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चार वेद हमारे प्राचीन ग्रंथ है. (1) ऋग्वेद , (2) यजुर्वेद, (3)सामवेद, और (4) अथर्ववेद. वेदो को दुनिया के प्रथम प्राचीन धर्मग्रंथ कहा गया है. वेद ईश्वर द्वारा ऋषियों को सुनाए गए ज्ञान पर आधारित है. इसीलिए इसे श्रुति कहा गया है. वैसे सामान्य भाषा में वेद का अर्थ होता है ज्ञान.
वेद पुरातन ज्ञान विज्ञान का भंडार है. इसमें मानव की हर समस्या का समाधान है. वेदों में ब्रह्म (ईश्वर), देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष,गणित,रसायन, औषधि,प्रकृति,खगोल,भूगोल,धार्मिक नियम, इतिहास, रीति-रिवाज आदि लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान भरा पड़ा है.
उपवेद की बात करें तो ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्ववेद, अथर्ववेद का स्थापत्यवेद ये क्रमशः चारों वेदों के उपवेद बताये गए हैं.
वेद हमारी सभ्यता के प्राचीन हस्त लिखित दस्तावेज हैं. वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के “भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट ” में रखी गई हैं. इनमें से ऋग्वेद की कुल 30 पांडुलिपियाँ बहुत महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है.
यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है. यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है.
अब हम चार वेदोंका संक्षिप्त मे विवरण देखेंगे.
( 1 ) ऋग्वेद.
ऋग्वेद पहला वेद है जो पद्यात्मक है.
इसकी रचना ईसा पूर्व 1000 साल से लेकर 1800 साल पूर्व मे हुई थी.ऋक् संहिता में 10 मंडल, बालखिल्य सहित 1028 सूक्त हैं. वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है.
ऋग्वेद मे मृत्युनिवारक त्र्यम्बक मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र का वर्णन किया गया है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र का विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है, और मृत्यु दूर होकर सुख प्राप्त होता है.
विश्व प्रसिद्ध गायत्री मन्त्र का भी इसी में वर्णन किया गया है. ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी सूक्त, जैसे तत्त्वज्ञान सूक्त, संस्कार सुक्त, रोग निवारक सूक्त, श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त. तत्त्वज्ञान के नासदीय सूक्त, हिरण्यगर्भ सूक्त , और विवाह आदि के सूक्त का वर्णन किया गया है.
इसमे विविध हिंदू देवताओं जैसे अग्नि, वायु, जल, सोम आदि का वर्णन है. इसमे वायु चिकित्सा,सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा, हवन द्वारा चिकित्सा आदि की भी जानकारी मिलती है.
ऋग्वेद के दसवें मंडल में औषधि सूक्त यानी दवाओं का जिक्र मिलता है. इसमें औषधियों की संख्या 125 के लगभग बताई गई है,जो कि कुल 107 स्थानों पर पाई जाती है. औषधि में सोम का विशेष वर्णन है.
ऋग्वेद में च्यवनऋषि को पुनः युवा करने की कथा भी मिलती है. ऋग्वेद सर्वप्रथम वेद है. यह एक प्रमुख हिन्दू धर्म ग्रंथ है.
( 2 ) यजुर्वेद.
यजुर्वेद हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ और चार वेदों में से एक है. इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं. ये हिन्दू धर्म के चार पवित्रतम प्रमुख ग्रन्थों में से एक है और अक्सर ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है. इसमें ऋग्वेद के 663 मंत्र पाए जाते हैं.
फिर भी इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है. यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘’ यजुस ’’ कहा जाता है
यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ॠग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है. इनमें स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुत कम हैं. यजुर्वेद में दो शाखा हैं, दक्षिण भारत में प्रचलित कृष्ण यजुर्वेद और उत्तर भारत में प्रचलित शुक्ल यजुर्वेद शाखा.
इसका रचना काल ईसा पूर्व से 7000 से लेकर 1500 वर्ष माना जाता है. इसमे 3988 ऋचाये सामिल है. ॠग्वेद की रचना सप्त सिन्धु क्षेत्र में हुई थी, वहीं यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र के प्रदेश में हुई थी.
( 3 ) साम वेद.
इस वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं का संगीतमय रूप है. सामवेद गीतात्मक यानी गीत के रूप में है. इस वेद को संगीत शास्त्र का मूल माना जाता है. प्राचीन आर्यों द्वारा साम गान गाया जाता था. सामवेद चारों वेदों में आकार की दृष्टिकोण से सबसे छोटा है , मगर उसकी प्रतिष्ठा सबसे ज्यादा है.
सामवेद के 1875 मन्त्रों में से 69 को छोड़ कर सभी ऋगवेद के हैं. केवल 17 मन्त्र अथर्ववेद और यजुर्वेद के पाये जाते हैं. जिसका कारण गीता में कृष्ण द्वारा वेदानां सामवेदोऽस्मि कहना भी है.इसमें सविता, अग्नि और इंद्र देवताओं के बारे में जिक्र मिलता है. इसमें मुख्य रूप से 3 शाखाएं हैं, 75 ऋचाएं हैं.
जिस प्रकार से ऋग्वेद के मंत्रों को ऋचा कहते हैं और यजुर्वेद के मंत्रों को यजूँषि कहते हैं उसी प्रकार सामवेद के मंत्रों को सामानि कहते हैं. ऋगवेद में साम या सामानि का वर्णन 21 स्थलों पर किया गया है.
सामवेद चारो वेद मे सबसे छोटा है परन्तु यह सभी वेदों का सार रूप है और सभी वेदों के चुने हुए अंश इसमें शामिल किये गये है. पुराणों में जो विवरण मिलता है उससे सामवेद की एक सहस्त्र शाखाओं के होने की जानकारी मिलती है.
महाभारत में गीता के अतिरिक्त अनुशासन पर्व में भी सामवेेेद की महत्ता को दर्शाया गया है. सामवेदश्च वेदानां यजुषां शतरुद्रीयम्. अग्नि पुराण के अनुसार सामवेद के विभिन्न मंत्रों के विधिवत जप आदि से रोग व्याधियों से मुक्त हुआ जा सकता है, एवं बचा जा सकता है, तथा कामनाओं की सिद्धि हो सकती है. सामवेद ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग की त्रिवेणी है.
सामवेद में ऐसे मन्त्र मिलते हैं जिनसे यह प्रमाणित होता है कि वैदिक ऋषियों को एसे वैज्ञानिक सत्यों का ज्ञान था जिनकी जानकारी आधुनिक वैज्ञानिकों को सहस्त्राब्दियों बाद प्राप्त हो सकी है. उदाहरणतः- इन्द्र ने पृथ्वी को घुमाते हुए रखा है. चन्द्र के मंडल में सूर्य की किरणे विलीन हो कर उसे प्रकाशित करती हैं.
सामवेद मे सा रे गा म प ध नि को क्रमानुसार , सा को षडज्. रे को ऋषभ. गा को गांधार , म को मध्यम, और प को पंचम, ध को धैवत. और नि को निषाद कहा जाता है.
( 4 ) अथर्ववेद :
इस वेद में रहस्यमयी विद्याओं, जड़ी बूटियों, चमत्कार और आयुर्वेद आदि का जिक्र है. इसके 20 अध्यायों में 5687 मंत्र है. इसके आठ खण्ड हैं जिनमें भेषज वेद और धातु वेद ये दो नाम मिलते हैं.
चार वेदो मे यह चौथा वेद है. इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं. इसमें देवताओं की स्तुति के साथ, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं. अथर्ववेद संहिता के बारे में कहा गया है कि जिस राजा के राज्य में अथर्ववेद जानने वाला विद्वान् शान्तिस्थापन के कर्म में निरत रहता है, वह राष्ट्र उपद्रवरहित होकर निरन्तर उन्नति करता है.
इस वेद मे 6000 ऋचाये है. इसका रचना काल ईसा पूर्व 7000 से 1500 साल मे बताते है. अथर्ववेद का ज्ञान भगवान ने सबसे पहले महर्षि अंगिरा को दिया था, फिर महर्षि अंगिरा ने वह ज्ञान ब्रह्मा को दीया था.
वैदिक विद्वानों के अनुसार 759 सूक्त ही प्राप्त होते हैं. अथर्ववेद में 6000 मन्त्र है परन्तु किसी-किसी में 5987 या 5977 मन्त्र ही मिलते हैं. इस वेद की रचना सबसे बाद में हुई है. वैदिक धर्म की दृष्टि से ॠग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद चारों का बड़ा ही महत्व है. अथर्ववेद में ब्रह्म की उपासना संबन्धी बहुत से मन्त्र हैं.
——–=== शिवसर्जन ===—–