सनातन ( हिंदू ) धर्म धार्मिक परंपरा के अनुसार हमारे चार पवित्र धर्मग्रंथ है. (1) ऋग्वेद (2) यजुर्वेद (3) सामवेद और (4) अथर्ववेद. ऋग्वेद को दुनिया का प्रथम धार्मिक ग्रंथ माना जाता है. ऋग्वेद से अन्य तीन वेद की रचना हुई है.
ऋग्वेद पद्यात्मक है, यजुर्वेद गद्यमय है और सामवेद गीतात्मक है. ऋग्वेद की रचना सम्भवतः सप्त-सैंधव प्रदेश में हुई थी. इसे यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की लगभग 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है. ये हमारे लिये गौरव की बात है.
वेदोंकी रचना किसी एक ऋषि ने एक निश्चित समय में नहीं की थी. ये विभिन्न काल में अनेकों ऋषियों द्वारा रची और संकलित की गयीं है. ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियां और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन किया गया है. इसमें वायु चिकित्सा, जल चिकित्सा सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा और हवन द्वारा चिकित्सा की जानकारी मिलती है. ऋग्वेद में च्यवनऋषि को पुनः युवा करने की कथा भी मिलती है.
ऋक् संहिता में 10 मंडल ( अध्याय ) 1028 सूक्त यांनी स्तुति और 10580 मन्त्र हैं, दूसरे से सातवें मंडल तक का अंश ऋग्वेद का श्रेष्ठ भाग है. आठवें और प्रथम मंडल के प्रारम्भिक 50 सूक्तों में समानता है.मन्त्र संख्या के विषय में विद्वानों मतमतांतर है. मंत्रों में देवताओं की स्तुति की गयी है. इसमें देवताओं का यज्ञ में आव्हान करने के लिये मन्त्र हैं. ये एक हिन्दू धर्म का सबसे आरम्भिक स्रोत है. इसकी रचना ईसा पूर्व 1800 से 1100 पहले हुई थी.
ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के रचयिता अनेक ऋषि मुनि हैं जबकि द्वितीय के गृत्समय, तृतीय के विश्वासमित्र, चतुर्थ के वामदेव, पंचम के अत्रि, षष्ठम् के भारद्वाज, सप्तम के वसिष्ठ, अष्ठम के कण्व व अंगिरा, नवम् और दशम मंडल के अनेक ऋषि हैं.
ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु भय दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है. विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र भी इसी में वर्णित है. ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त, लक्ष्मी सूक्त, तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक् तथा हिरण्यगर्भ सूक्त और विवाह आदि के सूक्त वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है.
ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है. आयुर्वेद के कर्ता धन्वंतरि देव हैं. ऋग्वेद ही विश्व का सबसे पहला ग्रंथ है.
ऋग्वेद में 33 देवी-देवताओं का उल्लेख है. इस वेद में सूर्या, उषा तथा अदिति जैसी देवियों का वर्णन किया है. इसमें अग्नि देवता को आशीर्षा, अपाद, घृतमुख, घृत पृष्ठ, घृत-लोम, अर्चिलोम तथा वभ्रलोम कहा गया है. इसमें इन्द्र को सर्वमान्य तथा सबसे अधिक शक्तिशाली देवता माना गया है. इन्द्र की स्तुति में ऋग्वेद में 250 ऋचाएँ हैं. ऋग्वेद के एक मंडल में केवल सोम देवता की स्तुति में श्लोक हैं,
ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में निर्गुण ब्रह्म का वर्णन है.इस वेद में आर्यों के निवास स्थल के लिए सर्वत्र ” सप्त सिन्धवः ” शब्द का प्रयोग हुआ है. इस में कुछ अनार्यों जैसे पिसाकास, सीमियां आदि के नामों का उल्लेख हुआ है. इसमें अनार्यों के लिए ” अव्रत ” (व्रतों का पालन न करने वाला), मृद्धवाच (अस्पष्ट वाणी बोलने वाला), ‘अनास’ (चपटी नाक वाले) कहा गया है.
इस वेद लगभग 25 नदियों का उल्लेख किया गया है, जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी सिन्धु का वर्णन अधिक है. सर्वाधिक पवित्र नदी सरस्वती को माना गया है तथा सरस्वती का उल्लेख भी कई बार हुआ है. इसमें गंगा का प्रयोग एक बार तथा यमुना का प्रयोग तीन बार हुआ है.
ऋग्वेद में राजा का पद वंशानुगत होता था. ऋग्वेद में सूत, रथकार तथा कर्मार नामों का उल्लेख हुआ है, जो राज्याभिषेक के समय पर उपस्थित रहते थे. इन सभी की संख्या राजा को मिलाकर 12 थी.
उत्तर वैदिक काल से पहले का वह काल जिसमें ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना हुई थी इन ऋचाओं की जो भाषा थी वो ऋग्वैदिक भाषा कहलाती है. ऋग्वैदिक भाषा हिंद यूरोपीय भाषा परिवार की एक भाषा है. इसकी परवर्ती पुत्री भाषाएँ अवेस्ता, पुरानी फ़ारसी, पालि, प्राकृत और संस्कृत हैँ.
ऋग्वेद के बारेमें कुछ विशेष तथ्य :
*** ऋग्वेद में “वाय” शब्द का प्रयोग जुलाहा तथा ” ततर ”
शब्द का प्रयोग करघा के अर्थ में किया गया है.
*** ऋग्वेद में ऐसी कन्याओं के उदाहरण मिलते हैं, जो की
दीर्घकाल तक या फिर आजीवन अविवाहित रहती थीं.
इन कन्याओं को ” अमाजू ” कहा जाता था.
*** ” विदथ ” सबसे प्राचीन संस्था थी. इसका ऋग्वेद में
122 बार उल्लेख किया गया है. ” समिति ” का 9 बार
तथा ” सभा ” का 8 बार उल्लेख किया गया है. ऋग्वेद
में कृषि का उल्लेख 24 बार हुआ है.
*** ऋग्वेद में ‘जन’ का उल्लेख 275 बार तथा ” विश ” का
170 बार किया गया है. कई ग्रामों के समूह को ” विश “
कहा गया है और अनेक विशों के समूह को ” जन” कहा
गया है. एक बड़े प्रशासनिक क्षेत्र के रूप में ” जनपद ”
का उल्लेख ऋग्वेद में केवल एक बार हुआ है. जनों के
प्रधान को ” राजन् ” या राजा कहा जाता था. आर्यों के
पाँच कबीले होने के कारण उन्हें ऋग्वेद में ” पञ्चजन्य ”
कहा गया है ये (1) पुरु, (2) यदु,(3) अनु, (4) तुर्वशु
तथा (5) द्रहयु. थे.
*** ऋग्वेद के 9 वें मंडल में सोम रस की प्रशंसा की गई है.
ऋग्वेद के 10 वे मंडल मे पुरुषसुक्त का वर्णन है.
*** असतो मा ” सदगमय ” वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है.
सूर्य सवितृ को सम्बोधित “:गायत्री मंत्र ” ऋग्वेद में
उल्लेख है. इस वेद में गाय के लिए ” अहन्या ” शब्द का
प्रयोग किया गया है.
*** ऋग्वेद में में कपड़े के लिए वस्त्र, वास तथा वसन शब्दों
का उल्लेख किया गया है. इस वेद में ” भिषक् ” को
देवताओं का चिकित्सक कहा गया है.
*** इस वेद में हिरण्यपिण्ड का वर्णन किया गया है. इस वेद
में ” तक्षन् ” अथवा ” त्वष्ट्रा ” का वर्णन किया गया है.
आश्विन का वर्णन भी ऋग्वेद में कई बार हुआ है. आश्विन
को नासत्य (अश्विनी कुमार) भी कहा गया है.
*** इस वेद के 7 वें मंडल में सुदास तथा दस राजाओं के
मध्य हुए युद्ध का वर्णन किया गया है, जो कि पुरुष्णी
(रावी) नदी के तट पर लड़ा गया था. इस युद्ध में सुदास
की जीत हुई थी.
*** इस वेद में केवल हिमालय पर्वत तथा इसकी एक चोटी मुञ्जवन्त का उल्लेख हुआ है.
ऋग्वेद में पाठ को दस मंडलो में बांटा गया है,जो कि अलग अलग समय में लिखे गए हैं और अलग लम्बाई के हैं. मंडल संख्या नंबर 2, से 7 ऋग्वेद के सबसे पुराने और सूक्ष्मतम मंडल हैं. यह मंडल कुल पाठ का 38% है. ——-
-====शिवसर्जन ====——