एक बार स्वामी विवेकानंद जी नदी पार करने के लिए नाव आनेकी राह देखते नदी किनारे खड़ा था. स्वामी के पास एक अनजान संत आया और कहने लगा, स्वामी आप का तो देश विदेश सब जगह नाम है. आप इतने ज्ञानी हो कि आपके चाहने वालों की तादाद लाखोमे है.
मैं भी एक सिद्धि प्राप्त संत हूं, फिर भी मुजे ज्यादा कोई नहीं जानता. इस पर स्वामी बोले, कि आपने क्या सिद्धि हासिल की है ? संत बोला मैं पानी के उपर चलना जानता हूं. स्वामी जी बोले अच्छा ! तो ये बताओ ये सिद्धि पाने के लिए आपने कितनी तपस्चर्या की है ?
संत बोला, इसे हासिल करने में मुजे रात और दिन दस साल तक कठोर तपस्चर्या करनी पड़ी. कहकर संत पानी के उपर चलने लगा. कुछ अंतर चलकर वो वापस स्वामी जी के पास आ पहुंचा. स्वामी जी बोले देखो सामने नाव आ रही है. आपको उत्तर जाननेके लिए मेरे साथ सामने के किनारे तक नावमे सवार होकर सामनेके किनारे तक आना होगा.
नाव किनारे आते ही दोनों नाव में बैठकर सामने के किनारे पहुचे. स्वामी ने किराया पूछा तो नाविक ने 50 पैसा प्रति सवारी बताया. स्वामी जी ने एक रुपिया नाविक को देते कहा कि ये मेरा और इस संत दोनोका भाड़ा है. दोनों एक जगह किनारे पर बैठे. स्वामी जी ने कहा कि जो काम 50 पैसे में होता है, उस काम के लिए आपने पुरे 10 साल बर्बाद कर दिये.
यदि आपने इस दस साल में दिन दुखियों की सेवा की होती तो आज मेरी तरह आपके चाहको की संख्या भी एक नहीं हजारों में होती. जो व्यक्ति दूसरों की सोचता है है उसके बारेमें भगवान स्वयं सोचता है.
आपने सिद्धि तो हासिल की मगर फायदा भी हुआ तो किसका ? सिर्फ तुम्हारा. जब की मैं स्वयं भटके हुए लोगोंको आध्यात्मिक ज्ञान देकर उनको मुख्यधारा में वापस लेनेका काम करता हूं. उनका ह्रदय परिवर्तन करके अच्छे कामों की ओर आकर्षित करता हूं. इसीलिए मुजे सब लोग जानते भी है और मानते भी है.
आपने क्या किया ? पानी के उपर चलने की सिद्धि 10 साल में हासिल तो की मगर मानव कल्याण के लिए इसका क्या उपयोग ? प्रभु को वो लोग प्यारे होते है जो ओरोके लिए अपना जीवन न्योछावर करते है.
संत स्वामी जी की बात पर प्रसन्न हुए और उनके चरणों में गिर पड़े. आज अधिकांश लोग रुपियों की चाहत के पीछे दौड़कर जीने की राह भूल जाते है. दुःख तो तब होता है जब धनिक, निर्धन को पशुबल से येनकेन प्रकारेण शोषण करता है. (