” पारिजात ” को हरसिंगार भी कहा जाता हैं. हरसिंगार का खास धार्मिक महत्त्व हैं. जिसका जिक्र प्राचीन ग्रन्थों में भी मिलता है. इसके फूल सुगन्धित, छोटे पखुड़ियों वाले और सफेद रंग के होते हैं. फूल के बीच में चमकीला नारंगी रंग होता है. हरसिंगार के पौधे का खास महत्त्व हैं.
पारिजात के पेड़ का पौराणिक महत्व है. शास्त्रों में तो पारिजात को कल्पवृक्ष कहा गया है. मान्यता है कि पारिजातका वृक्ष समुद्र मंथन से निकला है और जिस घर में हरसिंगार का पौधा लगा होता है उस घर में सदैव मां लक्ष्मी का वास होता है. एक धारणा यह भी है कि स्वर्गलोक में इसको स्पर्श करने का अधिकार सिर्फ उर्वशी नाम की अप्सरा को था.
पारिजात के फूल रात को ही क्यों खिलते हैं ? इसका कारण पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि देवराज इंद्र ने इस पेड़ को श्राप दिया था कि इसके फूल दिनमें कभी भी नहीं खिलेंगे. उन्होंने यह भी श्राप दिया था कि इस पर कभी फल भी नहीं आएंगे. इसी श्राप की कारण पारिजात के फूल रात में ही खिलते हैं.
सुंदर , सुगंधित पारिजात फूल को विविध भाषा ओमे विभिन्न प्रकार के नामो से पहचाना जाता हैं…..
पारिजात का वानस्पतिक नाम निक्टैन्थिस् आर्बोर-ट्रिस्टिस् (Nyctanthes arbor-tristis Linn., Syn-Nyctanthes dentata Blume) है और यह ओलिएसी (Oleaceae) कुल से है. पारिजात का पेड़ इन नामों से भी जाना जाता है :
*** हिन्दी : हरसिंगार, पारिजात.
*** इंलिश : नाईट जेस्मिन.
*** संस्कृत : पारिजात, पारिजात,
पुष्पक, प्राजक्त, रागपुष्पी,
खरपत्रक.
***उत्तराखंड : कुरी , हरसिंगार.
*** गुजराती : हरशणगार. जयापार्वती.
*** बंगाली : शेफालीका,
*** मराठी : पारिजातक,
*** उर्दू : गुलजाफरी,
*** इंलिश : नाईट जेस्मिन,
*** तमिल : पवलमल्लिके, मंझाटपू .
*** कन्नड़ : पारिजात. गोली.
*** तेलगु : पारिजातमु , सेपाली.
*** ओरिया : गोडोकोडीको, गंगा
सेयोली.
*** एसेमिया : सेवाली (Sewali)
*** कोंकनी : पारिजातक,
*** नेपाली : पारिजात,
*** पंजाबी : हरसिंघार,
*** मलयालम : पविलामल्लि,
परिजातकम.
पारिजात से जुड़ी धार्मिक कहानी :
पौराणिक मान्यता के मुताबिक, पारिजात का पेड़ स्वर्ग से लाकर धरती पर लगाया गया था. समुद्र मंथन के बाद निकले 14 रत्नों में से एक पारिजात का पेड़ था. देवराज इंद्र ने इस पेड़ को स्वर्ग में स्थापित कर दिया था.
पौराणिक कथाओं के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि यह पौधा कुंती के राख से उत्पन्न हुआ था. तो दूसरी ओर कुछ कथाओं में यह कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने इस पौधे की एक डाली चोरी करके अपने बगीचे में लगा ली थी. चोरी करने का कारण यह बताया जाता है कि नारद मुनि ने एक बार सत्यभामा जो भगवान कृष्ण की पत्नियों में से एक थीं, उनको पारिजात के कुछ फूल दिए. सत्यभामा फूलों की खुशबू से बहुत खुश हुईं और अपने आप को रोक नहीं पाईं. उन्होंने इस पौधे की मांग की, तब नारद मुनि ने कहा कि यह वृक्ष भगवान इंद्र के बगीचे में है लेकिन अगर वे चाहें तो भगवान कृष्ण को मना कर उन्हें यह वृक्ष लाने के लिए इंद्रपुरी भेज सकती हैं
सत्यभामा ने नारद मुनि की बात मानकर ऐसा ही किया लेकिन नारद मुनि ने जाकर भगवान इंद्र को चेतावनी दे दी कि कोई व्यक्ति इस पेड़ को चुराने की कोशिश करेगा. भगवान कृष्ण जब उसकी डाली चोरी करके ले जा रहे थे तब इंद्र ने उन्हें देख लिया और दोनों के बीच में लड़ाई शुरू हो गई. जब इंद्र ने यह देखा कि उनका जोर श्री कृष्ण पर नहीं चल रहा है तब उन्होंने इस पेड़ को श्राप दिया कि कभी भी यह पेड़ फल नहीं देगा. फूल सिर्फ़ रात में खिलेंगे.
हरिवंश पुराण के अनुसार इस वृक्ष को कल्प वृक्ष के नाम से जाना जाता है. इसीलिए तो नए जोड़े को इसकी पूजा करने के लिए कहा जाता है, ताकि उसके आशीर्वाद से दोनों के बीच अनंत प्रेम और वैवाहिक आनंद बना रहे. इस पौधे के फूल रात के समय खिलते हैं और बिना किसी बाहरी बल के जमीन पर गिर जाते हैं इसलिए यह एक ऐसा फूल है जिसे भगवान को चढ़ाया जा सकता है (भले ही वह जमीन से क्यों ना उठाए गए हों). पारिजात के फूल रात के दौरान अपनी सुगंध फेलाते हैं इसलिए इसे ‘नाइट जैसमिन’ भी कहा जाता है.
परिजात के फूल में विटामिन सी, एंटीऑक्सीडेंट्स, और विभिन्न पोषण तत्व पाए जाते हैं, जो पाचन प्रक्रिया को सुधारने में मदद करते हैं. परिजात के फूल के पत्तों का सेवन पाचन क्रिया को सुधारने में मदद करता है और अपच को कम कर सकता है. परिजात के फूल से बनाया गया तेल गठिया, अर्थराइटिस जैसे जोड़ों के दर्द को कम करने में मदद कर सकता है.
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