सुकरात दार्शनिकता का प्रणेता| Socrates

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ग्रीस के एथेंस मे ईसा पूर्व 470 मे सुकरात ( सॉक्रेटीस ) नामक एक महान दार्शनिक (Philosopher) हो गया, जिसने समाज मे बदलाब लानेके लिये हँसते-हँसते ज़हर तक पी लिया था. उनके विचार को आज तर्क शास्त्र के नींव की तरह माने जाते हैं.

         शिल्पकार – मूर्तिकार पिता सोफ्रोनिस्कस और माता फेनारेटे एक दाई की वह संतान था. अपनी माँ का उदाहरण देते हुए सुकरात कहता था कि मेरी माँ एक दाई थी.सुकरात का सारा जीवन गरीबी में बीता था. 

     सुकरात ने एन्थिपे नाम की एक युवा लड़की से शादी की जिनसे उन्हें तीन बेटे लैंपक्राॅल्स, सोफ्रोनिसस और मेनेक्सेनस का जन्म हुआ. एन्थिपे का वर्णन एक बुरी पत्नी के तौर पर मिलता है जो सुकरात से कभी खुश नहीं रहा करती थी और उन्हें हमेशा बुरा-भला कहा करती थी.

         वैवाहिक जीवन पर सुकरात का कहना था कि प्रत्येक व्यक्ति को विवाह अवश्य करना चाहिए क्योंकि अगर आपको अच्छी पत्नी मिलती है तो आपका जीवन सुखमय हो जाता है और कहीं आपको बुरी पत्नी मिलती है तो आप सुकरात जैसे दार्शनिक बन जाएंगे. 

          पिता सोफ्रोनिस्कस ने अपने पुत्र सुखरात को पढ़ाया. उन्होंने अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए सुकरात को काव्य, संगीत और एथलेटिक्स की शिक्षा दिलवाई थी.  

        एथेन्स में एक कानून था जिसके अनुसार नगर के हरेक युवा को एक सैनिक के तौर पर राज की सेवा करनी पड़ती थी. 18 साल से लेकर 60 साल तक राज्य को सैनिक के तौर पर सेवाएं देने के कारण एथेन्स में शिक्षा को लेकर बहुत जागरूकता नहीं थी. सुकरात ने इन युवा सैनिकों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया और चोरी छुपे उन्हें शिक्षित किया था.       

             सुखरात एक अच्छे दार्शनिक होने के साथ ही एक अच्छे योद्धा भी थे और उन्होंने एथेन्स की तरफ से कई प्रमुख लड़ाइयों में हिस्सा भी लिया था 

       कुछ समय उन्होंने एथेंस की सेना में पैदल सिपाही के पद पर कार्य किया. इस दौरान उन्होंने डेलियम एम्फिपोलिस, पेलेपोन्नेसियन का युद्ध तथा पोटेडिया सहित तीन युद्धों में भाग लिया. यहाँ रहते उन्होंने लोकप्रिय ऐथेनियन जनरल एल्किबिएडस की जान बचाई और युद्ध के मैदान में अपने साहस, निडरता और शूरवीरता के कारण प्रसिद्ध हो गये.

        सुकरात खुद ज्ञानी होनेके बावजूद भी अज्ञानी होने का दावा करते थे. और दूसरे के अभिप्राय को जानना चाहते थे. उसके तर्क संगत सवालों कि वजह वह विद्वान कहलाये. 

       सुकरात का मानना था कि विचार के माध्यम से ही समा में सकरात्मक बदलाव लाया जा सकता हैं. उन्होंने धार्मिक सिद्धांतों के बजाय मानवीय आधार पर एक नैतिक प्रणाली स्थापित करने का प्रयास किया. 

      सुकरात की दार्शनिकता देखकर प्लेटो बहुत प्रभावित हुये, और उनके शिष्य बन गये. सुकरात भी यही कहते थे, की आत्मा अमर है. भगवान ने उन्हें दिव्य दूत के रूपमें पृथ्वी पर भेजा है. सुकरात की खास बात यह थी कि वह लोगों को केवल सत्य से अवगत करते थे. उसने कभी अपने जीवन की घटना को लिखकर नहीं रखी. उन्होंने लोगों मे ज्ञान के बीज बोये थे. उनका ज्ञान लोगों के लिये खजाना था. 

       सुकरात के शिष्य प्लेटो ने अरस्तु को शिक्षा दी और जिस कारण अरस्तु सिकंदर के महान गुरु बने थे. 

       सुकरात पर तीन आरोप लगे थे. (1) सुकरात देश के प्रचलित देवता ओको नहीं मानता. (2) वह लोगोंके सामने नये देवता ओको प्रतिष्ठित कर रहे हैं. (3) वह एथेंस के युवकों को गुमराह कर रहे हैं. 

       आरोप के साथ साथ उनको दंड भी दीया गया. जेल मे डालकर मृत्यु दंड का आदेश दिया गया. सुकरात के मित्रों ने उन्हें आज़ाद बनाने योजना बनाकर रखी थी.

        सुकरात के विचारों से एथेन्स का राजतंत्र घबरा गया था और उन पर देशद्रोह का इल्जाम लगा कर गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर मुकदमा चलाया गया और मुकदमा सुनने वाली ज्यूरी ने उन्हें 221 के मुकाबले 280 वोटों से देशद्रोह का अपराधी माना. जनमानस पूरी तरह सुकरात के साथ था. इस डर से ज्यूरी ने सीधे मृत्युदण्ड देने के बजाय जहर का प्याला पीने को कहा गया. सुकरात के दोस्तों ने गार्ड को रिश्वत देकर अपनी ओर मिला लिया. उन्होंने सुकरात को भागनेके के लिये राजी करने का प्रयास किया कि वह जहर का प्याला पीने की जगह एथेन्स छोड़कर कहीं और भाग जाए.

      मृत्यु दंड या जहर दो मे से एक रास्ता सुकरात को चुनना था. सुकरात ने हँसते हुए ज़हर का प्याला पी लिया और ईसा पूर्व 399 मे 71 साल की उम्र मृत्यु को स्वीकार कर लिया. 

          आज हम जो सुख भोग रहे हैं, इसका कारण सुकरात जैसे अनेकों पुण्य आत्मा है जिन्होंने समाज में बदलाव लाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है. 

   महान दार्शनिक सॉक्रेटीस के अनमोल प्रेरक विचार : 

*** इस दुनिया में सम्मान से जीने का सबसे महान तरीका है कि हम वो बनें जो हम होने का दिखावा करते हैं. – सुकरात

*** ईमानदार आदमी हमेशा एक बच्चा होता है. – सुकरात. 

*** शादी या ब्रह्मचर्य, आदमी चाहे जो भी रास्ता चुन ले, उसे बाद में आखिर पछताना ही पड़ता है. – सुकरात

*** मूर्ख सिर्फ खाने और पीने के लिए जीता है जबकि बुद्धिमान जीने के लिए खाता पीता है. – सुकरात. 

*** हम अक्सर अपनी बेहतरी के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते है और उसको बताते हैं कि हमारे लिए बेहतर क्या है, जबकि वह जानता है कि हमारे लिए बेहतर क्या है. – सुकरात. 

*** हर व्यक्ति की आत्मा अमर होती है, लेकिन जो व्यक्ति नेक होते हैं उनकी आत्मा अमर और दिव्य होती है..सुकरात. 

*** जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं बस इतना जानता हूँ कि मैं कुछ नहीं जानता. – सुकरात. 

*** मित्रता करने में धीमे रहिये, पर जब कर लीजिये तो उसे मजबूती से निभाइए और उसपर स्थिर रहिये. – सुकरात. 

*** हमारी प्रार्थना बस सामान्य रूप से आशीर्वाद के लिए होनी चाहिए, क्योंकि भगवान जानते हैं कि हमारे लिए क्या अच्छा है. – सुकरात. 

*** झूठे शब्द सिर्फ खुद में बुरे नहीं होते, बल्कि वो आपकी आत्मा को भी बुराई से संक्रमित कर देते हैं. – सुकरात. 

*** अधिकतर आपकी गहन इच्छाओं से ही घोर नफरत पैदा होती है. – सुकरात 

*** इस दुनिया में वही व्यक्ति बुद्धिमान हो जो यह जान जाता है कि वह बुद्धिमान नहीं है. – सुकरात. 

*** वो सबसे धनवान है जो कम से कम में संतुष्ट है, क्योंकि संतुष्टि प्रकृति कि दौलत है. – सुकरात. 

*** मृत्यु मनुष्य को मिलने वाला सबसे महान आशीर्वाद है. – सुकरात. 

*** सिर्फ जीना मायने नहीं रखता, सच्चाई से जीना मायने रखता है. – सुकरात.

*** मूल्यहीन व्यक्ति केवल खाने और पीने के लिए जीते हैं;    

— सुकरात. 

—–===शिवसर्जन प्रस्तुति ===—–

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