सनातन हिंदू धर्म की चार वर्ण व्यवस्था.

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गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं,

चातुर्वण्र्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश:।

अर्थात मेरे द्वारा गुणों और कर्मों के विभागपूर्वक चारों वर्णों की रचना की गयी है. तथा…..

यजुर्वेद संहिता के पुरूष सूक्त1 की एकादशी ऋचा मे कहा गया है……

ब्राह्मणोऽस्य मुखम्आसीत्,

बाहू राजन्य: कृत:।

ऊरूऽतदस्य यद् वैश्य:,

पद्भ्यां शुद्रोअजायत।।

अर्थात ‘‘उस परम पुरूष बह्मा के मुख से ब्राह्मण, बाहुओ से क्षत्रिय, उदर से वैश्य और पैरो से शूद्र का जन्म हुआ.’’

इसका कहना यह है कि ब्राह्मण ज्ञान, धर्म और कर्म की शिक्षा देते हैं, इसी कारण वे मानव समाज का मुख स्वरूप हैं. जो लोग बाहुबल से समाज की रक्षा करते हैं, वे लोग क्षत्रिय हैं और समाज के बाहुस्वरूप हैं. जो लोग समाज के अन्न वस्त्र आदि का प्रबन्ध करते हैं वे वैश्य है और समाज के उदर स्वरूप हैं.

जो लोग समाज गतिशील रखते हैं, वे समाज के पैरो के समान हैं चारो में से किसी को भी नीचा या ऊँचा ऋषि ने नही कहा है.

सनातन धर्म में वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत समाज को चार भागों में बाँटा गया है, (1) ब्राह्मण, (2) क्षत्रिय, (3) वैश्य और (4) शूद्र. प्रारम्भ में यह वर्ण व्यवस्था कर्म-आधारित थी जो उत्तर वैदिक काल के बाद जन्म-आधारित हो गयी.

ब्राह्मण : पुजारी, विद्वान, शिक्षक, कवि, लेखक आदि.

क्षत्रिय : योध्दा, प्रशासक, राजा.

वैश्य : कृषक, व्यापारी.

शूद्र : सेवक, मजदूर आदि.

सर्वप्रथम सिन्धु घाटी सभ्यता में समाज व्यवसाय के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांटा गया था जैसे पुरोहित, शिल्पकार, व्यापारी, अधिकारी, जुलाहा व श्रमिक.

वर्णों में रंगों का सफर कर्म से होकर आज की तथाकथित जाति पर आकर पूर्णत: विकृत हो चला है. अब इसका अर्थ का अनर्थ हो गया है. वैदिक काल में ऐसी मान्यता थी कि जो श्वेत रंग का है वह ब्राह्मण, जो लाल रंग का है वह क्षत्रिय, जो काले रंग का है वह क्षुद्र और ‍जो मिश्रित रंग का होता था उसे वैश्य माना जाता था.

यह विभाजन लोगों की पहचान और मनोविज्ञान के आधार पर किए जाते थे. जैसे कि आजकल लोगों को गुजराती, मराठी, तमिल आदि भाषाई तरीके से बांटा जा रहा है.

प्राचीन काल में ब्राह्मणत्व या फिर क्षत्रियत्व को वैसे ही अपने प्रयास से प्राप्त किया जाता था, जैसे कि आज वर्तमान में एमए, एमबीबीएस आदि की डिग्री प्राप्त करते हैं. जन्म के आधार पर एक पत्रकार के पुत्र को पत्रकार, इंजीनियर के पुत्र को इंजीनियर, डॉक्टर के पुत्र को डॉक्टर या एक आईएएस, या फिर आईपीएस अधिकारी के पुत्र को आईएएस अधिकारी नहीं कहा जा सकता है, जब तक की वह आईएएस की परीक्षा पास नहीं करता है.

वर्ण व्यवस्था का प्रारम्भिक रूप ऋग्वेद के पुरुषसूक्त में मिलता है. इसमें 4 वर्ण ब्राह्मण, राजन्य या क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का उल्लेख किया गया है. इतिहासकारों के अनुसार वैदिक काल में सामाजिक बंटवारा धन आधारित न होकर जनजाति, और कर्म आधारित था.

वैदिक काल के बाद धर्मशास्त्र में वर्ण व्यवस्था का विस्तार से वर्णन किया गया है. उत्तर वैदिक काल के बाद वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित न होकर जन्म आधारित हो गयी. एक ब्राह्मण का पुत्र ब्राह्मण, क्षत्रिय का पुत्र क्षत्रिय, वैश्य का पुत्र वैश्य और शूद्र का पुत्र शूद्र कहलाने लगा.

मनुस्मृति में वर्ण व्यवस्था का विस्तार से वर्णन किया गया है…..

ब्राह्मण : वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मणों का कार्य यज्ञ करना , यज्ञ कराना, शिक्षक के रूप में कार्य करना था. इसके अलावा राजाओं को राज्य में परामर्श देने जैसे कार्य ब्राह्मण करते थे.

क्षत्रिय : क्षत्रिय वर्ण व्यवस्था में सेना में, प्रशासन में और शासक के रूप में कार्य करते थे. ब्राह्मणों की जो स्थिति धर्म संबंधी कार्यों में थी वही क्षत्रियों की राज्य संबंधी कार्यों में थी.

वैश्य : वैश्यों का मुख्य कार्य व्यापार करना, किसानों के रूप में कार्य करना था. इस शब्द की उत्पत्ति विश से हुई है जिसका अर्थ होता है बसना.

शूद्र : शूद्रों का कार्य उपरोक्त तीनों वर्ण की सेवा करना था. समाज में वैदिक काल में छुआछूत का प्रचलन नहीं था. छुआ छूत की प्रथा गुप्त काल में शुरू हुई.

जब उत्तर वैदिक काल के बाद वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित न होकर जन्म आधारित हो गयी. एक ब्राह्मण का पुत्र ब्राह्मण, क्षत्रिय का पुत्र क्षत्रिय, वैश्य का पुत्र वैश्य और शूद्र का पुत्र शूद्र कहलाने लगा, यहींसे ऊंच नीच की भावना प्रकट हुई. ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य अपने आप को उच्च मानने लगे. और शूद्र को नीच मानने लगे.

सच का साक्षात्कार : शूद्र कौन है ?

आजके जमाने में ब्राह्मण वो है, जो क्षत्रिय, वैश्य, ब्राह्मण या शूद्र होते हुए भी कर्म ब्राह्मण जैसा हो. पूजा पाठ करके ब्राह्मण जैसा आचरण करता हो. विश्व कल्याण की भावना रखता हो. अन्य वर्ण की शिक्षा के लिए साक्षरता अभियान चलाता हो.

आजके वर्तमान जमाने में क्षत्रिय कौन कहलाता है ? क्षत्रिय उसे कहा जायेगा जो भले ब्राह्मण, वैश्य या शूद्र हो या फिर क्षत्रिय हो. मगर आचरण क्षत्रिय जैसा करता हो जैसे अबला नारी को बलात्कारीयों से हवस का शिकार होते बचाता हो.

निर्बल को बलवान से प्रताड़ित करते बचाता हो. अपनी शक्ति, ताकत के बलबूते पर गरीबों को न्याय दिलाता हो. देश में छुपे हुए गद्दारों को कानून के हवाले करता हो.

आजके जमाने में वैश्य किसे कहा जाना चाहिए ? वैश्य उसे कहा जाना चाहिए जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र होते हुए भी व्यापार ईमानदार से करता हो. धंदे में किसीको लूटता ना हो. और ग्राहक को अपना भगवान मानता हो.

आजके जमाने में शूद्र किसे कहना चाहिए ? शूद्र उसे कहा जाना चाहिए जो ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य या फिर शूद्र क्यों ना हो. वें अगर शूद्र जैसा व्यवहार करता हो. किसीको लूट के अपनी आय बढ़ाता हो, भ्रष्टाचार करता हो, अपने देश के साथ गद्दारी करता हो वह शूद्र है.

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