विभिन्न प्रकार की  “मिट्टी”

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सोचा, जिस मिट्टी ने हमारा पालन पोषण किया . जिस धरा की मिट्टी के पटल पर हम जी रहे है. उस पवित्र मिट्टी के बारेमे भी कुछ लिखना चाहिए. जब मै आर्टिकल लिख रहा था, तब आजुबाजु कहीं दूर से, गाना सुनाई दे रहा था, ” इस मिट्टी से तिलक करो, ये धरती है बलिदान की, वन्देमातरम… “.  वन्देमातरम. लिखने वाले को सलाम. सच मे हिंदुस्तान की धरती पूजनीय है. 

         हम लोग बात कर रहे थे, मिट्टी की. मिट्टी को मृदा भी कहा जाता है. मिट्टी पृथ्वी की सबसे उपरी परत है. मिट्टी का निर्माण टूटी चट्टानो के छोटे कणों, खनिज, जैविक पदार्थो, बॅक्टीरिया आदि के मिश्रण से होता है. मिट्टी के कई परतें होती हैं, सबसे उपरी परत में छोटे मिट्टी के कण, गले हुए पौधे और जीवों के अवशेष होते हैं यह परत फसलों की पैदावार के लिए महत्त्‍वपूर्ण मानी जाती है. 

         इंडियन एग्रीकल्चर इंस्टिट्यूट, दिल्ली के सर्वेक्षण के अनुसार हमारे भारत देश के विभिन्न क्षेत्रों में पाई जाने वाली मिट्टियों को पाँच भागों में बाँटा गया है. 

 (1) जलोढ़ मिट्टी.  ( Alluvial Soil )

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          जलोढ़ मिट्टी को दोमट और कछार मिट्टी के नाम से जाना जाता है. नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी को जलोढ़ मिट्टी कहते हैं. यह मिट्टी हमारे देश के समस्त उत्तरी मैदान में पाई जाती है. प्रकृति से यह एक उपजाऊ मिट्टी होती है. उत्तरी भारत में जो जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है, वह तीन मुख्य नदियों द्वारा लाई जाती है  सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र. 

        इसलिए हम समझ सकते हैं कि यह मिट्टी राजस्थान के उत्तरी भाग, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल तथा असम के आधे भाग में पाई जाती है. भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग में पूर्वी तट पर भी जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है. यह मिट्टी कृषि के लिए बहुत उपयोगी है.

(2) काली मिट्टी. ( Black Soil )

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      यह मिट्टी ज्वालामुखी से निकलने वाले लावा से बनती है. भारत में यह लगभग 5 लाख वर्ग कि.मी. में फैली है. महाराष्ट्र में इस मिट्टी का सबसे अधिक विस्तार है. इसे दक्कन ट्रॅप से बनी मिट्टी भी कहते हैं. इस मिट्टी में चुना, पोटॅश, मैग्निशियम, एल्यूमिना और लोहा पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. 

       इसका विस्तार लावा क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि नदियों ने इसे ले जाकर अपनी घाटियों में भी जमा किया है.यह बहुत ही उपजाऊ है और कपास की उपज के लिए प्रसिद्ध है इसलिए इसे कपासवाली काली मिट्टी कहते हैं. इस मिट्टी में नमी को रोक रखने की प्रचुर शक्ति है, इसलिए वर्षा कम होने पर भी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती.

         इसका काला रंग शायद अत्यंत महीन लौह अंशों की उपस्थिति के कारण है. इसकी मिट्टी की मुख्य फसल कपास है. इस मिट्टी में गन्ना, केला, ज्वार, तंबाकू, रेंड़ी, मूँगफली और सोयाबीन की भी अच्छी पैदावार होती है.

           काली मिट्टी में एक विशेषता यह है कि यह नमी को अधिक समय तक बनाये रखती है. इस मिट्टी को कपास की मिट्टी या रेगड़ मिट्टी भी कहते हैं. काली मिट्टी कपास की उपज के लिए खूब महत्त्वपूर्ण मानी जाती है. यह मिट्टी लावा प्रदेश में पाई जाती है. इस प्रकार इस मिट्टी के क्षेत्र में गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश का पश्चिमी भाग और मैसूर का उत्तरी भाग आते हैं.

 (3) लाल मिट्टी. ( Red Soil )

         यह चट्टानों की कटी हुई मिट्टी है. यह मिट्टी अधिकतर दक्षिणी भारत में मिलती है. लाल मिट्टी के क्षेत्र महाराष्ट्र के दक्षिण पूर्व में, मद्रास में, आंध्र में, मैसूर में और मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग में, उड़ीसा, झारखण्ड के छोटा नागपुर प्रदेश में और पश्चिमी बंगाल तक फैले हुए हैं.

 (4) लैटेराइट मिट्टी – बलुई ( Laterite Soil )

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           इस मिट्टी में आइरन ऑक्साइड की मात्रा अधिकता पाई जाती है.  यह देखने में लाल मिट्टी की तरह लगती है, किंतु उससे कम उपजाऊ होती है. ऊँचे स्थलों में यह प्राय: पतली और कंकड़मिश्रित होती है और कृषि के योग्य नहीं रहती, किंतु मैदानी भागों में यह खेती के काम में लाई जाती है. यह मिट्टी तमिलनाडु के पहाड़ी भागों, केरल, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा के कुछ भागों में,  दक्षिण भारत के पठार, राजमहल तथा छोटानागपुर के पठार, असम इत्यादि में सीमित क्षेत्रों में पाई जाती है. 

      दक्षिण भारत में मैदानी भागों में इस पर धान की खेती होती है और ऊँचे भागों में चाय, कहवा, रबर तथा सिनकोना उपजाए जाते हैं. इस प्रकार की मिट्टी अधिक ऊष्मा और वर्षा के क्षेत्रों में बनती है. इसलिए इसमें ह्यूमस की कमी होती है और निक्षालन अधिक हुआ करता है. 

             लैटेराइट मिट्टी  के क्षेत्र दक्षिणी प्रायद्वीप के दक्षिण पूर्व की ओर पतली पट्टी के रूप में मिलते हैं. इन मिट्टियों को पश्चिम बंगाल से असम तक देखा जा सकता है.

 (5) रेतीली मिट्टी. ( Desert Soil ) 

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                यह मिट्टी राजस्थान के थार प्रदेश में, पंजाब के  दक्षिणी भाग में और राजस्थान के कुछ अन्य भागों में मिलती है. अकेला थार मरुस्थल ही लगभग करीब एक लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र तक फैला हुआ है.

जानना जरुरी है की जलोढ़, काली, लाल और पीली मिट्टियाँ, पोटाश और चूने से युक्त होती हैं, परन्तु उनमें फास्फोरिक एसिड, नाइट्रोजन और ह्यूमस की कमी होती है. लैटेराइट मिट्टी और रेतीली मिट्टी में ह्यूमस बहुत मिलता है परन्तु अन्य तत्त्वों की कमी होती है.

             उपज की दृष्टि से मिट्टी इतनी दृढ़ होनी चाहिए कि पौधों की जड़ों को पकड़ सके और इतनी मुलायम भी होनी चाहिए कि उससे जल को पूर्णतः सोख लिया जा सके. साथ ही साथ मिट्टी के उपजाऊपन के पीछे मिट्टी में संतुलित मात्रा में क्षार  का होना भी आवश्यक है.

      भारत देश में गंगा जमुना के दोआब प्रदेश, पूर्वी तट और पश्चिमी तट के प्रदेश और कुछ लावा प्रदेश में उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है. थार प्रदेश, गुजरात और पर्वर्तीय प्रदेश में बहुत कम उपजाऊ मिट्टियाँ मिलती हैं. शेष भाग कम उपजाऊ हैं.

      मिट्टी मे सब रस मिले हुए. आप इसमे मिरची बोओगे तो तीखा रस देंगी, गन्ना बोओगे तो मीठा रस देंगी, इमली बोओगे तो खट्टा रस देंगी, करेला बोओगे तो कड़वा रस देंगी. मतलब सब रस मिट्टी मे मिले हुए है. 

       मिट्टी एंटीसेप्टिक का भी काम करती है. बचपन खेलते खेलते  हाथ पैर मे खरोच आ जाती थी तो हम लोग मिट्टी लगा देते थे. इससे तुरंत लहू जमकर निकलना बंद हो जाता था, और कुछ दिन मे घाव रुज जाता था. 

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