सुई धागे का हमारे जीवन में महत्व.

ssoi daagan

सुई और धागा एक बार फुर्सद के समय आपस में बातचित कर रहे थे. धागा सुई से कहता है कि देख तू है तो अच्छी मगर पीछे से लोग तुझे क्या क्या कहते है. तू जब लोगोंको चुभती है तो सामने वालेकी आह… निकल जाती है इसपर सुई कहती है कि सोना,सुनार की सौ मार खाता है, बाद उसका गहने में परिवर्तन होता है , जो लोगोंका खास आकर्षण बनता है. इसी तरह मैं लोगों को चुभती जरूर हूं मगर मेरी चुभन ही उस व्यक्ति की शक्ति बन जाती है.

मैं आपके साथ मिलकर शल्यक्रिया के समय घाव को बाँधनेका काम में मदद करती हूं. आपके साथ मिलकर मेरी चुभन ही वस्त्रो को नया लुक देती है. हम आपकी जोडी तो धरम वीर की जोडी के समान है. जो कभी ना छूटने वाली है और ना टूटने वाली है. बेकार, निक्कम्मे लोगों का तो काम ही कहना है. उनको काम धंदा ही क्या है ?

धागा बात आगे चलाते कहता है कि मेरे बारेमें रहीम जी कहते है…..

रहिमन धागा प्रेम का, तोड़ो नहीं,

तोड़ो तो जुड़े नहीं, जुड़े गाठ पर जाय.

अर्थ – रहीम जी कहते हैं कि क्षणिक आवेश में आकर प्रेम रुपी नाजुक धागे को कभी नहीं तोड़ना चाहिए, क्योंकि एक बार अगर धागा टूट जाये तो पहले तो जुड़ता नहीं और अगर जुड़ भी जाए तो उसमे गांठ पड़ जाती है.

रहीम जी एक छोटेसे दोहे में जिंदगी का फलसफा ( PHILOSOPHY )

सिखाके गए.

धागे की बात सुनकर सुई कहती है कि रहीम जी मेरे बारेमें कहते है कि…..

रहिमन देख बड़ेन को,

लघु न दीजिये डारि।

जहाँ काम आवै सुई,

कहा करै तलवारि॥

अर्थ : रहीम कहते हैं कि किसी बड़ी वस्तु को देखकर छोटी वस्तु को नहीं फेंकना चाहिए. जहा एक छोटे सी सुई उपयोगी है वहाँ एक तलवार क्या कर सकती है.

पेंट शर्ट की टूटी बटन से लेकर अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर में लेटे मरीज तक हर किसी के काम में सुई धागा का मुख्य रोल होता है. मगर कभी आपने सोचा है कि सिलाई मशीन का निर्माण किसने किया था? वो कौन अविष्कारक था जिसकी वजह से आज हम इतने अच्छे और ब्रांडेड कपडे पहन कर तैयार होते हैं?

विश्व को सिलाई मशीन की भेट अमेरिका के ” एलायस हॉवे ” ने दिया था. इन्होंने ने ही सिलाई मशीन का अविष्कार किया था. ई सन 1835 में इन्होंने सिलाई मशीन का आविष्कार किया था. साथ ही एक टेक्सटाइल कंपनी की भी शुरुआत की थी.

” एलायस हॉवे ” का जन्म ता : 9 जुलाई 1819 को मैसाच्‍युसेट्स में हुआ था. साल 1835 में ही उन्होंने यही से अपनी टेक्सटाइल कंपनी की शुरुआत की थी. साल 1837 में वो कैंब्रिज चले गए थे. हर तरह की सिलाई मशीन के मैन्‍युफैक्‍चर और रिपेयरिंग में महारत हासिल करने के बाद. ही इन्हें सिलाई मशीन बनाने का विचार आया था.

इसके बाद साल 1845 में उन्होंने पहली सफल सिलाई मशीन का निर्माण करके इसे पेटेंट करवा लिया था. मगर इससे पहले भी सिलाई मशीन बनाने के लिए 80 बार प्रयास किया गया था. उस समय एलायस हॉवे की बनाई गई मशीन को पहले किसी ने नहीं ख़रीदा. अतः उसे उनके भाई ने ब्रिटेन में ले जाकर 250 पॉउंड में बेचा था. ई सन 1846 में उन्हें सिलाई मसीन से लॉकस्टिच डिजाइन के लिए पहले अमेरिकी पेटेंट पुरस्कार से नवाजा गया था.

सुई धागे का इतिहास :

सिलाई मशीन का निर्माण विश्व में देरी से हुआ. लेकिन हस्त सिलाई का इतिहास तकरीबन 20 हजार साल पुराना हैं. आदिमानव जानवरों की सींगों और हड्डियों से और उनके खाल से बने धागे से सिलाई का काम करते थे. भारत में सबसे पहले सन 1935 में कोलकता के एक कारखाने से उषा नाम की सिलाई मशीन की शुरुआत हुई थी. आज भी मार्किट में उषा ब्रांड की सिलाई मशीन का अपना अलग रुतबा और मुकाम हैं. लोग इसकी क्वालिटी और परफॉरमेंस पर भरोसा करते हैं.

सिलाई में प्रयुक्त होने वाली सुईयाँ दो प्रकार की होती हैं…

(1) मशीन की सुई.

(2) हाथ की सुई.

सिलाई मशीन की सुइयाँ सिंगर, पफ, ऑरगन आदि नामों से प्रचलित हैं, तथा 9 नम्बर से लेकर 24 नम्बर तक की सुई कढ़ाई एवं सिलाई में प्रयुक्त होती है. सुई के बिना कोई भी कार्य हम मशीन से नहीं कर सकते हैं.

हाथ की सुईयाँ :

मशीन की सुईयों के समान यह भी 0 नम्बर से 12 नम्बर तक की होती हैं. पतले कपड़ों व मोटे कपड़ों में अलग-अलग नम्बर प्रयोग किए जाते हैं.

धागे मुख्यतः 2 प्रकार के होते हैं :

(1) साधारण धागे :

एकहरा धागा, दोहरा धागा, रेटीन धागा.

(2) मिश्रित धागे : स्लब धागा, स्पाइरल धागा, लूप धागा, फ्लेक धागा, गाँठ वाला धागा, ग्रेण्डेल धागा, स्ट्रेच धागा, और टेक्सचर्ड धागा.

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