देखने पर उनके चेहरे जैसी आकृति बनाती है. यहां जाने वाला हर शख्स इसे देखकर चमत्कार समझता है. इस पर्वत के उपर चढ़ने पर एक मंदिर है. जहां हनुमानजी का जन्म हुआ, बताया जाता है. यहां हमेशा अखंड कीर्तन चलता रहता है, ये पूरा इलाका बहुत सुंदर है. इसी इलाके में भगवान राम ने सीताहरण के बाद कुछ समय गुजारा था.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार किष्किंधा वानरों का राज्य था. वानरों का अर्थ होता है वन में रहने वाले लोग. वाल्मीकि रामायण में पहले किष्किंधा पर बालि का तथा उसके पश्चात् सुग्रीव का राज्य बताया गया है.
बताया जाता है कि ये वो जगह है जहां वानरों की राजधानी हुआ करती थी. इसे हम दण्डकारण्य भी कहते हैं. इस पर्वत जहां हनुमानजी का जन्म हुआ, उसको अंजनी पर्वत के नाम से जानते हैं. ये वो जगह है, जहां दक्षिण भारत की पवित्र नदी तुंगभद्रा पम्पा पहाड़ियों के बीच बहते हुए पूरे इलाके को खूबसूरत नजारे में बदल देती है.
यहां अलौकिक पहाड़ियां हैं. दूर तक फैले हुए धान के खेत. केले के बाग और जिधर देखो उधर नारियल के पेड़ों का झुंड. यहां आने पर हवा मोहक अंदाज में आपके कानों में अलग सा संगीत का अहेसास कराती है.
किष्किंधा कर्नाटक के बेल्लारी जिले में है. जिसके पड़ोस में एक दर्शनीय स्थल हम्पी है, जो महान प्रतापी राजा श्रीकृष्णदेवराय की राजधानी थी.
किष्किंधा के पूरे रास्ते में आपको पहाड़ियां दिखती हैं. हरे-भरे खेत और नारियल से लदे-फदे वृक्ष. इस इलाके की ग्रेफाइट चट्टानें भी ऐसी विशेष हैं कि पूरे देश में उनकी मांग है.
किष्किंधा की चर्चा काफी विस्तार से बाल्मीकी रामायण में की गई है. सीताजी की तलाश में जब राम इस इलाके में पहुंचे तो बरसात की ऋतु शुरू हो चुकी थी. अब कोई चारा नहीं था कि राम और लक्ष्मण दंडकारण्य में समय बिताएं. दंडकारण्य में ही उन्होंने एक गुफा में शरण ली.
कभी ये सुग्रीव और बाली की नगरी थी. फिर कुछ महीने एक मंदिर में रुके. यहीं उनकी मुलाकात दंडकारण्य में श्री हनुमान से हुई. प्राचीन भारत में सुग्रीव और बाली जैसे ताकतवर वानरों की नगरी थी. आज भी यहां बड़ी संख्या में वानर दिखते हैं. यहां हर तरह के वानर ललमुंहे और काले मुंह वाले दोनों. यहां के वानरों और वासिंदों के बीच अजीब दोस्ती भी देखने को मिलती है.
यहां दर्शन के लिए आने वाले भाविक भक्तो को दो बातें आकर्षित करती हैं (1) अंजनि पर्वत, जहां पवनसुत हनुमान का जन्म हुआ और (2) दूसरा अंजनी पर्वत के करीब स्थित ब्रह्म सरोवर, जो काफी पवित्र माना जाता है. गुजरात और महाराष्ट्र से यहां काफी तादाद में लोग पर्यटक बसों में आते हैं.
अंजनी पर्वत एक ऊंचा पहाड़ है. यही श्री हनुमान जी की जन्मस्थली है. पहाड़ के ऊपर हनुमान जी का एक मंदिर है, जहां अखंड पूजा चलती रहती है. लगातार हनुमान चालीसा पढ़ी जाती रहती है. ये मत सोचिए कि इस मंदिर तक पहुंचना आसान है. मगर मुश्किल ही इस मंदिर में आकर हनुमान जी के दर्शनों को और खास भी बनाती है
वहां तक पहुंचने के लिए 500 से अधिक सीढियां चढनी पड़ती हैं. ये आसान तो नहीं है. सीढियां चढने के दौरान आप पाते हैं कि कई जगहों पर ये सीढियां पहाड़ियों को काटकर बनाई गई हैं तो कई जगह ये पहाड़ की गुफाओं के बीच से गुजरती हैं. ऊपर पहुंचने पर हनुमान मंदिर में दर्शन के दौरान आप को एक अलग आनंद की अनुभूति होती है.
अंजनि पर्वत पर ऊपर पहुंचने के बाद आप किष्किंधा नगरी का दूर तक विहंगम दृश्य भी देख सकते हैं, जहां कंक्रीट के जंगल नहीं बल्कि पहाड़ियां, हरियाली और उनके बीच गुजरती तुंगभद्रा नदी दिखती है. वैसे अंजनि पर्वत की एक और खासियत है, उसका ऊपरी सिरा बिल्कुल हनुमान जी के चेहरे जैसा दिखता है.
अंजनि पर्वत के दर्शन के बाद अगर कहीं जाना हो तो पहाड़ियों से घिरे ब्रह्म सरोवर पर जा सकते हैं. जो यहां से बहुत पास है. इसे पंपा सरोवर भी कहते हैं. कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने ब्रंह्माड में केवल चार सरोवर बनाए, ये उनमें से एक है. मान्यता है कि यहां नहाने से आप पापों से मुक्ति के साथ ही सीधे मोक्ष पाएंगे. इस सरोवर में पानी कहां से आता है, ये भी आश्चर्य ही है. इसमें हमेशा कमल खिले हुए मिलते हैं.
इसी सरोवर से सटी शबरी कुटिया है, जिसने भगवान राम को बेर खिलाए थे. शबरी और राम के प्रसंग को हम सबने खूब सुना है. शबरी कुटिया से सटा देवी लक्ष्मीका मंदिर है. बाली जिस गुफा में रहता था, वो गुफा भी आकर्षण का केंद्र होती है. ये अंधेरी लेकिन काफी लंबी चौड़ी गुफा है. जहां एक साथ कई लोग अंदर जा सकते हैं. इसी गुफा से ललकार कर राम ने बाली को निकाला. जब उनके हाथों बाली की मृत्यु हो गई तो सुग्रीव को राजपाट सौंपा था.
भगवान राम के युग यानी त्रेतायुग में किष्किंधा दण्डक वन का एक भाग होता था, जो विंध्याचल से आरंभ होता था और दक्षिण भारत के समुद्री क्षेत्रों तक पहुंचता था. भगवान श्रीराम को जब वनवास मिला तो लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ उन्होंने इसी दण्डक वन में प्रवेश किया. यहां से रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था. श्रीराम सीता को खोजते हुए किष्किंधा में आए. चूंकि राम यहां कई स्थानों पर रहे, लिहाजा यहां उनके कई मंदिर और स्मृति चिन्ह हैं.
कहा जाता है कि प्राचीन समय में किष्किंधा काफी ऐश्वर्यशाली नगरी थी, बाल्मीकि रामायण में इसका विस्तार से उल्लेख है. अंश इस प्रकार है : लक्ष्मण ने उस विशाल गुहा को देखा जो कि रत्नों से भरी थी और अलौकिक दीख पड़ती थी.
उसके वनों में खूब फूल खिले हुए थे. यह विविध रत्नों से शोभित और सदाबहार वृक्षों से वह नगरी सम्पन्न थी. दिव्यमाला और वस्त्र धारण करने वाले सुन्दर देवताओं, गन्धर्व पुत्रों और इच्छानुसार रूप धारण करने वाले वानरों से वह नगरी बड़ी भली दीख पड़ती थी. चन्दन, अगरु और कमल की गन्ध से वह गुहा सुवासित थी. मैरेय और मधु से वहाँ की चौड़ी सड़कें सुगन्धित थीं. इस वर्णन से यह स्पष्ट है कि किष्किंधा पर्वत की एक विशाल गुहा के भीतर बसी हुई थी.
वहां तक कैसे पहुचे :
वहां तक पहुंचने के लिए कर्नाटक के होसपेट रेलवे स्टेशन पर उतरना होगा. जो यहां से करीब है. किष्किंधा में रुकने के लिए अच्छे होटल हैं. बेल्लारी और बेंगलुरु से यहां सड़क मार्ग के जरिए भी पहुंचा जा सकता है.
किष्किंधा घूमने के लिए एक दिन पर्याप्त होता है, लेकिन यह ऐसी जगह है, जहां आने के बाद आपको हम्पी व बदामी भी जरूर जाना चाहिए, जो हमारे गौरवशाली इतिहास की भव्य झलक देते हैं.