” सेंगोल ” स्वर्ण परत वाला एक राजदंड है जिसे ता : 28 मई 2023 को भारत के नए संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्थापित किया हैं. इसका इतिहास चोल साम्राज्य से जुड़ा है. नए राजा के राजतिलक के समय सेंगोल भेंट किया जाता था.
सेंगोल सोने की परत चढ़ा हुआ राजदंड है, जिसकी लम्बाई करीबन 5 फीट (1.5 मीटर) है सिंगोल का मुख्य हिस्सा चांदी से बना हुआ है. सेंगोल को बनाने में 800 ग्राम सोने का प्रयोग किया गया था. इसे जटिल डिजाइनों से सजाया गया है और शीर्ष पर नंदी की नक्काशी की गई है.
नंदी हिंदू धर्म में एक पवित्र पशु और शिव का वाहन है. इसे धर्म के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, जिसे पुराणों में एक बैल के रूप में व्यक्त किया गया है. नंदी की प्रतिमा इसका शैव परंपरा से जुड़ाव दर्शाती है. हिंदू व शैव परंपरा में नंदी समर्पण का प्रतीक है. यह समर्पण राजा और प्रजा दोनों के राज्य के प्रति समर्पित होने का वचन है.
दूसरा, शिव मंदिरों में नंदी हमेशा शिव के सामने स्थिर मुद्रा में बैठे दिखते हैं. हिंदू सनातन मिथकों में ब्रह्मांड की परिकल्पना शिवलिंग से की जाती रही है. इस तरह नंदी की स्थिरता शासन के प्रति अडिग होने का प्रतीक है.
इसके अतिरिक्त नंदी के नीचे वाले भाग में देवी लक्ष्मी व उनके आस-पास हरियाली के तौर पर फूल-पत्तियां, बेल-बूटे उकेरे गए हैं, जो कि राज्य की संपन्नता को दर्शाती हैं.
सेंगोल एक राजदंड है जिसका इतिहास चोल साम्राज्य से जुड़ा हुआ है.
सेंगोल के बारे में कुछ खास बातें :
***: सेंगोल का नाम तमिल शब्द सेम्मई (नीतिपरायणता) और ‘कोल’ (छड़ी) से मिलकर बना है.
*** सेंगोलको न्याय, धर्म, सत्य, शक्ति, और अधिकार का प्रतीक माना जाता है.
*** सेंगोल को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता है.
*** सेंगोल को भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू को ता :14 अगस्त, 1947 को तमिल अधीनम ने उपहार में दिया था.
*** सेंगोल को 70 सालों तक इलाहाबाद संग्रहालय में रखा गया था. ता : 28 मई, 2023 के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन के उद्घाटन के साथ ही सेंगोल को लोकसभा स्पीकर के आसन के पास स्थापित किया हैं.
*** सेंगोल की लंबाई लगभग 5 फ़ुट (1.5 मीटर) है.
*** इसे बनाने में 800 ग्राम सोने का इस्तेमाल किया गया था.
चोल काल के दौरान ऐसे ही राजदंड का प्रयोग सत्ता हस्तान्तरण को दर्शाने के लिए किया जाता था. उस समय पुराना राजा नए राजा को इसे सौंपता था. राजदंड सौंपने के दौरान 7वीं शताब्दी के तमिल संत संबंध स्वामी द्वारा रचित एक विशेष गीत का गायन भी किया जाता था.
कुछ इतिहासकार मौर्य, गुप्त वंश और विजयनगर साम्राज्य में भी सेंगोल को प्रयोग किए जाने की बात कहते हैं.
ऐसा कहा जाता है कि वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से एक सवाल किया था: “ब्रिटिश से भारतीय हाथों में सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में किस समारोह का पालन किया जाना चाहिए?” इस प्रश्न ने नेहरू को वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी सी राजगोपालाचारी (राजाजी) से परामर्श करने के लिए प्रेरित किया.
राजाजी ने चोल कालीन समारोह का प्रस्ताव दिया जहां एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता का हस्तांतरण उच्च पुरोहितों की उपस्थिति में पवित्रता और आशीर्वादके साथ पूरा किया जाता था. राजाजी ने तमिलनाडु के तंजावुर जिले में शैव संप्रदाय के धार्मिक मठ – तिरुवावटुतुरै आतीनम् से संपर्क किया. तिरुवावटुतुरै आतीनम् 500 वर्ष से अधिक पुराना है और पूरे तमिलनाडु में 50 मठोंको संचालित करता है. अधीनम के नेता ने तुरंत पांच फीट लंबाई के ‘सेंगोल’ को तैयार करने के लिए चेन्नई में सुनार वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को कहा.
ता : 28 मई, 2023 को, नई संसद के उद्घाटन की शुरुआत में, अधीनम पुजारियों ने एक पारंपरिक पूजा की जिसमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भाग लिया, और मोदी सम्मान के प्रतीक के रूप में पवित्र सेंगोल के सामने झुके. तब अधीनम पुजारियों के एक समूह ने सेंगोल को पीएम मोदी को प्रस्तुत किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी सेंगोल को नए संसद भवन में लोकसभा के अध्यक्ष के आसन के ठीक निकट स्थापित कर दिया. कुछ विश्लेषकों का यह भी मानना है कि सिंगोल भारत की सभ्यतागत परंपरा की पुनः खोज का प्रतीक बन गया है.