धारापुरी एक धार्मिक एवं लोगोंका पसंदीदा पर्यटक केंद्र है. यहांकी गुफाये एलिफेंटा की गुफा के नामसे जग प्रसिद्ध है. ये महानगरी मुंबई के ” गेट वे ऑफ़ इंडिया ” स्मारक से करीब 10 किलोमीटर की दुरी पर समुद्र के बिच में, एक टापू पर स्थित है. यहां तक पहुंचने के लिये गेट वे ऑफ़ इंडिया से आसानीसे बोट सुविधा मील जाती है.
समुद्र बोट मार्ग से यहां तक पहुंचने में करीब एक घंटे का समय लगता है. दरम्यान आप बोट से मुंबई पश्चिम तट का नजारा देख सकते है. ” गेट वे ऑफ़ इंडिया ” के नजदीक ताजमहल होटल , तथा समुद्र के बड़े जहाज जिसे स्टीमर कहते है, उसे देखनेका मजा ही कुछ ओर आता है. ऐसी कई बडी समुद्र में तैरती स्टीमर का नजारा प्रेक्षणीय होता है.
वातावरण सही रहा तो समुद्र के विदेशी पक्षी ” सीगल ” अंग्रेजी में ” seagull ” पानी में तैरते दिखाई पड़ सकते है. किनारे पहुंचते ही आपको वहां एंट्री फीस चुकानी होंगी.
यहांकी कलात्मक गुहाए आपको जरूर पसंद आएँगी. एलिफेंटा नाम पुर्तगालियों द्वारा यहाँ पर बने पत्थर के हाथी के कारण दिया गया था. यहाँ कुल सात गुफाएँ हैं. यहांकी मुख्य गुफा में 26 स्तंभ हैं. जिसमें भगवान श्री शिवजी को कई रूपों में उकेरा गया हैं.यह मूर्तियां पहाड़ियों को काटकर बनाई गई है. इसकी शिल्पकला दक्षिण भारतीय मूर्तिकला से प्रेरित है. जो प्रेक्षणीय है.
इसका भूमि का ऐतिहासिक नाम घारापुरी है. यहाँ हिन्दू धर्म के अनेक देवी देवताओं कि मूर्तियाँ विध्यमान हैं.ये मंदिर पहाड़ियों को काटकर बनाये गए हैं. यहाँ भगवान शंकर की नौ बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ हैं जो शंकर जी के विभिन्न रूपों तथा क्रियाओं को दर्शाती हैं. इनमें शिव की ” त्रिमूर्ति ” प्रतिमा सबसे आकर्षक और बडी करीब 24 फीट लंबी तथा 17 फीट ऊंची है.
इस मूर्ति में भगवान शंकर जी के तीन रूपों का चित्रण किया गया है. इसीलिए इसे त्रिमूर्ति कहां जाता है. मूर्ति में श्री शंकर भगवान के मुख पर अपूर्व गम्भीरता दिखती है. यूनेस्को ने सन 1987 में इसे विश्व धरोहर स्थलके रूपमें घोषित किया है. इस मूर्ति को श्री सदाशिव मूर्ति भी कहां जाता है.
दूसरी मूर्ति श्री शिव जी के पंचमुखी परमेश्वर रूप की है. एक अन्य मूर्ति शंकर जी के अर्धनारीश्वर रूप की है जिसमें दर्शन तथा कला का सुन्दर समन्वय किया गया है. इस प्रतिमा में पुरुष तथा प्रकृति की दो महान शक्तियों को मिला दिया है. इसमें शंकर तनकर खड़े दिखाये गये हैं तथा शिवजी का हाथ अभय मुद्रा में दिखाया गया है. उनकी जटा से गंगा, यमुना और सरस्वती की त्रिधारा बहती हुई चित्रित की गई है.
एक मूर्ति सदाशिव की चौमुखी में गोलाकार है. यहाँ पर शिव जी के भैरव रूप का भी सुन्दर चित्रण किया गया है तथा तांडव नृत्य की मुद्रा में भी शिव भगवान को दिखाया गया है. इस दृश्य में गति एवं अभिनय है. इसी कारण अनेक लोगों के विचार से एलिफेण्टा की मूर्तियाँ सबसे अच्छी तथा विशिष्ट मानी गई हैं. यहाँ पर शिव एवं पार्वती के विवाह का भी सुन्दर चित्रण किया गया है.
एलीफैंटा गुफाओं में अर्धनारीश्वर की प्रतिमा, जिसमें बांया अंग स्त्री व दायां अंग पुरुष रूप में है. यह दोनों हिन्दू देवी पार्वती व भगवान शिव के रूप बताये जाते हैं.
फेरीवाले स्मृति चिन्ह जैसे हार, पायल, शोपीस और कीचेन बेचते हैं. खाने-पीने की चीजें खरीदने के लिए स्टॉल भी मौजूद हैं. बंदर रास्ते में ध्यान आकर्षित करते हैं, जो कभी कभार पर्यटकों की वस्तुए छीन लेते है. यह श्री क्षेत्र महाराष्ट्र में रायगढ़ जिले के अधिकार क्षेत्र में आता है. यह द्वीप ताड़, आम और इमली के पेड़ों से भरा हुआ है.
मुंबई पोर्ट ट्रस्ट की योजना के अनुसार यह द्वीप हापुड़, मुंबई से रोपवे के माध्यम से जोड़ा जायेगा. ये योजना जब कार्यान्वित हो जायेगी तो एलीफैंटा स्थल तक पहुँचने में केवल 15 मिनट का समय लगेगा जबकि वर्तमान में फेरी में लगभग एक घंटा समय लगता है.
धारापुरी की जनसंख्या करीब 1200 की है. इनका मुख्य व्यवसाय चावल उगाना, मछली पकड़ना, नावो की मरम्मत करना प्रमुख है. यहांपर कुल तीन गाँव हैं: शिंतबंदर, मोरबंदर और राजबंद, जिनमें से राजबंदर मुख्य गांव है.
मोरबंदर में घना जंगल है. पर्यटकों के लिए रात भर रुकने की अनुमति नहीं है. एलिफेंटा पहुंचने के लिये गेट वे ऑफ़ इंडिया से पहेली फेरी सुबह 9 बजे और आखरी दोपहर 2 बजे निकलती है. पहली वापसी नौका दोपहर 12:30 बजे और अंतिम नौका शाम 6:30 बजे होती है.
डॉक पर नाव क्षेत्र से गुफाओं तक जाने के एक संकीर्ण गेज खिलौना ट्रेन है. जो आनेवाले पर्यटकों का खास ध्यान आकर्षित करती है. शीर्ष पर दो ब्रिटिश युग की तोप हैं. तथा हाल ही में, एक छोटा बांध बनाया गया है ताकि बारिश का पानी जमा हो. द्वीप का वह हिस्सा निजी तौर पर स्वामित्व में है और पर्यटकों के लिए सुलभ नहीं है.
मुंबई और उपनगरों में रहनेवाले लोगोंके लिये यह स्थल एक बार देखने योग्य है. जिसमे समुद्र की सैर, तथा प्राकृतिक कुदरती सौंदर्य का नजारा, वो भी धार्मिक वातावरण में मौजूद है. पहली बार मे 58 साल पहले वहां गया था. सन 1962 में हमारी स्कूल की ट्रिप भाईंदर से वहां गई थी तब इस क्षेत्र का कोई खास विकास नहीं हुआ था. मगर आज परिस्थिति कुछ ओर है.
——-===शिवसर्जन ===———