मदर इंडिया फ़िल्म सन 1957 में रिलीज हुई भारतीय फ़िल्म है जिसको महबूब ख़ान द्वारा निर्देशित किया गया था. फ़िल्म में मुख्य भूमिका नर्गिस, श्री सुनील दत्त, श्री राजेंद्र कुमार और राज कुमार ने निभाई थी.
यह फ़िल्म महबूब ख़ान द्वारा ही निर्मित औरत (1940) की रीमेक है. यह गरीबी से पीड़ित गाँव में रहने वाली औरत राधा की कहानी है जो मुश्किलों का सामना करते हुए अपने बच्चों का पालन पोषण करती है. राधा भारतीय नारी की परिभाषा स्थापित करती है, और अंत मे अपने बेटे को स्वयं गोली मार देती है.
इस फ़िल्म को अबतक की सबसे बड़ी बॉक्स ऑफिस सुपर हिट फ़िल्मों में गिनी जाती है. सन 1958 में तीसरी सर्वश्रेष्ठ फीचर फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से नवाज़ा गया था. मदर इंडिया (1957), मुग़ल-ए-आज़म (1960) और शोले (1975 ) के साथ उन चुनिन्दा फ़िल्मों में आती है. यह फ़िल्म भारत की ओर से पहली बार अकादमी पुरस्कारों के लिए भेजी गई फ़िल्म थी.
मेहबूब खान को मदर इंडिया की प्रेरणा सन 1937 में बनी एमजीएम की फ़िल्म “द गुड अर्थ” से मिली थी.
ऑस्कर की दौड़ में “मदर इंडिया” के 47 साल बाद आमिर खान अभिनीत “लगान” को यह मौका मिला था.
” मदर इंडिया ” फिल्म को भारत की सबसे ऐतिहासिक फिल्मों में से भी एक माना जाता है. मदर इंडिया भारत की पहली फिल्म थी , जिसे सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म की श्रेणी में ऑस्कर अवार्ड के लिए नामित किया गया था.
लेकिन सिर्फ एक वोट कम मिलने की वजह से ये फिल्म जीतने में कामयाब नहीं हो पाई थी
मदर इंडिया के निर्देशक महबूब खान ने फिल्म निर्माण की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी. न ही उनकी कोई फिल्मी पृष्ठभूमि थी. अपने समय के अधिकतर फिल्मकारों की तरह महबूब ने भी विभिन्न स्टूडियो में काम करके फिल्म निर्माण की कला को हस्तगत किया था.
इस फिल्म का संगीत जाने माने संगीतकार नौशाद जी ने दिया था. फ़िल्म कुल 12 गाने थे, और सभी गाने लोकप्रिय हुए थे.
सुनील दत्त और नरगिस की उम्र लगभग बराबर थी लेकिन फिल्म में सुनील दत्त ने नरगिस के बेटे का किरदार निभाया था.
इस फिल्म की शूटिंग के दौरान एक सीन में ज्यादा आग फैलने की वजह से नरगिस फंस गई थीं, जिसके बाद सेट पर मौजूद सभी क्रू मेंबर काफी डर गए थे लेकिन तभी सुनील दत्त ने आग में कूदकर नरगिस की जान बचाई थी.
सुनील दत्त को काफी चोट भी आई थी लेकिन इस एक्सीडेंट के बाद दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे थे, और अगले ही साल दोनों ने शादी कर ली थी. मदर इंडिया फिल्म की सफलता के बाद उस दौरान भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के लिए इस फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग भी रखी गई थी.
मदर इंडिया की सफलता के बाद फिल्म डायरेक्टर महबूब खान ने इसी तरह के अंदाज पर फिल्म “सन ऑफ इंडिया” भी बनाई थी, लेकिन फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही थी. इस
मदर इंडिया फ़िल्म में साजिद खान ने बिरजू यानी सुनील दत्त के बचपन का किरदार निभाया था. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि साजिद खान का जन्म मुंबई के स्लम एरिया में हुआ था, जो अनाथ थे.
डायरेक्टर महबूब खान पहली बार इस फिल्म में राजेंद्र कुमार और सुनील दत्त से एक किरदार के लिए दिलीप कुमार को कास्ट करना चाहते थे लेकिन उन्होंने इस फिल्म को करने से मना कर दिया था.
भारत में फ़िल्म “मदर इंडिया” की सफलता को देखकर मेकर्स ने इस फिल्म को स्पेनिश , फ्रेंच और रूसी भाषा में भी रिलीज किया था. यूरोपीय देशों में भी इस फिल्म ने बहुत प्रसिद्धि हासिल की थी.
राधा (नरगिस) की, नवविवाहिता के रूप में गाँव आती है और घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियाँ उठाने में पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जीवन ज्ञापन करती है. सुखी लाला (कन्हैयालाल) से लिए गए कर्ज के जाल में परिवार फँस चुका था. जो खेती के मौसम के उपर निर्भर है. गरीबी से परिवार परेशान है.
ऐसे में दुर्घटना में अपने दोनों हाथ गँवाने के बाद स्वयं को बोझ मानकर शर्मिंदा पति श्यामू (राज कुमार) भी साथ छोड़ जाता है. अकेली राधा सारी विपरीत परिस्थितियों से लड़ती है. एक बच्चे को गँवाने के बाद दो बेटों को अकेले बड़ा करती है. फिर भी वो अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करती.
“मदर इंडिया” फ़िल्म दर्शकों को पकड़कर रखती है. गरीबी के कारण
राधा (नरगिस) बैल की जगह स्वयं हल खींचकर अपना खेत जोतती है. उस का गाना ” दुनिया मे हम आये तो जिना ही पड़ेगा, जीवन है अगर जहर तो पीनाही पड़ेगा “दर्शकों के मन को छु जाता है.
यह फिल्म बुरे से बुरे हालात में भी हार न मानना और अपनी तकदीर स्वयं अपने हाथों से अपनी तकदीर लिखने की जिद का प्रतीक है. हालात साथ नहीं भी दे तो भी हौसला कायम रहना चाहिए.
इस फ़िल्म का दूसरा गाना ” दुःख भरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे…” गाना भी सुपर हिट था.
मदर इंडिया हिंदी फिल्म ने भारत में फैली सामंती और जमींदारी व्यवस्था की गहराती जड़ को बहुत ही मार्मिकता से प्रस्तुत किया है. उधार का पैसा कैसे गरीबों की जिंदगी में दीमक की तरह लग जाता है, जिसे भरने के चक्कर में वे दो समय का खाना भी नहीं खा पाते हैं. इस हकीकत को इस फिल्म में बखूबी दिखाया गया है.
दुनियाभर के लोगोंको खाना खिलाने वाला अन्नदाता कैसे खाली पेट सोता है, उसकी भयावह स्थिति इस फ़िल्म में दिखाई गई है. फ़िल्म का नायक अपनी परिस्थितियों से निपटने के लिए अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ मिलकर खेतों में काम करता है. लेकिन स्थिति ऐसी बनी कि खेत से पत्थर निकालते हुए उसके पति का हाथ कट जाता है और वह अपाहिज हो जाता है. और भाग जाने मे मजबूर होता है.
फ़िल्म मे राधा ( नरगिस ) की जिंदगी के संघर्षों और बलिदानों को दिखाया गया है.जिसका अंत उसके खुद के बेटे को ही गोली मारने से होता है. जो डाकू बन जाता है.
इस फिल्म के डायरेक्टर महबूब खान को यह फिल्म बनाने की प्रेरणा 2 किताबों से मिली थी. इनमें (1) “द गुड अर्थ” सन (1931) और (2) “द मदर” सन (1934) शामिल हैं. ये दोनों ही पुस्तकें अमेरिकन ऑथर पर्ल एस. बक ने लिखी थी.
फ़िल्म को मिले पुरस्कार :
**** अकादमी पुरस्कार, यूएसए (1958) ऑस्कर नामांकित.
*** सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म फॉर
आइलैंड फ़िल्म फ़ेस्टिवल (1957)
*** गोल्डन मून अवार्ड नामांकित.
*** सर्वश्रेष्ठ फिल्म फिल्मफेयर पुरस्कार (1958)
*** फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता
सर्वश्रेष्ठ फिल्म महबूब खान.
*** फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता सर्व श्रेष्ठ अभिनेत्री, नरगिस.
*** फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता सर्व
श्रेष्ठ निर्देशक महबूब खान,
*** फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता सबसे अच्छा सिनेमैटोग्राफर, फरादून ईरानी.
*** फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता
सर्वश्रेष्ठ साउंडिस्ट रिकॉर्ड, कौशिक.
*** कार्लोवी वैरी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (1958) सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री विजेता, नरगिस.
*** क्रिस्टल ग्लोब नामांकित सर्वश्रेष्ठ फिल्म, महबूब खान.
*** राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, भारत (1958)योग्यता का प्रमाण पत्र विजेता
अखिल भारतीय योग्यता प्रमाणपत्र (फीचर फिल्म)
जैसे अनेक पुरुष्कार इस फ़िल्म ने जीते थे.