ईसा पूर्व 2600 साल पहले अर्थात 4620 साल पहले दक्षिण एशिया मे मोहनजोदड़ो का निर्माण किया था.
मोहनजोदड़ो को सिंधी भाषा मे मुर्दों का टीला कहा जाता है. यह शहर को सबसे पुराना शहर माना जाता है, जो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में विध्यमान था. इसको सिन्धु घाटी की सभ्यता भी कहा जाता है. यह युनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची मे अंकित है.
शहर की खुदाई के दौरान इस शहर के बारे में लोगों को पता चला. खनन के बाद, इसमें बड़ी बड़ी इमारतें, जल कुंड, मजबूत दिवार वाले घर, सुंदर चित्रकारी, मिट्टी व धातु के बर्तन, मुद्राएँ, मूर्तियाँ, ईट, तराशे हुए पत्थर और भी बहुत सी चीजें मिली थी. आज के हमारे शहर की तरह ये भी सुंदर नियोजित शहर बना था.
ये शहर 200 हैक्टर क्षेत्र मे बसा हुआ था. बताया जाता है की पिछले 100 वर्षो मे अब तक सिर्फ एक तिहाई भाग की ही खुदाई हुई है. मिट्टी के निचे दबे रहस्य को जानने के लिये दुनिया उत्साहित होना स्वाभाविक है. यहां पर कई बार खुदाई हुई और कई बार बंद हुई अतः रहस्य बरकरार है.
सन 1856 में एक अंग्रेज इंजिनियर ने रेलरोड बनाते समय इस प्राचीन सभ्यता को खोज निकाला था. रेलवे ट्रैक बनाने के लिए ये इंजिनियर पत्थरों की तलाश थी. शोध के दरम्यान यहाँ उन्हें बहुत मजबूत और पुराने ईट मिली,जोकी बिल्कुल आज की ईट की तरह बनी हुई थी.
वहां उनको पता चला कि वहां सबके घर इन्ही ईटो से बने है , जो उन्हें खुदाई में मिलते है. तब इंजिनियर ने अनुमान लगाया कि ये जगह किसी प्राचीन शहर के इतिहास से जुड़ी है. इस इंजिनियर को सिन्धु नदी के पास बसे इस सबसे पुरानी सभ्यता के बारे में पता चला था, इसलिए इसे सिन्धु घाटी की सभ्यता कहा जाता है.
मोहन जोदड़ो का सही उच्चारण है ” मुअन जो दड़ो ” इसकी खोज श्री राखालदास बनर्जी जो पुरातत्व सर्वेक्षण के सदस्य थे, ने सन 1921 में की थी.भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जान मार्शल के निर्देश पर खुदाई का कार्य शुरु हुआ था. यहाँ पर खुदाई के समय बड़ी मात्रा में इमारतें, धातुओं की मूर्तियाँ, और मुहरें आदि मिले थे.
प्रथम दृश्टिकोण से देखा जाय तो ऐसा लगता है कि ये शहर किसी सिविल इंजिनियर ने बनाया है, लेकिन इसे अर्बन कारीगर ने बनाया था. ईसा पूर्व 1900 में जब कभी सिन्धु सभ्यता का पतन हुआ, तब मोहनजोदड़ो का भी नामोनिशान मिट गया था.
मोहनजोदड़ो को पूरी प्लानिंग करके इनका निर्माण किया गया था. श्हर के चारों ओर ईट की मोटी दिवार थी, जो रक्षा के लिए बनाई थी. साथ ही पता चला कि कुछ लोग ईट के घरों में रहते थे, जो दो तीन मंजिल के बने हुए थे. कुछ घरों में बाथरूम भी थे, जिसमें पानी निकास के लिए नालियाँ बनाई गयी थी. शायद दुनिया में पहली नाली का निर्माण यही से शुरू हुआ होगा. पुरातत्त्व इतिहास कारो के अनुसार लोग खेती भी किया करते थे, उन्हें गेहूं चावल उगाना आता था. वे लोग जानवर भी पाला करते थे.
इसका सन 1924 में काशीनाथ नारायण व सन 1925 में जॉन मार्शल ने खुदाई का काम करवाया था. सन 1965 तक इसे भारत के अलग अलग लोगों की कमांड में करवाया गया. लेकिन इसके बाद खोज को बंद करा दिया गया था. कारण खुदाई की वजह से प्रकति को नुकसान हो रहा था.
खोज के दौरान पता चला था, कि यहाँ के लोग गणित का भी ज्ञान रखते थे, इन्हें जोड़ घटाना, मापना सब आता था. जो ईट उस समय अलग अलग शहर में उपयोग की गई थी, वे सब एक ही वजन व साइज़ की थी.
पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार सिन्धु घाटी के सभ्यता के लोग गाने बजाने, खेलने कूदने के भी शौक़ीन थे. उन्होंने कुछ म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट, खिलोने भी खोज निकाले थे. वे लोग साफ सफाई पर ध्यान देते थे. पुरातत्ववेत्ताओं को कंघी, साबुन व दवाइयां भी मिली है. उन्होंने कंकालों के दांत का निरिक्षण भी किया था, जिससे पता चला कि उनके नकली दांत भी लगे हुए होते थे. मतलब प्राचीन सभ्यता में भी डॉक्टर होनेका अनुमान लगाया जाता है.
खोजकर्ता ने बहुत से धातु के गहनें व कॉटन के कपड़े भी खोज निकाले थे. ये गहनें आज भी बहुत से संग्रहालय में रखे हुये है. इसके अलावा बहुत सी चित्रकारी, मूर्तियाँ, तथा सिक्के, दिए, बर्तन, औजार भी मिले थे जिन्हें देश विदेश के संग्रहालयों में रखा गया है.
लोग तब सोने और चांदी के गहने भी पहनते थे. प्राचीन सभ्यता में 50 लाख तक लोग रहते थे, धरतीकंप आया तब सब नष्ट हो गया था. बताया जाता है कि धरतीकंप की वजह मोहनजोदड़ो दब गया था. कुछ हमलावरों ने भी वहां हमला कर पुरे शहर को नष्ट कर दिया था. अभी पुरातत्व वाले ओर खोज में लगे हुए है, वे पता कर रहे है कि कैसे इस शहर का निर्माण हुआ, वहां रहने वालों ने कैसे इतनी अग्रिम सभ्यता का निर्माण किया, और कैसे इनका अंत हुआ. इन सब सवालों के जबाब के लिए पुरातत्ववेत्ताओं की खोज की रिपोर्ट आनेके बाद ही कुछ पता चल पायेगा.
मोहनजोदड़ो लड़काना से बीस किलोमीटर दूर और सक्खर से करीब 80 किलोमीटर जनूब मग़रिब में स्थित है. इतिहासकारो के अनुसार यह शहर सात बार उजड़ गया था, और दुबारा उसे बसाया गया था जिस की वजह थी, समुंद्र सिंध के पानी का सैलाब था. यहाँ दुनिया का प्रथम स्नानघर मिला है, जिसका नाम ” बृहत्स्नानागार ” है.
मोहन जोदड़ो की दैव मार्ग नामक गली में करीब चालीस फ़ुट लम्बा और पच्चीस फ़ुट चौड़ा प्रसिद्ध जल कुंड है, जिसकी गहराई सात फ़ुट बताई जाती है. कुंड में उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं. कुंड के तीन तरफ़ बौद्धों के कक्ष बने हुए हैं. इसके उत्तर में ८ स्नानघर हैं. इस कुंड को काफ़ी समझदारी से बनाया गया है, क्योंकि इसमें किसी का द्वार दूसरे के सामने नहीं खुलता है. यहाँ की ईंटें पक्की और मजबूत है. कुंड में बाहर का अशुद्ध पानी ना आए इसके लिए कुंड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोडी के गारे का इस्तेमाल किया गया है. दीवारों में डामर का प्रयोग किया गया है. कुंड में पानी की व्यवस्था के लिये दोहरे घेरे वाला कुआँ बनाया गया है. कुंड से पानी बाहर निकालने के लिए पक्की ईंटों की नालियाँ भी बनाई गयी हैं, और खास बात यह है कि इसे पक्की ईंटों से ढका गया है. इससे यह प्रमाणित होता है कि यहाँ के लोग इतने प्राचीन होने के बावजूद भी आजके जमाने से कम नहीं थे. कुल मिलाकर सिंधु घाटी की पहचान वहाँ की पक्की-घूमर ईंटों और ढकी हुई नालियों से है, और यहाँ के पानी की निकासी का ऐसा सुव्यवस्थित बंदोबस्त था जो इससे पहले के लिखित इतिहास में नहीं मिलता है.
मोहन जोदड़ो की प्राचीन शहर की सड़कों और गलियों में आप आज भी घूम फिर सकते हो. यहाँ की सभ्यता और संस्कृति का सामान भले ही संग्राहलयों की शोभा बढ़ा रहें हों, मगर यह शहर जहाँ था आज भी वहीं मौजूद है. यहाँ की दीवारें आज भी मजबूत हैं, वर्तमान यह एक खंडहर बन गया है.
मोहन जोदड़ो की इमारतें भले ही खंडहरों में तबदील हो चुकी हों मगर शहर की सड़कों और गलियों के विस्तार को स्पष्ट करने के लिये ये खंडहर काफ़ी हैं.
इतिहासकार मानते है की यहां पर खेती और पशुपालन सभ्यता रही होगी. सिंध के पत्थर, तथा राजस्थान के ताँबो से बनाये गये उपकरण यहाँ खेती करने के लिये काम में लिये जाते थे. इतिहासकार इरफ़ान हबीब के अनुसार यहाँ के लोग रबी की फसल बोते थे. गेहूँ, सरसों, कपास, जौ और चने की खेती के यहाँ खुदाई में पुख़्ता सबूत मिले हैं. माना जाता है कि यहाँ और भी कई तरह की खेती की जाती थी, केवल कपास को छोडकर यहाँ सभी के बीज मिले है. दुनिया में सूत के दो सबसे पुराने कपड़ों में से एक का नमूना यहाँ पर ही मिला था. खुदाई में यहाँ कपड़ों की रंगाई करने के लिये एक कारख़ाना भी पाया गया है.
मोहन जो दड़ो की सड़कें इतनी बड़ी हैं, कि यहाँ पर आसानी से दो बैलगाड़ी निकल सकती हैं. यहाँ पर सड़क के दोनों ओर घर हैं, दिलचस्प बात यह है, कि यहाँ सड़क की ओर केवल सभी घरो की पीठ दिखती है, मतलब दरवाज़े अंदर गलियों में हैं.
इतिहासकारों का कहना है कि मोहन जोदड़ो सिंघु घाटी सभ्यता में पहली संस्कृति है जो कि कुएँ खोद कर भू-जल तक पहुँची थी. मोहनजोदड़ो में करीब 700 कुएँ थे. यहाँ की बेजोड़ पानी-निकासी, कुएँ, कुंड, और नदीयों को देखकर हम यह कह सकते हैं कि मोहन जोदड़ो सभ्यता असल मायने में जल आपूर्ति संस्कृति थी.
मोहन जोदड़ो का संग्रहालय छोटा है. मुख्य वस्तुएँ कराची, लाहौर, दिल्ली और लंदन में हैं. यहाँ काले पड़ गए गेहूँ, ताँबे और कांसी के बर्तन, मोहरें, वाद्य, चॉक पर बने विशाल काले भूरे चित्र, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तौल पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने,दो पाटन वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनकों वाले हार और पत्थर के औज़ार मौजूद हैं. संग्रहालय में काम करने वाले अली नवाज़ के अनुसार यहाँ कुछ सोने के गहने भी हुआ करते थे जो चोरी हो गए.
संग्रहालय में रखी चीज़ों में औजार तो हैं, पर हथियार कोई नहीं है. इससे प्रतित होता है की अनुशासन ज़रूर था, पर बुद्धि बल पर था. ताकत के बलबुते पर नहीं.
संग्रहालय में रखी वस्तुओं में कुछ सुइयाँ भी हैं. खुदाई में ताँबे और काँसे की सुइयाँ मिली थीं. बताया जाता है की सोने की तीन सुइयाँ भी मिलीं थी. जो एक दो-इंच लंबी थी. खुदाई के दौरान सुइयों के अलावा हाथी-दाँत और ताँबे की सूइयाँ भी मिली हैं.
इतिहासकारो के अनुसार मोहेंजोदड़ो सभ्यता ईसा पूर्वी 2600 साल पहले की है. इतिहासकार ये भी कहते है की उत्खनन के दौरान बौद्ध स्तूप मिले है, अब प्रश्न ये निर्माण होता है की बौद्ध को प्रकट हुए 2500 साल ही हुए है तो क्या मोहनजोदड़ो सभ्यता का अस्तित्व शुरू से 2100 साल तक रहा था… ???. प्रश्न विचारणीय है.
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