हरि भक्त संत श्री गोरा कुंभार| Hari Bhakt Sant Shri Gora Kumbhar.

महाराष्ट्र की पावन धरती पर एक से बड़े एक संत महात्मा ने जन्म लिया है , संत ज्ञानेश्वर , संत तुकाराम संत रामदास , संत एकनाथ , संत नामदेव , संत शिरडी के साईं बाबा , संत श्री गोरा कुंभार , शेगांव के संत श्री गजानन महाराज , संत श्री पुंडलिक, संत बहिणाबाई , संत जनाबाई , संत कान्होपात्रा आदि इसका प्रमाण है. 

          इसमे से ज्यादातर श्री कृष्ण के भक्त थे. आज मुजे यहापर श्री हरि भक्त संत श्री गोरा कुंभार की बात करनी है. जिन्होंने महाराष्ट्र की भूमि को गौरान्वित किया है. श्री गोरा कुंभार हरि भक्त था. दिन भर उठते बैठते , चलतें फिरते वह श्री विठोबा ( श्री कृष्ण ) भगवान का स्मरण करते रहता था. 

      हाथ मे करताल लिये गोरा कुंभार श्री पांडुरंग…पांडुरंग… श्री पांडुरंग का जाप करते रहता था. महाराष्ट्र मे श्री विठोबा , श्री कृष्ण को पांडुरंग नाम से भी पुकारा जाता है. पेशे से कुंभार था अतः दिन भर मटके को हाथसे आकर देते वक्त मुख से श्री पांडुरंग का जाप स्मरण करते रहता था. 

         एक दिन की बात है, उनकी धरम पत्नी पानी भरने पनघट पर जा रही थी. उसने अपने एक साल का बच्चे को गोरा कुंभार के पास रखा और ध्यान देनेको कहा और वह पानी भरने निकल गई. गोरा कुंभार उस वक्त पाव से मिट्टी को उपर निचे कर रहा था. एक हाथ से करताल बजाते वह पांडुरंग…. पांडुरंग…. पांडुरंग करके जाप लगा रहा था. 

        बच्चा खेलते खेलते मट्टी के पास आ जाता है. मगर गोरा कुंभार अपनी रट लगाये भगवान के स्मरण मे मग्न था. उपर निचे मिट्टी को करते पैरो की ताल पर वो नाचते कूदते प्रभु के गुणगान गाने मे व्यस्त था. उसे पताही नहीं चला की वो अपने बच्चे को मिट्टी मे रौंद रहा है. इधर बच्चा रो रहा था, मगर वो हरि भक्ति मे इतना तल्लीन था की उसे बच्चे के रोने की आवाज तक सुनाई नहीं पड़ी. 

       उनकी पत्नी जब पानी भरके आयी तो दृश्य देखकर उसका कलेजा फट गया. पानी भरा हुआ मटका हाथसे निचे छूट गया, और जोरसे चिल्लाह उठी. गोरा कुंभार का ध्यान भग्न हुआ. देखकर दंग रह गया. वो जोर शोर से रोने लगा. मातम छा गया. उसको अपने किये पर पस्तावा होने लगा. 

       विठल की मूर्ति के सामने खड़ा रहकर रोने लगा. उसके आंसु विठल के पैरो को मानो धो रहा था. उसने एक कोयता ( काटने का तीक्ष्ण हथियार ) लिया ओर विठल के समक्ष दोनों हाथ की हथेली को काट डाली.

     अब उसकी हथेली कटनेसे वो मिट्टी के मटके को आकार नहीं दे सकता था. कुछ समय बाद उसे भूखे मरने की नौबत आ गयी. उसी वक्त स्वयं विठोबा ओर माता रखुमाई वेश बदलकर उनके घर आये ओर बोले की वे भी कुंभार है. और गोरा कुंभार के घर मजदूरी पर काम करना चाहते है. गोरा कुंभार ने उसकी बात मान ली और प्रभु स्वयं गोरा कुंभार के घर वेश बदलकर , मजदूरी करने लगा. और उसका व्यापार चल पड़ा. 

          कुछ दिनों बाद आषाढी एकादशी का दिन आया. संत श्री ज्ञानेश्वर और श्री नामदेव यह संतमंडली पंढरपूर जा रही थी. मार्ग में तेरेडो गांव आता था. श्री ज्ञानेश्वर ने गोरा कुंभार और उसकी पत्नी को पंढरपुर अपने साथ चलने को कहा. गरुड पार पर श्री नामदेवजी का कीर्तन हुआ.श्री ज्ञानेश्वरजी के समेत सर्व संतमंडली कीर्तन सुनने बैठी . गोरा कुम्हार भी अपने पत्नी के साथ कीर्तन सुनने बैठ गये. 

       कीर्तन के समय लोग हाथ ऊपर उठाकर तालियां बजा रहे थे. जय हरि विठ्ठल…. जय हरि विठल….का जयकारा कर रहे थे उस समय गोरा कुंभार ने भी अपने लूले हाथ को अचानक ऊपर किए और झूमने लगा. कुछ समय बाद उसके लूली हथेली मे उंगली आ गयी. यह देखकर गोरा कुंभार अति प्रसन्न हुआ. सर्व उपस्थित लोगोंने प्रभु पांडुरंग का जयघोष किया. प्रभु की लीला देखकर सब प्रसन्न हुये. 

       कुंभार की पत्नी ने विठल से प्रार्थना की कि मैं मेरे बच्चे के शिवा जिंदा नहीं रह सकती. मुझपर दया करो श्री पांडुरंग कहकर वो रोने लगी, पांडुरंग ने उसकी विनंती सुनी. बच्चा रेंगते-रेंगते उसके पास नजदीक आते हुए उसने देखा , उसने तुरंत जाकर बच्चे को अपनी गोदी में उठा लिया. 

     गोरा कुंभार को उसे खोई हुई चीज मिल गयी बच्चा मिल गया. हाथ अच्छे हो गये. उसने बाकी का जीवन प्रभु भक्ति मे बिताया. यह थी गोरा कुंभार की कथा.

        श्री गोरा कुंभार महाराष्ट्र के वारकरी संप्रदाय से जुड़े एक हिंदू संत थे. उसने अनेक अभंग लिखें है. उसने चैत्र कृष्ण त्रयोदशी, शके 1239 ( 20 अप्रेल 1317 ) के दिन समाधी ली थी. गोरा कुंभार को गोरोबा काका के नामसे बुलाते थे उसकी समाधी उस्मानाबाद जिले स्थित तेर नामक गांव मे है. इसके अलावा

 ऐनपूर ( जिला – जलगाव),  

राहू (जिला – पुणे), 

दौलताबाद (जिला – औरंगाबाद),  

काटे पिंपळगाव (जिला – औरंगाबाद), 

कोकिसरे (जिला – सातारा) , 

कुंभार्ली (जिला – रत्नागिरी), 

सेलू (जिला – परभणी), 

कर्जत (जिला – रायगड)

आदि स्थल पर गोरा कुंभार के मंदिर है.

गोरा कुम्भार को पारंपरिक रूप से सत्यपुरी गांव में रहने वाला माना जाता है, जिसे वर्तमान में महाराष्ट्र राज्य के उस्मानाबाद जिले में गोरबा टेर के रूप में जाना जाता है. माना जाता है कि वे नामदेव के समकालीन थे. गोरा कुंभार का जन्म सन 1267 मे हुआ था और सन 1317 मे उसने समाधी ली थी. 

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                           शिव सर्जन प्रस्तुति.

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