पुर्तगाली खोजी नाविक “वास्को डी गामा.”|

vasco dgama

भारत देश तक पहुंचने के लिये समुद्री मार्ग को खोजने का श्रेय पुर्तगाली नाविक ” वास्को डी गामा ” को जाता है. जो ता : 20 मई, सन 1498 के दिन केरल के कोझीकोड जिले के कालीकट, काप्पड़ गांव पहुंचा था. यहीं से कुछ दूर कोच्ची में वास्को डी गामा की ” कब्र ” है. यहां से तीन बार वे पुर्तगाल गए और आये थे.

     वास्को के भारत आने के बाद पुर्तगाली भी भारत में आये और गोवा में अपना साम्राज्य स्थापित किया. 

        ” वास्को डी गामा ” यूरोप से भारत सीधी यात्रा करने वाले जहाजों के कमांडर थे, जो केप ऑफ गुड होप, अफ्रीका के दक्षिणी कोने से होते हुए भारत के समुद्री तट तक पहुंचे थे. उनकी इस यात्रा में 170 नाविकों के दल के साथ ” चार ” जहाज ” लिस्बन ” से रवाना हुए थे. मगर भारत यात्रा पूरी होने पर मात्र 55 आदमी ही दो जहाजों के साथ वापिस पुर्तगाल पहुंचे थे. 

     ये लोग मोजाम्बिक, मोम्बासा, मालिन्दी होते हुए भारत के कालीकट बंदरगाह तक पहुंचे थे. वास्को डी गामा भारत एक खोजी व्यापारी की तरह आये थे, ये लोग एक गुजराती व्यापारी का पीछा करते हुए यहां तक पहुंच गये थे. 

         वास्को डी गामा की इस खोज ने पश्चिमी देशों के लिए भारत के लिये व्यापार के दरवाजे खोल दिए थे. इस खोज के साथ वास्को डी गामा अपने साथ ईसाई मुस्लिम संघर्ष भी साथ लेकर आए, जिसके चलते कालीकट राज्य को पुर्तगाल के साथ सैन्य संघर्ष करना पड़ा था. 

       अपनी इस खोज पूरी होने के बाद वास्को डी गामा को पुर्तगाल सरकार ने राजकीय सम्मान दिया और उसे मान सम्मान के साथ राजकीय उपाधि भी दी थी.  

       उस जमाने मे काली मिर्ची को काला सोना कहा जाता था. एक किलो कालीमिर्च के बदले वो लोग एक किलो सोना देते थे. वास्को डी गामा भारत से काली मिर्च पुर्तगाल ले जाते थे, उस समय तक भारत में हरी मिर्च की खेती नहीं होती थी.

        भारत में हरी मिर्च को पुर्तगाली ही 16वीं सदी में लेकर आए थे. आज भारत हरी मिर्च ( मलयालम में मुलाकू ) का सबसे बड़ा उत्पादक भी है.

       वास्को डी गामाने ता : 8 जुलाई 1497 के दिन लिस्बन से यात्रा शुरू की थी. और वे मोजाम्बिक पहुंचे थे. यहां के सुल्तान की मदद से ता : 20 मई 1498 के दिन वे कालीकट के तट पर आ पहुंचे थे. 

        कालीकट के राजा ने उनसे कारोबार करने की संधि की, और सन 1502 मे वास्को डी गामा फिर भारत आए और कोच्चि के राजा से व्यापार करने का समझौता किया.

इसके तहत मसालों का कारोबार बनाए रखने के करार कीये गये. सन 1524 में वास्को डी गामा तीसरी बार भारत पहुंचे और यहीं उसकी ता : 24 मई 1524 के दिन मृत्यु हो गई. लिस्बन में वास्को के नाम का एक स्मारक है, इसी जगह से उन्होंने भारत की यात्रा शुरू की थी.

           पहले उन्हें कोच्चि में ही दफनाया गया, बाद में सन 1538 में कब्र खोदी गई और वास्को डी गामा के अवशेषों को पुर्तगाल ले जाया गया.” लिस्बन ” में आज भी उस जगह एक स्मारक है जहां से वास्को डी गामा ने पहली भारत यात्रा शुरू की थी.  

         वास्को द गामा या वास्को दा गामा भारत के पश्चिमी तट पर स्थित देश के सबसे छोटे राज्य गोवा का सबसे बड़ा नगर है. इसका नाम पुर्तगाली अन्वेषक वास्को द गामा के नाम पर रखा गया है. यह मुरगांव तालुक का मुख्यालय भी है. यह नगर मुरगांव प्रायद्वीप के पश्चिमी छोर पर और जुवारी नदी के मुहाने पर स्थित है. गोवा की राजधानी पणजी से यह 30 किलोमीटर और, डाबोलिम हवाई अड्डे से 5 कि.मी.की दूरी पर विध्यमान है.

        वास्को नगर की स्थापना सन 1543 में की गई थी और सन 1961 तक यह पुर्तगाली साम्राज्य का भाग रहा , बादमे इसे भारत ने अपने अधिकार में ले लिया था. अतीत में वास्को द गामा का नाम बदल कर सम्भाजी नगर करने के लिये प्रयास भी कीये गये थे.

         वास्तव मे देखा जाय तो वास्को डी गामा ने भारत की खोज नहीं की थी. वास्को डी गामा ने यूरोप को पहली बार भारत तक पहुंचने का समुद्री मार्ग बताया था. यूरोप अरब के देशों से मसाले, मिर्च खरीदता था. मगर उनको ये पता नहीं था की ये लोग इसका उत्पादन कहा करते है. फिर भी उनको संदेह था की अरब कुछ छुपा रहा है. 

      पुर्तगालियों की वजह से ब्रिटिश लोग भी यहां आने लगे. और सन 1615 में यह क्षेत्र ब्रिटिश अधिकार में आ गया था. 

       जब ता : 8 जुलाई 1497 के दिन वास्को डी गामा चार जहाजों के एक बेड़े के साथ लिस्बन से भारत आने के लिये निकले थे, तब वास्को डी गामा के बेड़े के साथ तीन दुभाषिए भी साथ लिये थे , जिसमें से दो अरबी बोलने वाले और एक कई बंटू बोलियों का जानकार था. 

   यह थी वास्को डी गामा की साहसिक कहानी. आपको पसंद आयी होंगी.

    ——===शिवसर्जन ===——–

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