कुछ लोग मुझे फोन करके या मेरी टाइम लाइन पर टिपण्णी लिखकर भेजते है, मेरी तारीफ करते है उन सभी मित्रों का ह्रदय से आभार व्यक्त करता हु. आप जैसे सहृदयी मित्रों की वजह से लिख पाता हु. आपका एक लाइक या एक कमेन्ट्स मुझे संबल देता है. प्रोत्साहित करता है, कुछ अधिक अच्छा लिखनेकी प्रेरणा देता है.
यदि मै मंदिर हूं तो मेरे पाठक वर्ग मेरे लिए उस मंदिर मे बिठाई गई प्रभु जी की मूर्ति समान है.
जीवन के पंद्रह साल की उम्र में कुछ न कुछ लिखनेकी की शुरुआत की. तत्कालीन अमदावाद से प्रकाशित गुजराती पत्र, ” नूतन गुजरात ” के आनंद मेला विभाग में बच्चो की छोटी छोटी कहानी लिखता था. फिर व्यस्त जीवन के चलते लेखन को विराम दिया.
1 जनवरी 1986 के दिन भाईन्दर का विकास एवं पानी समस्या का समाधान हेतु , पत्र के संस्थापक एवं प्रधान संपादक श्री पुरुषोत्तम लाल चतुर्वेदी ( गुरूजी ) ने भाईन्दर भूमि हिंदी समाचार पत्र का प्रारंभ किया.
पत्रकी निष्पक्ष एवं विकासशील भावनाओंको देखते में पत्र के करीब गया. व्यक्तव्य ( प्रवचन ) देनेमे माहेर गुरूजी समाचार तो लोकल ( स्थानीय ) विषय पर देते थे मगर संपादकीय राष्ट्रीय लेवल पर लिखते थे. इसीलिए पाठक वर्ग गुरूजी को संपादकीय का शहंशाह कहते थे.
गुरूजी हीरा की परख करनेमे मास्टर है. जनता को भाईन्दर भूमि पत्र का विचार मंच दिया. अनेक पत्रकार, लेखक, कवि, नवोदित प्रतिभा तथा राजनीतिक दल, सामाजीक संस्था, नगर सेवको को भाईन्दर भूमि ने उजागर किया. में गुरूजी को मेरा आदर्श मानता हु. गुरूजी किंग नहीं , किंग मेकर है !
गुरूजी ने पानी के लिये दाढ़ी बाल न काटनेका प्रण लिया. जो 14 साल तक चला. पर्याप्त पानी आते ही प्रण की पूर्णाहुति की. तब तक शहर ने मिरा भाईन्दर महा नगर पालिका का रूप धारण कर लिया था.
इस दौरान मुझे संदेश गुजराती राष्ट्रीय समाचार पत्र मे लिखनेका मौका मिला. जब तक लिखा मिरा भाईन्दर की अनेक समस्या को निष्पक्षता से उजागर किया.
भाईन्दर भूमि ने मुझे सह संपादक की उपाधि दी वो दिन मेरी जिंदगी का सबसे खुशी का दिन था. उन दिनों भाईन्दर भूमि का नाम मुंबई के पत्रकार जगत मे चर्चा का विषय बना था. लोग गुरूजी को ” पानी वाली दाढ़ी ” के नाम से जानते थे. गोरेगाव की मृणाल गोरे तब ” पानी वाली बाई ” के नाम से प्रसिद्ध थी.
गुरूजी ने भाईन्दर के विकास के लिये तपस्चर्या की हैं. आज आपको मिरा भाईन्दर महा नगर पालिका का विकसित रूप दिखाई देता है उसके नीव मे गुरूजी एवं भाईन्दर भूमि परिवार का भरपूर प्रसंशनीय योगदान रहा हैं. गुरूजी को यहाके लोग भाईन्दर पत्रकार जगत के ” भीष्मपितामह ” मानते हे.
भाईन्दर भूमि क्या है ? आप जानना चाहते हो तो 1 जनवरी 1986 प्रवेशांक की संपादकी कहासे मिले तो अवश्य पढियेगा. मन की शंका सब दूर हो जाएगी. आगे मै अवश्य प्रकाशित करुंगा.
गुरूजी ने एक मत ट्रस्टसंस्था की स्थापना की. ट्रस्ट के तत्वविधान में कई धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किये जिसमे नवरात्र उत्सव – दसहरा मेला के अवसर पर श्री शतचंडी महा यज्ञ एवं रामलीला कार्यक्रम प्रमुख थे, जो भाईन्दर पूर्व जेसलपार्क चौपाटी स्थित होता था.
लगातार करीब दस साल तक चला इस कार्यक्रम का यज्ञाचार्य श्री लवकुश शास्त्री जी के सानिध्य में होता था.
राम लीला का मंचन श्री कौशलेन्द्र राम लीला मंडल – मथुरा. के नामी कलाकार द्वारा होता था, जिसके संचालक श्री जगदीश जी चतुर्वेदी ( आरतीवाले ) करते थे.
आज भी गुरूजी सोशल मिडिया पर भाईन्दर भूमि ग्रुप बनाकर इस शहर की सेवा कर रहे है. मेरे लिए आप गुरु तुल्य है. प्रभु आपको स्वस्थ , निरोगी आरोग्य प्रदान करें , ऐसी परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं.
——=== शिवसर्जन ===——