कालिदास विक्रमादित्य के दरबार मे नवरत्नों मे से एक थे. कवि कालिदास दिखनेमे बहुत सुंदर थे. बताया जाता है कि प्रारंभिक जीवन में कालिदास जी अनपढ़ और महा मूर्ख थे. कालिदास का विवाह विद्योत्तमा नाम की एक राजकुमारी से हुआ था. कथा अनुसार
“विद्योत्तमा” एक ज्ञानी, विद्वान, बुद्ध महिला थी.
विद्योत्तमा ने प्रतिज्ञा ली थी कि जो कोई उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा, वह उसी के साथ अपना विवाह करेगी.
विद्योत्तमा ने शास्त्रार्थ में सभी के सभी विद्वानों को हरा दिया तो हार को अपमान समझकर कुछ विद्वानों ने उसका बदला लेने के लिए विद्योत्तमा का विवाह महामूर्ख व्यक्ति के साथ कराने का निश्चय किया.
महा मुर्ख की शोधमे वो लोग जा रहे थे तब उन्हें एक वृक्ष दिखाई दिया, जहां पर एक व्यक्ति जिस डाल पर बैठा था, उसी को काट रहा था.सभी विद्वानों ने सोचा कि इससे बड़ा महा मूर्ख तो मिलना मुश्किल है.
सभी विद्वानों ने उसे राजकुमारी से विवाह का प्रलोभन देकर नीचे उतारा और बताया कि आपको सिर्फ मौन धारण करना है. और जो हम कहेंगे बस वही करना है, तो आपका विवाह एक राजकुमारी से करवा देंगे. विद्वानोंने विद्योत्तमा के सामने वह व्यक्ति को हाजिर किया और विद्योत्तमा को कहा कि हमारे परम गुरु आप से शास्त्रार्थ करने के लिए पधारे है, मगर अभी उन्होंने मौनव्रत लिया है, अतः ये हाथों के संकेत से उत्तर देंगे जिसका हम लोग आपको वाणी से उत्तर देंगे.
शास्त्रार्थ का प्रारंभ किया गया. विद्योत्तमा अपनी मौन शब्दावली में गूढ़ प्रश्न पूछती थी, जिसे कालिदास अपनी बुद्धि से मौन संकेतों से ही जवाब दे रहे थे. प्रथम प्रश्न के रूप में विद्योत्तमा ने संकेत से एक उंगली दिखाई कि ब्रह्म एक है.
किंतु कालिदास ने समझा कि ये राजकुमारी मेरी एक आंख फोड़ना चाहती है. गुस्से से कालिदास ने दो अंगुलियों का संकेत इस भाव से किया कि तू मेरी एक आंख फोड़ेगी तो मैं तेरी दोनों आंखें फोड़ दूंगा. लेकिन विद्वानों ने उनके संकेत को कुछ इस तरह से समझाया कि आप कह रही हैं कि ब्रह्म एक है लेकिन हमारे गुरु कहना चाहता हैं कि उस एक ब्रह्म को सिद्ध करने के लिए दूसरे (जगत्) की सहायता लेनी होती है. अकेला ब्रह्म स्वयं को सिद्ध नहीं कर सकता. विद्योत्तमा उत्तर से संतुष्ट हुई.
विद्योत्तमा ने दूसरे प्रश्न के रूपमें कालिदास को खुला हाथ दिखाया कि पंच तत्व पांच है. तो कालिदास को लगा कि यह थप्पड़ मारने की धमकी दे रही है. उसके जवाब में क्रोध मे आकर कालिदास ने घूंसा दिखाया कि तू यदि मुझे गाल पर थप्पड़ मारेगी, मैं घूंसा मार कर तेरा चेहरा बिगाड़ दूंगा.
उपस्थित विद्वानो ने समझाया कि गुरु कहना चाहते है , कि भले ही आप कह रही हो कि पांच तत्व अलग अलग हैं पृथ्वी, जल, आकाश, वायु एवं अग्नि परंतु यह तत्व प्रथक् प्रथक् रूप में कोई विशिष्ट कार्य संपन्न नहीं कर सकते अतः आपस में मिलकर एक होकर उत्तम मनुष्य शरीर का रूप ले लेते है जो कि ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है. कालिदास का ज्ञान देखकर विद्योत्तमा राजकुमारी अति प्रशन्न हुई और अपनी हार मान ली. फिर क्या ?
शर्त के मुताबिक कालिदास और विद्योत्तमा का शुभ विवाह संपन्न हुआ. विवाह के पश्चात कालिदास विद्योत्तमा को लेकर अपनी कुटिया में आता हैं. और प्रथम रात्रि को ही जब दोनों एक साथ होते हैं तो उसी समय ऊंट का स्वर सुनाई देता है.
विद्योत्तमा संस्कृत में पूछती है की “किमेतत्” परंतु कालिदास संस्कृत जानते नहीं थे, इसीलिए उनके मुंह से निकल गया “ऊट्र”उस समय विद्योत्तमा को पता चल जाता है कि कालिदास अनपढ़ हैं. विद्योत्तमा ने कालिदास को धिक्कारा और यह कह कर घर से निकाल दिया कि सच्चे विद्वान् बने बिना घर वापिस मत आना.
उसके बाद कालिदास ने सच्चे मन से काली देवी की भक्ति आराधना की और उनके आशीर्वाद से वे ज्ञानी और धनवान बन गए. ज्ञान प्राप्ति के बाद जब वे अपने घर लौटे तो उन्होंने दरवाजा खटखटा के कहा कि,
” कपाटम् उद्घाट्य सुन्दरि ” ( दरवाजा खोलो सुन्दरी ) विद्योत्तमा ने चकित होकर कहा, अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः (कोई विद्वान लगता है)
कालिदास संस्कृत भाषा के महा कवि और नाटककार थे. उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को ही आधार बनाकर अपनी रचनाएं की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निरूपित हैं. कालिदास को कुछ विद्वान उन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान तक देते हैं.
अभिज्ञानशाकुंतलम् कालिदास की सबसे प्रसिद्ध रचना है. यह नाटक कुछ उन भारतीय साहित्यिक कृतियों में से है जिनका सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ था. यह पूरे विश्व साहित्य में अग्रगण्य रचना मानी जाती है.
मेघदूतम् कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना है जिसमें कवि की कल्पनाशक्ति और अभिव्यंजनावाद भावाभिव्यन्जना शक्ति अपने सर्वोत्कृष्ट स्तर पर है और प्रकृति के मानवीकरण का अद्भुत रखंडकाव्ये से खंडकाव्य में दिखता है.
उनके प्रकृति वर्णन अद्वितीय हैं और विशेष रूप से अपनी उपमाओं के लिये जाने जाते हैं. कालिदास किस काल में हुए और वे मूल किस स्थान के थे इसमें काफ़ी विवाद है.
मगर कुछ लोगों के अनुसार कालिदास उज्जयिनी के उन राजा विक्रमादित्य के समकालीन थे. जिन्होंने ईसा से 57 वर्ष पूर्व विक्रम संवत् चलाया था.
विक्रमोर्वशीय के नायक पुरुरवा के नाम का विक्रम में परिवर्तन से इस तर्क को बल मिलता है कि कालिदास जी उज्जयनी के राजा विक्रमादित्य के राजदरबारी कवि थे. इन्हें विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक माना जाता है.
कालिदास के माता पिता का नाम तथा उनके जन्म के बारेमें तथा मृत्यु के बारेमें कही प्रमाण नहीं मिलता है. कुछ लोग मानते है की कालिदास को उनके जन्म के छह माह मे उनको घर से त्याग दीया था.
साहित्यकारों ने ये भी सिद्ध करने का प्रयास किया है कि कवि कालिदास का जन्म उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले के कविल्ठा गांव में हुआ था. कालिदास ने यहीं अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की थी औऱ यहीं पर उन्होंने मेघदूत,रघुवंश और कुमारसंभव जैसे महाकाव्यों की रचना की थी. कविल्ठा चारधाम यात्रा मार्ग में गुप्तकाशी में स्थित है. गुप्त काशी से कालीमठ सिद्धपीठ वाले रास्ते में कालीमठ मंदिर से चार किलोमीटर आगे कविल्ठा गांव स्थित है.
पारम्पारिक मान्यता के अनुसार कालिदास जी उज्जयिनी के राजा श्री विक्रमादित्य के समकालीन थे.
विक्रमादित्य ने ईसा मशीह के 57 वर्ष पूर्व विक्रम संवत् कि स्थापना की थी. कालिदास जी उज्जयनी के राजा श्री विक्रमादित्य के राज कवि थे. इन्हें विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक माना जाता है.
कालिदास जी के जीवन के संबंध में अनेक मत है पर जिसे सबसे ज्यादा मान्यता दी जाती है उसके अनुसार श्री कालिदास का जन्म 150 ईसा पूर्व में हुआ था तथा इसके जन्म स्थान को उत्तर प्रदेश माना जाता है.
महाकवि श्री कालिदास को भारत ही नहीं बल्कि विश्व के श्रेष्ठ साहित्यकारों में स्थान दिया गया है, उन्होंने महाकाव्य नाटक, तथा गीतकाव्य के क्षेत्र में अपनी अद्भुत रचना शक्तिका लेखन प्रदर्शन कर विश्व मे अपनी विशेष पहचान बनायीं है. कवि कालिदास जी भगवान शिवजी और माता काली देवी के परम भक्त थे.
कालिदास ने भारत की पौराणिक कथाओ और दर्शन को आधार बनाकर अपनी रचनाये की, कालिदास अपनी अलंकार युक्त सुंदर और सरल मधुर भाषा के लिये विशेष रूप से जाने जाते है उनकी रचनाओ में लुभावनापन और प्रेम स्पस्ट दिखाई देता है.
कालिदास की सर्वाधिक प्रसिद्ध कृति जिसमे उन्हें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली उसका नाम है,
“ अभिज्ञानशाकुन्तलम ” इस कृति का विश्व की अनेक भाषाओ में अनुवाद किया गया है, तथा कालिदास जी का दूसरा नाटक “ विक्रमोर्यवशियम् ” तथा “ मालविकाग्निमित्र ” भी उत्कृष्ट नाट्य साहित्य में माना जाता है.
कालिदासजी की कुल मिलाकर लगभग 40 रचनाएँ है जिन्हें अलग अलग विद्वानों ने कालिदास द्वारा रचित सिद्ध करने का प्रयास किया है, इनमे से केवल 7 ही ऐसी रचनाये जो की बिना किसी विवाद के कालिदास की मानी जाती है.
श्री कालिदास जी के केवल दो ही महाकाव्य उपलब्ध है, “ रघुवंश ” और “ कुमारसंभव ” मगर ये दो महाकाव्य ने उनको प्रसिद्धि दिलवाई है. वैसे काव्यकला की दृष्टिकोण से कलिदास जी की रचना “ मेघदूत ” सर्वोत्तम है.
श्री कालिदास की बीना विवादित 7 रचना जिसका यहां पर संक्षिप्त मे विवरण जानना रुचिकर होगा.
( 1 ) अभिज्ञानशाकुन्तलम.
इस नाटक में महा काव्य महाभारत के आदिपर्व के शाकुंतालोपख्यान का बखूबी वर्णन किया गया है, जिसमे राजा दुष्यंत और शकुन्तला की प्रेम कहानी का वर्णन किया गया है. इस नाटक में कुल 7 अंक है ये ही वो रचना है जिसमे कालिदास को पूरे विश्व में प्रसिद्धि मिली है. और जब सन 1791 में इस नाटक का अनुवाद जर्मन भाषा मे किया गया, जिसे पढ़ने के बाद जर्मन विद्वान् गेटे इतने ज्यादा आनंद से प्रभावित हुए की उन्होंने इसकी प्रसंसा में एक सुंदर कविता लिख डाली थी.
( 2 ) विक्रमोर्यवशियम्.
यह नाटक पूरी तरह से रोमांचक नाटक है जिसमे स्वर्ग में रहने वाले पुरुरुवा, स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी के प्यार में पड जाते है और उर्वशी भी उनसे प्यार करती है, और इसके बाद जब इंद्र की सभा में उर्वशी नृत्य करने के लिये जाती है. तो वहा पर उनके दिमाग में पुरुरुवा के ही ख्वाब आते है जिसके चलते वो अच्छा प्रदर्शन नही कर पाती है. जीस कारण इंद्र उन्हें श्राप देकर धरती पर भेज देता है, और ये श्राप तभी टल सकता था जब उर्वशी की होने वाली सन्तान को पुरुरुवा देख ले तब वो वापस स्वर्ग जा सकती थी.
( 3 ) मालविकाग्निमित्र.
इस नाटक में राजा अग्निमित्र की कहानी है जिसमे वो घर से निकाले गये एक नौकर की बेटी मालविका के चित्र से प्यार करने लगते है, काफी मुसीबतों के बाद आखिर में दोनों अग्निमित्र और मालविका का मिलन हो जाता है.
( 4 ) रघुवंशम.
इस महाकाव्य में रघुकुल वंश का वर्णन किया गया है जिसमे भगवान राम का जन्म हुआ था, जिसमे बताया गया है की दिलीप रघुकुल वंश के प्रथम राजा थे, जिनमे दिलीप के पुत्र रघु और रघु के पुत्र अज और अज के पुत्र दशरथ थे और राजा दशरथ के भगवन राम समेत चार पुत्र थे.
( 5 ) कुमारसंभवम.
इस में भगवान शिव और माता पार्वती की प्रेमकथा का वर्णन और उनके पुत्र कार्तिकेय के जन्म की कहानी है, कई विद्वानों का मानना है कि कालिदास की मूल रचना में केवल शिव और पार्वती की प्रेमकथा ही थी पर बाद में किसी और विद्वान् ने इसमें कार्तिकेय के जन्म का वर्णन किया है.
( 6 ) मेघदूत.
मेघदूत में एक वर्ष के लिये शहर से निकाले गये एक सेवक जिसका नाम यक्ष है, उसे अपनी पत्नी की याद सताती है और वो मेघ यानि बादलों से याचिका विनती करता है की वो उसका सन्देश उसकी पत्नी तक पहुचाये.
( 7 ) ऋतुसंहार.
इस खंडकाव्य को कुछ विद्वान् कालिदास की रचना नही मानते है पर इसमें राजा विक्रमादित्य का वर्णन किया गया है और साथ ही यह ऐसी पहली रचना है जिसमे भारत की सभी ऋतुओ का विस्तार से वर्णन किया है.
——–=== शिवसर्जन ===—–