हिन्दू मुस्लमान एकता का प्रतिक “कासिम भाई”

muslim man

आजादी की लड़ाई हिन्दू मुस्लमान ने साथ में लड़ी थी. दोनों कोम ने हजारों की संख्या में अपने प्राणोंकी आहुति दी थी. अंग्रेजो की नीति रही थी कि, ” फुट डालो राज करों.” अंग्रेज चाहते थे कि हिन्दू मुस्लमान के बिच सदा आपसमे वैमनष्य बना रहे. इस लिये ये गोरे लोग हमारी दोनों कोमो के बिच एक दूसरे के खिलाफ विष फैलाते रहते थे. 

      आज भी अनेक मुस्लमान भारत माता की रक्षा के लिये फौज में कार्य कर रहे है. भारत एक ऐसा , सर्व धर्म समभाव रखने वाला धर्मनिरपेक्ष ( Secular ) देश है जहां भारत के तीसरे और भारत के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन, भारत के पांचवे राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद, मिसाइल मेन अब्दुल कलाम जैसे भारत के महान सपूत मुसलमान होते हुए भी राष्ट्रपति पद पर बिराजे थे. 

        हिन्दू मुसलमान के एकता के प्रतिक कई लोग इतिहास में अमर हो गए है तो कई ऐसे भी लोग है, जिनका नाम देश के इतिहास में दर्ज नहीं हुए है. ऐसे ही एक मानवता वादी भाईचारा के प्रतिक मुसलमान भाई कासिम भाई की सत्य कथा आप लोगों के साथ शेयर करना चाहता हूं.

     जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद दांडी कुच, धारासना सत्याग्रह जैसे आंदोलन तेज हो गए थे. ब्रिटिश राज हकूमत बोखला गई थी.एक तरफ महात्मा गांधीजी और जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सार्वजनिक रूप से तारीख 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज, आजादी की घोषणा जारी कर दी थी. 

     तो दूसरी तरफ अंग्रेज लोग हिन्दू मुस्लमान को भड़काकर हवन में आहुति डालने का कार्य कर रहे थे. तब कर्नाटक के गुलबर्गा में स्थित श्रीनिवास सराडगी गांव और कोटनुर इटगा वाडी नामक दो गांव में अंग्रेजो ने हिन्दू मुसलमान को आपस में भड़काकर एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बना दिए थे. 

      एक तरफ मुस्लमान तो दूसरी तरह हिन्दू एक दूसरे के जान के प्यासे बने थे. तब गांव का एक कासिम भाई नामका व्यक्ति जो बैल, बकरी, भैंस को खरीदकर उसे आसपास के गावोंमें जाकर बेचकर अपने परिवार का पालन पोषण करता था. कासिम भाई ने देखा की परिस्थिति हद्द से बाहर जा रही है, तो पहले उसने अपने मुस्लमान बिरादरी के लोगों को समजाने की कोशिश की. मगर व्यर्थ गया. उस इलाके में मुसलमानो की जनसंख्या अधिक थी. उन्होंने हिन्दू ओको मारने का प्लान बनाया. 

       इधर मुसलमानो के एक समूह ने 12 बैरल घासलेट लाकर जमा कर दिया. इस बात की भनक कासिम भाई को हो गई. उसको पता चला की इस काम में उसका सगा भाई आंसर खांन सक्रिय भाग ले रहा है तो उसको समजाने की खूब कोशिश की गई , मगर वो नहीं माना. 

        काशिम सच्चा देश भक्त था, वो कतई नहीं चाहता था की दोनों कोम आपस में लड़े. उनका मानना था की अगर लड़ना है तो अंग्रेजो के खिलाफ लड़ो. आखिरकार दोनों भाईओंके बिच झगड़ा हुआ. दोनों के बिच हाथापाई हुई और हिंदूओ को बचाने के लिये कासिम ने अपने सगे भाई आंसर पर गोली चला दी. जो हथियार उसने अंग्रेजो से लड़ने के लिए बसाये थे. उस बंदूक से सगे भाईकी हत्या कर दी. गोली लगते ही उनका घटना स्थल पर मृत्यु हो गया. ब्रिटिश भारत के पुलिस ने कासिम भाई को हिरासत में लिया और उसे बारा साल जेल की सजा सुनाई गई. 

      बारा साल जेल के बाद वो अपने गांव आया तो यहां पर हिन्दुओ की जनसंख्या अब बढ़ चुकी थी. जहां अल्लाह के नारे लगते थे, वहां राम नाम के नारे लगने लगे थे. मगर यहा के सभी हिंदू लोग कासिमभाई को सम्मान के दृश्टिकोण से देखने लगे जिसने हिंदूओ की जान बचाने अपने सगे भाई को मार दिया था. 

       गांव में कोई मुसलमान आकार हिंदू से ये कहेता था की हमें कासिम साहब घुनघुटी मुल्लाह वाले के घर जाना है तो हिंदू लोग उस मुसलमानो को सम्मान के साथ कासिम भाई के घर तक छोड़ने आते थे. 

       जेल से छूटने के बाद कासिम भाई का भेड़ बकरी का धंदा चौपट हो चूका था. अतः मच्छी पकड़कर तथा महेनत मजदूरी करके अपना निर्वाह करते थे. उस जमाने में कुए की खुदाई के लिये बारूद का उपयोग किया जाता था. दुर्भाग्य से बम उसकी नजदीक रहते ही फट गया और विस्फोट ने उसे आसमान में उड़ा दिया. पुरा शरीर घाव से भर गया और उसे अपना एक हाथ खोना पडा. उसके बाद भी 65 साल की उम्र तक लोगोंको आयुर्वेदिक औषधी देकर समाज सेवा का कार्य करते रहे, और गांव में हिंदू मुसलमान लोग अमन शांति से रहे इसके लिए जिंदगी भर प्रयास करते रहे. 

     हिंदू मुसलमान कोम में भाईचारा, अमन शांति की भावना रखने वाले कासिम भाई का पोता अशरफ शेख, आज हमारे मिरा भाईंदर क्षेत्र में भाईंदर पश्चिम राई गांव स्थित रह रहा है, और अपनी 707 न्यूज़ चैनल चलाकर देश हित में अत्याचार, भ्रस्ट्राचार, की लड़ाई लड़ रहा है. 

        हालांकि उसकी पढाई कर्नाटक भाषा में हुई है अतः हिंदी लिखनेमे कई गलतियां करता है मगर उनके कार्य को देखते उन्होंने कम समय में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. और अपनी पत्रकारिता का धर्म निभा रहे है. पत्रकारिता के साथ आप विद्यादान व सामाजिक सेवाभावी ट्रस्ट से जुड़े है और संस्था के महा सचिव है. 

      पत्रकार अशरफ शेख जी का मानना है की मिरा भाईंदर, महा नगर पालिका बन गया है , मगर आज भी न्यायालय , एस टी बस स्थानक, पशु दफ़न भूमि, सुविधा युक्त अस्पताल, सात बारा उतारे पर जमीन का मालिकाना हक , इस्टेट इन्वेस्टमेंट कंपनी का जमीन पर कब्ज़ा जैसी विविध समस्या से जनता परेशान है. 

अशरफ सर , सैलूट टू योर,” नाना ” कासिम भाई. 

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