सनातन ( हिंदू धर्म ) परंपरा में देवी-देवताओं के मंदिर पर फहराई जाने वाली ध्वजा का बहुत महत्व होता है. हमारी आस्था, संस्कृति और परंपरा से जुड़ी इस ध्वजा को लगाए जाने के पीछे के कई कारण हैं.
हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के नाम पर मंदिरों में चढ़ाई जाने वाली ध्वजा या फिर पताका बहुत महत्व रखता है. आप लोगोंने देखा होगा कि महाभारत में अर्जुन के रथ पर ध्वजा के रूप में स्वयं हनुमान जी बिराजमान हैं.
मान्यता है कि प्राचीनकाल में जब देवताओं और दैत्यों के बीच भीषण युद्ध हुआ तो उस समय सभी देवताओं ने अपने-अपने रथों पर जिन-जिन चिह्नों को लगाया, कालांतर में वे सभी उनके ध्वज बने. मान्यता है कि मंदिर, वाहन आदि में तभी से ये ध्वज लगाने की परंपरा की शुरुआत हुई थी. सनातन पंरपरा में ध्वजा को संस्कृति, विजय और सकारात्मकता ऊर्जा का प्रतीक माना गया है.
देवी-देवता से संबंधित ध्वजा हिंदू धर्म में प्रत्येक देवी-देवता से संबंधित ध्वजा पर उनके वाहन का चिन्ह होता है. जैसे विष्णुजी की ध्वजा पर गरुड़, शिवजी की ध्वजा पर वृषभ, ब्रह्माजी की ध्वजा पर कमल का चिह्न, गणपति की ध्वजा पर मूषक, सूर्यनारायण की ध्वजा पर व्योम, देवी दुर्गा की ध्वजा पर सिंह, कार्तिकेय की ध्वजा पर मोर, कामदेव की ध्वजा पर मकर, यमराज की ध्वजा पर भैसा, इंद्रदेव की ध्वजा पर ऐरावत ध्वजा का चिन्ह अंकित होता है.
असल में मंदिर के ध्वजों का अलग अलग रंग अलग-अलग देवता को प्रदर्शित करता है और उनपर बने प्रतीक भी उस देवता से संबंधित होते हैं. आप ध्वजा का रंग देखकर या चिन्ह देखकर ये पहचान कर सकते हैं कि ये मंदिर किस देवता या भगवान का है.
सरकारी ध्वजारोहण :
सरकारी ध्वजा ( तिरंगा ) को कई मौकों पर फहराया जाता है. तारीख 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ध्वजारोहण किया जाता है. इस दिन प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से ध्वजारोहण करते हैं.
26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराया जाता है. इस दिन झंडा पहले से ही ऊपर लगाकर बंधा होता है.
सरकारी भवनों पर रविवार और छुट्टियों के दिनों में सूर्योदय से सूर्यास्त तक ध्वज फहराया जाता है.
विशेष अवसरों पर रात में भी ध्वज फहराया जा सकता है. राष्ट्रीय ध्वज को सम्मानसे फहराना चाहिए और धीरे धीरे आदर के साथ उतारना चाहिए. ध्वज से जुड़े कुछ और नियम :
ध्वज ( तिरंगा ) को ऐसी जगह लगाना चाहिए जहां से वह स्पष्ट रूप से दिखाई दे. ध्वज को फटा या मैला नहीं फहराना चाहिए. राष्ट्रीय शोक के दिनों में ध्वज को आधा झुकाया जाता है.
ध्वज पर कुछ भी लिखा या छपा नहीं होना चाहिए.
बता दें कि राष्ट्रीय ध्वज को जब स्तंभ पर नीचे से ऊपर की तरफ चढ़ाया जाता है तो यह ध्वजारोहण कहलाता है. वहीं 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के दिन झंडा फहराया जाता है.
हर एक देश की अपनी अपनी खास ध्वजा होती हैं. जो एक दूसरे से अलग रंग की निशानी वाली होती हैं.
महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ पर हनुमान जी के विराजित होने के पीछे भी कारण है :
इसका वर्णन आनंद रामायण में किया गया है. वर्णन के अनुसार एक बार रामेश्वरम् तीर्थ में अर्जुन और हनुमानजी जी का मिलना होता है. इस दौरान अर्जुन ने हनुमान जी से लंका युद्ध का जिक्र किया और पूछा कि जब श्री राम श्रेष्ठ धनुषधारी थे तो फिर उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए पत्थरों का सेतु क्यों बनवाया? यदि मैं होता तो समुद्र पर बाणों का सेतु बना देता, जिस पर चढ़कर आपका पूरा वानर दल समुद्र पार कर लेता.
यह सुनकर हनुमानजी से कहा कि बाणों का सेतु वहां टिक नहीं पाता, वानर दल का जरा सा भी बोझ पड़ते सेतु टूट जाता. इस पर अर्जुन कुछ बुरा लगा और उन्होंने कहा हनुमान जी से एक अजीब सी शर्त रख दी. अर्जुन ने कहा कि सामने एक सरोवर पर वह अपने बाणों से सेतु बनाएगा, अगर वह आपके वजन से टूट गया तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाउंगा और यदि नहीं टूटता है तो आपको (हनुमान जी को) अग्नि में प्रवेश करना होगा.
हनुमानजी ने इसे सहर्ष ही स्वीकार कर लिया और कहा कि मेरे दो चरण ही इस सेतु ने झेल लिए तो मैं पराजय स्वीकार कर लूंगा और अग्नि में प्रवेश कर जाउंगा. इसके बाद अर्जुन ने अपने प्रचंड बाणों से सरोवर पर सेतु तैयार कर दिया. जैसे ही सेतु तैयार हुआ हनुमान जी अपने विराट रूप में आ गए और भगवान श्री राम का स्मरण करते हुए उस बाणों के सेतु पर चढ़ गए. पहला पग रखते ही सेतु सारा का सारा डगमगाने लगा, दूसरा पैर रखते ही चरमराया और तीसरा पैर रखते ही सरोवर के जल में खून ही खून हो गया.
हनुमानजी सेतु से नीचे उतर आए और अर्जुन से कहा कि मैं पराजित हो गया अग्नि तैयार करो. अग्नि प्रज्वलित हुई तो हनुमान जी उसमें जाने लगे लेकिन उसी पल भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए और उन्हें रोक दिया. भगवान ने कहा- हे हनुमान, आपका तीसरा पग सेतु पर पड़ा, उस समय मैं कछुआ बनकर सेतु के नीचे लेटा हुआ था, आपके पैर रखते ही मेरे कछुआ रूप से रक्त निकल गया. यह सेतु टूट तो पहले ही पग में जाता यदि में कछुआ रूप में नहीं होता तो.
यह सुनकर हनुमान को काफी कष्ट हुआ और उन्होंने क्षमा मांगी. मैं तो बड़ा अपराधी निकला आपकी पीठ पर मैंने पैर रख दिया. मेरा ये अपराध कैसे दूर होगा भगवन्? तब कृष्ण ने कहा, ये सब मेरी इच्छा से हुआ है. आप मन खिन्न मत करो और मेरी इच्छा है कि तुम अर्जुन के रथ की ध्वजा पर स्थान ग्रहण करो. इसलिए द्वापर में श्रीहनुमान महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ के ऊपर ध्वजा लिए बैठे रहते हैं