ज्ञानपीठ पुरस्कार, ” भारतीय ज्ञानपीठ न्यास “द्वारा भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला यह सर्वोच्च पुरस्कार है. भारत का कोई भी नागरिक जो आठवीं अनुसूची में बताई गई 22 भाषाओं में से किसी भाषा में लिखता हो इस पुरस्कार के योग्य है. पुरस्कार में ग्यारह लाख रुपये की धनराशि तथा प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी देवी की कांस्य प्रतिमा दी जाती है.
ज्ञानपीठ पुरस्कार में शामिल
भारतीय भाषाएं :
भारत के संविधान की 8 अनुसूचियों के अनुसार हैं. भारत के संविधान की आठ अनुसूचियों में 22 भाषाएं, (1) असमिया, (2) बंगाली, (3) बोडो, (4) डोगरी, (5) गुजराती, (6) कन्नड़, (7) हिंदी, (8) कश्मीरी, (9) कोंकणी,(10) मैथिली,(11) सिंधी (12) मलयालम,(13) मराठी, (14) मणिपुरी, (15) नेपाली, (16) उड़िया, (17) पंजाबी, (18) संताली, (19) संस्कृत , (20) तमिल, (21) तेलुगु और (22) उर्दू शामिल हैं.
सन 1965 में 1 लाख रुपये की पुरस्कार राशि से प्रारंभ किये गए इस पुरस्कार को 2005 में 7 लाख रुपए कर दिया गया जो वर्तमान में ग्यारह लाख रुपये हो चुका है. 2005 के लिए चुने गये हिन्दी साहित्यकार श्री कुंवर नारायण पहले व्यक्ति थे जिन्हें 7 लाख रुपए का ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ.
प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार 1965 में मलयालम लेखक जी शंकर कुरुप को दिया गया था. उस समय पुरस्कार की धनराशि 1 लाख रुपए थी. 1982 तक यह पुरस्कार लेखक की एकल कृति के लिये दिया जाता था. लेकिन इसके बाद से यह लेखक के भारतीय साहित्य में संपूर्ण योगदान के लिये दिया जाने लगा.
अब तक हिन्दी तथा कन्नड़ भाषा के लेखकों को सबसे अधिक सात बार यह पुरस्कार मील चुका हैं. यह पुरस्कार बांग्ला को 5 बार, मलयालम को 4 बार, उड़िया, उर्दू और गुजराती को तीन-तीन बार, असमिया, मराठी, तेलुगू, पंजाबी और तमिल को दो-दो बार मिल चुका है.
पुरस्कार प्रतिक के रूपमें वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा दी जाती है.
पुरस्कार की शुरुआत :
22 मई 1961 के दिन भारतीय ज्ञानपीठ के संस्थापक श्री साहू शांति प्रसाद जैन के पचासवें जन्म दिवस के अवसर पर उनके परिवार के सदस्यों के मन में यह विचार आया कि साहित्यिक या सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ऐसा महत्व पूर्ण कार्य किया जाए जो राष्ट्रीय गौरव तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिमान के अनुरूप हो. इसी विचार के अंतर्गत 16 सितंबर 1961 के दिन भारतीय ज्ञानपीठ की संस्थापक अध्यक्ष श्रीमती रमा जैन ने न्यास की एक गोष्ठी में इस पुरस्कार का प्रस्ताव रखा.
तारिख : 2 अप्रैल 1962 के दिन दिल्ली में भारतीय ज्ञानपीठ और टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संयुक्त तत्त्वावधान में देश की सभी भाषाओं के 300 मूर्धन्य विद्वानों ने एक गोष्ठी में इस विषय पर विचार किया गया. इस गोष्ठी के दो सत्रों की अध्यक्षता डॉ वी राघवन और श्री भगवती चरण वर्मा ने की और इसका संचालन डॉ.धर्मवीर भारती ने किया.
इस गोष्ठी में काका कालेलकर, हरेकृष्ण मेहताब, निसीम इजेकिल, डॉ. सुनीति कुमार चैटर्जी, डॉ. मुल्कराज आनंद, सियारामशरण गुप्त, श्री सुरेंद्र मोहंती, श्री देवेश दास , रामधारी सिंह दिनकर, उदयशंकर भट्ट, जगदीशचंद्र माथुर, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. बी.आर.बेंद्रे, श्री जैनेंद्र कुमार, श्री मन्मथनाथ गुप्त, श्री लक्ष्मीचंद्र जैन आदि प्रख्यात विद्वानों ने भाग लिया. इस पुरस्कार के स्वरूप का निर्धारण करने के लिए गोष्ठियाँ होती रहीं और सन 1965 में पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार का निर्णय लिया गया.
उल्लेखनीय है कि ज्ञानपीठ पुरस्कार सबसे पुराना साहित्यिक पुरस्कार है जो भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा साहित्य में उत्कृष्ट योगदान देने वाले लेखक को प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है. यह भारत का सबसे पुराना और सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार है और यह पुरस्कार केवल भारतीय लेखकों को दिया जाता है जो भारतीय भाषाओं में लिखते हैं.
अब तक के पुरुस्कार प्राप्त कर्ता :
*** 1965 ( 1st )
जी शंकर कुरुप ओटक्कुष़ल
(वंशी) मलयालम.
*** 1966 ( 2nd )
ताराशंकर बंधोपाध्याय
(गणदेवता) बांग्ला.
*** 1967 ( जॉइंट पुरुस्कार )
(1) के.वी. पुत्तपा श्री रामायण
( दर्शणम ) कन्नड़.
(2) उमाशंकर जोशी. निशिता
गुजराती.
*** 1968
सुमित्रानंदन पंत (चिदंबरा)
हिन्दी.
*** 1969
फ़िराक गोरखपुरी
( गुल-ए-नगमा ) उर्दू.
*** 1970
विश्वनाथ सत्यनारा
रामायण (कल्पवरिक्षमु)
तेलुगु.
*** 1971
विष्णु डे स्मृति (शत्तो भविष्यत)
बांग्ला.
*** 1972
रामधारी सिंह दिनकर
( उर्वशी ) हिन्दी.
*** 1973 ( जॉइंट पुरुस्कार )
(1) दत्तात्रेय रामचंद्र
(बेन्द्रे नकुतंति) कन्नड़.
(2) गोपीनाथ महान्ती
(माटीमटाल) उड़िया.)
*** 1974
विष्णु सखाराम खांडेकर
( ययाति ) मराठी.
*** 1975
पी.वी. अकिलानंदम
( चित्रपवई ) तमिल.
*** 1976
आशापूर्णा देवी(प्रथम प्रतिश्रुति)
बांग्ला.
*** 1977
के. शिवराम कारंत मुक्कजिया
(कनसुगालु) कन्नड़.
*** 1978
अज्ञेय कितनी नावों में
( कितनी बार ) हिन्दी.
*** 1979
बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य
( मृत्यंजय ) असमिया.
*** 1980
एस. के. पोट्टेक्काट ( ओरु
देसात्तिन्ते ) कथा मलयालम.
*** 1981
अमृता प्रीतम ( कागज ते
कैनवास ) पंजाबी.
*** 1982
महादेवी वर्मा (यामा) हिन्दी.
*** 1983
मस्ती वेंकटेश ( अयंगार )
कन्नड़.
***1984
तकाजी शिवशंकरा ( पिल्लै )
मलयालम.
***1985
पन्नालाल पटेल. गुजराती
***1986
सच्चिदानंद राउतराय ओड़िया.
***1987
विष्णु वामन शिरवाडकर
( कुसुमाग्रज ) मराठी.
***1988
सी. नारायण रेड्डी. तेलुगु.
***1989
कुर्तुलएन हैदर . उर्दू.
*** 1990
वी.के.गोकक कन्नड़.
*** 1991
सुभाष मुखोपाध्याय. बांग्ला.
*** 1992
नरेश मेहता . हिन्दी.
*** 1993
सीताकांत महापात्र. ओड़िया.
*** 1994
यू.आर. अनंतमूर्ति. कन्नड़.
*** 1995
एम.टी.वासुदेव नायर. मलयालम.
*** 1996
महाश्वेता देवी . बांग्ला.
*** 1997
अली सरदार जाफरी . उर्दू
*** 1998
गिरीश कर्नाड . कन्नड़.
*** 1999 ( जॉइंट पुरुस्कार. )
(1) निर्मल वर्मा . हिन्दी.
(2) गुरदयाल सिंह. पंजाबी.
*** 2000
इंदिरा गोस्वामी. असमिया.
*** 2001
राजेन्द्र के. शाह. गुजराती.
*** 2002
दण्डपाणी जयकान्तन. तमिल.
*** 2003
विंदा करंदीकर. मराठी.
*** 2004
रहमान राही. कश्मीरी.
*** 2005
कुँवर नारायण . हिन्दी.
*** 2006 ( जॉइंट पुरुस्कार )
(1) रवीन्द्र केलकर. कोंकणी.
(2) सत्यव्रत शास्त्री. संस्कृत.
*** 2007
ओ.एन.वी. कुरुप. मलयालम
*** 2008
अखलाक मुहम्मद खान. उर्दू.
*** 2009
जॉइंट पुरुस्कार
(1) अमरकान्त और
(2) श्रीलाल शुक्ल. हिन्दी.
*** 2010
चन्द्रशेखर कम्बार. कन्नड.
*** 2011
प्रतिभा राय . ओड़िया.
*** 2012
रावुरी भारद्वाज. तेलुगू.
*** 2013
केदारनाथ सिंह . हिन्दी.
*** 2014
भालचंद्र नेमाडे. मराठी.
*** 2015
रघुवीर चौधरी. गुजराती
*** 2016
शंख घोष . बांग्ला.
*** 2017
कृष्णा सोबती. हिन्दी.
*** 2018
अमिताव घोष. अंग्रेजी.
*** 2019
अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी
मलयालम.
*** 2021
नीलमणि फूकन. असमिया.
*** 2022 ( 57वा पुरुस्कार )
दामोदर मौउजो. कोंकणी.
ज्ञानपीठ पुरुस्कार अब तक कुल 57 बार दिया गया. जिसमे से 5 बार जॉइंट पुरुस्कारो मिलाकर कुल 62 व्यक्ति को यह पुरुस्कार प्रदान किया गया.
चयन प्रक्रिया.
ज्ञानपीठ पुरस्कार की प्रक्रिया का आरंभ विभिन्न भाषाओं के अध्यापकों, साहित्यकारों, समालोचकों और प्रबुद्ध पाठकों, विश्वविद्यालयों, साहित्यिक तथा भाषायी संस्थाओं से प्रस्ताव भेजने के साथ होता है. जिस कोई भाषा के साहित्यकार को एक बार पुरस्कार मिल जाता है उस पर अगले तीन वर्ष तक विचार नहीं किया जाता है.
हर भाषा की एक ऐसी परामर्श समिति है जिसमें तीन विख्यात साहित्य-समालोचक और विद्वान सदस्य होते हैं. इन समितियों का गठन तीन तीन वर्ष के लिए होता है. प्राप्त प्रस्ताव संबंधित “भाषा परामर्श समिति” द्वारा जाँचे जाते हैं.
भाषा समितियों पर यह प्रतिबंध नहीं है कि वे अपना विचार विमर्ष प्राप्त प्रस्तावों तक ही सीमित रखें. उन्हें किसी भी लेखक पर विचार करने की स्वतंत्रता है. भारतीय ज्ञानपीठ, परामर्श समिति से यह अपेक्षा रखती है कि संबद्ध भाषा का कोई भी पुरस्कार योग्य साहित्यकार विचार परिधि से बाहर न रह जाए. किसी साहित्यकार पर विचार करते समय भाषा-समिति को उसके संपूर्ण कृतित्व का मूल्यांकन तो करना ही होता है, साथ ही, समसामयिक भारतीय साहित्य की पृष्ठभूमि में भी उसको परखना होता है. अट्ठाइसवें पुरस्कार के नियम में किए गए संशोधन के अनुसार, पुरस्कार वर्ष को छोड़कर पिछले बीस वर्ष की अवधि में प्रकाशित कृतियों के आधार पर लेखक का मूल्यांकन किया जाता है.
भाषा परामर्श समितियों की अनुशंसाएँ प्रवर परिषद के समक्ष प्रस्तुत की जाती हैं. प्रवर परिषद में कम से कम सात और अधिक से अधिक ग्यारह ऐसे सदस्य होते हैं, जिनकी ख्याति और विश्वसनीयता उच्चकोटि की होती है. पहली प्रवर परिषद का गठन भारतीय ज्ञानपीठ के न्यास-मंडल द्वारा किया गया था. इसके बाद इन सदस्यों की नियुक्ति परिषद की संस्तुति पर होती है.
प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल तीन वर्ष को होता है पर उसको दो बार और बढ़ाया जा सकता है. प्रवर परिषद भाषा परामर्श समितियों की संस्तुतियों का तुलनात्मक मूल्यांकन करती है. प्रवर परिषद के गहन चिंतन और पर्यालोचन के बाद ही पुरस्कार के लिए किसी साहित्यकार का अंतिम चयन होता है. भारतीय ज्ञानपीठ के न्यास मंडलका इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होता.
प्रवर परिषद के सदस्य :
वर्तमान प्रवर परिषद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी हैं जो सुपरिचित विधिवेत्ता, राजनयिक, चिंतक और लेखक हैं. इससे पूर्व काका कालेलकर, डॉ.संपूर्णानंद, डॉ.बी गोपाल रेड्डी, डॉ. कर्ण सिंह, डॉ.पी.वी.नरसिंह राव तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ.आर. के. दासगुप्ता, डॉ.विनायक कृष्ण गोकाक, डॉ. उमाशंकर जोशी, डॉ.मसूद हुसैन, प्रो.एम.वी.राज्याध्यक्ष, डॉ. आदित्यनाथ झा, श्री जगदीशचंद्र माथुर सदृश विद्वान और साहित्यकार इस परिषद के अध्यक्ष या सदस्य रह चुके हैं.
वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा :
ज्ञानपीठ पुरस्कार में प्रतीक स्वरूप दी जाने वाली वाग्देवी का कांस्य प्रतिमा मूलतः धार, मालवा के सरस्वती मंदिर में स्थित प्रतिमा की अनुकृति है. इस मंदिर की स्थापना विद्याव्यसनी राजा भोज ने 1035 ईस्वी में की थी. अब यह प्रतिमा ब्रिटिश म्यूज़ियम लंदन में है.
भारतीय ज्ञानपीठ ने साहित्य पुरस्कार के प्रतीक के रूप में इसको ग्रहण करते समय शिरोभाग के पार्श्व में प्रभामंडल सम्मिलित किया है. इस प्रभामंडल में तीन रश्मिपुंज हैं जो भारत के प्राचीनतम जैन तोरण द्वार (कंकाली टीला, मथुरा) के रत्नत्रय को निरूपित करते हैं. हाथ में कमंडलु, पुस्तक, कमल और अक्षमाला ज्ञान तथा आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि के प्रतीक हैं.
ज्ञानपीठ पुरस्कार के विषय में महत्वपूर्ण तथ्य
सन 1965 में प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता जी शंकर कुरुप थे. वे मलयालम साहित्य के जाने-माने कवि और निबंधकार थे, उन्हें “द ग्रेट पोएट जी” के नाम से भी जाना जाता है.
ज्ञानपीठ पुरस्कार जीतने वाली पहली अंग्रेजी लेखिका अमिताव घोष 2018 हैं. ज्ञानपीठ का पुरस्कार जीतने वाली पहली महिला आशापूर्णा देवी 1976 हैं, जो एक बंगाली लेखिका थीं. सन 2021 और सन 2020 में ज्ञानपीठ पुरस्कार के विजेता असमिया कवि श्री नीलमणि फूकन जूनियर और दामोदर मावज़ो थे जो कोंकणी उपन्यासकार हैं.
ज्ञानपीठ पुरस्कार केवल भारतीय लेखकों को दिया जाता है जो भारतीय भाषाओं में लिखते हैं.