52 युद्धों में से 51 युद्ध में विजय प्राप्त करनेवाली जाबाज महारानी दुर्गावती.
जब कभी मुगलों का जिक्र होता है तब उनसे पंगा लेने वाले भारतीय राजाओं की वीरता की गाथा गाई जाती है. पर भारतीय इतिहास में ऐसी कई रानियां भी हैं जिन्होंने अपने जीवनकाल में दुश्मनों से पंगा लिया है. सिर्फ झांसी की रानी ही नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों की रानियों ने भी अपने-अपने स्तर पर कई युद्ध लड़े हैं और वीरगति को प्राप्त हुई हैं. आज हम उन्हीं में से एक रानी दुर्गावती का जिक्र करने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी.
महारानी दुर्गावती, जिसका शासन 80 हजार गांवो तक फैला हुआ था.वैसे आज का जबलपुर रानी दुर्गावतीका केंद्र था. यहीं से बैठकर वे शासन करती थीं. बहादुर इतनी कि शेर के शिकार पर निकलतीं तो पानी तब तक नहीं पीती, जब तक शेर को मार न लें.
रानी दुर्गावती ने सन 1550 से सन 1564 तक गढ़ा राज्य का 14 साल तक शासन किया. उनका विवाह गढ़ा राज्य के राजपूत राजा दलपत शाह से हुआ था, जिसे गोंड राजा संग्राम शाह ने गोद लिया था. उन्हें मुगल साम्राज्य के खिलाफ अपने राज्य की रक्षा के लिए याद किया जाता है. महारानी दुर्गावती का जन्म ता : 5 अक्टूबर 1524 को कालिंजर किले में हुआ था.
दुर्गावती दिखने में बहुत सुंदर तथा स्वभाव से सुशील एवं विनम्र थी. वह बहुत ही निडर , बहादुर और साहसी महिला थी, जिन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद न केवल उनका राज्य संभाला बल्कि राज्य की रक्षा के लिए कई लड़ाईयां भी लड़ी. महारानी दुर्गावती ने 52 युद्धों में से 51 युद्ध में विजय प्राप्त की थी. बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण ही उनका नाम दुर्गावती रखा गया था.
18 साल की उम्र में उनकी शादी गोंड राजवंश के राजा संग्राम शाह के बड़े बेटे दलपत शाह से हो गई थी.
दुर्भाग्यवश विवाह के 4 वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया. उस समय दुर्गावती का पुत्र नारायण 3 साल का ही था अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया. वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र हुआ करता था.
महारानी ने 16 साल तक राज किया. इस दौरान उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं.
15वीं सदी में मुगल राजा अकबर का राज पूरे भारत में तेजी से फैल रहा था. कई हिंदू राजाओं के साथ संधि कर मुगलिया सल्तनत अपना साम्राज्य बनाने में कामयाब रही थी. जिन हिंदू राज्यों ने अपना राज्य नहीं दिया था उन्हें मुगलों के साथ युद्ध करना पड़ रहा था. ऐसा ही एक राज्य था गोंडवाना जिसे जीतने के लिए मुगलों को बहुत मुश्किल हुआ था. उस समय गोंडवाना की रक्षा के लिए मुगलों की सेना के सामने खड़ी हुई थी रानी दुर्गावती.
अकबर और दुर्गावती :
मुग़ल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था. उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा मगर रानी ने यह मांग ठुकरा दी.
इस पर अकबरने अपने एक रिश्तेदार आसफ़ ख़ाँ के नेतृत्व में गोंडवाना पर हमला कर दिया. एक बार तो आसफ़ ख़ाँ पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दोगुनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला. दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे. उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया.
इस युद्ध में 3,000 मुग़ल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी. अगले दिन 24 जून, 1564 को मुग़ल सेना ने फिर हमला बोला. आज रानी का पक्ष दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया. तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका. दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी. तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया.
उनके एक सलाहकार ने उन्हें युद्ध छोड़ कर सुरक्षित स्थान पर जाने की सलाह दी, किन्तु उन्होंने जाने से मना कर दिया और उससे कहा दुश्मनों के हाथों मरने से अच्छा है कि अपने आप को ही समाप्त कर लो.
रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ. अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान दे दिया. महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था.
गढ़मंडला की वीर तेजस्वी रानी दुर्गावती का नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है क्योंकि पति की मृत्यु के पश्चात भी रानी दुर्गावती ने अपने राज्य को बहुत ही अच्छे से संभाला था. इतना ही नहीं रानी दुर्गावती ने मुगल शासक अकबर के आगे कभी भी घुटने नहीं टेके थे. इस वीर महिला योद्धा ने तीन बार मुगल सेना को हराया था और अपने अंतिम समय में मुगलों के सामने घुटने टेकने के जगह इन्होंने अपनी कटार से अपनी हत्या कर ली थी. उनके वीर बलिदान के कारण ही लोग उनका इतना सम्मान करते हैं.
सूत्रों का कहना है कि सन 1564 में हुई रानी दुर्गावती की यह अंतिम लड़ाई सिंगरामपुर जोकि वर्तमान में मध्यप्रदेश के दमोह जिले में स्थित है, वहां हुई थी. रानी दुर्गावती की मृत्यु के बाद गोंड राज्य अत्यंत दुखी था किन्तु रानी के साहस और पराक्रम को आज भी याद किया जाता है. रानी दुगावती का शरीर मंडला और जबलपुर के बीच स्थित पहाड़ियों में जा गिरा, इसलिए वर्तमान में मंडला और जबलपुर के बीच स्थित बरेला में इनकी समाधि बनाई गई है जहाँ अभी भी लोग दर्शन के लिए जाते हैं.
रानी दुर्गावती का सम्मान :
*** वर्तमान में रानी दुर्गावती के सम्मान में बहुत सी जगहों का निर्माण हुआ. रानी दुर्गावतीके सम्मान में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा सन 1983 में जबलपुर के विश्व विध्यालय को उनकी याद में “रानी दुर्गावती विश्वविध्यालय” कर दिया गया.
*** भारत सरकार ने रानी दुर्गावती को श्रधांजलि अर्पित करने हेतु 24 जून सन 1988 में उनकी मौत के दिन एक डाक टिकिट जारी की हैं.
*** रानी दुर्गावती की याद में जबलपुर और मंडला के बीच स्थित बरेला में उनकी समाधि बनाई गई.
*** इसके अलावा पुरे बुंदेलखंड में रानी दुगावती कीर्ति स्तम्भ, रानी दुर्गावती संग्रहालय एवं मेमोरियल, और रानी दुगावती अभयारण्य हैं.
*** जबलपुर में मदन मोहन किला स्थित हैं जोकि रानी दुर्गावती का उनकी शादी के बाद निवास स्थान था.
*** इसके आलावा रानी दुर्गावती ने अपने शासनकाल में जबलपुर में अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल और अपने सबसे विश्वास पात्र वजीर आधारासिंह के नाम पर आधारताल बनवाया हैं.
*** महारानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर भारत शासन द्वारा 24 जून 1988 को उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया था.
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