कुदरत की लीला अनंत अपरंपार पार है. वेदोंका सार भी यहीं कहता है.
पुराणों अनुसार जीवात्मा को 84 लाख योनियों में से भटकने के बाद फिर नया मनुष्य जन्म मिलता है. हिंदू शस्त्रों के अनुसार ….
* पेड़-पौधे = 30 लाख
* कीड़े-मकौड़े = 27 लाख
* पक्षी = 14 लाख
* पानी के जीव-जंतु = 09 लाख
* देवता, मनुष्य, पशु = 04 लाख
योनिओके प्रकार = 84 लाख.
सनातन हिन्दू धर्म में विष्णु पुराण के अनुसार, कृतक त्रैलोक्य – भूः, भुवः और स्वः – ये तीनों लोक मिलकर कृतक त्रैलोक्य कहलाते हैं. सूर्य और ध्रुव के बीच जो चौदह लाख योजन का अन्तर है, उसे स्वर्लोक कहते हैं.
हिंदु धर्म में स्वर्ग को मेरु पर्वत के ऊपर के लोकों के लिए उपयोग किया जाता है. यह वह स्थान है, जहाँ पुण्य करने वाला, अपने पुण्य क्षीण होने तक, अगले जन्म लेने से पहले तक रहता है. यह स्थान उन आत्माओं हेतु नियत है, जिन्होंने पुण्य तो किए हैं, परंतु उन्में अभी मोक्ष या मुक्ति नहीं मिलनी है. यहां सिर्फ आनंद ही आनंद हैं.
हिंदू मान्यता के अनुसार स्वर्ग, नर्क और धरती ये तीन लोग है. स्वर्ग लोक देवता ओका निवास है. नर्क में दुष्ट आत्माएं रहती हैं और धरती में नश्वर जीवों का वास होता है. मगर पुराणों के अनुसार ब्रह्मांड में तीन नहीं बल्कि दस लोक हैं. जानते है विस्तार से……
(1) सत्यलोक : प्रथम सत्यलोक आता है. जहां ब्रह्मा, सरस्वती और अन्य कई आध्यात्मिक हस्तियां रहती हैं. सत्यलोक की प्राप्ति उन्हीको होती है जिन्होंने अनंत काल तक तपस्या कर भौतिक जगत के मोह को त्याग दिया हो.
(2) तपोलोक :दूसरे नंबर पर आता है तपो लोक जो सत्यलोक से 12 करोड़ योजन (चार कोस का एक योजन) नीचे स्थित है. तपो लोक में चारों कुमार सनत, सनक, सनंदन, सनातन रहते हैं इनका शरीर एक 5 साल के बच्चे के समान है. अतः इन्हें कुमार कहा जाता है. अपनी पवित्रता के कारण ये कुमार ब्रह्मलोक और विष्णु के स्थान वैकुंठ जा सकते हैं.
(3) महर लोक : तपो लोक से 8 करोड़ योजन नीचे स्थित है महर लोक जहां ऋषि मुनि रहते हैं. ये चाहें तो भौतिक जगत और सत्यलोक में विचरण कर सकते हैं. जन लोक या महर लोक में रहने वाले बहुत ही तेज गति से अलग-अलग लोकों पर जा सकते हैं. इनकी गति को समज पाना मानव बसकी बात नहीं है.
(4) स्वर्गलोक : इस लोक में 33 करोड़ देवी-देवता रहते हैं. पृथ्वी के बीचोबीच मेरु पर्वत पर यह स्थान मौजूद है, जिसकी ऊंचाई अस्सी हजार योजन है. स्वर्ग या जन्नत कहे जाने वाले इस लोक में देवताओं के अलावा अप्सरा, गंधर्व, देवदूत और वासु भी रहते हैं.
(5) नश्वर लोक : स्वर्गलोक में रहने वाले यदि भौतिक जुड़ाव को पूरी तरह से त्याग देते हैं, तो मुनि लोक की ओर प्रस्थान कर सकते हैं. इसके विपरीत यदि भौतिक जीवन में इनका आकर्षण बढ़ता है तो इन्हें नश्वर लोक में जन्म लेना पडता है.
(6) भू लोक (7) ध्रुव लोक :महर लोक से 1 करोड़ योजन नीचे ध्रुव लोक है, जहां आकाशगंगाओं तथा विभिन्न तारामंडलों का स्थान है. सभी लोकों के नष्ट हो जाने पर भी ध्रुव लोक का अस्तित्व बरकरार रहेगा. यहां सूर्य के अलावा सौरमंडल के सभी ग्रह निवास करते हैं.
((8) सप्तऋषि लोक : ध्रुव लोक से 1 लाख करोड़ योजन नीचे स्थित सप्तऋषियों का निवास है, जिसे सप्तऋषि लोक कहते हैं. हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण सात ऋषियों का समूह अनंत काल से इसी लोक में रहते हैं
(9) नश्वर लोक : यहां पर हम आप जैसे इंसान रहते हैं. इसे पृथ्वी लोक भी कहते है.
(10) पाताल लोक : भू लोक के बाद आता है पाताल लोक जो असुरों का निवास स्थान है. यहां नकारात्मक शक्तियां निवास करती हैं.
हमारी पृथ्वी सौरमंडल की सदस्य है. हमारा सौरमंडल, हमारे ब्रह्मांड का एक मामूली सा हिस्सा है. ये ब्रह्मांड, पृथ्वी से दिखने वाली आकाशगंगा का एक हिस्सा है.
पुराणों और वैज्ञानिको का मानते हैं कि दुनिया में बहुत से ब्रह्मांड हैं. क्योंकि आकाश अनंत है. इसका कोई सीमांत नहीं है. समग्र ब्रह्मांड में असंख्य करोड़ों गैलेक्सीया है जिसमें अनंत सूर्य हैं जिसकी अभी तक कोई भी जानकारी प्राप्त नहीं है.
ब्रह्मांड के बारेमें ताज़ा अनुमान यह कहता हैं कि हमारा ब्रह्मांड 93 अरब प्रकाश वर्ष बड़ा है और ये तेज़ी से फैल रहा है. इतने बड़े ब्रह्मांड में हमारी धरती कुछ वैसी ही है जैसे कि महासागर में पानी की एक बूंद…..!.
स्वर्ग नरक और ब्रह्मांड के रहस्यो को आज तक कोई पूर्ण रूपसे समज नहीं पाया, क्योंकि वो अनंत है. हिंदू सनातन धर्म में पृथ्वी लोक के अलावा स्वर्ग और नरक की कल्पना की गई है.
हमारे आसपास ऐसे कई लोगोंको हम देखते है, जो ईमानदारी से जीवन व्यतीत करते है. और आप लोगोंने यह भी देखा होगा कि ऐसे ही लोग ज्यादा दुःखी होते है. यक्ष प्रश्न निर्माण होता है कि ऐसे सीधे साढ़े लोगो को ही क्यों मुसीबत का सामना करना पडता है ?
इस बारेमें कुछ संतों का यह कहना है कि अगर आप एक गोनी में लकड़ी का भूसा भरो और उपर हिरे मोती भरो, और निचेसे गोनी को छेद करो तो, जब तक निचेका भूसा नहीं निकलता तब तक हिरे मोती नहीं निकलेंगे. यहां पर भूसा मतलब अगले जनम का पापकर्म. और हिरा मोती मतलब वर्तमान जन्म में किया गया पुण्य कार्य.
क्या आप यह तर्क से सहमत हो ? उत्तर आपके उपर छोड़ता हूं. मगर यदि मुजे पूछा जाय तो मेरा उत्तर होगा, मै इस बात से सहमत नहीं हूं. पुराणों में स्वर्ग नर्क की कल्पना की गई है. 84 लाख योनियों मे जन्म लेनेके बाद हमें मोक्ष की प्राप्ति के लिए अच्छे कर्म करनेका मौका दिया जाता है. और हमारा मनुष्य योनि में जन्म होता है.
मनुष्य अच्छे बुरे कर्म करनेके बाद यमलोक में प्रस्थान करता है. यमराज के दरबार में चित्रगुप्त मृतक म८नुष्य – जीव का लेखा-जोखा देखता है. कर्म फल के सिद्धांत के अनुसार उसे स्वर्ग नरक और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
पुराणों के अनुसार उस जीव को उसके कर्म के आधार पर, यदि पाप कर्म किया है तो उस जीवात्मा को नर्क में यातनाये दी जाती है. अर्थात उसे दंड दिया जाता है. जब उसे दूसरी बार पृथ्वी लोक भेजा जाता है तो वह जीवात्मा ने अपने अगले जन्म के पाप कर्म की सजा, नर्क लोक में भुगत चुकी होती है. तो फिर वर्तमान जन्म में अगले जन्म के पाप की सजा मिलनेकी की बात कैसे संभव है ?
फिर अगले जन्म के पाप के भूसा की बात कैसे सत्य हो सकती है ? ये एक जूठा तर्क है. यदि पाप की सजा भुगतनेके लिए वापस पृथ्वी लोक पर भेजा जाता है तो फिर नर्क में उस जीव आत्मा को क्या सजा नहीं दी जाती ? क्या नरक की परिकल्पना जूठी है ?
कुछ जिज्ञासु लोगोंका कहना है कि जो पृथ्वीलोक में जन्म लेता है, उसे स्वर्ग नर्क की बातें याद रहती नहीं है. कुछ लोगोंका कहना है कि,….” जिंदा जा नहीं सकता और मुर्दा बता नहीं सकता फिर स्वर्ग नरक की कल्पना किसने की ? ” इसका उत्तर भिन्न-भिन्न हो सकता है.
पुराणों की माने तो वैदिक कालमे हमारे ऋषि मुनि लोग योग विद्या के बलपर हजारों साल साधना करके जीते थे. वे अपनी इच्छा शक्ति के बलपर स्वर्ग नर्क की सैर करते थे.
महाकाव्य महाभारत के अनुसार युद्ध की समाप्ति के बाद सभी पांडव सशरीर स्वर्ग गए थे.
वैदिक धर्म के अनुसार तो सुख का नाम स्वर्ग और दुःख का नाम नरक है. और ये दोनों यहीं पृथ्वी पर ही हैं.
पुराण भी अपनी – अपनी डफली बजाकर गीत सुनाते है.
वायु पुराण और विष्णु पुराण में कई नरककुंडों के नामका उल्लेख है. उसमे वसाकुंड, तप्तकुंड, सर्पकुंड,चक्रकुंड आदि नरककुंडों की संख्या 86 है. इनमें से सात नरक पृथ्वी के नीचे हैं और बाकी लोक के परे माने गए हैं. उनके नाम रौरव, शीतस्तप, कालसूत्र, अवीचि अप्रतिष्ठ, लोकपृष्ठ और अविधेय हैं.
कुछ पुराणों में इनकी संख्या 36 तक है. आत्मा पर किसी भी चीज का कोई प्रभाव नहीं होता. आत्मा न पानी में डूब सकती हैं, ना हवा में उड़ सकती हैं और ना ही अग्नि में जल सकती है. तो फ़िर आप ही सोचिए कि जब किसी पापी को नर्क में सजा दी जाती हैं तो कैसे दी जाती हैं? क्योंकि शरीर तो पृथ्वी पर क्या तो जला दिया जाता हैं या दफना कर दिया दिया हैं.
यदि आत्मा पर हवा, पानी एवं अग्नि किसी भी चीज का कोई असर होता ही नहीं है तो फ़िर नर्क में यातना किसे दी जाती है ? इस बात से साबित होता हैं कि स्वर्ग और नर्क सिर्फ़ हमारी कल्पनाएं हैं और कुछ नहीं.
मरने के बाद हमारी आत्मा कहां जाती है, उसके साथ क्या क्या होता है इसका आज तक कोई भी विश्वसनीय प्रमाण हमारे पास नहीं है. स्वर्ग नरक की बात भ्रमित करने वाली है. इसके पिछेका कारण यह है कि स्वर्ग के सुख की काल्पनिक आशा और नर्क का डर दिखाकर भोले -भाले लोगों को स्वर्ग का लालच देकर और नर्क का उन्हें भय दिखा कर अपनी दुकानदारी चलाना है.
स्वर्ग हमें सुखों का एहसास कराता है, अस्पताल हमे नर्क का एहसास कराता है. स्वर्ग नरक यहीं पृथ्वी पर है.
महाकाव्य महाभारत के अनुसार युद्ध की समाप्ति के बाद सभी पांडव सशरीर स्वर्ग गए थे. ये स्वर्ग कही पृथ्वी पर हिमालय पर्वत स्थित था या नहीं ? संशोधन का विषय है.
पुराणों में मुंडे मुंडे मतिर भिन्ना जैसी स्थिति परिस्थिति है. जिसने भी लिखा मनगढंत तरीके से लिखा. कोई लिखता है नरक एक है. दूसरा लिखता है 36 है, तो विष्णु पुराण में नरककुंडों की संख्या 86 बताई गई है. फिर उसका वर्गीकरण किया गया है.
इसी प्रकार कई देवताओंके जन्म की कहानी भी अलग अलग बताई गई है.
*****Shiv Sarjan*****