मुंबई मे ता : 12 मार्च 1993 के आंतकवादी हमलो मे 257 लोगों की मृत्यु हो गयी थी, और 713 लोग घायल हुए थे. जिसका सरगना दाउद इब्राहिम और उसकी डी कंपनी बतायी जाती है. उसके बाद…
ता : 11/07/2006 मंगलवार की शाम मुंबई की लोकल ट्रैन मे हुए धड़कों ने मुंबई की लाइफ लाइन को अस्त व्यस्त कर दीया था. श्रुंखला बद्ध 7 विस्फोटों मे करीब 135 यात्री मारे गये थे.
इतिहास साक्षी है की इससे भी खतरनाक, न भुलाने वाला हादसा ब्रिटिश काल मे मुंबई विक्टोरिया बंदरगाह मे तारीख 14 अप्रेल 1944 के दिन हुआ था. 14 अप्रेल , इसी दिन ब्रिटिश के माल वाहक जहाज एस एस फोर्ट स्टिकिन मे विस्फोट हुआ था. जो दो दिन पहले कराची से आया था.
इस भयानक विस्फोट मे 800 लोग मारे गये थे जिसमे 66 फायर ब्रिगेड के लोग सहित 231 बंदरगाह सेवा कर्मी सामिल थे. 3000 लोग घायल हुये शाम 4 बजे हुये विस्फोट मे जहाज को दो हिस्सों मे काट दिया था. ये विस्फोट इतना शक्तिशाली था की 12 किलोमीटर की दुरी तक घर के कांच की खिड़कियों को तोड़ दिया था. जिसकी आवाज 80 किलोमीटर तक सुनी गई थी. तीन दिन तक आग जलती रही थी. और भारी मात्रा मे धन ओर जान की क्षति हुई थी.
इस जहाज की आजुबाजु खड़े 11 जहाज डूब गये थे, आग लगने से पैदा हुई गर्मी के कारण जहाज पर चारो तरफ पानी उबल रहा था. शहर मे 2 वर्ग किलोमीटर तक आग फैल गई थी. विस्फोटों और नुकसानों का विवरण पहली बार रेडियो साइगॉन द्वारा बाहरी दुनिया को बताया गया था. बादमे एक जापानी रेडियो जिसने ता : 15 अप्रैल 1944 को घटना की विस्तृत रिपोर्ट दी थी.
टाइम मैगज़ीन ने ता : 22 मई 1944 के दिन कहानी प्रकाशित की और तभी बाहरी दुनिया को यह खबर मिली थी. बादमे भारतीय सिनेमाटोग्राफर सुधीश घटक द्वारा बनाई गई विस्फोटों और उसके बाद फिल्म को सैन्य अधिकारी यों द्वारा जब्त कर लिया गया था, प्रोपेलर का एक टुकड़ा जो डॉक से लगभग 5 किमी दूर सेंट स्कूल के पास गिरा था. रॉयल इंडियन नेवी के तीन जहाज खो गए थे.
इकतीस लकड़ी के टोकरे, प्रत्येक में चार सोने की छड़ें, प्रत्येक सोने की पट्टी का वजन 800 ट्रॉय औंस या लगभग 25 किलो जो हवामे उड़कर बारिस की तरह गिरे थे.
50000 टन से अधिक शिपिंग नष्ट हो गई थी और 50000 टन से अधिक शिपिंग क्षतिग्रस्त हुई थी.
चावल सहित 50,000 टन से अधिक अनाज का नुकसान हुआ था जिस कारण बाद में खाद्यान्न की कालाबाजारी ने जन्म लिया था. इस जहाज मे 1395 टन विस्फोटक , टॉरपीडो , कपास की गांठे , तेल के बैरल आदि सामान था.
तबसे आज तक 14 अप्रेल को ” अग्निशमन दिवस ” के रुप मे मनाया जाता है. तथा इस विस्फोट में मरने वाले कुल 66 फायरमैन की याद में 14 से 21 अप्रैल तक पूरे देश भर में “राष्ट्रीय अग्नि सुरक्षा सप्ताह” मनाया जाता है.
आग को नियंत्रण में लाने में तीन दिन लगे थे और बाद में, 8,000 लोगों ने करीब 500,000 टन मलबे को हटाने के लिए सात महीने तक कार्य किया था.
आग लगने का कारण का पता तो नहीं चल पाया मगर कई कारण थे जो उस ओर संकेत करते है.
“बोर्ड पर खतरनाक माल” इंगित करने के लिए आवश्यक लाल झंडा (बी झंडा) प्रदर्शित नहीं करना , विस्फोटकों को उतारने में देरी करना , आग को रोकने के लिए स्टीम इंजेक्टर का उपयोग नहीं करना , स्थानीय फायर ब्रिगेड को सतर्क करने में देरी लगाना , आदि अनेक कारण मुख्य थे.
इस विस्फोट की वजह लगभग 6,000 फर्म प्रभावित हुईं और 50,000 ने अपनी नौकरी खो देनी पड़ी थी. मुंबई फायर ब्रिगेड के मुख्यालय पर बाइकुला एक स्मारक जो सेनानिया मर गये थे उनकी स्मृति में बनाया गया है.
यह जहाज 12 अप्रेल 1944 के दिन बॉम्बे पंहुचा था. जहाज के कप्तान अलेक्ज़ैंडर जेम्स नाइस्मिथ ने इतना मिश्रित माल थोपने के लिये अपना विरोध भी दर्शाया था.
आज उस घटना को 77 साल पुरे हो गये है. फ़िरभी उस समय के पुराने लोग मुंबई मे आज भी जिंदा हो सकते है. यह हादसा जब हुआ तब दूसरा विश्व युद्ध शुरू था. जो सन 1939 से सन 1945 तक चला था.
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शिव सर्जन