कर्मकांड प्रधानवेद ” यजुर्वेद ” |Yajurved

Yajurved

हमारे चार वेदोंको दुनिया के प्रथम धर्मग्रंथ होनेका बहुमान मिला है. वेद का अर्थ ज्ञान होता है , वेद ज्ञान का भंडार है. वेदोंमें ब्रह्म, परमात्मा, देवता, औषधी, इतिहास , भूगोल, खगोल, ब्रह्मांड, गणित, ज्योतिष, प्रकृति, रसायन, धार्मिक नियम, रीति रिवाज, आदि सभी विषयो का भंडार भरा परा है. वेद में मानव की हर समस्या का समाधान है.

        वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ पुणे के भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में रखी हुई हैं. इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ को यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है. वेदो के भाग में विभाजित किया गया है (1) ऋग्वेद, (2) यजुर्वेद, (3) सामवेद और (4) अथर्ववेद. ऋक को धर्म, यजु को मोक्ष, साम को काम, अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है. इन्ही के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई है. 

         यजुर्वेद में यत् का अर्थ गतिशील होता है. तथा जु का अर्थ आकाश होता है. यजुर्वेद में यज्ञ की विधियां और यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं. यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है. तत्व ज्ञान अर्थात रहस्यमयी ज्ञान. ब्रह्माण, आत्मा, ईश्वर और पदार्थ का ज्ञान. यह वेद गद्य मय है. इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिए गद्य मंत्र हैं. इस वेद की दो शाखाएं हैं, (1) शुक्ल और (2) कृष्ण. 

(1) वैशम्पायन ऋषि का सम्बन्ध कृष्ण से है. कृष्ण की चार शाखाएं हैं.

(2) शुक्ल : याज्ञवल्क्य ऋषि का सम्बन्ध शुक्ल से है. शुक्ल की दो शाखाएं हैं. इसमें 40 अध्याय हैं. यजुर्वेद के एक मंत्र में च्ब्रीहिधान्यों का वर्णन प्राप्त होता है. इसके अलावा, दिव्य वैद्य और कृषि विज्ञान का भी विषय इसमें मौजूद है.

       यजुर्वेद में रहस्यमयी विद्याओं, जड़ी बूटियों,चमत्कार और आयुर्वेद आदि का जिक्र है. इसके 20 अध्यायों में 5687 मंत्र है. इसके आठ खण्ड हैं, जिनमें भेषज वेद और धातु वेद ये दो नाम मिलते हैं. यजुर्वेद में ऋग्वेद के 663 मंत्र पाए जाते है. फिर भी इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है, क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है. यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘’ यजुस ’’ कहा जाता है.

        यजुर्वेद गद्यात्मक है. यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ऋग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है. इनमें स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुत कम हैं. यजुर्वेद में यज्ञों और हवनों आदि के नियम और विधान हैं. यह ग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान है. यदि ऋग्वेद की रचना सप्त सिन्धु क्षेत्र में हुई थी तो यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र के प्रदेश में हुई थी. इस ग्रन्थ से आर्यों के सामाजिक और धार्मिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है. वर्ण-व्यवस्था तथा वर्णाश्रम की झाँकी भी यजुर्वेद में मिलती है. यजुर्वेद में यज्ञों और कर्मकांड का वर्णन है.

     कहा जाता है की त्रेतायुग में सिर्फ एक ही वेद यजुर्वेद था. तत्प्रश्चात इसका चार भागोंमें विभाजन किया गया. 

         यजुर्वेद हिन्दू धर्म के चार पवित्रतम प्रमुख ग्रन्थों में से एक है और अक्सर ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है. इसमें ऋग्वेद के 663 मंत्र पाए जाते हैं. फिर भी इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है. यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ॠग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है. इनमें स्वतन्त्र पद्यात्मक मंत्र बहुत कम हैं. यजुर्वेद में 3988 ऋचाये सामिल है. इसका रचना काल 7000 से 1500 ईसा पूर्व बताया गया है. 

         जहां ॠग्वेद की रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्र में हुई थी वहीं यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र के प्रदेश में हुई थी. कुछ लोगों के मतानुसार इसका रचनाकाल 1400 से 1000 ई.पू. का माना जाता है.

     यजुस के नाम पर ही वेद का नाम यजुस+वेद(=यजुर्वेद) शब्दों की संधि से बना है. यज् का अर्थ समर्पण से होता है. पदार्थ (जैसे ईंधन, घी, आदि), कर्म (सेवा, तर्पण ), श्राद्ध, योग, इंद्रिय निग्रह इत्यादि के हवन को यजन यानि समर्पण की क्रिया कहा गया है.

      इस वेद में अधिकांशतः यज्ञों और हवनों के नियम और विधान हैं, अतः यह ग्रन्थ कर्मकांड प्रधान है. इसमें विभिन्न यज्ञों (जैसे अश्वमेध) का वर्णन है. यजुर्वेद पाठ अध्वुर्य द्वारा किया जाता है. यजुर्वेद 5 शाखाओ मे विभक्त् है. (1) काठक (2) कपिष्ठल (3) मैत्रियाणी(4) तैतीरीय (5) वाजसनेयी. 

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