भगवान शिव शंकर भोला भंडारी हैं. वो कल्याणकारी हैं. वो दुनिया का रखवाला हैं. भगवान शिव शंकर को त्रिलोचन के नाम से भी पहचाना जाता है. त्रिलोचन का अर्थ तीन आंखों वाला होता हैं. देवों के देव महादेव एक मात्र भगवान शिव शंकर ही ऐसे हैं जिनकी तीन आंखें हैं.
शिव पुराण में भगवान शिव शंकर के माथे पर तीसरी आंख के होने का उल्लेख मिलता है. उस आंख से वह सबकुछ देख सकते हैं जो आम आंखों से हमें नहीं दिखता.
शिव शंकर की तीसरी आंख की विशेषता भी है. इसी वजह से उनका नाम त्रयंबकं भी है. उनकी कुल तीन आंखों में से दांयी आंख को सूर्य तथा बांयी आंख को चंद्र कहा जाता है. जबकि मस्तक पर बनी तीसरी आंख अग्नि का स्वरूप मानी जाती है.
मान्यता के अनुसार शिवजी अपनी तीसरी आंख तभी खोलते हैं जब उन्हें विनाश करना हो, लेकिन उन्होंने पहली बार तब खोली थी जब उन्हें सृष्टि को बचाना था. महाभारत के छठे खंड के अनुशासन पर्व में इसके रहस्य से पर्दा उठा है.
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव शंकर के तीसरे नेत्र उत्पत्ति की कहानी के बारे में नारद जी बताते हैं. कि एक भगवान शिव हिमालय पर्वत पर एक सभा कर रहे थे, जिसमें सभी देवता, ऋषि-मुनि और ज्ञानीजन वहांपर उपस्थित थे. तभी उस सभा में माता पार्वती का आगमन होता हैं. उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए खुद के दोनों हाथों को भगवान शिव की दोनों आंखों पर रख दिये.
जैसे ही माता पार्वती ने भगवान शिव की आंखों को ढक दिया तो सृष्टि में अंधेरा हो जाता हैं. ऐसा लगा कि मानो सूर्य देव की कोई अहमियत ही नहीं है. इसके बाद धरती पर मौजूद सभी प्राणियों में खलबली मच गई.
संसार की हालत देखकर भगवान शिव व्याकुल हो उठे और उसी समय उन्होंने अपने माथे पर एक ज्योतिपुंज प्रकट किया, जो भगवान शिव की तीसरी आंख बन कर सामने आई. बाद में माता पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने उन्हें बताया कि अगर वो ऐसा नहीं करते तो संसार का नाश हो जाता, क्योंकि उनकी आंखें ही समस्त जगत की पालनहार हैं.
कल ता : 18 फरवरी 2023 के दिन महाशिवरात्रि का पवित्र त्योहार हैं. भगवान शिव को भांग और पंचामृत का नैवेद्य पसंद होता है. इसके अलावा उन्हें रेवड़ी, चिरौंजी और मिश्री चढ़ाई जाती है. सावन के महीने में भोले बाबा का व्रत रखकर उन्हें गुड़ चना, चिरौंजी का भोग लगाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
भगवान शिव जी को बेलपत्र अति प्रिय है. बेलपत्र में तीन पत्तियां एक साथ जुड़ी होती हैं, लेकिन इन्हें एक ही पत्ती मानते हैं. भगवान शिव की पूजा में बेल पत्र प्रयोग होते हैं और इनके बिना शिव की उपासना पुरी नहीं होती.
बेलपत्रपुराणों के अनुसार जब समुंद्र मंथन के समय विष निकला तो सभी देवता जीवजंतु व्याकुल होने लगे.सारी सृष्टि में हाहाकार मच गया. सृष्टि की रक्षा के लिए देवताओं और असुरों ने भगवान शिव से प्रार्थना की गई तब भगवान शंकर ने इस विष को अपने गले में धारण कर लिया.
विष के कारण भगवान शंकर के मस्तिष्क गर्मी काफी बढ़ गई. जिसे कम करने के लिए देवी-देवताओं ने भगवान शंकर पर पवित्र नदियों का जल और बेलपत्र चढ़ाया था. वहीं शास्त्रों के अनुसार देवी पार्वती जी घोर तप के बाद शिव की अर्धांगिनी बनी और सबसे पहले महादेव को राम नाम लिखकर बेलपत्र माता पार्वती ने ही चढ़ाया था.
स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई और उससे बेल का पेड़ निकल आया.
” रुद्राक्ष ” दो शब्दों से बना है “रुद्र” और “अक्ष”, रुद्र का अर्थ “शिव” और अक्ष का अर्थ “भगवान शिव की आंख”. रुद्राक्ष की उत्पत्ति कथा भगवान शिव से जुड़ी है. रुद्राक्ष की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं.
भगवान शिव की पूजा में रुद्राक्ष का भी विशेष महत्व है. सावन में रुद्राक्ष को विधि विधान से धारण करने से त्रिदेवों का आशीर्वाद मिलता है.
शिव के अश्रु से रुद्राक्ष की उत्पत्ति :
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय भगवान शिव हजारों साल तक गहन ध्यान में चले गए थे. कहा जाता है कि शिव ने हजारों साल गहन ध्यान के बाद जब एक दिन अपनी आंखें खोलीं, तब उनके आंसुओं की बूंदें जमीन पर गिरी थीं, जिससे रुद्राक्ष के पेड़ विकसित हुए. रुद्र की आंखों से उत्पन्न होने के कारण इसे रुद्राक्ष का नाम दिया गया.
भगवान शिव की भस्म से संबंधित एक पौराणिक कथा के अनुसार, शिव के ऊपर जो भस्म देखी जाती है, ये उनकी पत्नी सती की चिता की भस्म थी जो अपने पिता द्वारा भगवान शिव के अपमान से आहत होकर वहां हो रहे यज्ञ के हवनकुंड में कूद गई थीं.
भगवान शिव को जब इसका पता चला तो वे बहुत बेचैन हो गए. जलते कुंड से सती के शरीर को निकालकर प्रलाप करते हुए ब्रह्माण्ड में घूमते रहे. उनके क्रोध से सृष्टि खतरे में पड़ गई. पहले भगवान श्री हरि ने देवी सती के शरीर को छिन्न-भिन्न कर दिया था, जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां पर शक्तिपीठ की स्थापना हो गई. फिर भी शिव भगवान शांत नहीं हुए.
नारायण भगवान ने सती के शरीर को भस्म में परिवर्तित कर दिया. शिव ने सती के विरह की अग्नि में भस्म को ही सती की अंतिम निशानी के तौर पर शिव जी ने अपने तन पर लगा लिया.
महाकाल की भस्म आरती का राज :
महाकाल की 6 बार आरती होती हैं, जिसमें सबसे खास मानी जाती है भस्म आरती. भस्म आरती यहां भोर में 4 बजे होती है. कालों के काल महाकाल के यहां प्रतिदिन सुबह भस्म आरती होती है. इस आरती की खासियत यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है. इस आरती में शामिल होने के लिए पहले से बुकिंग की जाती है.
शास्त्रों और पुराणों के अनुसार
भगवान शिव के अनेक नाम है. यहां कुछ नामों को प्रस्तुत कर रहा हूं.
*** शिव = कल्याण स्वरूप.
*** शम्भू =आनंद स्वरूप वाले
*** शंकर=सबका कल्याण करने वाले.
*** तारक = सबको तारने वाले.
*** दक्षाध्वरहर = दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाले.
*** पिनाकी = पिनाक धनुष धारण करने वाले.
*** शशिशेखर = सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले.
*** त्रिलोकेश= तीनों लोकों के स्वामी.
** शूलपाणी = हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले.
*** गंगाधर = गंगा जी को धारण करने वाले.
*** महाकाल = कालों के भी काल.
*** जटाधर = जटा रखने वाले.
*** सोमसूर्याग्निलोचन = चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले.
*** हरि = विष्णुस्वरूप.
*** वामदेव =अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले.
*** विरूपाक्ष = विचित्र आंख वाले.
*** पशुपति = पशुओं के स्वामी.
*** महादेव = देवों के भी देव.
*** ललाटाक्ष = ललाट में आंख वाले.
*** विष्णुवल्लभ = भगवान विष्णु के अति प्रिय.
*** कैलाशवासी = कैलाश के निवासी.
*** महासेनजनक =कार्तिकेय के पिता.
*** त्रिपुरांतक = त्रिपुरासुर को मारने वाले.
*** शर्व = कष्टों को नष्ट करने वाले.
*** वृषभारूढ़ = बैल की सवारी वाले.
*** भस्मोद्धूलितविग्रह = सारे शरीर में भस्म लगाने वाले.
*** भूतपति = भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी.
*** गिरीश = पर्वतों के स्वामी.
**** गिरिधन्वा = मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले.
***मृत्युंजय = मृत्यु को जीतने वाले.
*** विश्वेश्वर = सारे विश्व के ईश्वर.
*** वीरभद्र = वीर होते हुए भी शांत स्वरूप वाले.
*** अनीश्वर = जो स्वयं ही सबके स्वामी है.
*** गिरिप्रिय = पर्वत प्रेमी.
*** कृत्तिवासा = गजचर्म पहनने वाले.
*** श्रीकण्ठ = सुंदर कण्ठ वाले.
*** शिवाप्रिय = पार्वती के प्रिय.
*** दुर्धुर्ष = किसी से नहीं दबने वाले.
*** अंबिकानाथ=देवी भगवती के पति.
*** भगवान् = सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न.
*** गिरिश्वर = कैलाश पर्वतके स्वामी.
*** भुजंगभूषण = सांपों के आभूषण वाले.
*** जगद्गुरू = जगत् के गुरू.
*** रूद्र = भयानक.
*** व्योमकेश = आकाश रूपी बाल वाले.
*** प्रमथाधिप = प्रमथगणों के अधिपति.
*** भक्तवत्सल = भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले.
*** स्वरमयी = सातों स्वरों में निवास करने वाले.
*** चारुविक्रम = सुन्दर पराक्रम वाले.
*** कपाली = कपाल धारण करने वाले
*** सदाशिव = नित्य कल्याण रूपी.
(समाप्त )