सन 1965 मे मैं मालाड की नूतन विद्यामंदिर हाई स्कूल मे पढाई करता था . मेरा परिवार खारीगांव मे स्थित श्री सत्यनारायण मंदिर के सामने रहता था.अधिकांश घर कवेलू के थे, जिस की दीवारे मिट्टी की कच्ची ईटा से बनी हुई थी. धर मे लकड़े का माला था. सुबह 7 बजे की स्कूल थी. रोज सुबह 4 बजे उठकर नहा धोकर माले के उपर पढाई करने बैठता था.
सुबह भाईंदर से 6 बजकर 2 मिनट की भाईंदर चर्चगेट की स्लो ट्रैन पकड़ता था. तब लकड़े की सीट वाली 8 डिब्बे की ट्रैने चलती थी, जो आज की तरह आधुनिक नहीं थी. ट्रैन को स्टार्ट होनेमे और स्पीड पकड़ने मे काफ़ी टाइम लगता था.
खारीगांव श्री सत्यनारायण मंदिर से स्टेशन स्पस्ट दिखाई देता था. जैसे ट्रैन वसई के पुल पर आती थी, तो उसका आवाज यहां तक स्पस्ट सुनाई देता था. मैं स्कूल का पोषाक पहनकर, दफ़्तर लेकर खेत मे से दौड़ना शुरू करता था. जब ट्रैन भाईंदर का पुल पार करके स्टेशन पर खड़ी रहती थी, तो मैं भी स्टेशन पहुंच जाता था.
खारीगाव की पूर्व दिशा से देखने पर पहाड़ी पर बसा बोरीवली नेशनल पार्क का गांधी स्मृति धाम स्पस्ट दिखता था. पूर्व मे भाईंदर गांव तथा चौक गांव का पहाड़ दिखाई देता था. श्री सत्यनारायण मंदिर से उत्तर की तरफ देखने से बंदरवाडी गांव तथा खाड़ी मे चलती नाव की सढ़ दिखाई देती थी. गांव के पूर्व से देखने पर गोड़देव गांव , नवघर गांव तथा घोड़बंदर का पहाड़ स्पस्ट दिखाई देता था.
सन 1942 में भाईन्दर गाँव, गोड़देव , नवघर , खारीगाव, बंदरवाड़ी , ग्रुप ग्राम पंचायत की स्थापना की गयी और प्रथम सरपंच के रूप में श्री नरोना साहब की नियुक्ति हुई. और शुरुआत हुयी विकास के नये युग की.
सन 1962 की साल में भाईन्दर ग्रुप ग्राम पंचायत से नवघर , गोड़देव , खारीगाँव , बंदर वाड़ी को अलग करके भाईन्दर पूर्व में अलग,नवघर ग्रुप ग्राम पंचायत की विधिवत स्थापना की गयी.
सन 1965 मे प्रथम बार खारीगाव मे बिजली लाइट का आगमन हुआ और श्री सत्यनारायण मंदिर से इसका श्री गणेश शुभ आरंभ किया गया. उससे पहले लोग घासलेट के दिये जलाते थे. अंधेरा होते ही 9 बजे गांव सुनसान हो जाता था. गांव का मुख्य व्यवसाय खेती मच्छीमारी था.
गांव मे गटर का नामो निशान नहीं था. लोग घर के पीछे खड्डा खोदते थे, जिसमे मोरी का पानी छोड़ा जाता था. लोग तालाब का पानी, पीनेके लिये यूज़ करते थे. बस्ती विस्फोट से जनसंख्या बढ़ती गई तो लोग दहिसर बोरीवली तक पानी लाने जाने लगे. सार्वजनिक नल पर, झगड़ा आम बात थी.
भाईंदर पूर्व बी पी रोड 4 फुल चौड़ा कच्चा मिट्टी से बना रोड था. जिसका स्थानीय लोग श्रमदान करके मरम्मत करते थे. बालाराम पाटिल यहाँका समाज सेवक था, जिनके नाम पर, बालाराम पाटिल रोड का नामकरण किया गया था.
साठ के दशक मे बहार गांव जानेवाली ट्रेने कोयले के भाप इंजिन से चलती थो. पैसेंजर ट्रैन भाईंदर स्टेशन पर रुकती थी. सन 1990 तक सिर्फ दो लाइन थी. सन 1990 मे भाईंदर की खाड़ी का, सीमेंट कंक्रीट का नया पुल बनकर रेडी हो गया था.
सन 1936 मे भाईंदर पूर्व पश्चिम की बस्ती करीब 5000 की थी. उसके बाद सन 1961 मे जन संख्या करीब 9500 की थी. भारत देश की प्रथम जन गणना सन 1964 मे की गईं थी. बाद हुई सन 1981 की जन गणना के अनुसार भाईंदर की जन संख्या 35121 की हो गयी थी.उसके बाद बस्ती विस्फोट हुआ और सन 1991 में तीन लाख पचास हाजर तक पहुंच गयी.
आलम यह हुआ की सुविधा की शून्यता ने समस्याओ का समंदर सर्जन किया. जन संख्या बढ़ती ही गई और आज सन 2022 मे अनुमान है की मिरा भाईंदर की जनसंख्या करीब 15 लाख तक पहुंच गयी है.
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