छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय , मुंबई, का 100 साल पुराना वस्तु संग्राहलय है. पहले इसका नाम द प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम था. जिसको बाद में सन 1998 मे मराठा साम्राज्य के संस्थापक श्री छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर बदल दिया गया.
इसका निर्माण वेल्स के राजकुमार के भारत यात्रा के आगमन की यादमे मुम्बई के प्रतिष्ठित उद्योगपतियो और नागरिकों से प्राप्त सहायता से मुम्बई सरकार द्वारा स्मारक के रूप में निर्मित किया गया था. इस सुंदर भव्य वास्तुकला का उद्घाटन वायसराय लॉयड जॉर्ज की पत्नी लेडी लॉयड के हाथों ता :10 जनवरी 1922 के दिन किया गया था.
यह वास्तु दक्षिण मुम्बई के फोर्ट विलियम मे स्थित है. इसके नजदीक पुलिस आयुक्त कार्यालय की भव्य प्राचीन ईमारत स्थित है. आगे समुद्र के तरफ जाने पर ” गेटवे ऑफ़ इन्डिया ” जिसे भारत का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है, जहां रोज हजारों पर्यटक घूमने फिरने आते है. गेट वे इंडिया के सामने स्थित पुरानी एवं नयी ताजमहल होटल पर्यटकों का आकर्षण केंद्र है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार सन 1904 मे बॉम्बे ( वर्तमान मुंबई ) के कुछ प्रमुख ओर प्रतिष्ठित नागरिकों ने प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन के समय उनकी स्मृति में एक भव्य संग्रहालय बनाने का निर्णय लिया. जिसके लिए ता : 14 अगस्त 1905 के दिन समिति ने एक प्रस्ताव पारित किया. ता : 11 नवंबर 1905 को इस संग्रहालय को बनाने का काम शुरू किया गया.
जिसका प्रिंस ऑफ वेल्स द्वारा नींव का पत्थर रखा गया था. और संग्रहालय को औपचारिक रूप से ” प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम ऑफ वेस्टर्न इंडिया ” नाम दिया गया था.
सन 1915 में यह संग्रहालय बनकर तैयार हो गया, जिसका नाम द प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम रखा गया. बताते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इस संग्रहालय का इस्तेमाल बाल कल्याण केंद्र और मिलिट्री अस्पताल के रूप में किया गया था. बाद मे एक म्यूजियम के रूप में इसका वायसराय लॉयड जॉर्ज की पत्नी लेडी लॉयड के कर कमलो द्वारा ता : 10 जनवरी 1922 के दिन उद्घाटन किया गया.
छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्राहलय दक्षिण मुम्बई, महाराष्ट्र में प्राचीन वास्तु है. इस संग्रहालय मे 50000 से ज्यादा कलाकृतियां प्रदर्शनी मे रखी गई है. यह वास्तु को मुगल, मराठा और जैन के तत्वों को शामिल करते हुए इंडो सारासेनिक वास्तुकला की शैली में बनाया गया है.
इस संग्रहालय मे प्राचीन इतिहास के साथ विदेशी भूमि की वस्तुओं को भी प्रदर्शित किया गया है. इस संग्राहलय को
मुख्य रूप से तीन खंडों में वर्गीकृत किया गया है (1) कला, (2) पुरातत्व और (3) प्राकृतिक इतिहास. संग्रहालय में सिंधु घाटी सभ्यता के शिल्प,और अन्य अवशेष गुप्तकालीन, मौर्य , चालुक्य और राष्ट्रकूट के समय के है.
कला खंड :
(1) कला खंड 1915 में अधिग्रहित सर पुरुषोत्तम मावजी के संग्रह को प्रदर्शित करता है , और सर रतन टाटा और सर दोराब टाटा के कला संग्रह क्रमशः 1921 और 1933 में दान किए गए थे
पुरातत्व विभाग :
(2) मूर्तियां और सिक्के पूना संग्रहालय में से स्थानांतरित कीये गये है. सिंधु घाटी संस्कृति गैलरी में हुक, हथियार, गहने और वजन और सिंधु घाटी सभ्यता से मछली पकड़ने के घर हैं. कलाकृतियों बौद्ध की खुदाई से स्तूप के मीरपुरखास से संग्रहालय में रखा गया है. मूर्तिकला संग्रह चालुक्य युग की तथा एलिफेंटा की है.
प्राकृतिक इतिहास :
(3) संग्रहालय का प्राकृतिक इतिहास खंड भारतीय वन्यजीवों का चित्रण करने के लिए चित्र और चार्ट के साथ साथ निवास स्थान के मामलों और डायोरमास का उपयोग करता है. राजहंस, महान हॉर्नबिल, भारतीय बाइसन और बाघों आदि अनेक है.
इस संग्रहालय की इमारत 3 एकड़ क्षेत्र में स्थित है. वास्तु के ठीक सामने एक सुंदर बगीचा है, जहां प्राचीन बडी तोप रखी गयी है. स्थानीय वास्तुकला की सर्वोत्तम शैली को ध्यान में रखते हुए इस ईमारत को बनाई गई थी. उस काल मे ” बॉम्बे हाई कोर्ट की इमारत ” और बाद में,” गेटवे ऑफ इंडिया ” की इमारतें सबसे उल्लेखनीय है.
” बॉम्बे प्रेसीडेंसी ” की सरकार ने संग्रहालय समिति को ” क्रीसेंट साइट “नामक भूमि का एक टुकड़ा दिया,जहाँ आज संग्रहालय अब खड़ा है. एक खुली डिजाइन प्रतियोगिता के बाद, 1909 में वास्तुकार जॉर्ज विटेट को संग्रहालय की इमारत को डिजाइन करने के लिए कमीशन किया गया था. विटेट ने पहले ही जनरल पोस्ट ऑफिस के डिजाइन पर काम किया था और 1911 में मुंबई के सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक, ” गेटवे ऑफ इंडिया ” को डिजाइन करने का काम दिया गया था.
संग्रहालय की इमारत शहर की एक ग्रेड प्रथम हेरिटेज बिल्डिंग है और 1990 में हेरिटेज बिल्डिंग के रखरखाव के लिए इंडियन हेरिटेज सोसाइटी के बॉम्बे चैप्टर द्वारा प्रथम पुरस्कार ( अर्बन हेरिटेज अवार्ड ) से सम्मानित किया गया था. एक बार अवश्य ये संग्राहलय देखने जैसा है..
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