पंढरपुर स्थित विट्ठल मंदिर महाराष्ट्र के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है. महाराष्ट्र के शोलापुर जिले में चंद्र भागा नदी के तट पर पंढरपुर स्थित भव्य विशाल मंदिर का निर्माण किया गया है, यहां श्री कृष्ण भगवान की पूजा विठ्ठल भगवान के रूप मे की जाती है. इस मंदिर में भगवान विठ्ठल के साथ माता रुक्मिणी भी मौजूद हैं.भगवान विठ्ठल को श्री विठोबा, श्री पंढरीनाथ और पांडुरंग जैसे अनेक नामोंसे जाना जाता है. बताया जाता है की मुख्य मंदिर को 12 वीं शताब्दी में देव गिरि के यादव शासकों ने बनवाया था.
विठोबा महाराष्ट्र, आंध्र और कर्नाटक राज्य के लाखों भाविक भक्तो का आराध्य देवता है. महाराष्ट्र मे भागवत धर्म के नामसे प्रसिद्ध वारकरी समाज का दैवत और तीर्थ स्थान माना जाता है. यह कृष्ण भक्तों का आस्था स्थान है.
पुंडलिक भगवान श्री कृष्ण का परम भक्त था. एकबार पुंडलिक नामक युवक काशी की यात्रा पर जा रहा था. जंगल मे रास्ता भूल गये. उसे रास्ते मे एक आश्रम दिखा. वो कुक्कुट ऋषि का आश्रम था. पुंडलिक ने महर्षि कुक्कुट से काशी जाने का रास्ता पूछा. तब ऋषि ने कहा की वे आज तक कभी काशी नही गए. इसीलिए उन्हें रास्ता पता नही है, पुंडलिक सुनते ही कहा किस तरह के ऋषि हो आप ? जो एकबार भी काशी नहीं गए. इतना कहकर पुंडलिक आगे अपनी यात्रा के लिए निकल गये.
आश्रम से थोड़ी दूर जाते उसे कुछ स्त्रियो की आवाज सुनाई देने लगी, उसने देखाकी आवाज तो आश्रम से ही आ रही है, और आश्रम में तो कोई स्त्री नहीं थी.वो फिर आश्रम पहुंचा तो उसने पाया की 3 औरतें पानी से आश्रम को साफ़ कर रही हैं, उनसे पूछा तो उसे पता चला की वो तीन औरतें माँ गंगा, माता सरस्वती और माँ यमुना हैं. पुंडलिक आश्चर्य से दंग रह गया, की कैसे ये तीनो उस ऋषि के आश्रम की पवित्रता बनाये हुए हैं जिसे काशी के दर्शन तो छोडिये, काशी का मार्ग तक पता नहीं हैं.
तब माँ गंगा, यमुना और सरस्वती ने उसे बताया की पवित्रता और श्रद्धा तो मन में होती है ये जरुरी नहीं की आप पवित्र स्थलों की यात्रा करें या फिर कर्मकांड करें. कुक्कुट ऋषि ने अपने जीवन में पवित्र मन से अपने माँ-बाप की सेवा की है और इसी कारण उन्होंने इतना पुण्य अर्जित किया है, की वे मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं. पुंडलिक अपने बूढ़े माँ-बाप को छोड़ काशी निकला था, इस बात से उसकी आंखे खुल गयी, और वो वापस घर पहुंचा.
अपने मां और पिता को लेकर उसने फिर काशी की यात्रा की. इस घटना के बाद, पुंडलिक का जैसे जीवन ही बदल गया. अब उसने अपना जीवन माँ-बाप की सेवा में लगा दीया. पुंडलिक की मा बाप के प्रति भक्ति देखकर भगवान श्री कृष्ण को भी पुंडलिक के घर जाने का मोह हुआ. भगवन श्री कृष्ण जब पुंडलिक के घर पहुंचे तो पुंडलिक अपने माता पिता की सेवा मे लगा था.
अपने घर भगवान को देखकर उसे काफी ख़ुशी हुई पर उसका मन थोडा भी विचलित नहीं हुआ , उसने अपने पास पड़ी एक इट को भगवान को खड़े रहने के लिए दीया और अपने माता पिता की सेवा मे लीन हो गया. माता-पिता की सेवा होने के बाद पुंडलिक भगवान कृष्ण के सामने गया और उनसे क्षमा मांगी, भगवान कृष्ण उनकी मा बाप की भक्ति को देखकर प्रसन्न हुए और उन्हें वर मांगने के लिए कहा. पुंडलिक ने कहा ” आप जगत के तात होते हुये भी आपने मेरे लिए इतना बाहर इंतजार किया, इससे ज्यादा मुजे क्या चाहिए ” ? मे आपका क्षमा प्रार्थी हूं. हे ! प्रभु मुजे माफ कर दीजिये.
मगर भगवन श्री कृष्ण ने आग्रह किया, तो पुंडलिक बोले की ” आप यहां पर निवास करें और यही रहकर अपने भक्तों पर आशीर्वाद बनाये रखें ” तब से भगवान श्री कृष्ण उसी इट पर पंढरपूर क्षेत्र में खड़े हैं विठोबा शब्द का अर्थ भी यही होता “भगवन जो इट पर खड़ा है.” माना जाता है की पंढरपुर में स्थित भगवान विठ्ठल की मूर्ति स्वयंभू है यानि इसे किसी भी मूर्तिकार ने नहीं तराशा हुआ है और वो अपने अस्तित्व में ही उसी आकार में आई है.
पंढरपुर में आषाढ़ तथा कार्तिक शुक्ल की एकादशी के दिन विशेष प्रकार की पूजा अर्चना होती है और लाखों की संख्या में भक्त जन दर्शन के लिये यहां पर आते है.
यहां चंद्रभागा नदी के उस पार 3 मील दूर एक गांव में जनाबाई का मंदिर है और वहां एक चक्की है, जिसे भगवान ने चलाया था. श्रीकृष्ण की 16,108 पटरानियों होते हुए भी उनको उनकी पत्नियां के साथ बहुत कम देखा जाता है. यहां श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी रूक्मणि के अलावा उन्हें किसी और के साथ नहीं पूजा जाता.
विट्ठल रुक्मिणी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर पूर्व दिशा के भीमा नदी के किनारे पर स्थित है.महाराष्ट्र में इस नदी को चंद्रभागा के नाम से जाना जाता है.चैत्र, माघ आदि माह के दौरान तट के किनारे विशाल मेला लगता है, जिसमें लोग दूर-दूर से इस नदी में स्नान करने आते हैं.
भगवान विट्ठल को प्रसन्न करने के लिए भक्त यहां दूर दूर से मंदिर तक पैदल यात्रा करके आते हैं, जिसे दिंडी यात्रा कहा जाता है. लोक मान्यता के अनुसार इस यात्रा को आषाढ़ी एकादशी या कार्तिकी एकादशी के दौरान मंदिर परिसर में किया जाता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में देवी रुक्मणी श्रीकृष्ण इस जगह रूठकर यहां तपस्या करने आईं थीं तब भगवान उन्हें मनाने यहां आए तो उन्हें अपने भक्त पुंडलिक का भी स्मरण आया, तो श्रीकृष्ण उन्हें दर्शन देने वहीं ठहर गए तो और देवी रुक्मणी भी उनकी प्रतीक्षा में वहीं उनके समीप खड़ी रह गई. आज युगों के युग बीत गए हैं लेकिन इस मंदिर में भगवान कृष्ण और रूक्मणी यहीं खड़े हैं. दूर दूर से भगवान के दर्शन करने के लिए भक्त जन इस मंदिर में आते हैं, यहां की मान्यता के अनुसार जो भी भक्त भगवान से यहां कुछ मांगता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है.
जिस स्थान पर उन्होंने अपने भक्त को दर्शन दिए थे, वह पुंडलिकपुर कहलाया गया और इसी का अपभ्रंश वर्तमान में प्रचलित पंढरपुर है. विट्ठल वैष्णव देवता है जिन्हे विष्णु और कृष्ण का रूप माना जाता है. पुंडलिक को विठ्ठल को पंढरपुर लाने का श्रेय दिया जाता है, जहां विठ्ठल का प्रमुख मन्दिर है. पुंडलिक को वारकरी संप्रदाय का ऐतिहासिक संस्थापक भी माना जाता है. ( संपूर्ण ).
बोला पुंडलिक वरदे हरी विठ्ठल।
श्री ज्ञानदेव तुकाराम।
बोला पंढरीनाथ महाराज कि जय।
श्री ज्ञानेश्वर महाराज कि जय।
श्री तुकाराम महाराज की जय।
——–====शिवसर्जन ====——–