भारत देश की अंतिम दक्षिणीय सीमा पर तमिलनाडु राज्य के कन्याकुमारी शहर मे स्थित कन्याकुमारी मंदिर एक प्रसिद्ध हिन्दुओ का तीर्थ स्थल है. ये कुमारी अम्मन मंदिर के नाम से जाना जाता है. यहां माता भगवती की पूजा कुमारी कन्या के रुप मे की जाती है. इसे माता पार्वती का अवतार माना जाता है.
इसकी एक ओर बंगाल की खाड़ी, तो दूसरी ओर अरब सागर तथा ठीक सामने हिंद महासागर विध्यमान है. ये तीनो का संगम को पवित्र तीर्थ माना जाता है. कन्याकुमारी सदियों से कला, संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक रहा है. भारत के पर्यटक स्थल के रूप में भी विकसित हुआ है.
कन्याकुमारी का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा खास प्रेक्षणीय होता है. वहां समुद्र के बिच फैली रंग बेरंगी रेत तथा विशाल समुद्र की लहरे इसकी सुंदरता मे चार चांद लगाती है.
कन्याकुमारी मंदिर इस शहर का मुख्य आकर्षण केंद्र है. बताया जाता है कि कुमारी अम्मन मंदिर मूल रूप से 8 वीं शताब्दी में पंड्या राजवंश के राजाओं द्वारा बनाया गया था. बाद में इसको चोल, विजयनगर और नायक शासकों द्वारा जीर्णोद्धार किया गया था.
किंवदंतियों अनुसार, देवी कन्याकुमारी और भगवान शिव के बीच विवाह नहीं हुआ था, जिसके परिणाम स्वरूप देवी ने कुंवारी रहने का दृढ़ संकल्प लिया. ऐसा माना जाता है कि शादी के लिए जो चावल और अनाज थे, वे बिना पके रह गए और वे पत्थरों मे तबदील हो गये थे. अनाज से मिलते जुलते पत्थर आज भी वहां देखे जा सकते हैं.
पदमपुराण के अनुसार कावेरी में स्नान करके मनुष्य इसके बाद समुद्र तटवर्ती कन्या तीर्थ में स्नान करना चाहिए. इस कन्याकुमारी तीर्थ के जल का स्पर्श कर लेने से मनुष्य के सभी पापों की मुक्त हो जाती है.
कथा अनुसार राक्षस बाणासुर ने तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे अमरत्व का वरदान मांगा. भगवान शंकर ने उसे वरदान देते कहा कि कुमारी कन्या के अतिरिक्त तुम सबसे अजेय रहोगे.
अमरत्त्व का यह वरदान पाते ही राक्षस बाणासुर त्रिलोक में उत्पात मचाने लगा. उसके उत्पात से पीडित देवता गण भगवान श्री विष्णु की शरण में गए.भगवान ने उन्हें यज्ञ करने का आदेश दिया. देवताओं द्वारा यज्ञ करने पर यज्ञ कुंड की अग्नि से देवी दुर्गा जी के एक अंश से कन्या प्रकट हुईं.
प्रकट होने के बाद देवी भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए दक्षिण समुद्र तट पर तपस्या करने लगी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शंकर जी ने उनका पाणिग्रहण करना स्वीकार किया. देवताओं को यह देखकर चिंता हुई कि यदि देवी का विवाह हो गया तो बाणासुर का अंत नही हो सकेगा.
तब देवताओं की प्रार्थना पर देवर्षि नारद ने विवाह के लिए आते हुए भगवान शंकर को शुचीन्द्रम स्थान पर इतनी देर तक रोक लिया कि विवाह का शुभ मुहूर्त टल गया. मुहूर्त टल जाने पर भगवान शिव वहीं स्थित हो गए. विवाह के लिए लाये गये अक्षतादि समुद्र में विसर्जित हो गए. कहते है, वे ही तिल, अक्षत, रोली अब रेत के रूप में वहां पर मिलते है.
देवी फिर तपस्या में लग गई. बाणासुर ने देवी के सौंदर्य की प्रशंसा सुनी. वह देवी के पास गया तथा उससे विवाह के लिये हठ कि. इस कारण वश देवी से उसका धमासान युद्ध हुआ. युद्ध में देवी ने बाणासुर को मार डाला. कहा जाता है कि देवी का भगवान शिव के साथ कलियुग बीत जाने पर विवाह सम्पन्न होगा.
वहां कई द्वारो के भीतर जाने पर कुमारी देवी के दर्शन होते है. देवी की यह मूर्ति प्रभावशाली तथा भव्य है. देवी के एक हाथ में माला है. खास उत्सवों के समय देवी का कीमती रत्नों आभूषण से श्रृंगार किया जाता है.
कन्याकुमारी अम्मन मंदिर माता पार्वती को समर्पित है. यहां सागर के लहरों की आवाज सुनने मे कर्ण प्रिय लगती है.यहां की विशाल प्रतिमा कन्याकुमारी माता का प्रतीक मानी जाती हैं. अयण पहुंचने के लिए जहाज से यात्रा करना होगा. मंदिर के छोर पर खड़े होकर आप दो सागरों को मिलते हुए देखनेका एक अद्भुत आनंद ले सकते हो. ध्यान से देखने पर सागर के दो अलग अलग रंग भी दिखाई देते है.
कन्याकुमारी में अन्य दर्शनीय स्थल :
कन्याकुमारी अम्मन मंदिर, गांधी स्मारक, उदयगिरी का किला, नागराज मंदिर, तिरूवल्लुवर मूर्ति, तिरुचेंदुर मंदिर, ओलाकरुवी झरना, पद्मानाभपुरम महल, विवेकानन्द जी का स्मारक, टूरिस्ट प्लेस प्रमुख है.
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