क्रिसमस, ईसाई धर्म का बड़ा त्योहार है, लेकिन इसे सभी धर्मों और संस्कृतियों के लोग मनाते हैं. क्रिसमस को अंग्रेज़ी में ‘Xmas’ लिखा जाता है. ‘X’ ग्रीक अक्षर ची से बना है, जो ग्रीक शब्द ‘क्रिस्टोस’ का पहला अक्षर है. ‘क्रिस्टोस’ का मतलब है, ‘अभिषिक्त, तेल में लिपटा हुआ’. वहीं, – मास लैटिन से निकले पुराने अंग्रेज़ी शब्द ‘मास’ से बना है.
क्रिसमस का त्योहार हर साल 25 दिसंबर को मनाया जाता है. ईसाई धर्म के मुताबिक, इस दिन प्रभु यीशु मसीह का जन्म हुआ था. क्रिसमस पर लोग अपने घरों को लाइट्स, कैंडल, और क्रिसमस ट्री से सजाते हैं. क्रिसमस पर लोग चर्च जाते हैं और प्रार्थना करते हैं.
इस दिन लोग केक बनाकर काटते हैं और परिवार और दोस्तों के साथ शेयर करते हैं.
क्रिसमस पर बच्चों को सांता क्लॉज से चॉकलेट्स और गिफ़्ट मिलते हैं.
क्रिसमस पर चर्च में प्रभु यीशु मसीह की जन्म गाथा को नाटक के रूप में दिखाया जाता है.
क्रिसमस डे मनाने के पीछे की कहानी. ईसाई धर्म की मान्यता के अनुसार प्रभु यीशु मसीहा का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था. माना जाता हैं कि मरियम को एक सपना आया था.जिसमे उनके प्रभु के पुत्र यीशु को जन्म देनेकी भविष्यवाणी की गयी थी.
एक बार शादी के बाद मरियम और युसूफ को बेथलहम जाना पड़ा. लेकिन वहा रुकने के लिए कोई ठीक जगह नहीं मिलने के कारण उन्होंने गौशाला में रुकने का फैसला किया. जहाँ मरियम ने प्रभु येशु को जन्म दिया.
हर साल 25 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है क्रिसमस का त्योहार :
क्रिसमस का इतिहास ईसा मसीह के जन्म से संबंधित है. ईसाई धर्म के अनुसार, 25 दिसंबर को प्रभु यीशु मसीह का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है. यह पर्व पहली बार 336 में ईसाई रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन के शासनकाल में मनाया गया था. पोप जुलियस ने 25 दिसंबर को जीसस क्राइस्ट के जन्मदिन को मनाने का निर्णय लिया था.
जिसे हर वर्ष 25 दिसंबर को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन गिरिजाघरों में क्रिसमस की घंटियों की मधुर ध्वनि गूंजती है. साथ ही, सभी गिरिजाघरों को रंग-बिरंगी रोशनी और अन्य सजावटी वस्तुओं से सजाया जाता है. इस अवसर पर, ईसाई लोग अपने अपने घरों में केक काटते हैं और एक-दूसरे को मिठाई खिलाते हैं. क्रिसमस 25 दिसंबर को क्यों मनाया जाता है, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है. यहां जानें 25 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है क्रिसमस.
क्रिसमस का इतिहास :
क्रिसमस का इतिहास ईसा मसीह के जन्म से संबंधित है, जैसा कि बाइबल के न्यू टेस्टामेंट में वर्णित है. ईसाई धर्म के अनुयायियों के अनुसार, 25 दिसंबर को प्रभु यीशु मसीह का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है. हालांकि, कुछ इतिहासकारों और धार्मिक अनुयायियों का मानना है कि ईसा का जन्म वास्तव में इस दिन नहीं हुआ था और यह केवल प्रतीकात्मक जन्मदिन है. बाइबल में यीशु की जन्म तिथि का उल्लेख नहीं है, फिर भी हर वर्ष 25 दिसंबर को क्रिसमस का उत्सव मनाया जाता है. यह माना जाता है कि यीशु मसीह का जन्म मरियम के घर हुआ था, और कहा जाता है कि मरियम को एक स्वप्न में प्रभु के पुत्र यीशु के जन्म की भविष्यवाणी की गई थी.
सैंटा क्लॉज का क्रिसमस से संबंध :
क्रिसमस का पर्व यीशु मसीह के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, फिर भी इस दिन को सैंटा क्लॉज के नाम से क्यों जाना जाता है? वास्तव में, सैंटा का वास्तविक नाम संत निकोलस है, और यह कथा 280 ईस्वी में तुर्की से शुरू होती है. सैंटा उत्तरी ध्रुव पर अपनी पत्नी मिसेज क्लॉज के साथ निवास करते हैं. वह एक खुशमिजाज व्यक्ति हैं, जिनकी सफेद दाढ़ी है और जिनके हृदय में दया और करुणा का भाव भरा हुआ है. संत निकोलस जरूरतमंदों और बीमारों की सहायता के लिए यात्रा किया करते थे.
क्रिसमस ट्री का इतिहास :
क्रिसमस ट्री की शुरुआत के पीछे कई किवदंतियां प्रचलित हैं. इनमें से एक प्रसिद्ध किंवदंती 16वीं सदी के ईसाई धर्म सुधारक मार्टिन लूथर से जुड़ी है. कहा जाता है कि एक बार जब मार्टिन लूथर एक बर्फीले जंगल से गुजर रहे थे, तो उन्होंने एक सदाबहार पेड़ को देखा जिसकी डालियां चांदनी में चमक रही थीं.
इस दृश्य से प्रेरित होकर उन्होंने अपने घर में भी एक सदाबहार पेड़ लगाकर उस पर मोमबत्तियां लगा दीं. धीरे धीरे पेड़ को ईसा मसीह के जन्म दिन के अवसर पर सजाने की परंपरा शुरू हो गई और यही क्रिसमस ट्री के रूप में विकसित हुआ.
एक अन्य किवदंति के अनुसार
क्रिसमस ट्री से जुड़ी बच्चे की कुर्बानी की कहानी है. क्रिसमस ट्री की शुरुआत के बारे में कई किवदंतियां प्रचलित हैं. एक ऐसी ही कहानी 8वीं सदी की है. एक बार जर्मनी के सेंट बोनिफेस को पता चला कि कुछ लोग एक विशाल ओक ट्री के नीचे एक बच्चे की कुर्बानी देंगे. इस बात की जानकारी मिलते ही सेंट बोनिफेस ने बच्चे को बचाने के लिए ओक ट्री को काट दिया.
इसके बाद उसी ओक ट्री की जड़ के पास से एक फर ट्री या सनोबर का पेड़ उग गया. सेंट बोनिफेस ने इस पेड़ को ईश्वरीय चमत्कार बताया और लोगों को समझाया कि यह पेड़ स्वर्ग का प्रतीक है. तब से लोग इस पेड़ को ईसा मसीह के जन्मदिन पर सजाने लगे और धीरे धीरे यह परंपरा पूरी दुनिया में फैल गई.
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