कमल के पुष्प सफ़ेद, लाल, गुलाबी, पिले, नीले, जामुनी आदि रंग के होते है, लेकिन उसमे सफ़ेद, लाल और नीला कमल को विशेष महत्व दिया जाता है. सफ़ेद कमल को पुंडरीक, लाल कमल को कोकनद, तथा निले कमल को इंदीवर आदि नाम से पहचाना जाता है.
कमल भारत का राष्ट्रीय पुष्प है. ये एक पौधा होता है, जिसमे सुंदर फुल खिलते है. कमल दुनिया के सभी भागों में पाया जाता है. खास करके झीलों, तालाबों और गड़हों में ये आसानीसे हो जाता है. कमल का पौधा धीमे बहने वाले या रुके हुए पानी में उगता है. ये दलदली पौधा है जिसकी जड़ें कम ऑक्सीजन वाली मिट्टी में ही उग सकती हैं.
महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित सभी अठारह पुराणों की गणना में ” पदम पुराण ” को द्वितीय स्थान प्राप्त है. श्लोक संख्या की दृष्टि से भी इसे द्वितीय स्थान पर रखा गया है.
कमल को संस्कृत मे विविध नामो से जाना जाता है. जैसे कमल, नीरज, अंबुज, अरविंद, पुंडरीक, इंदीवर, वनज, नलिन, पंकज, सरोज, जलज, पद्म, पंकरुह, वारिज, अब्ज, सरसिज, सरोरुह, सरसीरुह, जलजात, अंभोरुह, , अंभोज, उत्पल, तामरस, कुवलय वगेरा.
फारसी में कमल को ” निलोफर ” कहते हैं और अंग्रेजी में इंडियन लोटस कहते है.ये भारत के सभी उष्ण भागों में तथा ईरान से लेकर आस्ट्रेलिया तक पाया जाता है. इसका फुल ज्यादातर सफेद या गुलाबी रंग का होता है और पत्ते लगभग गोल, ढाल के जैसे होते हैं.
कमल के तने लंबे, सीधे और खोखले होते हैं तथा पानी के चारों ओर फैलते हैं. इसकी तनों की गाँठों उपर से जड़ें निकलती हैं. ये कीचड़ मे रहता है पर उसके फुल और पत्ते निर्मल पानी के उपर रहते है.
स्थापत्य कला जैसे मंदिरों की दीवारों, गुंबदों और स्तंभों में कमल के सुंदर अलंकरण अंकित कीये पाये जाते है. कई हिन्दू देवी देवताओं को हाथ में कमल के साथ चित्रित किया जाता है, लक्ष्मी और ब्रह्मा ऐसे प्रमुख देवता हैं.
खजुराहो के देवी जगदम्बी मंदिर में हाथ में कमल लिये ऊंची खड़ी हुई चतुर्भुजी देवी की मूर्ति है. यहीं स्थित एक सूर्य मंदिर में सूर्य को एक पुरष के रूप में स्थापित किया गया है. मूर्ति 5 फीट ऊंची है और उसके दोनों हाथों में कमल के पुष्प हैं. उदयपुर में पद्मावती माता जल कमल मन्दिर नामक मंदिर को कमल के आकार में बनाया गया है. संगमरमर से निर्मित देवी पद्मावती के इस मन्दिर में देवी लक्ष्मी, सरस्वती एवं अम्बिका की प्रतिमाएँ विराजमान हैं.
राजस्थान के धौलपुर जिले में मचकुण्ड तीर्थ स्थल के नजदीक ही कमल के फूल का बाग हैं. चट्टान काटकर बनाये गये कमल के फूल के आकार में बने इस बाग का ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व हैं.
प्रथम मुगल बादशाह बाबर की आत्मकथा तुजके बाबरी (बाबर नामा) में जिस कमल के फूल का वर्णन हैं वह धौलपुर का यही कमल के फूल का बाग हैं. बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित देव सूर्य मंदिर में गर्भ गृह के ऊपर का शिखर कमल का आकार में है जिसके ऊपर सोने का कलश है.अशोक की लाट में भी अधोमुखी कमल का प्रयोग किया गया है.
भारत की राजधानी दिल्ली में बने बहाई उपासना मंदिर का स्थापत्य पूरी तरह से खिलते हुए कमल के आकार पर आधारित है, जिसके कारण इसे लोटस टेंपल भी कहते हैं.
कमल की कली प्रातःकाल खिलती है .सब फूलों की पंखड़ियों या दलों का संख्या समान नहीं होती है. पंखड़ियों के बीच में केसर से घिरा हुआ एक छत्ता होता है. कमल की गंध भवरे को बड़ी प्यारी लगती है.मधुमक्खियाँ कमल के रस को लेकर मधु बनाती हैं जो आँख के राग के लिये उपकारी होता है.
कमल की पंखड़ियों के झड़ जाने पर छत्ता बढ़ने लगता है और थोड़े दिनों में उसमें बीज पड़ जाते हैं. बीच गोल गोल लंबोतरे होते हैं तथा पकने और सूखने पर काले हो जाते हैं , और ” कमलगट्टा ” कहलाते हैं. कच्चे कमलगट्टे को लोग खाते हैं और उसकी तरकारी बनाते हैं, सूखे दवा के काम आते हैं.
कमल की जड़ मोटी और सूराखदार होती हैं और भसीड़ मिस्सा या मुरार कहलाती है. इसमें से भी तोड़ने पर सूत निकलता है. सूखे दिनों में पानी कम होने पर जड़ अधिक मोटी और बहुतायत से होती है. लोग इसे तरकारी बनाकर खाते हैं. अकाल के दिनों में गरीब लोग इसे सुखाकर आटा पीसते हैं और अपना पेट पालते हैं.
कमल के पौधे के प्रत्येक भाग के अलग-अलग नाम हैं और उसका प्रत्येक भाग चिकित्सा में उपयोगी है . अनेक आयुर्वेदिक, एलोपैथिक और यूनानी औषधियाँ कमल के भिन्न-भिन्न भागों से बनाई जाती हैं. चीन और मलाया के निवासी भी कमल का औषधि के रूप में उपयोग करते हैं.
भारत में पवित्र कमल का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है. इसके बारे में कई कहावतें और धार्मिक मान्यताएं भी हैं. हिन्दू धर्म बौद्ध और जैन धर्मों में इसकी ख़ासी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता है. इसीलिए इसको भारत का राष्ट्रीय पुष्प होने का गौरव प्राप्त है.
पौराणिक दृश्टिकोण से देखे तो पुराणों में ब्रह्मा जी को विष्णु की नाभि से निकले हुए कमल से उत्पन्न बताया गया है और लक्ष्मी को पद्मा, कमला और कमलासना कहा गया है. चतुर्भुज विष्णु को शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करने वाला माना जाता है. भगवान् बुद्ध की जितनी मूर्तियाँ मिली हैं, प्राय: सभी में उन्हें कमल पर आसीन दिखाया गया है. मिस्र देश की पुस्तकों और मंदिरों की चित्रकारी में भी कमल का प्रमुख स्थान है. कुछ विद्वानों की राय है कि कमल मिस्र से ही भारत में आया था.
ब्रह्म कमल का फूल शिवजी को चढ़ाने से शिवजी प्रसन्न होते है. ब्रह्म कमल वर्ष में एक बार ही उगते हैं. अगस्त और सितंबर में इसके फूल खिलते हैं और वह भी 4 या 5 घंटे के लिए. अधिकतर यह हिमालय के राज्यों में ही पाया जाता है परंतु लोग इसे घर में गमले में उगाने लगे हैं.
ब्रह्म कमल खासकर उत्तराखंड राज्य का पुष्प है. यहां पर इनके पुष्पों की खेती भी होती है. भारत के अन्य भागों मे जैसे, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस. नाम से पुकारा जाता है.
ब्रह्म कमल की पंखुड़ियों से पुरानी (काली) खांसी, तथा कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज किया जाता है. इस फुल का वानस्पतिक नाम एपीथायलम ओक्सीपेटालम है. इसमें कई एक औषधीय गुण होते हैं. वनस्पति विज्ञानियों ने इस दुर्लभ मादक फूल की 31 प्रजातियां ढूंढ़ निकाली है .
पौराणिक मान्यता है कि ब्रह्मकमल भगवान शिव का सबसे प्रिय पुष्प है. केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिरों में ब्रह्म कमल ही प्रतिमाओं पर चढ़ाए जाते हैं. किवदंति है कि जब भगवान विष्णु हिमालय क्षेत्र में आए तो उन्होंने भोलेनाथ को 1000 ब्रह्म कमल चढ़ाए, जिनमें से एक पुष्प कम हो गया था. तब विष्णु भगवान ने पुष्प के रुप में अपनी एक आंख शिवजी को समर्पित की थी. तभी से भोलेनाथ का एक नाम कमलेश्वर और विष्णु भगवान का नाम कमल नयन पड़ा था.
इस पुष्प का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है. जब इसे पाने के लिए द्रौपदी विकल हो गई थी, तब भीम इसे लेने के लिए हिमालय की वादियों में गए थे और वहां उनका सामना हनुमानजी से हुआ था. भीम ने उन्हें एक वानर समझकर उनकी पूंछ हटाने को कहा था परंतु हनुमानजी ने कहा था कि तुम शक्तिशाली हो तो यह पूंछ तुम ही हटा लो. परंतु भीम ऐसा नहीं कर पाया तब उसे समझ में आया कि ये तो साक्षात हनुमानजी हैं. तब गदाधारी भीम को अपनी भूल का अहसास हुआ था.
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