हिजड़ा या किन्नर की रहस्यमय बातें.|

हिजड़े यांनी किन्नर ना तो नर होते है और ना ही नारी. ये एक ऐसा समुदाय है जिसका ज़िक्र पुराणों में पाया जाता है. वो हमारी हर ख़ुशी में शामिल होते हैं और मान्यता है कि इनकी दुआओं में दम होता है. इनकी बद दुआएं कोई नहीं लेना चाहता. किन्नरों की एक अलग ही दुनिया होती है. जिसका उनका रहन सहन सामान्य मनुष्यों से बिलकुल ही अलग होता है.

ज्योतिष शस्त्रों के अनुसार माना जाता है की कुंडली में बुध, शनि, शुक्र और केतु के अशुभ योगों के कारण से व्यक्ति किन्नर या नपुंसक पैदा हो सकता है. पुरानी मान्यता के अनुसार शिखंडी को किन्नर माना गया है. कहा जाता है कि शिखंडी की वजह से ही अर्जुन ने भीष्म को युद्ध में हरा दिया था.

महाभारत में जब पांडव एक वर्ष का अज्ञात वास जंगल में काट रहे थे, तब अर्जुन एक वर्ष तक किन्नर वृहन्नला बनकर रहे थे.

सन 2011 की लास्ट जनगणना के अनुसार प्रदेश में किन्नरों की संख्या 137465 थी, जो बाद के सर्वेक्षण में इनकी संख्या लगभग 164615 हो गई है. यानी 10 वर्षों में 27150 की वृद्धि हुई है. सर्वेक्षण के अनुसार देश में सबसे ज्यादा किन्नरों की संख्या आगरा मंडल में 14915 है. प्रदेश में सबसे ज्यादा किन्नर हिन्दू धर्म में है.

एक किये गये सर्वेक्षण के अनुसार यदि धार्मिक आधार पर देखें तो किन्नरों की संख्या 74 प्रतिशत हिन्दू धर्म में, 25 प्रतिशत मुस्लिम और एक प्रतिशत सिख धर्म में है. 27 प्रतिशत किन्नर कक्षा एक से 9 तक, 4 प्रतिशत 10 वीं तक, 3 प्रतिशत 12 वीं और 2 प्रतिशत स्नातक हैं. सर्वेक्षण के अनुसार 3-10 साल की उम्र में 29 प्रतिशत किन्नर, 11-15 की उम्र में 40 प्रतिशत और 16-22 की उम्र में 30 प्रतिशत किन्नर घर छोड़ देते हैं.

हिजड़ा होने के कारण जिन्हें उनके अपने ख़ुद से दूर कर देते हैं, उन्हें किन्नर समाज पनाह देता है. इनके समाज के कुछ क़ायदे क़ानून होते हैं जिन पर उसे अमल करना होता है. ये सभी परिवार की तरह एक गुरु की पनाह में रहते हैं. ये गुरु अपने साथ रहने वाले तमाम किन्नरों को पनाह, सुरक्षा और उनकी हर ज़रूरत को पूरा करते हैं.

सभी किन्नर जो भी कमा कर लाते हैं अपने गुरु को देते हैं. फिर गुरु हरेक को उसकी कमाई और ज़रूरत के अनुसार पैसा देते हैं. बाक़ी बचे पैसे को सभी के लिए रख लिया जाता है.

किन्नरों के अंतिम संस्कार को लेकर भी कई रहस्य हैं जो चौकाने वाले हैं. कहा जाता है किन्नरों का अंतिम संस्कार गैर-किन्नरों से छुपाकर किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि अगर किसी किन्नर के अंतिम संस्कार को आम इंसान देख ले, तो मरने वाला फिर से किन्नर बनकर वापस जन्म लेकर लौटता है.

किन्नर के शव को जलाते नहीं है बल्कि उनके शव को दफनाते हैं. किन्नर के अंतिम संस्कार से पहले उसके शव को जूते-चप्पलों से पीटा जाता है और ऐसा इसलिए क्योंकि इससे उसके उस जन्म में किए सारे पापों का प्रायश्चित हो जाता है.

एक जमाना था जब किन्नर समुदाय के लोग शादी, ब्याह, बच्चे के जन्मदिन आदि खुशी के मौके पर नाच गान करके आशिर्वाद देकर अपना जीवन निर्वाहन करते थे मगर वर्तमान मे ये लोग कही भी भीख मांगने बैठ जाते है. अब तो ये ट्रैनमें, बसमे, रास्ते मे या हर घर जाकर मांगते है.

जमाना बदल रहा है आज तो देश मे किन्नर डॉक्टर, वकील बनने कदम आगे बढ़ा रही है. फिर क्यों उनकी उपेक्षा की जा रही है. इनको भी सरकारी नौकरी मे आरक्षण क्यों नहीं दिया जाता. उनकी भी कोई अलग स्कूल हो. उनको भी

ट्रेनिंग दी जाय तो ये भी विविध सरकारी दफ़्तरो मे काम कर सकते है.

समय आने पर सैन्य मे भी काम कर सकते है. नेता बनकर जनता का नेतृत्व कर सकते है. भिखारी बनकर भीख मांगने से तो अच्छा है. क्या सरकार का ये उत्तरदायित्व नहीं है ?

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

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