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हमारे पूर्वज ऋषि मुनि बडी दूरदृस्टि रखते थे. सालों साल तपस्चर्या करते थे. उनके ज्ञानो का भंडार मतलब हमारे रामायण, महाभारत, गीता ज्ञान, 18 पुराण, चार वेद, उपनिदेश, स्मृतियों का संग्रह है.
दुनिया मे सनातन हिंदू धर्म सबसे प्राचीन धर्म है. पुराण, शास्त्र ज्ञान युक्त कहानी का विशाल संग्रह है.
जानकार विशेषज्ञो का मानना है कि पुराण, रामायण और महाभारत हिन्दुओं के धर्मग्रंथ नहीं हैं, धर्मग्रंथ तो वेद हैं. शास्त्रों को 2 भागों में बांटा गया है, (1) श्रुति और (2) स्मृति. श्रुति के अंतर्गत धर्मग्रंथ वेद आते हैं और स्मृति के अंतर्गत इतिहास और वेदों की व्याख्या की पुस्तकें पुराण, महाभारत, रामायण, स्मृतियां आदि आते हैं.
वेदों का सार उपनिषद है और उपनिषदों का सार गीता है. वेद की उत्पत्ति संस्कृत शब्द विद से हुई है, विद शब्द का अर्थ होता है, जानना या ज्ञान अर्जित करना. अर्थात हम लोग वेद को ” ज्ञान का संग्रह ” कह सकते है. ” वेद ” संख्या में चार हैं.
(1) ऋगवेद. (2) सामवेद (3) अथर्ववेद (4) यजुर्वेद. जो हमारे हिन्दू धर्म के आधार स्तंभ हैं.
वेदो को हम ज्ञान का भंडार कह सकते है. क्योंकि वेदों में ब्रह्म, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, देवता, धार्मिक नियम, इतिहास, संस्कार, रीति-रिवाज, खगोल, भूगोल, संगीत आदि समग्र विषयों की छनावट, रचना विस्तार से की गई है.
हमने देखा मुख्य चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद है. इसमे ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्व वेद और अथर्ववेद का स्थापत्य वेद ये क्रमश: चारों वेदों के उपवेद बतलाए गए हैं.
वेदों के अंतिम भाग को ” वेदांत ” कहते हैं. वेदांतों को ही उपनिषद कहते हैं. उपनिषद में तत्वज्ञान की चर्चा है.
वैसे उपनिषदों की कुल संख्या 108 है, परंतु मुख्य 12 माने गए हैं, जैसे कि (1) ईश, (2) केन (3) कठ (4) प्रश्न (5) मुण्डक (6) माण्डूक्य (7) तैत्तिरीय (8) ऐतरेय (9) छांदोग्य, (10) बृहदारण्यक (11) कौषीतकि और (12) श्वेताश्वतर.
रामायण मे “रामलीला” का वर्णन है. रामायण हमें अन्याय के विरुद्ध लड़ना सिखाता है. ” रामायण ” हमें सिखाता है कि एक वाल्या लुटेरा हृदय परिवर्तन करके वाल्मीकि ऋषि बनकर रामायण की रचना कर सकता है.
रामायण हमें सिखाता है कि एक महिला शूद्र सबरी अपनी भक्ति की शक्ति के बल पर प्रभु श्री रामचंद्र जी का साक्षात्कार कर सकती है.
रामायण हमें सिखाती है कि एक राजकुमारी सीता माता पति की वचन पूर्ति के लिए पतिका साथ देकर 14 साल जंगलो मे घूमकर वनवास की यातना कैसे जेलती है. और पति को विकट परिस्थिति मे साथ देती है.
रामायण एक राजपरिवार और राजवंश की ऐसी कहानी है जो पति पत्नी, भाई भाई और परिवार के अन्य सदस्यों के आपसी रिश्तों के आदर्श को बया करती है.
रामायण हमें हनुमान जी का प्रभु राम जी के प्रति अटल विश्वास और प्रेम का परिचय कराती है. उनकी प्रभु राम जी के प्रति निःस्वार्थ सेवा हमें सिखाती है कि एक दोस्त दूसरे दोस्त को कैसे मदद कर सकता है.
रामायण हमें सिखाती है की हमें बदले, अहम और क्रोध के बजाय माफ़ करने का अभिगम अपनाना चाहिए.
रावण की बहन सूर्पनखा की लक्ष्मण द्वारा नाक काटने और बेइज्जती करने पर रावण, उसके भाई राम को सबक सिखाने की सोचता है और अपना सर्वनाश कर बैठता है.
रामायण हमें सिखाती है कि राजा दशरथ ने अपनी दाढ़ी में सफेद बाल देखकर तत्काल पुत्र श्री राम जी को युवराज घोषितकर उन्हें राजा बनाने की घोषणा भी कर दी थी.
हमे जीवन में अपनी परिस्थिति, क्षमता और भविष्य को देखकर निर्णय लेना चाहिए. राजकारण मे कई लोग अपने पद से इतने मोह में रहते हैं कि बूढ़े होने पर भी पद नहीं छोड़ते है.
महाकाव्य महाभारत को पांचवां वेद माना जाता है. महाभारत एक ऐसा महाकाव्य है, जो हमें जीवन जीने की राह दिखाता है. महाभारत की शिक्षा हर काल में प्रासंगिक रही है.
महाभारत के गीता ज्ञान मे प्रभु श्री कृष्ण हमें सिखाता है कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में बेहतर रणनीति जीवन को सफल बना सकती है. पांडवो की जीत के पीछे श्रीकृष्ण की रणनीति का बहुत बड़ा योगदान रहा था.
महाकाव्य महाभारत हमें सीखता है कि दुर्योधन, शकुनि मामा की संगत के कारण बुरे मार्ग पर चला अतः बर्बाद हुआ. जीवन में नकारात्मक लोगों की संगति में रहने से मन और मस्तिष्क पर नकारात्मक विचारों का ही प्रभाव पडता है.
महाभारत का युद्ध नहीं होता यदि कुछ लोग अपने जबान पर काबू रखते. इंद्रप्रस्थ में एक बार जब महल के अंदर दुर्योधन एक जल से भरे कुंड को फर्शी समझकर उसमें गिर पड़े थे तो ऊपर से हंसते हुए द्रौपदी ने कहा था, ” अंधे का पुत्र भी अंधा.”
बस यही बात दुर्योधन को चुभ गई थी जिसका परिणाम द्रौपदी चीरहरण के रूप में हुआ था.
महाभारत हमें सिखाता है कि कई बार दोस्त के भेष में दुश्मन हमारे साथ आ जाते हैं, और हमारे कई तरह के राज जान लिया करते हैं. कुछ ऐसे भी दोस्त होते हैं, जो दोनों तरफ होते हैं. ऐसे दोस्तों पर भी कतई भरोसा नहीं किया जा सकता इसलिए किसी पर भी अंध विश्वास नहीं करना चाहिए.
कौरवों का साथ दे रहे भीष्म, द्रोण और विदुर ने अंतत: युद्ध में पांडवों का ही साथ दिया. ये लोग लड़ाई तो कौरवों की तरफ से लड़ रहे थे लेकिन प्रशंसा पांडवों की करते थे और युद्ध जीतने के उपाय भी पांडवों को ही बताते थे.
महाभारत हमें सिखाता है कि हमें जुए-सट्टे से दूर रहना चाहिए. शकुनि ने पांडवों को जाल मे फंसाने के लिए जुए का आयोजन किया था जिसके चलते पांडवों ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था.अंत में उन्होंने द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया.
महाभारत हमें सिखाता है कि हमें सदा सत्य का साथ देना चाहिए. जब श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से पूछा कि तुम मुझे या मेरी नारायणी सेना में से किसी को चुनना है ? तो दुर्योधन ने श्रीकृष्ण को छोड़कर नारायणी सेना को चुना.
कहते हैं कि विजय हमेशा उसकी होती है, जहां ईश्वर है और ईश्वर हमेशा वहीं है, जहां सत्य है इसलिए सत्य का साथ कभी न छोड़ना चाहिए. हमेशा सत्य की ही जीत होती है.
महाभारत से हमें ये सीख मिलती है कि जब किसी मसले का हल शांतिपूर्ण किसी भी तरीके से नहीं होता तो फिर युद्ध ही एकमात्र विकल्प बच जाता है. कायर लोग युद्ध से पीछे हटते हैं. अतः अपनी चीज को हासिल करने के लिए, अपने अधिकारों के लिए लड़कर युद्ध करना जरुरी है.
महाभारत हमें सिखाता है कि ईमानदार और बिना शर्त समर्थन देने वाले दोस्त भी आपका जीवन बदल सकता है, पांडवों के पास भगवान श्री कृष्ण थे तो कौरवों के पास महान योद्धा कर्ण थे. इन दोनों ने ही दोनों पक्षों को बिना शर्त अपना पूरा साथ और सहयोग दिया था.यदि कर्ण को छल से नहीं मारा जाता तो कौरवों की जीत तय थी.
महाभारत हमें सिखाता है कि पांच पांडवों ने हमेशा श्रीकृष्ण की बातों को ध्यान से सुना और उस पर अमल भी किया लेकिन दुर्योधन ने कर्ण को सिर्फ एक योद्धा समझकर उसका पांडवों की सेना के खिलाफ इस्तेमाल किया.
यदि दुर्योधन कर्ण की बात मानकर कर्ण को घटोत्कच को मारने के लिए दबाव नहीं डालता, तो जो अमोघ अस्त्र कर्ण के पास था , उससे अर्जुन मारा जाता.
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