” सप्तश्रृंगी ” माताजी का मंदिर, महाराष्ट्र के नासिक ज़िले के वणी गांव में गोदावरी नदी के किनारे विद्यमान है. सप्तश्रृंगी माता को ब्रह्मस्वरूपिणी के नाम से भी जाना जाता है. सप्तश्रृंगी माताजी का मंदिर सात पर्वतों से घिरा है, इसलिए इन्हें सप्तश्रृंगी यानी सात पर्वतों की देवी कहा जाता है.
सप्तश्रृंगी माता की मूर्ति आठ फ़ुट ऊंची है और इसमें 18 भुजाएं हैं. मूर्ति के हर हाथ में अलग-अलग हथियार हैं. कहा जाता है कि सभी देवताओं ने महिषासुर से लड़ने के लिए देवी को ये हथियार दिए थे. सप्तश्रृंगी माताजी की मूर्ति स्वयंभू है.
सप्तश्रृंगी माता के मंदिर में हर साल शाकंभरी नवरात्रि का उत्सव उत्साह से मनाया जाता है. नवरात्रि के दौरान यहां देवी की गोद भराई की जाती है. कहा जाता है कि यहां देवी की गोद भराई करने से संतान की प्राप्ति होती है. मंदिर के गर्भ गृह में शक्तिद्वार, सूर्यद्वार, और चंद्रद्वार नाम के तीन द्वार हैं.
यह मंदिर देवी सप्तश्रृंगी को समर्पित है, जिसे देवी दुर्गा की एक अवतार माना जाता है. “श्री सप्तशृंगी देवी निवासीनी ट्रस्ट” के द्वारा इसका संचालन किया जाता हैं.
सप्तश्रृंगी को अर्धशक्तिपीठ के रूप में भी पूजा जाता है. पुराणों में यह वर्णन मिलता है कि महिषासुर राक्षस के विनाश के लिए देवी-देवताओं ने मां की आराधना की, जिसके बाद देवी यहां सप्तश्रृंगी रूप में प्रकट हुई थी. देवी की यहां (1) महाकाली, (2) महालक्ष्मी व (3) महासरस्वती के त्रिगुण रूप में भी आराधना की जाती है.
कहा जाता है कि जब महिषासुर राक्षस के विनाशके लिए सभी देवी और देवताओं ने माँ की आराधना की थी तभी ये देवी सप्तश्रृंगी रूप में प्रकट हुई थी. पूरे देश में 51 शक्तिपीठ मौजूद होने का उल्लेख मिलता है जिसमें से साढ़े तीन महाराष्ट्र में हैं. सप्तश्रृंगी को अर्धशक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है.
यह मंदिर भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक है और ऐसा स्थान है जहां सती (भगवान शिव की पत्नी) का एक अंग, अर्थात उनकी दाहिनी भुजा गिरी थी.
सप्तश्रृंगी या सप्तश्रृंगी भारत के महाराष्ट्र राज्य में नासिक जिले से 60 किलोमीटर (37 मील) दूर स्थित एक हिंदू तीर्थस्थल है. हिंदू परंपराओं के अनुसार , देवी सप्तश्रृंगी निवासिनी सात पर्वत चोटियों के भीतर निवास करती हैं. ( सप्त का अर्थ है सात और श्रंग का अर्थ है चोटियां.) यह जगह भारत में नासिक के पास एक छोटे से गाँव, कलवन तालुका के नंदूरी में स्थित है.
मराठा और कुछ हिंदू जनजातियाँ लंबे समय से देवी की पूजा करती आ रही हैं और कुछ उन्हें अपने कुलदैवत के रूप में पूजते हैं. मंदिर तक पहुंचने के लिए 510 सीढ़ियाँ चढ़ने पड़ती हैं. नीचे से मंदिर तक जाने के लिए मंदिर ट्रस्ट ने फर्नेशुलर ट्रॉली की सुविधा भी दी है. इसका काम जुलाई सन 2018 में शुरू हुआ था.
इस ट्रॉली में कुल मिलाकर 6 डिब्बे हैं. यात्रियों को ट्रॉली के ऊपर स्टेशन से मंदिर तक जाने के लिए 20 से 25 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं. यह ट्रॉली प्रतिदिन लगभग 5000 यात्रियों को ले जाती है. हर दिन बड़ी संख्या में भक्त इस स्थान पर आते हैं. यह महाराष्ट्र के साढ़े तीन शक्तिपीठों में से एक है.
सप्तश्रृंगी माता जी का यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ नाशिक से 65 किलोमीटर की दूरी पर सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में, एक ऊंची चोटी पर स्थित है.
नाशिक से सप्तश्रृंगी मंदिर जाते समय अंगूर के हरे भरे बाग, धुंध भरी वनराई, जलाशय, जलप्रपात, अति दुर्लभ जड़ी बूटी और औषधीय पेड़ पौधे आपका मन मोह लेंगे.
यदि नाशिक आने के बाद यदि आप सप्तश्रृंगी देवी के मंदिर नहीं जाते हैं तब आप निश्चित ही बहुत कुछ मिस करेंगे क्योंकि यह नासिक में घूमने की सबसे बेहतरीन जगह है. जो लगभग 4500 फीट ऊँचाई पर स्थित है.
उल्लेखनीय हैं कि यहाँ पर भारत का पहला फ़्यूनीक्यूलर रोपवे (India’s first funicular ropeway) है जो आपको केवल यूरोपीय देशों जैसे स्विट्ज़रलैंड में ही देखने को मिलता हैं.
लेकिन आपको अब चिंता करने की कोई बात नहीं क्योंकि अब आप इसका आनंद भारत में भी ले सकते हैं.
सप्तश्रृंगी माता मंदिर का इतिहास :
महाराष्ट्र के नंदूरी गांव के पास स्थित सप्तश्रृंगी माता मंदिर का इतिहास हिंदू पौराणिक कथाओं में गहराई से निहित है. यह मंदिर देवी सप्तश्रृंगी को समर्पित है, जिन्हें देवी भगवती या जगदम्बा के नाम से भी जाना जाता है. “सप्तश्रृंगी” नाम संस्कृत के शब्दों “सप्त” का अर्थ सात और “श्रृंगी” का अर्थ चोटियाँ से लिया गया है, जो मंदिर के चारों ओर स्थित सात पहाड़ियों को संदर्भित करता है.
सप्तश्रृंग पर्वत रामायण में वर्णित दंडकारण्य नामक वन का एक हिस्सा था. ऐसा उल्लेख है कि भगवान राम , सीता और लक्ष्मण के साथ देवी की पूजा करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए इन पहाड़ियों पर आए थे.
सप्तश्रृंगी एक हिंदू तीर्थस्थल है जो भारत के पश्चिम भारतीय राज्य महाराष्ट्र में नासिक जिले से 60 किलोमीटर (37 मील) दूर स्थित है. हिंदू परंपराओं के अनुसार, देवी सप्तश्रृंगी निवासिनी सात पर्वत चोटियों के भीतर निवास करती हैं. (सप्त का अर्थ है सात और श्रंग का अर्थ है चोटियाँ.)
यह भारत में नासिक के पास एक छोटे से गाँव, कलवन तालुका के नंदूरी में स्थित है. इस स्थान पर हर दिन बड़ी संख्या में भक्त आते हैं.
सप्तश्रृंगी माता मंदिर सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है, और मुंबई, पुणे और नासिक जैसे प्रमुख शहरों से बसें उपलब्ध हैं. सप्तश्रृंगी मंदिर में आने के बाद आपको सभी सुविधाएं भीतर ही मौजूद हैं. जैसे पार्किंग, गेस्ट हाउस, रेस्टोरेंट, पूजा के लिए सामान और भी बहुत कुछ आपको काम्प्लेक्स के भीतर ही मिलेगा. मुफ्त पीने का पानी और स्वच्छ शौचालय भी इस कॉम्प्लेक्स में उपलब्ध हैं.
इस मंदिर में स्थित मां भगवती के बारे में कहा जाता है कि माता समय समय पर अपने चेहरे के भाव बदलती रहती है. चैत्र नवरात्रि में मां भगवती प्रसन्न मुद्रा में दिखती हैं, तो वहीं अश्विन नवरात्रि में बहुत ही गंभीर मुद्रा में दिखाई देती हैं. भक्तों का मानना है कि अश्विन नवरात्रि में मां दुर्गा विशेष रूप से पापियों का संहार करने के लिए अलग-अलग रूप धरकर धरती पर प्रकट होती हैं.
सप्तश्रृंगी रोपवे की जानकारी :
सप्तश्रृंगी में पहले माता के दरबार जाने के लिए ऊपर 510 सीढिया चढ़नी पड़ती थीं पर अब मंदिर तक जाना बहुत ही आसान हो गया है. जैसे ही आप पहाड़ी चढ़ने के बाद मंदिर क्षेत्र में प्रवेश करेंगे बस आपके बाईं ओर ही रोपवे कॉम्प्लेक्स है और आपको वहीँ जाना है.
यह भारत की पहली फ़्यूनीक्यूलर ट्राली या रोपवे हैं. जिसकी शुरुआत 2018 के मध्य में हुई थी, सप्तश्रृंगी का शाब्दिक अर्थ है, सात (सप्त) शिखर (श्रृंग) और यह नाशिक से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर नंदूरी ग्राम, तालुका कालवन में स्थित है.
ट्राली में एक समय लगभग 60 लोग बैठ सकते हैं और मंदिर तक जाने के लिए यह हर 5-15 मिनट (भीड़ को देखते हुए ) पर उपलब्ध रहती है.
यहाँ सप्तश्रृंगी माता का एक मंदिर है जो सात पर्वतों की चोटियों (जिसे यहाँ गढ़ भी कहते हैं ) से घिरा हुआ है इसीलिए इसका एक नाम सप्तश्रृंगीगढ़ भी है. इस मंदिर को महाराष्ट्र के “साढ़े तीन शक्ति पीठों” में से एक के रूप में भी जाना जाता है.
सप्तश्रृंगी माताजी के मंदिर पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन नाशिक रोड हैं. नाशिक रोड सेंट्रल रेलवे का मुख्य रेलवे स्टेशन है और यह भारत के सभी कोनों से जुड़ा है.
निकटतम हवाई अड्डा :
नाशिक– अभी एयर इंडिया की सीधी उड़ान सिर्फ अहमदाबाद और पुणे से है. आने वाले समय में मुंबई और दिल्ली से सीधी उड़ाने शुरू होने वाली हैं. इसके अलावा मुंबई एअरपोर्ट (250 कि.मी.) और पुणे हवाई अड्डा 275 कि.मी. से भी यहाँ पंहुचा जा सकता है.
सड़क मार्ग से कैसे पहुचे :
सप्तश्रुंगी माता मंदिर की मुख्य शहरों से दूरी :
*** नाशिक से सप्तश्रुंगी : 65 कि.मी.
*** शिर्डी से सप्तश्रुंगी : 145 कि.मी.
*** मुंबई से सप्तश्रुंगी : 235 कि.मी.
*** पुणे से सप्तश्रुंगी : 276 कि.मी.
*** वणी से सप्तश्रुंगी : 22 कि.मी.
केंद्रीय बस स्टैंड (CBS), नाशिक से MSRTC की कई बसें हैं (सुबह 5 :30 से रात 9 :30 तक, हर आधे घंटे में ) जो आपको नंदूरी गाँव (सप्तश्रृंगी तलहटी) तक ले जाती हैं. नंदूरी गाँव से आप सप्तश्रृंगी देवी मंदिर तक स्थानीय जीप ले सकते हैं.
यहाँ आने के बाद आप 2-5 घंटों में ही सब कुछ देख लेंगे पर एक दिन यहां रुकना उचित रहेगा , जिससे आप यहाँ की सुन्दरता का आनंद ले सकें.
सप्तश्रृंगीगढ़ की यात्रा का बेहतरीन मौसम सर्दियों में अक्टूबर से फरवरी का समय बेहतरीन है. इस समय दिन का मौसम घूमने लायक रहता है पर रात में ठण्ड हो जाती है. जुलाई से सितम्बर का समय वर्षा का रहता है और इस समय भूस्खलन का खतरा रहता है.
गर्मियों के मौसम में (मार्च से जून) दिनभर बहुत गर्मी रहती है इसलिए ये समय भी उचित नहीं है. सप्तश्रुंगी गड में रुकने नाशिक और नजदीकी वणीं क्षेत्र में कई होटल, धर्मशालाएं और गेस्ट हाउस हैं.
सप्तश्रृंगी माता के मंदिर के निकट ही नए फ़्यूनीक्यूलर रोपवे काम्प्लेक्स में भी होटल बुक कर सकते हैं (किराया 500 से 2500 रु) श्री सप्तशृंग निवासिनी देवी ट्रस्ट की धर्मशाला और भक्त निवास (किराया 200 से 1200 रु) मंदिर के पास ही स्थित हैं जहाँ ठहरा जा सकता है, संपर्क करें : (02592)-253351
सह्याद्री पर्वत श्रृंखला पर बने सप्तश्रृंगी माता के इस मंदिर पास जहाँ एक ओर गहरी खाई है वहीँ दूसरी ओर ऊंचे ऊंचे पहाड़ भी मौजूद हैं. आठ से दस फुट ऊंची देवी माँ की मूर्ती की 18 भुजाएं हैं जो विभिन्न अस्त्र शस्त्रों से सुशोभित है. कहते हैं कि ये वही अस्त्र हैं जो देवताओं ने महिषासुर राक्षस से लड़ने के लिए उन्हें प्रदान किए थे.
मुख्य अस्त्र हैं : त्रिशूल, चक्र, शंख, अग्नि दाहक, धनुष-बाण, वज्र , घंटा, दंड, स्फटिकमाला, कमंडल, सूर्य की किरणें, तलवार, हार, कुंडल , परशु, कवच, कमलाहार, हिमालय का रत्न, सिंह वाहन. सप्तश्रृंगी देवी की प्रतिमा सिन्दूरी है और उनका अलंकरण पारंपरिक साड़ी और गहनों में होता है.
अत्यंत तेजस्वी नेत्रों वाली यह प्रतिमा पूरे वर्ष के दौरान दो रूपों में दिखाई देती है. कहते हैं कि देवी मां का रूप चैत्र माह में प्रसन्न मुद्रा में और अश्विन माह में धीर-गंभीर दिखाई देता है. सप्तश्रृंगी माता की पूजा अर्चना यहाँ पर तीन रूपों में भी की जाती है- महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती.
प्रत्येक पूर्णिमा, राम नवमी, दशहरा, गुड़ी पर्व, गोकुलाष्टमी और नवरात्रि के दिन मंदिर में अतिशय भीड़-भाड़ रहती है और श्रद्धालुओं का ताँता बंधा रहता है. चैत्रोत्सव यहाँ का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है और इस समय भक्त सम्पूर्ण पहाड़ी की प्रदक्षिणा करते हैं .
आम दिनों में सप्तश्रृंगी माता का दरबार सुबह 6 :00 से लेकर रात के 8:00 बजे तक खुला रहता है पर विशिष्ट पर्वों पर यहाँ पूरी रात भी दर्शन होते हैं. सुबह की ककड़ आरती 5:30 पर और शाम की अंतिम आरती 7:00 बजे होती है.
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