आज मुजे हमारे देवताओं के युद्धोपकरण की बात करनी है. भगवान श्री सदाशिव का प्रिय शस्त्र त्रिशूल था. श्री हनुमान जी का शस्त्र गदा था. प्रभु श्री राम जी का शस्त्र धनुषबाण था. प्रभु श्री कृष्ण जी का शस्त्र सुदर्शन चक्र था. भगवान श्री परशुराम जी का शस्त्र परशा था. जानते है, विशेष जानकारी.
( 1 ) त्रिशूल :
भगवान शिव जी का यह शस्त्र है. इसे त्रिदेवों का सूचक माना जाता है. ब्रम्हा रचना, विष्णु पालक और महेश विनाश के रूप में देखा जाता है. इसे भूत, वर्तमान और भविष्य के साथ धऱती, स्वर्ग तथा पाताल का भी सूचक माना जाता हैं. यह दैहिक, दैविक एवं भौतिक ये तीन दुःख, त्रिताप के रूप मे जाना जाता है. प्रत्येक शिवालय मे त्रिशूल को स्थापित किया जाता है.
त्रिशूल एक तीन चोंच वाला धात्विक सिर का भाला या हथियार होता है, जो कि लकड़ी या धातु के डंडे पर भी लगाया होता है. त्रिशूल शिव जी का प्रिय अस्त्र है. त्रिशूल को पवित्र और शुभ माना जाता है. आजकल तो सोना चांदी के बनाये त्रिशूल शिवालय मे स्थापित किया जाता है. त्रिशूल से ही भगवान शिव जी ने उनके पुत्र श्री गणेश जी का सिर से अलग किया था.
कई लोग शिवालय मे त्रिशूल अर्पित करते है. मान्यता के अनुसार सृष्टि में जब भगवान शिवजी प्रकट हुए तो उनके साथ रज, तम और सत गुण भी प्रकट हुए, इन्हीं तीन गुणों से मिलकर भगवान शिवजी का त्रिशूल बना.
धार्मिक संतों का कहना है की भगवान शिव जी की तीनों पुत्रियों के नाम (1) अशोक सुंदरी, (2) ज्योति या मां ज्वालामुखी और (3) देवी वासुकी या मनसा था. यहां पर उल्लेखनीय है कि भगवान श्री शिव जी के धनुष का नाम ” पिनाक ” था.
( 2 ) गदा :
गदा एक पौराणिक आयुध है. भगवान शिव के ८ वें रुद्रावतार पवन पुत्र हनुमान जी का ये अति प्रिय आयुध है. गदा मे एक लम्बा दंड होता है ओर उसके एक सिरे पर भारी गोल लट्टू सरीखा शीर्ष होता है. दंड पकड़कर शीर्ष की ओर से सामने वाले लड़ रहे शत्रु पर बल पूर्वक प्रहार किया जाता है. श्री हनुमान जी को बल-सौष्ठव पहलवानी का देवता माना जाता है.
हिन्दू धर्म के त्रिदेव में से एक भगवान विष्णु जी भी एक हाथ में गदा धारण करते हैं. इसके अलावा महा काव्य महाभारत में भीमसेन, दुर्योधन, दुश्शासन ,बलराम, आदि जैसे पराक्रमी वीर योद्धाओ का भी गदा मुख्य आयुध रहा है.
( 3 ) परशु :
भगवान श्री विष्णु जी का छठा अवतार परशुराम जी को माना जाता है. भगवान शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के लिए वे परशुराम कहलाये. भगवान परशुराम ब्राह्मण कुल मे जन्मे मगर कर्म से वे एक क्षत्रिय थे. भगवान परशुराम त्रेता युग, रामायण काल में एक ब्राह्मण ऋषि के यहाँ जन्मे थे. उनको जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य भी कहां जाता है.
भगवान परशुराम शस्त्रविद्या के महान गुरु थे. उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी. भगवान श्री परशुराम जी ने परसा से श्री गणेश जी का एक दांत तोड़ दिया था जिससे गणेश जी एकदन्त कहलाये. परशा एक कुल्हाड़ी के आकार का शस्त्र है.
( 4 ) धनुष्यबाण :
भगवान श्री रामजी का ” धनुष्यबाण ” प्रिय शस्त्र है. पौराणिक काल मे अनेक योद्धा ये शस्त्र का उपयोग करते थे. बचपन मे आप लोग भी कभी धनुष्यबाण से खेले होंगे. वैसे दिखनेमे तो ये सिम्पल लगता है, मगर इसका कई तरीके से उपयोग किया जाता था. जैसे अग्नि बाण, वायु बाण, हवामे जाकर एक के अनेक बाण हो जाना. लक्ष्य को पुरा करके वापस आ जाना. बाण से अग्नि, वायु, पानी बरसना. बाण मारकर धरती से पानी निकालना.
पुराणों मे धनुष्यबाण के कई प्रसंग जुड़े है जैसे द्रौपदी स्वयंवर मे अर्जुन द्वारा मत्स्य भेदन करना. सीता स्वयंवर मे भगवान श्री रामजी द्वारा धनुष बाण को तोड़ना. भगवान श्री रामजी द्वारा दृस्ट रावण का वध करना. आदि प्रमुख है.
( 5 ) पाशुपतास्त्र अस्त्र :
इसका उल्लेख महाभारत के युद्ध में भी मिलता है. महाभारत की कथा के अनुसार अर्जुन ने जयद्रथ का वध करने के लिए पाशुपतास्त्र का प्रयोग किया. पाशुपतास्त्र एक अत्यन्त विध्वंसक अस्त्र है और जिसके प्रहार से किसीको बचना असंभव है. यह अस्त्र शिव, काली और आदि परा शक्ति का हथियार है जिसे आँख, मन शब्द से या धनुष से छोड़ा जा सकता है. यह पशुपातास्त्र अस्त्र सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश कर सकता है.
( 6 ) बर्बरीक का धनुष्यबाण :
बर्बरीक गदाधारी भीमसेन का पोता और घटोत्कच के पुत्र थे. उनको चमत्कारिक ” तीन बाणधारी ” भी कहां जाता है. भगवान श्री कृष्ण को पता था, की बर्बरीक तीन बाण से शत्रु सेना को परास्त कर सकता है. जब कृष्ण प्रभु ने हंसी उड़ाई तो बर्बरीक ने पीपल के पेड के पत्तों पर चलाया. सभी पत्तों को भेदकर प्रभु श्री कृष्ण के पैर के इर्द गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था, बर्बरीक बोले कि आप अपने पैर को हटा लीजिए वरना ये आपके पैर को चोट पहुँचा देगा. ये थी बालक बर्बरीक के बाण की शक्ति.
( 7 ) ब्रह्मास्त्र :
एक ऐसा शस्त्र जो शत्रु को अचूक नाश करता है. इसका प्रतिकार दूसरे ब्रह्मास्त्र से ही हो सकता है. ये एक ब्रह्म शक्ति से परिचालित अमोघ अस्त्र है. इसको मंत्र से चलाया जाता है. यह दिव्यास्त्र ब्रह्मा जी का सबसे मुख्य अस्त्र माना जाता है. एक बार इसके चलने से शत्रु के साथ विश्व के बहुत बड़े भाग का विनाश हो जाता है.
ब्रह्मास्त्र चलाने के बाद वहां बारा साल अकाल पडता है. यदि दो ब्रह्मास्त्र आपस में टकरा दिए जाएं तो मानो प्रलय हो जाता है.और इससे पृथ्वी का विनाश हो जाता है.
——=== शिवसर्जन ===——