हिंदू विवाह : बंधन के सात फेरे|

Marriage

          हिंदू संस्कृति मे विवाह के समय पवित्र बंधन के लिये अनेक रस्म और कर्मकांड किये जाते है. इसमे दांपत्य जीवन की शुरुआत करने जा रहे वर-वधु के सुखी जीवन के लिए शुभ कामना की जाती है.

           अगर आप शादीशुदा हैं तो आपको सप्तपदी का महत्व पता होगा. फ़िरभी 99 प्रतिशत वर वधू को अग्नि को साक्षीमे रखकर लिये गये फेरे के समय क्या प्रतिज्ञा की जाती है उसके बारेमें पता नहीं होगा. मगर इसमे भावना एक ही होती है, दूल्हा-दुल्हन को सात कदम साथ चलाकर उनको वचन बद्ध कराना. 

         कई समाज मे इस रस्म को पूरा करने के लिए चावलों की सात ढेरी बनाई जाती हैं. कई लोगों में चावल की ढेरी के स्थान पर मिट्टी के सकोरे रखे जाते हैं और दूल्हा-दुल्हन इन सकोरों पर पैर रखते हुए आगे बढ़ते हैं. इसमे अलग अलग जाती मे अलग रिवाज़ पाया जाता है. 

        हमारी वैदिक संस्कृति के अनुसार सोलह संस्कार है. जिसको हमारे जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण संस्कार माने जाते हैं. सनातन हिंदू धर्म में विवाह संस्कार को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना जाता है. विवाह अर्थात वि + वाह, अत: इसका मतलब है , विशेष रूप से विश्वसनीयता का बंधन करना.  

       हिंदू विवाह को पति और पत्नी के बीच जन्म जन्मांतरों का बंधन माना जाता है जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता. अग्नि के सात फेरे के बाद तन, मन और आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं. सनातन हिंदू विवाह पद्धति में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है. 

      शादी विवाह से दो इंसानो के साथ-साथ दो परिवारों का भी रिस्ता बंध जाता है. हिन्दू धर्म के अनुसार सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूरी होती है. इस सात फेरों में वर वधू दोनों से सात वचन लिए जाते हैं. यह सात फेरे ही पति-पत्नी के रिश्ते को सात जन्मों तक बांधते हैं.  

         सनातन हिंदू विवाह संस्कार के अंतर्गत वर-वधू अग्नि को साक्षी मानकर इसके चारों ओर घूमकर पति-पत्नी के रूप में एक साथ खुशी से जीवन बिताने के लिए प्रण लेते हैं. हर फेरे का एक वचन होता है, जिसे पति-पत्नी जीवनभर साथ रहकर निभाने का वादा करते हैं .

            विवाह के बाद कन्या वर से सात वचन लेती है .वो सात वचन इस प्रकार है . 

पहला वचन : 

 ( 1 )  तीर्थवर्तोद्यापन यज्ञस्मिन् मया सहैव प्रियवयं कुर्या :,
वामांगमयीति तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी !!

        इसका मतलब होता है , कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग को लेकर चले, कोई व्रत-उपवास या अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दिया जाय. 

दूसरा वचन : 

( 2 )      पुज्यो यथा स्वौ पितरौ मम वेषेषभक्तो निजन्म कुर्या :,
वामांगमायामि तदा त्वदीदी ब्रवीति कन्या वचनम् द्वितीयम् !!

      इस श्लोक के अनुसार कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें और कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें. इसमे कन्या ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार करनेका आव्हान करती है. 

तीसरा वचन :

( 3 )    जीवनम अवत्रये मम पालनां कुरीति,
वामांगमयी तदा त्वदीय ब्रवीति कन्या छद्म !!

तीसरे वचन में मांगते समय कन्या ये कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था में मेरा पालन करते रहें, तो केवल मैं आपकी वामांग में आने को तैयार हूँ. 

चौथा वचन :

( 4 ) कुतुम्बनपालनसर्वकार्य स्लु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या :,
वामांगमयीं तदा त्वदीदी ब्रवीति कन्यां शूर्पणं !!

      चौथा वचन मे कन्या ये माँगती है कि अब तक आप घर-परिवार की लिंगता से पूर्णत: मुक्त थे.अब जबकि आप विवाह बंधन में बँधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है. यदि आप इस भार को वहन करते हो तो मैं आपके वामांग में आ सकती हूं . 

पांचवा वचन :

( 5 )   स्वस्यदियरे व्यवहारमेण्ये व्यये माम मन्त्रयेथा,
वामांगमयी तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या !!

    पांचवा वचन मे अपने अधिकारों को मांगते कन्या कहती है कि अपने घर के कार्यों में, विवाहादि, लेन-देन या अन्य किसी भी खर्च करने के लिए समय यदि आप मेरी से भी मंत्रणा करें. 

छठा वचन : 

( 6 ) न मेपमानमं सविधे सख्यानं द्युतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत,
वामाम्गमायामि तदा त्वदीप ब्रवीति कन्यां च शशतमम् !!

        यहां पर कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों या अन्य स्त्रियों के बीच बैठी हूँ तो आप वहाँ सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे. यदि आप जुआ या अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आप को दूर रखें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ. 

सातवा वचन : 

( 7 ) परस्त्रियं मातमां समीक्षित स्नेहं सद चेन्मयि कान्त कुर्या,
वामांगमयी तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तमत्रं कन्या !!

        यह अन्तिम वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगे और पति-पत्नि के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को बचाने न बनाएंगें. यदि आप यह वचन मुझे बताने दें तो ही मैं आपकी वंग में आकर प्रवेश कर जाती हूं. इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है.

       इसी तरह पति भी पत्नी से वचन मांगता है. 

     आपने सात वचन के बारेमें जानकारी पढ़ी. अब कुछ लोगोंका मानना है कि फेरे सात ही क्यों लिया जाता है इसपर जानकारों का कहना है कि हिंदू मान्यता ये हे की सात शुभ अंक माना जाता है. संगीत के सात सुर है. इंद्रधनुष मे सात रंग होते है. सात समुद्र माने जाते है. सात ऋषि माने जाते है जिसको आकाश मे सप्तऋषि के नामसे पहचाने जाते है. 

        सात फेरे हमारी वैदिक सनातन हिंदू परंपरा है. समाज व्यवस्था का एक भाग है. इसमे अलग अलग जाती ओमे यह रिवाज़ अलग हो सकता है. 

        वैवाहिक जीवन में शादी की तारीख को सालगिरह की सालगिरह के रूप में मनाने के लिए केक काट कर, महंगे उपहार देकर या कुछ लोगों को होटल में खाना खिलाकर सालगिरह को मनाया जाता है. दोस्तों द्वारा शुभकामनायें की बारिस बरसती है और उन्हें लम्बे आयुष्य की कामना करते है. 

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                              शिव सर्जन

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