एक जमाना था जब तत्कालीन राजा महाराजा अपने रहनेके लिये या आपातकालीन स्थिति में छुपने के लिए किले बनवाते थे. इसमे मुगल साम्राज्य, पुर्तगाल और मराठा साम्राज्य ने देश के विविध स्थानों पर ये किले बनवाये थे जो आज भी हमारी प्राचीन विरासत के रूपमें अटल खड़े है.
उन्हीं में से एक है नाम गोलकोंडा किले का भी आता है , जो हैदराबाद के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक माना जाता है. यह किला देश की सबसे बड़ी मानव निर्मित झीलों में से एक हुसैन सागर झील से लगभग नौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
बताया जाता है कि इस किले का निर्माण कार्य सन 1600 के दशक में पूरा किया गया था, लेकिन इस किले को बनाने की शुरुआत 13वीं शताब्दी में काकतिया राजवंश द्वारा की गई थी. यह किला अपनी वास्तुकला, पौराणिक कथाओं, इतिहास और रहस्यों के लिए जाना जाता है.
किवदंती है कि इस प्रसिद्ध किले के निर्माण से एक रोचक इतिहास जुड़ा हुआ है. कहा जाता हैं कि एक दिन एक चरवाहे लड़के को पहाड़ी पर एक मूर्ति मिली. जब उस मूर्ति की सूचना शासक काकतिया राजा को मिली तो उन्होंने उसे पवित्र स्थान मानकर उसके चारों ओर मिट्टी का एक किला बनवा दिया, जिसे आज गोलकोंडा किले के नाम से जाना जाता है.
ये 400 साल पुराना किला कई रहस्यों से भरा है. जो पर्यटकों को हैरान कर देने वाली बात है. करीब चार सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर बने इस किले में आठ दरवाजे और 87 गढ़ हैं. फतेह दरवाजा किले का मुख्य द्वार है, जो 13 फीट चौड़ा और 25 फीट लंबा है. इस दरवाजे को मजबूत स्टील स्पाइक्स के साथ बनाया गया है जो इसे हाथियों के आक्रमण से बचाता है.
गोलकोंडा किले की शानदार भव्यता का अंदाजा आप यहां का दरबार हॉल देख कर लगा सकते हैं, जो हैदराबाद और सिकंदराबाद के दोनों शहरों को ध्यान में रखते हुए पहाड़ी की चोटी पर बनाया गया है. यहां पहुंचने के लिए एक हजार सीढियां चढ़नी पड़ती हैं.
गोलकोंडा किले की सबसे बडी रहस्यमय बात ये है कि इस किले को इस तरह बनाया गया है कि जब कोई किले के तल पर ताली बजाता है तो उसकी आवाज , बाला हिस्सार गेट से गूंजते हुए पूरे किले में सुनाई देती है. इस जगह को ” तालिया मंडप ” या आधुनिक ध्वनि अलार्म कहा जाता है.
माना जाता है कि किले में एक रहस्यमय सुरंग है, जो किले के सबसे निचले भाग से होकर किले के बाहर निकलती है. कहा जाता है कि इस सुरंग को आपातकालीन स्थिति में शाही परिवार के लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए बनाई गई थी, लेकिन अब तक इस सुरंग का कुछ पता नहीं चल पाया है.
गोलकोंडा का किला काकतीय लोगों द्वारा बनाया गया था. यह क़ुतुब शाही वंश का एक किला और गढ़ भी है, जो 120 मीटर ऊँची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. इस राजसी महल में कभी शक्तिशाली कुतुब शाही निज़ाम रहा करते थे. उन्होंने दक्कन पर 400 से अधिक वर्षों तक शासन किया था.
काकतीय राजाओं ने 13वीं शताब्दी ईस्वी में किले का निर्माण कराया था. कुतुब शाही राजाओं ने बाद में 1525 के आसपास इसका पुनर्निर्माण किया था. आपको गोलकोंडा किले के अंदर कुतुब का शाही मकबरा, आलमगीर मस्जिद, और बादशाह महल जैसे ऐतिहासिक स्मारकों को देखने का अवसर भी मिलेगा.
यह एक ऐसी वास्तुकला है जो कई वर्षों के बाद भी बची रही और अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती है. इसके निर्माण के बाद से किले का कई बार जीर्णोद्धार किया गया है लेकिन अभी भी यह काफी सुंदर दिखता है. इसमें कई संग्रहालय भी हैं, जिन्हें पर्यटक गाइडेड टूर या सेल्फ गाइडेड टूर पर भी देख सकते हैं.
सन 1931 से इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है. इस भव्य किले की वास्तुकला तथा संरचना राजपूत वास्तुकला से संबंधित हैं. यह गोलकोंडा का किला हैदराबाद, तेलंगाना से 11 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है. हालांकि शहर के केंद्र से बहुत दूर है. किले के आसपास पर्यटकों के लिए रहने की पर्याप्त व्यवस्था है.
गोलकोंडा किला हैदराबाद, शहर के पश्चिम में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जहां से विशाल घाटी दिखाई देती है. यह घाटी हरे-भरे खेतों और जंगलों से भरी हुई है. साथ ही, इससे आसपास की पहाड़ियों और घाटियों का शानदार नज़ारा दिखाई देता है.
इस ऐतिहासिक स्थल का मुख्य प्रवेश जुम्मा मस्जिद रोड से है. यह रास्ता एक खुले प्रांगण की ओर जाता है जहाँ से दो और प्रवेश द्वार निकलते हैं. इनमें से एक पूर्व की ओर है, जबकि दूसरा उत्तर की ओर है. पहला पैगम्बर मोहम्मद की मजारों की ओर जाता है. हालाँकि, दूसरा देवी सरस्वती और लक्ष्मी को समर्पित कुछ छोटे मंदिरों की ओर जाता है.
गोलकोंडा का किला सन 1781 में टीपू सुल्तान द्वारा पराजित होने तक यह किला उनकी राजधानी था. इसकी वास्तुकला के महत्व के कारण इसे सन 1997 से यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है.
दुनिया का सबसे प्रसिद्ध हीरा कोहिनूर अब तक खनन के दौरान पाए गए सबसे बड़े हीरों में से एक है. इसकी खोज दक्षिण भारत के गोलकुंडा शासक आसिफ जाह ने लगभग 1650 में की थी. होप डायमंड को मटर महल (दर्पणों का महल) के रूप में भी जाना जाता है. यह 31.52 सेमी x 21 सेमी x 6 सेमी का है, इसका वजन 2,106 कैरेट है और इसे गोलकुंडा से खोजा गया है.
गोलकोंडा किला एक दर्शनीय स्थल है। यह किला मुसी और मंजीरा नामक दो नदियों के बीच एक द्वीप पर बनाया गया था. बाद में, इसके चारों ओर की ज़मीन को कवर करने के लिए इसका विस्तार किया गया और उस समय गोलकोंडा क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक बन गया, जिसके कारण इसका नाम “गोलकोंडा” या “Mountain Fortress” अर्थात इसे “पहाड़ी किला” के नाम से पहचाने जाने लगा है. यह किला समुद्र स्तर से अधिक ऊंचाई पर स्थित था. भूकंप, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदा जैसे कई कारणों से इसे बचाने के लिए किले का कई बार जीर्णोद्धार किया गया है.
हैदराबाद शहर सबसे पुराने शहरों में से एक है. और यह लगभग 1000 साल पुराना है, जब इसे गोलकुंडा के नाम से जाना जाता था.
प्रवेश का समय :
रोज सुबह 9 बजे से शाम 5:30 बजे तक किले में जा सकते है. किले में हैदराबाद के अंदर जाने के लिए आप चार प्रवेश द्वार और तीन द्वार का यूज़ कर सकते हैं.
विदेशियों के लिए प्रवेश शुल्क : 100-200 रुपये प्रति वयस्क और 12 वर्ष से कम के बच्चों के लिए 50 रुपये है.
भारत के लोगों के लिए प्रति व्यक्ति 25 रुपये एंट्री फीस ली जाती है. हालांकि, 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए यह 20 रुपये है.