आप सबको पता है कि गिरगिट रंग बदलने मे माहिर होती है. दुनिया के अनेक वैज्ञानिको ने इस संबंध मे खोज की, मगर आज तक उनमे मतमतांतर है. गिरगिट की करीब 200 से अधिक जातियाँ पाई जाती है.
गिरगिट ( Chameleon ) को रंग बदलने का प्रकृति प्रदत्त गुण मिला है. गिरगिट स्वयं की सुरक्षा के लिए रंग बदलते है. उसे अन्य शिकारीओ से बचना होता है. इसलिए शिकारी को भ्रमित करने के लिये वो अपना रंग बदलते है. गिरगिट अपने रंग को उस रंग में ढाल लेते है जहाँ वो बैठे हुये होते हैं. इसी तरह खुद की रक्षा करते है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि गिरगिट अपनी भावनाओं को दर्शाने के लिये रंग बदलते है. जैसे गुस्सा , आक्रामकता, दूसरे गिरगिटों को अपना मूड दिखाने और एक दूसरे से बात करने लिए भी अपना रंग रंग बदलते रहते हैं.
रिसर्च से पता चला है कि गिरगिट कई बार रंग नहीं सिर्फ अपनी चमक बदलते हैं. खतरे जैसी स्थिति में वह अपने रंग के साथअपना आकार भी बदल लेते हैं. शरीर को फूलाकर अपना आकार को छोटा बड़ा कर लेना मे माहिर होते है.
जिनेवा यूनिवर्सिटी के जीव वैज्ञानिकों के अनुसार गिरगिट के रंग बदलने के पिछे इसके पीछे शारीरिक प्रक्रिया काम करती है. गिरगिट की त्वचा में फोटोनिक क्रिस्टल नामक एक परत होती है. यही परत प्रकाश के परावर्तन को प्रभावित करती है और गिरगिट का बदला हुआ रंग दिखाई पड़ता है. जब गिरगिट शांत होता है तो क्रिस्टल प्रकाश में मौजूद नीले तरंगदैर्घ्य को परावर्तित करते हैं.
अगर गिरगिट जब जोश में होता है तो क्रिस्टलों की परत ढीली पड़ जाती है, इससे पीला और लाल रंग परावर्तित होता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक गिरगिट में क्रिस्टलों की एक और परत भी होती है. इसके क्रिस्टल पहली परत के मुकाबले ज्यादा बड़े होते हैं. बहुत तेज प्रकाश होने पर ये गिरगिट को गर्मी से बचाते हैं.
गिरगिट की विविध प्रजातियाँ अफ़्रीका , पश्चिमी एशिया, भारत , श्रीलंका, अफ़्रीका और स्पेन तक पाई जाती है. ज्यादातर गिरगिट 17 से 25 सेमी लंबे होते है. उसकी अधिकतम लंबाई 60 सेमी तक हो सकती है. शरीर दोनों ओर से चपटा होता है . इनकी कुछ प्रजातियों में कभी-कभी घुमावदार पूछँ भी पाई जाती है.
. गिरगिट की बाहर ओर निकली हुई आँखें एक-दूसरे से भिन्न दिशा में घूम सकती हैं. गिरगिट गले को फुलाकर और सिर की कलग़ियों को खड़ा कर या हिलाकर अपने इलाके में घुसने वाले दूसरे नर को चेतावनी देता है. अगर यह प्रदर्शन को रोकने में सफल नहीं होता, तो रक्षक उस पर हमला करता है और जबड़े चटकाता है.
गिरगिट के पैर पक्षियों की तरह होते है, जिसमें दो पंजे आगे की ओर और दो पंजे पीछे कि तरफ सज्जित होते हैं और जिनपर यह दाएँ-बाएँ झुलती हुई चलती है. गिरगिट की जीभ बहुत लम्बी और तेज़ी से बाहर आने वाली होती हैं .
जिनसे यह कीट व अन्य शिकार को पकड़ती हैं. इनके माथे और थूथन पर कांटे जैसे सींग और चोटियाँ होते हैं और बड़ी गिरगिटों की पूँछ अक्सर लम्बी और लचकीली होती है , जिससे वह टहनियाँ पकड़कर चढ़ने में निपुण होती हैं.इनकी आँखें अलग-अलग नियंत्रित होती हैं लेकिन शिकार करते हुए संगठित रूप से एक साथ काम करती हैं।
गिरगिट रेगिस्तान सहित विश्व के कई गरम क्षेत्रों में पाई जाती है. इनकी जातियाँ अफ़्रीका, माडागास्कर, स्पेन, पुर्तगाल, दक्षिण एशिया आदि में पायी जातीं हैं। इन्हें मानवों द्वारा उत्तर अमेरिका में हवाई, कैलिफ़ोर्निया और फ़्लोरिडा भी ले जाया गया है और अब यह वहाँ भी पाई जाती हैं.
राजस्थान की मारवाड़ी भाषामें गिरगिट को ” कागीटा ” या ” काकीडा ” कहा जाता है . जब इसकी गर्दन का रंग गहरा लाल हो जाता है तो राजस्थान के निवासी इसे वर्षा के आने का शुभ संकेत मानते हैं.
गिरगिट विपरीत लिंग को रिझाने और शिकार व शिकारी को धोखा देने के लिए अपना रंग बदल लेता है. वैज्ञानिक लंबे समय से जानना चाहते थे कि गिरगिट ये सब कैसे कर लेता है. कुछ वैज्ञानिकों ने दावा किया कि गिरगिट की त्वचा में खास तरह के वर्णक (पिगमेंट) होते हैं जो रंग बदलते हैं.
लेकिन अब जिनेवा यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञानियों ने इस दावे को खारिज कर दिया. रिसर्चर मिषेल मिलिनकोविच के अनुसार, उन्होंने पहले ये सोचा जाता था कि गिरगिट वर्णक के सहारे रंग बदलता है. लेकिन असली मामला पूरी तरह अलग है और इसके पीछे शारीरिक प्रक्रिया है.”
शोध के दौरान जिनेवा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को पता चला कि वयस्क पैंथर गिरगिट माहौल के हिसाब से पहले हरे से पीला या नारंगी और नीले से सफेद होता है. इसके बाद वो काला पड़ने लगता है.
रंग बदलने वाले ज्यादातर जीवों में मेलनिन नामका वर्णक होता है. यह मेलानोफोरस नामक कोशिकाओं में घटता बढ़ता रहता है. इसी वजह से त्वचा का रंग बदलता है.
कहा जाता है कि मुस्लिम गिरगिट को देखते ही उसे मार देते है. इसके पीछे एक कहानी है.
एक समय जब इब्राहिम अलैहि सलाम को आग में डाला गया था, और फिर जब आग खुदा के हुकम से धीरे धीरे ठंडी हो रही थी, तो गिरगिट उसे अपने मूह से फूँक मार कर और जला रहा था.
जब नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसलम और हज़रत सिद्दीक़े अकबर रदियल्लाहु अन्हु गार में हिजरत के वक्त आराम फरमा थे, तभी उस गार के बहार मकड़ी ने जाले बांध दिए और कबूतर ने अंडे दे दिए, जब काफ़िर वहा पर पहोचे तो उन्होंने जाले और अंडे देखकर यह अंदाजा लगाया की इसमें कोई नहीं गया होगा.
यदि कोई अंदर जाता तो जाले तूट जाते और अंडे फुट जाते ये सोचकर काफ़िर वहा से जा रहे थे तो गिरगिट उन काफिरो को गरदन हिला कर इशारा कर रहा था की वो दोनो अंदर हे और तब ही गिरगिट की गरदन में अल्लाह ने अज़ाब डाल दिया की वो हमेशा अपनी गरदन हिलाता रहेगा.
रसूल्ललाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गिरगिट को मारने (क़त्ल) करने का हुक्म दिया हे, और दूसरी रिवायत में हे की जो पहले वार में मार डाला उसे 100 नेकी , दूसरे वार में मारे उसे 100 से कम और तीसरे वार में मारे उसे उससे भी कम नेकी मिलेगी, ऐसा लिखा गया है.
यह सभी बातें यहाँ पर लिखी गयी है….
(साहिह मुस्लिम ,जिल्द 03 ,किताब : तिब्बी ,पेज 197-198 बाब 38 ,हदीस नम्बर 5803 -04-05-07 -08 -09, बुखारी शरीफ ;3359 3307, इबन ए मजा ;3228, अबु दाऊद शरीफ ;5263-5264)
इस संदर्भ मे कुछ लोगोंका यह मानना है कि इसका क़ुरान में कोई उल्लेख नहीं मिलता, कुछ तथाकथित धर्म गुरुओं द्वारा लिखी गईं हदीसों व धार्मिक किताबों से ऐसी अफवाह फैलाई गई और मुस्लिमों को गुमराह किया गया, हुआ ये कि अंत में कुछ अशिक्षित बेबुद्धि मुस्लिम गिरगिट मारने लगे, आज के पढ़े लिखे धर्मगुरु भी इसके बारे में कोई जागरूकता नहीं फैलाते.
इस संदर्भ मे मेरे मुस्लिम बंधू अधिक जानकारी या इस विषय मे प्रकाश डाल सकता है.
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