भाईंदर (WR) रेलवे स्टेशन | Bhayander Railway Station

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              बताया जाता है कि सन 1901 मे भाईंदर रेलवे स्टेशन का निर्माण हुआ. जिस लोगोने इस स्टेशन को बनते देखा हो ऐसा कोई भी व्यक्ति आज भाईंदर मे जिंदा नहीं है. 

           पुराने स्थानिक लोगोंके अनुसार यह स्टेशन फाटक स्थित जहा आज सब वे है, वहां बनना था. मगर तत्कालीन अंग्रेज लोगोने नमक व्यापार को बढ़ावा देने के लिये भाईंदर खाड़ी के करीब आधा किलोमीटर दुरी पर भाईंदर स्टेशन बनाने का निर्णय लिया. शुरु में पुरानी खाड़ी स्थित ब्रिज के पास एक साइडिंग लाइन डालकर एक छोटा स्टेशन – यार्ड बनाया गया था. जहासे सत्तर के दशक तक भाईंदर का नमक गुड्स ट्रैन के डिब्बे मे भरकर  देश भरमे गंतव्य स्थान तक पहुंचाया जाता था. 

      सन 1901 मे मुख्य स्टेशन का निर्माण हुआ तब स्टेशन के पश्चिम उत्तरीय छोर पर स्टेशन मास्टर की ऑफिस का एक कार्यालय बनाया गया था, जहा घंटा बजाकर कोयले वाली इंजिन गाड़ी के आगमन की सूचना दी जाती थी. 

       मुसाफिर अगर रेलवे क्रॉसिंग करते पकड़ा जाय या बीना टिकट पकड़ा जाय तो यहीं स्टेशन मास्टर की ऑफिस के बगलमे रेलवे के मुकदमे की स्पेशल कोर्ट मे सुनावनी होती थी. सन 1987 तक यहां पर सिर्फ दो लाइन थी. 7  दिसंबर 1987 तक  कई जन आंदोलनों के बाद भाईंदर रेलवे स्टेशन पर नये प्लाट फॉर्म नंबर – 3 और नंबर 4 का निर्माण कार्य शुरु किया गया.

     सन 1988  दिसंबर 1 तारीख  के दिन भाईंदर टर्मिनल का उद्घाटन तत्कालीन  विधायक श्री जनार्दन गौरी तथा तत्कालीन सांसद श्री शांताराम  घोलप द्वारा किया गया था. 

       साठ के दशक के प्रारंभ मै भाईंदर स्टेशन से पूर्व मे काशीमीरा , घोड़बंदर के पहाड़. तथा खाड़ी मे चलती कपडे के सढ़ वाली नाव का नजारा दर्शनीय होता था. भाईंदर पश्चिम मे डोंगरी चौक का पहाड़ एवं एक किलोमीटर की दुरी पर पुराना गांव भाईंदर का नजारा और  बारिस के समय दोनों दिशा मे खेतों की हरीयाली मन को मुग्ध कर देती थी. 

          पश्चिम दिशा मे स्टेशन मास्टर ऑफिस के सामने ईस्ट वेस्ट के लिये एकमात्र टिकट खिड़की थी. टिकट की कीमत इतनी कम थी की लोग अधिकतम चिल्लर का उपयोग करते थे. सन 1960 के आसपास भाईंदर से चर्चगेट का मासिक पास का किराया 25 रुपये था. भाईंदर से चर्चगेट का एक तरफी भाड़ा 1 रूपया 30 नया पैसा था. 

           टिकट खिड़की के बाजुमें एक मात्र नारायण भुवन होटल थी. जहा चार आना प्लेट गरमा गरम पकोड़ा मिलता था. यह होटल आज भी विध्यमान है. 

       स्टेशन मास्टर की ऑफिस के बहार एक सार्वजनिक टेलीफोन बूथ लगाया गया था, जहा पर  दस पैसा मशीन मे डालने पर तीन मिनट तक बात की जा सकती थी. तब फोन लक्ज़री आइटम थी. बड़ी कंपनी या धनिक लोग ही इसका उपयोग करते थे. मालाड के लिये 691192 जैसा छह अंक का नंबर लगाया जाता था. जो आज आठ डिजिट का हो गया है. 

     आपको जानकर आश्चर्य होगा की सन 1948 मे  जब भाईंदर मे प्रथम टेलीफोन लाइन डाली गयी तब एक बार आप फोन कनेक्ट करके चाहे दो – तीन  घंटा तक  बात करो तो भी एक कॉल ही गिना जाता था. डिस कनेक्ट करके जब दूसरा फोन करो तब दूसरा फोन किया गिना जाता था. 

          रेलवे प्रशासन की तरफ से स्टेशन मास्टर ऑफिस के बगल मे रोज एक टैंकर पानी जनता को  मुफ्त मे दीया जाता था. जिसके लिये लोगोंमे हाथापाई होती थी. 

       भाईंदर स्टेशन से केबिन रोड के बिच मे यार्ड था जहा कोयले वाली गुड्स ट्रैन खड़ी रहती थी. जब वो कोयला उगलती थी तो उसे ठंडा होनेमे तीन दिन लगता था. तब बी. पी. रोड अर्थात बालाराम पाटील रोड चार फुट चौड़ा और मिट्टी का था. गांव के लोग श्रमदान करके जले हुए खनिज कोयले को बारिस मे मिट्टी के रोड के उपर डालते थे. 

          केबिन रोड पर आज जहां फुट ओवर ब्रिज है, वहां  (पूर्व ) बाजुमें रेलवे की केबिन थी, जहासे ट्रेनों को  सिंगनल और क्रॉसिंग दी जाती थी. उस केबिन के नामसे ही भाईंदर पूर्व फाटक तक के रोड का ” केबिन रोड “नाम पड़ा है.  

           सन 1964 साल की बात करु तो भाईंदर से चर्चगेट जानेके लिये दोपहर 12 बजकर 20 मिनट की ट्रैन थी अगर वह छूट गयी तो उसके बाद 2 बजकर 30 मिनट की ट्रैन थी. भीड़ की बात करु तो तब पुरा स्टेशन पर आठ –  दस लोग ही दीखते थे. शाम के समय आधा घंटे पर उप – डाउन लोकल चलती थी. वो  आठ डिब्बे की लकड़े की सीट वाली लोकल होती थी. जिसको स्पीड पकड़ने मे काफ़ी समय लगता था. 

      भाईंदर रेलवे स्टेशन ने आठ डिब्बे के उपरांत नव डिब्बा, तीन डिब्बा की शटल ट्रैन, छह डिब्बे की ट्रैन, बारा डिब्बे की ट्रैन और वर्तमान 15 डिब्बेकी ट्रैन का जमाना भी आप लोग देख रहे हो.      

      सन 1964 – 65  साल की बात है, तब रामदेव बाबा का नामो निशान नहीं था. तब एक सज्जन भाईंदर स्टेशन स्थित योगा संबधित अपना करतब दिखाता था. जिसमे अंग मरोड़ के नये नये योगासन दिखाकर लोगोंका मन मोह लीया करता था. ट्रैन आनेसे पंद्रह मिनट पहले चर्चगेट जानेवाली अप लाइन के  निचे उतरकर अपनी कला कारीगरी दिखाना चालू करता था और ट्रैन आते ही एक दो डिब्बे मे जाकर घूमता था. यात्री भी उसे यथा शक्ति पैसे देकर उसकी कलाकी कदर करते थे. 

       श्री पी एल चतुर्वेदी जी के मार्गदर्शन मे  और श्री गौतम जैन के नेतृत्व मे संघर्ष सेवा समिति ने निष्पक्षता के साथ  रेल रोको आंदोलन किया था, और भाईंदर के इतिहास मे पहली बार  राजधानी को रोका गया था जिसकी  न्यूज़  बी बी सी  न्यूज़ चैनल पर दर्शायी गईं थी, उसका भाईंदर स्टेशन मूक गवाह है. इस आंदोलन मे पत्रकार एस एस राजू जी ने भी सहरानीय भूमिका निभाई थी. 

        यहां पर उल्लेखनीय है की तब भीड़ को काबूमें पाने के लिये  रेल सुरक्षा दल ने ता : 5 फरवरी 1985 के दिन बर्बरता पूर्वक  जनता पर गोली चलाई थी, जिसमे सात निर्दोष लोगो की जान चली गयी. हर साल ता :  5 फरवरी के दिन यहापर शहीदो को श्रद्धाजलि अर्पित की जाती है.  

       भाईंदर स्टेशन ने कोयले के इंजिन वाली ट्रैन , डीज़ल इंजिन की ट्रैन , ऐसी डीसी  ट्रैन. डी सी ट्रैन देखी है. भाईंदर स्टेशन ने वैसे तो कई आंदोलन देखे है जिसमे रेल पटरी पर लकड़े के स्लीपर जलाये गये थे. स्टेशन की घड़ी उपरांत स्टेशन सम्पति की तोड़फोड़ की थी. एक बार तो भाईंदर पूर्व की  बुकिंग ऑफिस तोड़कर धन राशि और  रेल टिकट कूपन को चुराकर लेकर  गये थे. 

         केबिन रोड स्थित फुट ओवर ब्रिज नहीं था, तब रेल क्रॉसिंग करते समय स्कूल के बच्चे सह अनेक लोगोंकी जान जाती थी. उसके बाद ईस्ट वेस्ट मे रेल प्रशासन ने पक्की दीवार बना दी तबसे एक्सीडेंट का सिलसिला बिलकुल बंद हो गया है. रेल प्रशासन इसके लिये धन्यवाद के पात्र है. 

          प्लेट फॉर्म नंबर तीन और चार आज जहां मौजूद है, वहां  7 दिसंबर 1987 तक खुला प्लाट था. बारिस मे वहां हमेशा पानी भरा रहता था. सन 1958 मे भाईंदर खाड़ी का पानी बंदरवाड़ी भाईंदर ( पूर्व )  स्टेशन तक आता था. 

       तारीख : 1 दिसंबर 1988 मे भाईंदर स्टेशन टर्मिनल बना जिसका उद्घाटनतत्कालीन सांसद श्री शांताराम घोलप और आमदार श्री जनार्दन गौरी के हस्तो हुआ था. पश्चिम रेलवे ने सन 2011 मे 15 डिब्बे की लोकल ट्रैन तो दौड़ाई मगर दहिसर, मीरारोड आदि स्टेशन पर प्लेटफार्म की लम्बाई कम होनेकी वजह दो बार होल्ड किया करती थी . पहले स्टॉप के समय दक्षिण छोर के अंतिम तीन डिब्बे स्टेशन के बहार रहते थे. फिर दूसरे होल्ड के समय आगेके तीन डिब्बे स्टेशन के बहार जाकर रुकते थे ओर पिछेके तीन डिब्बे प्लेटफार्म पर आकर खड़ा रहते थे. 

       भाईंदर के मानवता वादी लोग पानीके प्याऊ स्टेशन पर बर्षो से लगाते आ रहे है. जो मानवता की मिसाल है. भाईंदर रेलवे पैसेंजर एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री सोहनराज जैन के नेतृत्व मे और पुरुषोत्तम लाल चतुर्वेदी जी के मार्गदर्शन में भाईंदर रेलयात्री सुविधा के सुधार के लिये बरसों से सहरानीय कार्य हो रहा है. भाईंदर रिक्शा मालक चालक  संघ द्वारा यहां  पर  हर  साल भाईंदर  ईस्ट – वेस्ट मे  श्री सत्यनारायण भगवान की महा पूजा का आयोजन किया जाता है. 

        आज भाईंदर स्टेशन का विकास तेजीसे हो रहा है. अब तक दो स्वयं संचालित सीढ़ी बनाई गयी है. विकलांग और सीनियर सिटीजन के लिये प्लेटफार्म नंबर 6 पर  लिफ्ट की व्यवस्था की गयी है. स्टेशन परिसर को सी सी टीवी कैमरा से सज्ज किया गया है. 

       पहले भाईंदर पश्चिम स्थित एक मात्र टिकट खिड़की थी. आज भाईंदर (पूर्व ) मे दो और भाईंदर ( पश्चिम ) मे दो टिकट खिड़की मिलाकर कुल 4 खिड़की कार्यरत है. 

     वर्तमान में भाईंदर स्टेशन के 6 प्लेटफार्म है. जिसपर प्लेट फार्म नंबर 1 और 5 से  डाउन ट्रैन विरार की ओर  ट्रैन जाती है. प्लेटफार्म नंबर 4 और  6 से अप ट्रैन चर्चगेट की तरफ जाती है. प्लेटफार्म नबर 2 और 3 से भाईंदर टर्मिनल से मुंबई चर्चगेट की ओर ट्रैन रवाना होती है.  

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                     शिव सर्जन प्रस्तुति.

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