रमन राघव एक ऐसा नाम है जिसके भय से उत्तरीय मुंबई दहिसर से लेकर अंधेरी, बांद्रा तक के लोग थर थर कापते थे. जिन्होंने सन 1965 से लेकर सन 1968 तक फुटपाथ और झोपड़पट्टी मे रहने वाले 41 लोगोंको मौत की नींद सुला दीया था. अंधेरा होतेही झोपड़पट्टी के लोग घर मे घुस जाते थे. रास्ते और पार्क सुनसान हो जाते थे.लोगोंको ख़ौफ़ की जिंदगी जीने पर मजबूर होना पड़ा था.
तब मै भाईंदर पूर्व खरीगांव मे रहता था. और मालाड की श्री नूतन विद्या मंदिर हाई स्कूल मे पढाई करता था. तब लोकल ट्रैन मे भी मुसाफिर रमन राघव की ही बातें करते थे.ये अकेला आदमी या फुटपाथ पर सो रहे गरीब लोगोंको टारगेट बनाता था, और रात को मौका मिलते ही लोहेके भारी सलाखे से माथे पर वार करके जगह पर हत्या करके फरार हो जाता था. वो अन्ना , तलवई , थम्बी , और वेलुस्वामी के नाम से भी जाना जाता था.
कुछ लोग का समूह डंडे – लाठी से लैस होकर गली, गली सड़को पर गस्त लगाते थे.लोग समूह मे रहने पर मजबूर हुए थे. उस समय लोग अपना अपना ग्रुप बनाकर रातको पेट्रोलिंग करने निकलते थे जिस वजह कभी कभी बेगुनाह भिखारी और काम करने वाले बेघर लोग भी शक के दायरे मे आकर भीड़ का शिकार बन जाते थे.
रमन राघव सभी हत्याये बिना किसी ख़ास मकसद के यूं ही अपनी हत्यारी प्यास बुजाने के लिये करता था. सभी खून रात में होते थे. सभी विक्टिम सोते हुए मारे जाते थे.और मारने का तरीका वीभत्स और हमेशा एक सा ही होता था, सर के उपर किसी भारी, नोकीली चीज़ से मारा जाता था. उस वक़्त रमन पकड़ा नहीं गया था, और एक के बाद एक हत्याये होती जा रही थी, इसलिए अफवाह उड़ी कि ये सब कुछ एक भूत प्रेत का कमाल है. जो कभी बिल्ली बन जाती है तो कभी तोता या कुत्ता बनकर आता है.
शहर मे अफवाहओ का बाजार गरम था अतः सभी महिलाये पांच छह बजे ही घर आ जाती थी. पुलिस प्रशासन से लेकर सब परेशान. परिस्थिति को देखते हुए तत्कालीन पुलिस उप आयुक्त सीआईडी ( अपराध शाखा ) के श्रीयुत रमाकांत कुलकर्णी को जांच की जिम्मेवारी सोपी गईं, शहर मे 2000 पुलिस कर्मी ओको अलर्ट किया गया, और शुरु हुआ तलासी अभियान. पुलिस, दहशत फैलाने वाले हत्यारे को पकडनेमे सफल हुई और उसकी गिरफ्तारी की गयी.
पुलिस उप निरीक्षक एलेक्स फियाल्हो ने रिपोर्ट और विवरणों के आधार पर पहचाना और हिरासत मे लिया. तब पता चला की उनके अन्ना , सिंधी दलवाई , तलवाई, थंबी और वेलुस्वामी और रमन राघव सहित कई उपनाम थे. उस
संदिग्ध व्यक्ति के पास, चश्मे की एक जोड़ी, दो कंघी, कैंची की एक जोड़ी, अगरबत्ती जलाने के लिए एक स्टैंड, साबुन, लहसुन, चाय की धूल और कुछ गणितीय आंकड़ों के साथ कागज के दो टुकड़े मिले. झाड़ी शर्ट और खाकी शॉर्ट्स जो उसने पहने हुए थे खून से रंगे थे और उसके जूते बेहद गंदे थे.उनके उंगलियों के निशान रिकॉर्ड के साथ मेल खाते थे और पुष्टि करते थे कि यहीं रमन राघव उर्फ सिंधी दलवई थे. उन्हें धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर लिया गया.
प्रारंभिक परीक्षण अतिरिक्त मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट की अदालत में आयोजित किया गया था. इसके बाद यह मामला सत्र न्यायालय, मुंबई के लिए प्रतिबद्ध हुआ. उसके बाद 2 जून 1969 को मुंबई में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत में मुकदमे की सुनवाई शुरू की गयी.
गिरफ्तारी के बाद दो हफ्ते तक, रमन ने किसी भी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया था.मगर तीसरे सप्ताह मुर्गा खिलानेकी मांग पर सब कुछ कहने को मान्य किया. भर पेट मुर्गा खानेके बाद चिकन खिलाने की मांग की, उसके बाद उसने गुन्हा कबूल करते सब बात बता दी थी.
उसको मौत की सजा दी गयी, और उसको पुणे के यरवदा सेंट्रल जेल मे रखा गया. सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड रिसर्च के डॉक्टरों द्वारा उच्च न्यायालय के निर्देश अनुसार डॉक्टरों के एक पैनल ने जांच की और बताया की वह कभी ठीक नहीं होंगे, तो उच्च न्यायालय ने 4 अगस्त 1987 के अपने फैसले में आजीवन कारावास की सजा को कम कर दिया. कुछ साल बाद 1995 में किडनी ख़राब होनेसे ससून अस्पताल मे रमन राघव की मृत्यु हो गई.
सन 1965 में शुरू हुए इन सीरियल किलिंग्स को इन्वेस्टिगेट करने का जिम्मा क्राइम ब्रांच के श्री रमाकांत कुलकर्णी को दीया गया था. और ता : 27 अगस्त 1968 को कुलकर्णी के कार्यकाल मे रमन राघव को पकड़ा गया. कुलकर्णी 1990 में रिटायर हुए और 2005 में उनकी मौत हो गयी. उनकी किताबों “Footprints on the Sands of Crimes” और “Crimes, Criminals and Cops” में रमन राघव से जुड़ी पूरी इन्वेस्टिगेशन के बारे में कही कहानी विस्तार से पढ़ी जा सकती है.
यह थी सीरियल किल्लर रमन राघव की दुःखद कहानी जिसने मुंबई को आहत के छाये मे डुबो दीया था.
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शिव सर्जन प्रस्तुति.